साधुओं की कुर्बानी से बेपरवाह 'गंगा के व्यावसायिक दोहन' में लगी भाजपा

Written by संदीप पाण्डेय | Published on: January 26, 2019
गंगा को बचाने के लिए इस दशक में चार साधू- स्वामी निगमानंद, स्वामी गोकुलानंद, बाबा नागनाथ, स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद- शहीद हो चुके हैं, एक संत गोपाल दास अनशन करते हुए लापता हो गए व 26 वर्षीय केरल निवासी ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के अनशन के सौ दिन पूरे हो रहे हैं। केन्द्र सरकार ने गंगा के मुद्दे पर संघर्षरत इन साधुओं को नजरअंदाज करने की रणनीति अपनाई हुई है।

35 वर्षीय स्वामी निगमानंद 2011 में गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन करते हुए हरिद्वार के एक अस्पताल में 115वें दिन चल बसे। जिस आश्रम से वे जुड़े हुए थे, हरिद्वार के मातृ सदन, का आरोप है कि उत्तराखण्ड की तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें एक खनन माफिया के दबाव में जहर देकर मरवाया। मातृ सदन का अवैध खनन के खिलाफ पहला अनशन 1998 में हुआ था जिसमें निगमानंद के साथ स्वामी गोकुलानंद बैठे थे। 2003 में गोकुलानंद की नैनीताल के बामनेश्वर मंदिर में अज्ञातवास में रहते हुए खनन माफिया द्वारा हत्या कर दी गई। 2014 में बाबा नागनाथ की वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर गंगा को अविरल व निर्मल बहने देने की मांग को लेकर अनशन के 114वें दिन मौत हो गई। ज्ञान स्वरूप सानंद पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल के नाम से जाने जाते थे। 2018 में 112 दिन अनशन करने के बाद उनकी मौत आखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में हो गई जहां उन्हें मातृ सदन से उठा कर एक दिन पहले लाया गया था। स्वामी सानंद के जिन्दा रहते ही आश्रम प्रमुख स्वामी शिवानंद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को बता दिया था कि यदि स्वामी सानंद को कुछ हुआ तो वे और उनके अनुयायी अनशन पर बैठ उनकी तपस्या जारी रखेंगे।

मातृ सदन के 26 वर्षीय ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद 24 अक्टूबर, 2018 से आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। आत्मबोधानंद केरल में कम्प्यूटर साइंस में स्नातक की पढ़ाई छोड़ मात्र 21 वर्ष की अवस्था में सन्यासी बनने के उद्देश्य से केरल से सीधे हरिद्वार पहुंच गए थे। अपने पास जो कुछ भी था वह गंगा में अर्पण कर सिर्फ शरीर पर जो कपड़े थे उसी में बद्रीनाथ की तरफ चल पड़े। रास्ते में श्रीनगर में नदी के ऊपर बने बांध को देख थोड़ा चौंके भी। तमाम साधुओं से मिलने व आश्रमों के भ्रमण के बाद धर्म के व्यवसायीकरण का रूप देख निराश भी हुए। एक दिन बद्रीनाथ में विचरण करते अकस्मात स्वामी शिवानंद से मुलाकात हो गई और फिर उन्हीं के साथ मातृ सदन चले आए। मातृ सदन आकर ऐसा लगा जैसे वे वहीं के लिए बने हों। फिर मातृ सदन द्वारा गंगा में अवैध खनन के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में जुड़ गए। 2014 व 2015 में दो-दो बार, 2016 में एक बार व फिर 2017 में दो बार, अब तक कुल सात अनशन कर चुके हैं। अभी तक उन्होंने अधिकतम 47 दिनों का अनशन किया है। पूर्व के अनशनों में वे सिर्फ नींबू, नमक व पानी लेते थे। इस बार वे शहद भी ले रहे हैं क्योंकि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद भी इसी तरीके से अनशनरत थे। सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं है।

एक बार 2017 में जब जिलाधिकारी हरिद्वार दीपक रावत, जो गंगा में अवैध खनन को संरक्षण दे रहे थे, को एक कार्यक्रम में मदन मोहन मालवीय के नाम पर पुरस्कार दिया जा रहा था तो आत्मबोधानंद ने सार्वजनिक रूप से सवाल खड़ा किया तो जिलाधिकारी व उनके सुरक्षाकर्मी ने उनकी मंच के पीछे एक कमरे में ले जाकर पिटाई की और उसके बाद एक दिन के लिए जेल भी भेज दिया। आत्मबोधानंद ने जिलाधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जो अभी भी चल रहा है।

