राम मंदिर ट्रस्ट पर संतों में घमासान, प्रतिनिधित्व पर भी उठे सवाल

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 6, 2020
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर केंद्र सरकार द्वारा बुधवार को ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी गई। ट्रस्ट का नाम 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' रखा गया है। अयोध्या विवाद में हिंदू पक्ष के मुख्य वकील रहे 92 वर्षीय के परासरन को राम मंदिर ट्रस्ट में ट्रस्टी बनाया गया है। ट्रस्ट का गठन होने के बाद से ही मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे संतों के बीच घमासान शुरू हो गया है। उन्होंने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के स्वरूप का विरोध शुरू कर दिया है। इसके साथ ही ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व को लेकर भी सवाल उठ रहा है। इसमें सिर्फ एक दलित को जगह दी गई है। ओबीसी एक भी नहीं है साथ ही महिला प्रतिनिधित्व को भी पूरी तरह नकार दिया गया है। 



गुरुवार सुबह से ही राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के आश्रम मणिराम दास जी की छावनी में ऐसे महंत एकत्रित होने लगे हैं जो ट्रस्ट के स्वरूप से असहमत हैं। खुद नृत्य गोपाल दास ने शासकीय ट्रस्ट के स्वरूप को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया और मंदिर आंदोलन को गति देने वाले धर्म आचार्यों की उपेक्षा पर विरोध जताया। यहां पहुंचे संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास और दिगंबर अखाड़ा के महंत सुरेश दास ने भी नवगठित ट्रस्ट का विरोध किया।

राम जन्मभूमि के न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास सरकारी ट्रस्ट में जगह न मिलने के कारण नाराज हुए। उन्होंने कहा कि हमने दिगंबर अखाड़ा राममंदिर के लिए हर लड़ाई लड़ी, राममंदिर आंदोलन के लिए हमने पूरी जिंदगी लगा दी।

ट्रस्ट में न दिगम्बर अखाड़े का नाम है और न ही मेरा नाम है, ये अयोध्या वासियों का अपमान किया गया है। वहीं दिगम्बर अखाड़े के महंत सुरेश दास ने कहा है कि आज तीन बजे संतों महंतों की बैठक बुलाई गई है, जिसमें ट्रस्ट को लेकर अगली रणनीति तय की जाएगी।

इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल खड़े किए हैं। दिलीप मंडल ने लिखा है...

भारत में हुई आखिरी जनगणना, जिसमें जाति गिनी गई, के मुताबिक दलितों की आबादी ब्राह्मणों से तीन गुना है.

राममंदिर का ट्रस्ट सरकार बना रही है.

उसमें अब तक घोषित 9 में 6 सदस्य ब्राह्मण हैं. अध्यक्ष भी ब्राह्मण हैं. इस हिसाब से ट्रस्ट में 6X3= 18 सदस्य दलित होने चाहिए. और OBC?????

OBC अभी 0 है.

ट्रस्ट सरकार बना रही है. इसलिए हिस्सेदारी की बात है. निजी ट्रस्ट होता तो ये सवाल नहीं उठता.

इतना सारा पैसा आएगा मंदिर के नाम पर. उसे संचालित करने का जिम्मा एक जाति पर कैसे छोड़ा जा सकता है.

पत्रकार सोबरन कबीर ने भी ट्रस्ट को लेकर सवाल उठाए हैं, उन्होंने लिखा है....

अयोध्या में राम मंदिर के लिए बनने वाले ट्रस्ट के लिए 15 लोगों को चुना गया है।

सवर्ण - 14

दलित - 1

पिछड़ी जाति - 0

अरे पंडों .... कम से कम ट्रस्ट का एक - एक सदस्य उमा भारती और कल्याण सिंह की लोध बिरादरी से और एक सदस्य विनय कटियार की कुर्मी बिरादरी से भी बना देते।।

वैसे मंदिर बनवाने तो कुर्मी, काछी, लोधी, तेली, तमौली, मल्लाह, अहीर, जाट, गूजर, गड़रिया, लोहार, कहार, चर्मकार, खटीक, पासी, बाल्मीकि, सभी विरादरी के लोग गए थे।

पर इन विरादरी में से किसी को भी राम मंदिर ट्रस्ट में जगह नहीं मिली।।

ये तो वही बात हुई कि मेहनत भी करवाई और मजदूरी भी नहीं दी।।

ओबीसी के हिंदुओं तुम लोग सिर्फ पंडों के बंधुआ मजदूर हो....जब मंदिर से होने वाली कमाई की मलाई खाने की बात आई तो पंडों ने तुम्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया।।

यही है तुम्हारी औकात.... अब बजाओ घंटा।।

कम से कम अब तो उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार को अपने समाज की हिस्सेदारी के लिए मुंह खोलना चाहिए।।
 

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