Everyday Harmony: बनारस में 450 साल से जारी है “अगहनी जुमे” की नमाज़

Written by CJP Team | Published on: November 19, 2022
बनारस में 450 साल से जारी है “अगहनी जुमे” की नमाज़ की परंपरा 



वाराणसी: दिनांक 18 नवंबर 2022 दिन शुक्रवार। यानी जुमे का रोज़। इस शुक्रवार को अगहनी जुमे के नाम से जाना जाता है। वैसे तो जुमे के रोज़ हर एक मस्जिद गुलज़ार रहती है और मुस्लिम समुदाय के लोग इस दिन मस्जिदों में नमाज़-ए-जुमा अदा करते हैं। हर एक मस्जिद में भीड़ रहती है। इस बार “अगहनी जुमा” है। साल में एक दिन समस्त बुनकर समुदाय इस रोज़ काम बंद कर ईदगाह मछली मंडी चौकाघाट और पुराना पुल पर स्थित कोहना ईदगाह में नमाज़ अदा करते हैं। ये रवायत कई सदियों से बनारस में चली आ रही है। यह अगहनी जुमा सिर्फ बनारस में मनाया जाता है। 

इस पारंपरिक अगहनी जुमे की नमाज जो सिर्फ बनारस में ही पढ़ी जाती है, के सम्बन्ध में बुनकर बिरादराना तंजीम बाइसी से तालुक रखने वाले नूरुल हसन साहब ने बताया, ''अगहनी जुमे के नमाज़ की यह परम्परा लगभग 450 साल पुरानी है। उस वक़्त देश में प्रचंड सूखा पड़ा था। जिसकी वजह से किसान और बुनकर दोनों परेशान थे। बारिश नहीं हो रही थी जिसके कारण किसान खेती नही कर पा रहे थे। जबरदस्त मंदी की वजह से बुनकरों के बुने हुए कपड़े भी नहीं बिक रहे थे। उस वक्त हर तरफ भुखमरी का आलम था। तब उस वक्त बुनकरों ने अपने-अपने कारोबार को बन्द कर के अगहन के महीने में जुमे के दिन ईदगाह में इकठ्ठा होकर नमाज़ अदा कर अल्लाह की बारगाह में दुआएं मांगी थीं। उसके बाद अल्लाह के रहमो करम से बारिश हुई और देश में खुशहाली आई। बुनकरों के कारोबार भी चलने लगे। तब से इस परंपरा को बनारस में मनाया जाने लगा।''

जब जब देश की अवाम और इंसानियत के ऊपर मुसीबतें आती हैं, तो बनारस के सारे बुनकर अगहन के महीने में अपने-अपने कारोबार को बंद कर ईदगाह में इकठ्ठा हो कर अगहनी जुमे की नमाज अदा करने हजारों की तादाद में पहुंचते है। नमाज़ के बाद वह सभी अपने-अपने कारोबार में बरक्कत और खेती किसानी व फसलें लहलहाने और मुल्क की तरक्की के लिए दुआएं मांगते हैं।

हर वर्ष की भांति इस साल भी अगहनी जुमे की नमाज चौकाघाट मछली मंडी के पास स्थित ईदगाह में शुक्रवार को अदा की गई। जिसमें बाईसी तंजीम की जानिब से गुजारिश की गई कि उस दिन सभी बुनकर अपना-अपना करोबार बन्द कर चौकाघाट ईदगाह पहुंचकर अगहनी जुमे की नमाज़ अदा करें और दुआओं में शामिल हों। यहां पर नमाज़ के बाद पूरे शहर भर में दान देने का भी सिलसला चलता है। ज़रूरमंदों को कपड़े भोजन और कई अन्य चीज़ें बंटी जाती हैं। हिंदू किसान अपनी गन्ने की फसल को बेचने ईदगाह के पास आते हैं और नमाज़ अदा कर बाहर निकलने वाले मुस्लिम गन्ना खरीद कर अपने घरों को लौटते हैं। 

यही है काशी की गंगा जमुना तहज़ीब और साझी विरासत जिसकी वज़ह से बनारस एकता के सूत्र में बंधा है।

Related:

बाकी ख़बरें