वाराणसी में मल्लाह या निषाद समाज एक निजी कम्पनी द्वारा गंगा में आधुनिक मशीनीकृत क्रूज़ चलाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि वहां तीन हजार नावों व उनसे जुड़े चालीस हजार लोगों की आजीविका के लिए अचानक संकट खड़ा हो गया। प्रत्येक वर्ष नावों का जो नगर निगम से लाइसेंस नवीनीकृत होता था वह इस बार नहीं हुआ और क्रूज़ को भारत सरकार के पर्यटन विभाग से ही अनुमति मिल गई है। निषाद समाज के नेता विनोद साहनी मई 2018 से झूठे मुकदमे में जेल में हैं क्यों वे मछुआरों या मल्लाहों के पारम्परिक रूप से होने वाले शोषण का भी विरोध कर रहे थे व आधुनिक परियोजनाओं का भी। निषाद समाज वाराणसी शहर से उस पार नदी के किनारे खेती करने के अपने पारम्परिक अधिकार के संरक्षण की भी मांग कर रहा है जो व्यवसायिक निहित स्वार्थी तत्वों की वजह से खतरे में पड़ गया है। इसी तरह गंगा के किनारे अन्य जगहों पर भी रहने वाले पारम्परिक समुदायों की आजीविका भी आधुनिक विकास की योजनाओं के कारण खतरे में पड़ गई है।

सरकार ने नमामि गंगे नाम से 20,000 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की हुई है जिसका आधे से ज्यादा पैसा रु. 11,176.81 करोड़ 117.87 करोड़ लीटर प्रति दिन सीवेज साफ करने की क्षमता वाले ट्रीटमेण्ट संयंत्र बनाने में खर्च होने वाला है किंतु सीवेज या शहरों से निकलने वाला गंदा पानी 290 करोड़ लीटर प्रति दिन है। जब तक हम तय क्षमता तैयार करेंगे तब तक सीवेज की मात्रा कई गुणा बढ़ चुकी होगी। अतः हम गंगा में गिरने वाले गंदे पानी को साफ करने की क्षमता के आस-पास भी नहीं हैं। अब कई लोग मानने लगे हैं कि गंदे पानी का निस्तारण बिना नदी में डाले कैसे हो यह सोचना पड़ेगा। नदी यदि बहती रहे तो उसके अंदर खुद को साफ करने की क्षमता होती ही है जिस मांग को लेकर प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल ने अनशन किया और अपनी जान दी लेकिन जो बात नितिन गडकरी का मंजूर नहीं थी क्यांकि वे बांध बनाने पर रोक लगाने को तैयार नहीं हैं।

अब तमाम विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि दो वजहों से गंगा पर पनबिजली परियोजनाएं नहीं बननी चाहिए। एक अधय्यन बताता है कि 2013 की बाढ़ में सबसे ज्यादा नुकसान उत्ताखण्ड में उन जगहों पर हुआ जहां बांध बने हुए थे इसलिए बांध बनाना आपदा को न्यौता देने जैसा है। दूसरा गंगा का विशेष चरित्र कि उसका पानी सड़ता नहीं यह उसके अंदर मौजूद बालू के कणों में है। लेकिन यह तभी है जब पानी बहता रहे। रूके पानी में ये कण नदी के तल में बैठ जाते हैं। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के मुताबिक 1965 में प्रति लीटर गंगा के पानी में कणों की मात्रा 8.92 मिलीग्राम होती थी जबकि वन विभाग का एक अध्य्यन बताता है कि 2016-17 में यह घट कर 4.68-5.52 मिलीग्राम रह गया है। यदि सरकार ने टिहरी बांध से पानी नहीं छोड़ा होता, जिसके कारण अचानक कई लोगों के घर व जमीनें डूब में आ गईं, तो इलाहाबाद, जो अब प्रयागराज बन गया है, के कुम्भ में इस बार डुबकी लगाने भर का भी पानी नहीं होता।

यदि भाजपा की सरकार अपने किए वायदे के अनुसार गंगा को साफ करती तो भारत में रहने वाले 10 में से 4 व्यक्तियों को सीधा लाभ पहुंचता। लेकिन वह चुनाव आते ही अयोध्या में राम मंदिर की बात कर रही है जिसके बनने पर किसी का जीवन निर्भर नहीं है और शबरीमाला में तो वह सर्वोच्च न्यायालय के विरूद्ध जाकर बच्चे जनने की उम्र वाली महिलाओं के मंदिर प्रवेश का विरोध कर रही है। अच्छा होता यदि वह प्रतिगामी भूमिका लेने के बजाए जनहित वाला काम करती।

आरएसएस-भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उसे धर्म और पूंजीवादी विकास में चुनना हो तो वह किसे चुनेंगे। लेकिन यह बात नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जा रही है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है कि ’मुनि तापस जिन्ह तें दुःखु लहहीं। ते नरेश बिनु पावक दहहीं।।’ इसे इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि जबसे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद और अब ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद आमरण अनशन पर बैठे हैं जिससे भाजपा और नरेन्द्र मोदी समस्याओं से घिर गए हैं।
 

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