रांची। झारखंड सिंचाई परियोजना की नहर को बनने में जहां एक ओर 42 साल लग गए, वहीं इसके उद्धाटन के सिर्फ 24 घंटे के भीतर यह बह गई। नहर के माध्यम से गिरीडीह, हजारीबाग और बोकारो जिलों के 85 गांवों में पानी उपलब्ध कराया जाना था। गिरीडीह जिले में सिंचाई परियोजना को मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बुधवार को लोगों को समर्पित किया था। इसके उद्घाटन के 24 घंटों के भीतर इससे कई गांवों में व्यापक बाढ़ आ गई।
शुक्रवार को जारी सरकारी बयान में कहा गया है, 'प्रारंभिक जांच में 'चूहों द्वारा बनाए गए बिल' पर संदेह जताया जा रहा है, जिससे नहर को नुकसान पहुंचा होगा।' जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने ट्वीट किया कि नहर के बहने और फसलों को हुए नुकसान के कारणों का पता लगाने के लिए चीफ इंजिनियर, जल संसाधन विभाग की अग्रिम परियोजनाओं के नेतृत्व वाली एक उच्चस्तरीय टीम का गठन किया गया है।
अरुण ने कहा कि टीम अपनी रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर देगी और नहर की मरम्मत का काम जारी है। 1978 में अविभाजित बिहार के राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने इस परियोजना की नींव रखी थी, लेकिन कई कारणों के चलते, जिसमें क्रमिक सरकारों की उदासीनता भी शामिल थी, परियोजना में देरी हुई। परियोजना पर आने वाली लागत 1978 में 12 करोड़ रुपये तय की गई थी, लेकिन बाद में यह बढ़कर 2200 करोड़ रुपये हो गई।
विपक्षी दलों ने इस घटना पर प्रशासन को घेरा है। कांग्रेस नेता आलोक दुबे ने कहा है, 'बीजेपी सरकार दूसरे के कार्यों के लिए श्रेय लेती है या कोनार जैसे आधे-अधूरे प्रॉजेक्ट्स का उद्घाटन कर देती है।' झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है, 'सरकार ने 42 साल से बंद पड़े प्रॉजेक्ट को शुरू करके अपनी पीठ थपथपाई।' उन्होंने दावा किया कि प्रॉजेक्ट की कीमत 2200 करोड़ रुपये है। प्रॉजेक्ट 22 घंटे से भी कम में बह गया।' बागोडर के विधायक नागेंद्र माहतो ने मांग की है कि प्रभावित परिवारों को मुआवजा दिया जाए और मामले की जांच की जाए।
बता दें कि कोनार प्रॉजेक्ट कई साल से ठंडे बस्ते में पड़ा था जिसे 2014 में दास सरकार ने दोबारा शुरू किया। कोनार जलाशय 1955 में दामोदर घाटी निगम ने कोनार नदी पर शुरू किया था। इसमें 357 किमी की नहर और 17 किमी का टनल था। टनल का काम पूरा हो चुका था। कइयों का दावा है कि नहर का काम सिर्फ 44% पूरा हुआ था लेकिन उद्घाटन करने के लिए जल्दबाजी में उसे पूरा कर दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि प्रॉजेक्ट को 2021 में पूरा करने का लक्ष्य था। प्रॉजेक्ट के पूरा होने पर हजारीबाग, गिरिडीह और बोकारो जिले के करीब 85 गावों के 62,955 हेक्टेयर क्षेत्र को फायदा होने का आकलन किया गया है।
शुक्रवार को जारी सरकारी बयान में कहा गया है, 'प्रारंभिक जांच में 'चूहों द्वारा बनाए गए बिल' पर संदेह जताया जा रहा है, जिससे नहर को नुकसान पहुंचा होगा।' जल संसाधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने ट्वीट किया कि नहर के बहने और फसलों को हुए नुकसान के कारणों का पता लगाने के लिए चीफ इंजिनियर, जल संसाधन विभाग की अग्रिम परियोजनाओं के नेतृत्व वाली एक उच्चस्तरीय टीम का गठन किया गया है।
अरुण ने कहा कि टीम अपनी रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर देगी और नहर की मरम्मत का काम जारी है। 1978 में अविभाजित बिहार के राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने इस परियोजना की नींव रखी थी, लेकिन कई कारणों के चलते, जिसमें क्रमिक सरकारों की उदासीनता भी शामिल थी, परियोजना में देरी हुई। परियोजना पर आने वाली लागत 1978 में 12 करोड़ रुपये तय की गई थी, लेकिन बाद में यह बढ़कर 2200 करोड़ रुपये हो गई।
विपक्षी दलों ने इस घटना पर प्रशासन को घेरा है। कांग्रेस नेता आलोक दुबे ने कहा है, 'बीजेपी सरकार दूसरे के कार्यों के लिए श्रेय लेती है या कोनार जैसे आधे-अधूरे प्रॉजेक्ट्स का उद्घाटन कर देती है।' झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है, 'सरकार ने 42 साल से बंद पड़े प्रॉजेक्ट को शुरू करके अपनी पीठ थपथपाई।' उन्होंने दावा किया कि प्रॉजेक्ट की कीमत 2200 करोड़ रुपये है। प्रॉजेक्ट 22 घंटे से भी कम में बह गया।' बागोडर के विधायक नागेंद्र माहतो ने मांग की है कि प्रभावित परिवारों को मुआवजा दिया जाए और मामले की जांच की जाए।
बता दें कि कोनार प्रॉजेक्ट कई साल से ठंडे बस्ते में पड़ा था जिसे 2014 में दास सरकार ने दोबारा शुरू किया। कोनार जलाशय 1955 में दामोदर घाटी निगम ने कोनार नदी पर शुरू किया था। इसमें 357 किमी की नहर और 17 किमी का टनल था। टनल का काम पूरा हो चुका था। कइयों का दावा है कि नहर का काम सिर्फ 44% पूरा हुआ था लेकिन उद्घाटन करने के लिए जल्दबाजी में उसे पूरा कर दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि प्रॉजेक्ट को 2021 में पूरा करने का लक्ष्य था। प्रॉजेक्ट के पूरा होने पर हजारीबाग, गिरिडीह और बोकारो जिले के करीब 85 गावों के 62,955 हेक्टेयर क्षेत्र को फायदा होने का आकलन किया गया है।