जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज को झारखंड पुलिस ने हिरासत में लेकर जनदवाब के चलते रिहा कर दिया है। उन्हें गढ़वा के बिशुनपुर थाना में हिरासत में लिया गया था। ज्यां द्रेज के साथ दो और लोगों को भी हिरासत में लिया गया था। सभी को बिशुनपुर थाना में रखा गया। जानकारी के अनुसार वह अपने साथियों के साथ बिशुनपुर बाजार में कार्यक्रम कर रहे थे। ज्यां द्रेज को हिरासत में लिए जाने का कारण पूछे जाने पर गढ़वा के डीसी हर्ष मंगला ने बताया कि ज्यां द्रेज और उनके साथियों को किसी तरह की सभा करने की अनुमति प्रशासन की तरफ से नहीं दी गयी थी। बावजूद इसके वे लोग सभा कर रहे थे। इसलिए उन्हें हिरासत में लिया गया है।
इधर, पुलिस का कहना है कि आचार संहिता लागू है और बिना प्रशासनिक अनुमति के कार्यक्रम किया जा रहा था। मामले की जानकारी एसडीओ और दंडाधिकारी को दे दी गयी है। उनके आने पर सभी को मुक्त करने पर फैसला लिया जायेगा। इधर, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने बताया कि बिशुनपुर बाजार में राईट टू फुड (भोजन के अधिकार) को लेकर कार्यक्रम का आयोजन था। इसकी जानकारी प्रशासन को दी गयी थी। तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ। जिसके कुछ देर बाद पुलिस पहुंची और उन्हें थाना ले आयी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह हो सकता है कि ज्यां द्रेज की टीम ने कार्यक्रम की जानकारी प्रशासन को दी हो। लेकिन उन्हें कार्यक्रम की अनुमति नहीं मिली है. यही कारण है कि उन्हें हिरासत में लिया गया है। अभी उन्हें थाना में ही रखा गया है।
ज्यां द्रेज ने कई बड़े गड़बडियों के किये हैं खुलासे
कुछ महीनों पहले ज्यां द्रेज ने झारखंड राज्य में जिन लोगों का आधार से पेंशन, राशन कार्ड, जॉब कार्ड लिंक नहीं हुआ है वैसे लाभार्थियों को लाभ से वंचित किए जाने का खुलासा किया था। झारखंड में जॉब कार्ड, राशन कार्ड या पेंशनर को फर्जी बताया गया है और इस मद में बची हुई राशि को सरकार आधार इनेबल सेविंग कहकर खुद की वाहवाही लूट रही है। झारखंड में आधार कार्ड से लिंक नहीं होने के कारण हजारो जॉब कार्ड भी कैंसिल कर दिए गए हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ज्यां द्रेज ने यह बातें कहीं थी।
ज्यां द्रेज ने खुलासा किया था कि 2017 में केंद्र सरकार ने कहा कि आधार की वजह से 100 करोड़ रुपये बचाए। सरकार जिस तरीके से फर्जी राशन कार्ड बताकर राशन कार्ड को कैंसिल कर रही है वह गलत है। आरटीआई से प्राप्त सूचना से पता चला है कि राज्य में रद्द किए गए राशन कार्डों में से मात्र 12 प्रतिशत ही गलत थे। इसके कारण जरूरतमंदों को उनके राशन के अधिकार से वंचित हो जाना पड़ा।उन्होंने ये भी कहा था कि राज्य में आधार की वजह से दो लाख पेंशनरों की पेंशन रद्द कर दी गई, जबकि इस मुद्दे पर खूंटी जिला में आकलन करने पर पता चला कि ऐसे लोगों की ही पेंशन रद्द की गई जिन्होंने किसी वजह से आधार से बैंक खाता लिंक नहीं कराया था। राज्य सरकार की इस तरह की कार्रवाई से जरूरतमंद भूखे मरने को मजबूर हो रहे हैं। हालांकि उनकी गिरफ्तारी किस मामले में हुई है ये खुलासा अभी नहीं हो सका है।
ज्यां द्रेज 1959 में बेल्जियम में पैदा हुए थे। पिता जैक्वेस द्रेज अर्थशास्त्री थे। ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए। 1979 से भारत में ही रह रहे हैं। भारत की नागरिकता उन्हें 2002 में मिली। इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी पूरी की है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित देश-दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर हैं। अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित आमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं। इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 लों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं। वो भारत में भूख, महिलाओं के मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता के लिए काम कर रहे हैं।
