झारखंड: क्वारंटाइन सेंटर में जातिगत भेदभाव पर उपायुक्त के बदलते बयान की पुनः जाँच की मांग

Published on: May 28, 2020
झारखंड के बनासो पंचायत बिष्णुगढ़ प्रखंड, हज़ारीबाग़ के क्वारंटाइन सेंटर में रुके हुए चार ब्राह्मण प्रवासी मज़दूरों द्वारा जातिगत भेदभाव करते हुए दलित कुक के हाथ से बना खाना खाने से इँकार कर दिया गया था। इस मामले में डीसी हज़ारीबाग़ भुवनेश कुमार सिंह का बयान भी आया था  जिसमें सूखा राशन उपलब्ध कराए जाने की बात स्वीकारी गई थी। लेकिन बाद में एक वीडियो जारी कर इसे नकारने की कोशिश की गई। इस मामले पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और 30 जन संगठनों के मंच झारखंड जनाधिकार महासभा ने इस मामले की दोबारा जांच की मांग की है। महासभा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि....



25 मई, 2020 को प्रभात खबर में खबर छपी कि बनासो पंचायत बिष्णुगढ़ प्रखंड, हज़ारीबाग़ के क्वारंटाइन सेंटर में रुके हुए चार ब्राह्मण प्रवासी मज़दूरों ने खाना खाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि खाना बनाने वाली अनुसूचित जाति से थीं। ब्राह्मणों ने पका हुआ भोजन के बदले सूखा राशन देने की प्रशासन से माँग की। जिसके पश्चात् मुखिया द्वारा इन चारों के लिए अलग से सूखा राशन का प्रबंध किया गया। रिपोर्ट में डीसी हज़ारीबाग़ भुवनेश कुमार सिंह का बयान भी आता है कि बीडीओ से बात हुई है और जिन लोगों ने खाना खाने मना किया था, उनके लिए सूखा राशन का प्रबंध कराया गया है। यह खबर टाइम्स ऑफ़ इंडिया अख़बार में भी छपा था, उपयुक्त के बयान के साथ, जिसमें भी यही खबर थी। 

अब जब प्रशासन द्वारा जातिवादी भेदभाव की घटना पर अलग से भोजन का प्रावधान किया जाता है, तो यह सामाजिक अन्याय और जातिवादी सोच और बर्ताव को बढ़ावा देना है। इसको लेकर झारखण्ड जनाधिकार महासभा द्वारा भी ट्वीट किया गया था और माँग की गयी थी कि जिन लोगों ने खाना खाने मना किया उनपर कार्रवाई हो, साथ ही साथ प्रशासन पर भी कार्रवाई हो, जो इस भेदभाव में अलग भोजन का प्रावधान कर उतनी ही भागीदार है। 

ट्विटर के माध्यम से अन्य पत्रकार, सामजिक कार्यकर्ता, एवं जागरूक नागरिकों ने भी यह मुद्दा उठाया। जिसके बाद झारखण्ड पुलिस द्वारा हज़ारीबाग पुलिस को टैग कर के मामले का संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने को कहा। उसी दिन बनासो प्रखंड के क्वारंटाइन सेंटर में खाना बनाने वालों की वीडियो भी घूमती है, जिसमें वे कह रहे हैं कि अखबार में गलत लिखा हुआ है, और ऐसी कोई घटना नहीं घटी। उस वीडियो में ये भी स्पष्ट पता चलता है कि कोई कैमरा के पीछे से बतला रहे हैं कि क्या बोलना है। शाम तक उपायुक्त हज़ारीबाग महासभा के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए बतलाते हैं कि मामले को लेकर अपर समाहर्ता द्वारा जांच किया गया, जिसके उपरांत मामला निराधार पाया गया।

अगले दिन 26 मई, 2020 को प्रभात खबर में भी यही खबर छपती है कि क्वारंटाइन सेंटर में सभी लोग खाना खा रहे हैं, और उपायुक्त का बयान आता है कि वहां की स्थिति सामान्य है और अपर समाहर्ता की जाँच में जातिगत भेदभाव का मामला निराधार है। अब सवाल ये उठता है कि एक ही दिन पहले के उपायुक्त का बयान कि सूखा राशन पहुँचाया गया की क्या बुनियाद थी? टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में भी स्पष्ट लिखा था कि उपायुक्त भुवनेश कुमार सिंह ने मामले को कन्फर्म किया था। यदि स्थिति सामान्य थी, तो सूखा राशन पहुँचाने का और घटना का पुष्टिकरण अखबारों को किस बिनाह पर दिया गया?

झारखण्ड में अन्य क्षेत्रों से भी क्वारंटाइन सेंटर में दलित/आदिवासी लोगों के साथ भेदभाव की जानकारी प्राप्त हुई है(जैसे सिमडेगा के कैरबेड़ा पंचायत और बोलबा प्रखंड में)। झारखण्ड जनाधिकार महासभा किसी भी तरह की जातिगत भेदभाव के खिलाफ है और उसकी कड़ी निंदा करती है। इस घटना में जहाँ तथ्य मेल नहीं खा रहे, और मामला संदेहजनक प्रतीत होता है, झारखण्ड जनाधिकार महासभा निम्न माँगे करती है:

1) इस बात का स्पष्टीकरण दिया जाए कि उपायुक्त, बीडीओ और मुखिया द्वारा कि क्वारंटाइन सेंटर में सूखा राशन क्यों पहुँचाया गया और अखबारों को घटना की पुष्टिकरण क्यों दी गयी? उपायुक्त, हज़ारीबाग़ द्वारा विपरीत स्टेटमेंट्स क्यों दिए गए, इसकी स्पष्टीकरण दी जाए। 

2) अपर समाहर्ता की जाँच में क्या प्रक्रिया अपनाया गया और किन बिनाहों पर ये पाया गया कि ये मामला निराधार है, ये जानकारी सार्वजनिक की जाए।

3) इस मामले की पुनः जाँच हो, और दोषी पाए जाने पर सभी सम्बंधित लोगों पर कार्रवाई हो।

4) पूरे झारखण्ड राज्य में कड़ी निगरानी हो कि किसी भी क्वारंटाइन सेंटर में भेदभाव की घटना नहीं हो, और पाया जाने पर कठोर कार्रवाई की जाए। किसी भी हाल में समानता के संवैधानिक व मानवीय मूल्यों का हनन ना हो।

(झारखंड जनाधिकार महासभा कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और 30 जन संगठनों का एक मंच है जिसका गठन अगस्त 2018 में किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य है राज्य में जन अधिकारों और लोकतंत्र पर हो रहे हमलों के विरुद्ध संघर्षों को संगठित और सुदृढ़ करना।) 

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