राम की नगरी अयोध्या में सौंदर्यकरण के नाम पर सड़क चौड़ीकरण योजना से विस्थापित हो रहे व्यापारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति देने की मांग की है। यह सभी व्यापारी सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर हो रहे विस्थापन के बदले उचित पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। योगी सरकार के शासन प्रशासन द्वारा जिला स्तर पर बनाई गई विस्थापन नीति से ये सभी खफा हैं। गुरुवार को दर्जनों व्यापारियों ने सामूहिक रूप से राष्ट्रपति को पत्र भेजकर मामले का निराकरण न होने की दशा में इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी है। अभी कुछ दिन पहले सभी व्यापारियों ने विरोध में दुकानें भी बंद की थी।
नंद कुमार गुप्ता, विजय कुमार यादव और शक्ति जायसवाल जैसे दर्जनों व्यापारियों ने राष्ट्रपति को हस्ताक्षर कर भेजे पत्र में लिखा है कि पुश्तों से व्यापार के माध्यम से जीवन यापन चल रहा है। मंदिर मामले में फैसला आने के बाद केंद्र और यूपी सरकार ने शहर के विस्तारीकरण व नवीनीकरण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। इस बात से सभी खुश भी हैं। लेकिन नयाघाट से सहादतगंज तक सड़क के दोनों पटरियों पर व हनुमानगढ़ी से श्रीरामजन्म भूमि तक चौड़ीकरण की योजना है। हजारों व्यापारी व उनका परिवार विस्थापित होने की कगार पर हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ में सभी व्यापारियों का स्थाई समायोजन और उचित मुआवजा देने की बात कही थी। परंतु जिला स्तर पर ऐसा हो नहीं रहा है, ना ही जिला प्रशासन से कोई ठोस आश्वासन मिला है। हमें अगर कोई मदद नहीं मिलती है तो हम अपने परिवार के साथ प्राण देने पर मजबूर हो जाएंगे और इसकी ज़िम्मेदार प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन होगा।
अयोध्या में व्यापारी पहले भी सरकारी अधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, व्यापारियों ने कहा था कि उन्हें शहर में सड़कों को चौड़ा किये जाने के खिलाफ प्रदर्शन करने से रोका जा रहा है। एक स्थानीय व्यापारी संगठन के अध्यक्ष नंद कुमार गुप्ता ने संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना से करीब 800 दुकानदार प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा, स्थानीय अधिकारी हमें जेल भेजने की धमकी दे रहे हैं। गुप्ता ने आरोप लगाया कि व्यापारियों को धमकाया जा रहा है कि अगर वे सांकेतिक हड़ताल करते हैं तो उन्हें आयकर विभाग तथा अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा परेशान किया जाएगा। दरअसल तब जुलाई माह में व्यापारियों ने सरकार के फैसले के खिलाफ दो घंटे तक अपनी दुकानें बंद रखने का फैसला किया था। अयोध्या पुलिस ने स्थानीय व्यापारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जब भी उन्होंने सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ जुलूस निकाला था। लेकिन निराशा अब इतनी बढ़ गई है कि राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगनी पड़ी है। खास है कि किसान भी सरकार की मुआवजा नीति से खुश नहीं है और कई मर्तबा विरोध जता चुके हैं। सरकार का यह रवैया तब है जब राम मंदिर के लिए की जा रही जमीन खरीद में करोड़ों की बड़ी धांधली तक उजागर हो चुकी है। खास यह भी है कि अधिग्रहण, मुआवजा और पुनर्वास के नियम-कानूनों का मखौल अयोध्या में ही नहीं उड़ रहा है, प्रदेश के सहारनपुर आदि ज़िलों में भी अधिकारियों द्वारा नियम-कानूनों की मनमानी व्याख्या कर, किसानों का उत्पीड़न आम हो चला है।
सहारनपुर में डेडीकेटेड रेल फ्रेट कोरिडोर, पावर ग्रिड और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया आदि के कई बड़े अधिग्रहण चल रहे हैं लेकिन भारत सरकार की इन परियोजनाओं में न सिर्फ, अफसरों द्वारा नियम कानूनों की मनमानी व्याख्या कर किसानों को औने पौने मुआवजे देकर उनका आर्थिक मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है बल्कि उन्हें बेवजह सालों साल कोर्ट कचहरियों के महंगे चक्कर काटने को भी मजबूर किया जा रहा है। इसलिए सवाल अकेले अयोध्या भर का नहीं है, सरकार को संवेदनशील रवैया दिखाते हुए प्रदेश भर में किसानों को न्याय सुनिश्चित करने की पहल करनी होगी और यही असल मायने में राम-राज होगा।