हाल ही में ज्यां द्रेज और अमत्र्य सेन ने मिलकर भारत और उसके विरोधाभास पुस्तक का प्रकाशन किया है जो कि काफी चर्चे में है। पुस्तक में बताया कि नब्बे के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिहाज से अच्छी प्रगति की है। उपनिवेशवादी शासन तले जो देश सदियों तक एक निम्न आय अर्थव्यवस्था के रूप में गतिरोध का शिकार बना रहा और आज़ादी के बाद भी कई दशकों तक बेहद धीमी रफ्तार से आगे बड़ा, उसके लिए यह निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन ऊंची और टिकाऊ वृद्धि दर को हासिल करने में सफलता अन्तत: इसी बात से आंकी जाएगी कि इस आर्थिक वृद्धि का लोगों के जीवन तथा उनकी स्वाधीनताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है।
भारत आर्थिक वृद्धि दर की सीढिय़ां तेजी से तो चढ़ता गया है लेकिन जीवन-स्तर के सामाजिक संकेतकों के पैमाने पर वह पिछड़ गया है—यहां तक कि उन देशों के मुकाबले भी जिनसे वह आर्थिक वृद्धि के मामले में आगे बढ़ा है।दुनिया में आर्थिक वृद्धि के इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण मिलते हैं कि कोई देश इतने लम्बे समय तक तेज आर्थिक वृद्धि करता रहा हो और मानव विकास के मामले में उसकी उपलब्धियां इतनी सीमित रही हों। इसे देखते हुए भारत में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति के बीच जो सम्बन्ध है उसका गहरा विश्लेषण लम्बे अरसे से अपेक्षित है। यह पुस्तक बताती है कि इन पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में समझदारी का प्रभावी उपयोग किस तरह किया जा सकता है। जीवन-स्तर में सुधार तथा उनकी बेहतरी की दिशा में प्रगति और अन्तत: आर्थिक वृद्धि भी इसी पर निर्भर है।
साभार- दक्षिण कौशल के संपादक उत्तम कुमार
इधर, पुलिस का कहना है कि आचार संहिता लागू है और बिना प्रशासनिक अनुमति के कार्यक्रम किया जा रहा था। मामले की जानकारी एसडीओ और दंडाधिकारी को दे दी गयी है। उनके आने पर सभी को मुक्त करने पर फैसला लिया जायेगा। इधर, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने बताया कि बिशुनपुर बाजार में राईट टू फुड (भोजन के अधिकार) को लेकर कार्यक्रम का आयोजन था। इसकी जानकारी प्रशासन को दी गयी थी। तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ। जिसके कुछ देर बाद पुलिस पहुंची और उन्हें थाना ले आयी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह हो सकता है कि ज्यां द्रेज की टीम ने कार्यक्रम की जानकारी प्रशासन को दी हो। लेकिन उन्हें कार्यक्रम की अनुमति नहीं मिली है. यही कारण है कि उन्हें हिरासत में लिया गया है। अभी उन्हें थाना में ही रखा गया है।
ज्यां द्रेज ने कई बड़े गड़बडियों के किये हैं खुलासे
कुछ महीनों पहले ज्यां द्रेज ने झारखंड राज्य में जिन लोगों का आधार से पेंशन, राशन कार्ड, जॉब कार्ड लिंक नहीं हुआ है वैसे लाभार्थियों को लाभ से वंचित किए जाने का खुलासा किया था। झारखंड में जॉब कार्ड, राशन कार्ड या पेंशनर को फर्जी बताया गया है और इस मद में बची हुई राशि को सरकार आधार इनेबल सेविंग कहकर खुद की वाहवाही लूट रही है। झारखंड में आधार कार्ड से लिंक नहीं होने के कारण हजारो जॉब कार्ड भी कैंसिल कर दिए गए हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए ज्यां द्रेज ने यह बातें कहीं थी।
ज्यां द्रेज ने खुलासा किया था कि 2017 में केंद्र सरकार ने कहा कि आधार की वजह से 100 करोड़ रुपये बचाए। सरकार जिस तरीके से फर्जी राशन कार्ड बताकर राशन कार्ड को कैंसिल कर रही है वह गलत है। आरटीआई से प्राप्त सूचना से पता चला है कि राज्य में रद्द किए गए राशन कार्डों में से मात्र 12 प्रतिशत ही गलत थे। इसके कारण जरूरतमंदों को उनके राशन के अधिकार से वंचित हो जाना पड़ा।उन्होंने ये भी कहा था कि राज्य में आधार की वजह से दो लाख पेंशनरों की पेंशन रद्द कर दी गई, जबकि इस मुद्दे पर खूंटी जिला में आकलन करने पर पता चला कि ऐसे लोगों की ही पेंशन रद्द की गई जिन्होंने किसी वजह से आधार से बैंक खाता लिंक नहीं कराया था। राज्य सरकार की इस तरह की कार्रवाई से जरूरतमंद भूखे मरने को मजबूर हो रहे हैं। हालांकि उनकी गिरफ्तारी किस मामले में हुई है ये खुलासा अभी नहीं हो सका है।
ज्यां द्रेज 1959 में बेल्जियम में पैदा हुए थे। पिता जैक्वेस द्रेज अर्थशास्त्री थे। ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए। 1979 से भारत में ही रह रहे हैं। भारत की नागरिकता उन्हें 2002 में मिली। इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी पूरी की है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित देश-दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर हैं। अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित आमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं। इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 लों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं। वो भारत में भूख, महिलाओं के मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता के लिए काम कर रहे हैं।
हाल ही में ज्यां द्रेज और अमत्र्य सेन ने मिलकर भारत और उसके विरोधाभास पुस्तक का प्रकाशन किया है जो कि काफी चर्चे में है। पुस्तक में बताया कि नब्बे के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था ने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिहाज से अच्छी प्रगति की है। उपनिवेशवादी शासन तले जो देश सदियों तक एक निम्न आय अर्थव्यवस्था के रूप में गतिरोध का शिकार बना रहा और आज़ादी के बाद भी कई दशकों तक बेहद धीमी रफ्तार से आगे बड़ा, उसके लिए यह निश्चित ही एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन ऊंची और टिकाऊ वृद्धि दर को हासिल करने में सफलता अन्तत: इसी बात से आंकी जाएगी कि इस आर्थिक वृद्धि का लोगों के जीवन तथा उनकी स्वाधीनताओं पर क्या प्रभाव पड़ा है।
भारत आर्थिक वृद्धि दर की सीढिय़ां तेजी से तो चढ़ता गया है लेकिन जीवन-स्तर के सामाजिक संकेतकों के पैमाने पर वह पिछड़ गया है—यहां तक कि उन देशों के मुकाबले भी जिनसे वह आर्थिक वृद्धि के मामले में आगे बढ़ा है।दुनिया में आर्थिक वृद्धि के इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण मिलते हैं कि कोई देश इतने लम्बे समय तक तेज आर्थिक वृद्धि करता रहा हो और मानव विकास के मामले में उसकी उपलब्धियां इतनी सीमित रही हों। इसे देखते हुए भारत में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति के बीच जो सम्बन्ध है उसका गहरा विश्लेषण लम्बे अरसे से अपेक्षित है। यह पुस्तक बताती है कि इन पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में समझदारी का प्रभावी उपयोग किस तरह किया जा सकता है। जीवन-स्तर में सुधार तथा उनकी बेहतरी की दिशा में प्रगति और अन्तत: आर्थिक वृद्धि भी इसी पर निर्भर है।
साभार- दक्षिण कौशल के संपादक उत्तम कुमार