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नंद कुमार गुप्ता, विजय कुमार यादव और शक्ति जायसवाल जैसे दर्जनों व्यापारियों ने राष्ट्रपति को हस्ताक्षर कर भेजे पत्र में लिखा है कि पुश्तों से व्यापार के माध्यम से जीवन यापन चल रहा है। मंदिर मामले में फैसला आने के बाद केंद्र और यूपी सरकार ने शहर के विस्तारीकरण व नवीनीकरण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। इस बात से सभी खुश भी हैं। लेकिन नयाघाट से सहादतगंज तक सड़क के दोनों पटरियों पर व हनुमानगढ़ी से श्रीरामजन्म भूमि तक चौड़ीकरण की योजना है। हजारों व्यापारी व उनका परिवार विस्थापित होने की कगार पर हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ में सभी व्यापारियों का स्थाई समायोजन और उचित मुआवजा देने की बात कही थी। परंतु जिला स्तर पर ऐसा हो नहीं रहा है, ना ही जिला प्रशासन से कोई ठोस आश्वासन मिला है। हमें अगर कोई मदद नहीं मिलती है तो हम अपने परिवार के साथ प्राण देने पर मजबूर हो जाएंगे और इसकी ज़िम्मेदार प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन होगा।
अयोध्या में व्यापारी पहले भी सरकारी अधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, व्यापारियों ने कहा था कि उन्हें शहर में सड़कों को चौड़ा किये जाने के खिलाफ प्रदर्शन करने से रोका जा रहा है। एक स्थानीय व्यापारी संगठन के अध्यक्ष नंद कुमार गुप्ता ने संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना से करीब 800 दुकानदार प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा, स्थानीय अधिकारी हमें जेल भेजने की धमकी दे रहे हैं। गुप्ता ने आरोप लगाया कि व्यापारियों को धमकाया जा रहा है कि अगर वे सांकेतिक हड़ताल करते हैं तो उन्हें आयकर विभाग तथा अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा परेशान किया जाएगा। दरअसल तब जुलाई माह में व्यापारियों ने सरकार के फैसले के खिलाफ दो घंटे तक अपनी दुकानें बंद रखने का फैसला किया था। अयोध्या पुलिस ने स्थानीय व्यापारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जब भी उन्होंने सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ जुलूस निकाला था। लेकिन निराशा अब इतनी बढ़ गई है कि राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगनी पड़ी है। खास है कि किसान भी सरकार की मुआवजा नीति से खुश नहीं है और कई मर्तबा विरोध जता चुके हैं। सरकार का यह रवैया तब है जब राम मंदिर के लिए की जा रही जमीन खरीद में करोड़ों की बड़ी धांधली तक उजागर हो चुकी है। खास यह भी है कि अधिग्रहण, मुआवजा और पुनर्वास के नियम-कानूनों का मखौल अयोध्या में ही नहीं उड़ रहा है, प्रदेश के सहारनपुर आदि ज़िलों में भी अधिकारियों द्वारा नियम-कानूनों की मनमानी व्याख्या कर, किसानों का उत्पीड़न आम हो चला है।
सहारनपुर में डेडीकेटेड रेल फ्रेट कोरिडोर, पावर ग्रिड और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया आदि के कई बड़े अधिग्रहण चल रहे हैं लेकिन भारत सरकार की इन परियोजनाओं में न सिर्फ, अफसरों द्वारा नियम कानूनों की मनमानी व्याख्या कर किसानों को औने पौने मुआवजे देकर उनका आर्थिक मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है बल्कि उन्हें बेवजह सालों साल कोर्ट कचहरियों के महंगे चक्कर काटने को भी मजबूर किया जा रहा है। इसलिए सवाल अकेले अयोध्या भर का नहीं है, सरकार को संवेदनशील रवैया दिखाते हुए प्रदेश भर में किसानों को न्याय सुनिश्चित करने की पहल करनी होगी और यही असल मायने में राम-राज होगा।
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