ग्राउंड रिपोर्टः बनारस में ‘राम नाम सत्य है’ का उद्घोष बंद, आखिर किसके लिए मुसीबत बन गए हैं ये मुर्दे?

Written by विजय विनीत | Published on: March 30, 2024


उत्तर प्रदेश के चंदौली का एक गांव है गौरी। 29 मार्च 2024 को यहां एक व्यक्ति की मौत हुई तो अंतिम संस्कार के लिए करीब 55-60 लोगों का जत्था बनारस के मणिकर्णिका घाट के लिए रवाना हुआ। भदऊ चुंगी के पास पुलिस ने उनकी अर्थी वाली गाड़ी रोक दी। राम नाम सत्य का उद्घोष कर रहे लोगों को बताया गया कि मुर्दे अब शहर से नहीं जाएंगे। उन्हें सरकार ढोएगी। पुलिसिया सख्ती के चलते अर्थी के साथ आए लोगों को महिषासुरघाट की तरफ मुड़ना पड़ा।

अंतिम संस्कार के लिए अर्थी के साथ आए लोगों की अगुवाई गौरी के ग्राम प्रधान राजकुमार कर रहे थे। वो बताते हैं, "हमारी गाड़ी जैसे ही महिषासुर घाट के करीब आई, अवैध तरीके से पार्किंग चलाने वालों ने रोक दिया। गाड़ी खड़ी कराने को लेकर काफी देर तक चिकचिक हुई। तब तक हम पसीने से तर-बतर हो गए। महिषासुरघाट पर न तो पीने के पानी का कोई इंतजाम था और न ही छाजन का। वहां हम घंटों धूप में बिलबिलाते रहे। कोई पूछने वाला नहीं था। घाट पर एनडीआरएफ शव वाहिनी लेकर खड़ी थी। हम अर्थी लेकर पहुंचे तो जवानों ने फरमान सुना दिया कि अभी इंतजार कीजिए। कम से कम तीन-चार मुर्दे आने पर ही स्टीमर चल सकेगी। अगर शव का अंतिम संस्कार कराने की जल्दी है तो प्राइवेट नाव कर लें।"

"हमारे गांव में जिस व्यक्ति की मौत हुई थी, उसके परिवार वालों की माली हालत ऐसी नहीं थी कि निजी नाव से अपनी अर्थी को मणिकर्णिका घाट तक ले जा सकें। वैसे भी ज्यादातर नाविक मुर्दे ढोने के लिए तैयार नहीं थे और जो तैयार थे वो भारी-भरकम रकम की डिमांड कर रहे थे। भूख-प्यास से बेहाल हम घंटों महिषासुरघाट पर जहां-तहां भागते रहे। करीब चार घंटे बाद बारी-बारी से तीन अर्थियां महिषासुरघाट पर पहुंचीं। इसके बाद एनडीआरएफ के जवान शव वाहिनी लेकर चलने को राजी हुए।

अर्थी के साथ शव वाहिनी पर सिर्फ आधा दर्जन लोगों को ही बैठने दिया गया। बाकी लोगों से कहा गया कि वो पैदल मणिकर्णिका घाट जाएं। काफी जद्दोजहद के बाद गौरी गांव के लोग घाटों के रास्ते करीब ढाई किमी पैदल चलते हुए मणिकर्णिका घाट पहुंचे। महिषासुर घाट से मणिकर्णिका घाट तक पैदल जाने वालों के कई बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल थे। इनकी दुश्वारियों को आसानी से समझा जा सकता है। मणिकर्णिका घाट तक पैदल पहुंचने में घंटे भर का वक्त लगा।"

राजकुमार कहते हैं, "हमने मणिकर्णिका घाट पर न जाने कितनी लाशों का अंतिम संस्कार कराया है, लेकिन इतनी दुश्वारियां कभी नहीं झेलनी पड़ी। मणिकर्णिका घाट पर भी हमें लाइन लगानी पड़ी। कभी लकड़ी के लिए, तो कभी शव को जलाने के लिए। पैदल चलकर आए लोगों की हालत यह हो गई कि कई लोग बेहोश होने की स्थित में थे। कचौड़ी गली में मुश्किल से एक दुकान मिल पाई, जहां भूख-प्यास से बेहाल लोगों को खाने का सामान मिल पाया।

"हमारी गाड़ियां महिषासुरघाट पर थी, इसलिए वहां तक हमें मजबूरी में फिर पैदल जाना पड़ा। बनारस में अब से पहले कभी मुर्दों की गाड़ियां कहीं नहीं रोकी गईं, लेकिन मोदी राज में जोर-जबर्दस्ती चल रही है। कितनी अचरज की बात है कि मणिकर्णिका द्वार पर वीआईपी को गाड़ियां खड़ी करने पर कोई रोक-टोक नहीं, पर शव लेकर आने वालों से सरकार और प्रशासन को बहुत दिक्कत है। यह तो नाइंसाफी नहीं तो और क्या है? "

वाराणसी जिला प्रशासन ने इस हफ्ते शहर के रास्ते शवों को मणिकर्णिका घाट पर लेकर जाने पर पाबंदी लगा दी थी। सरकारी मशीनरी ने दावा किया था कि महिषासुरघाट पर एनडीआरएफ की तीन नौकाएं शवों को मुफ्त में ढोएंगी। प्रशासनिक अफसरों ने यह जानने तक की कोशिश नहीं की कि महिषासुरघाट पर बिजली-पानी और छाजन की व्यवस्था है अथवा नहीं। आनन-फानन में शवों को महिषासुरघाट से ले जाए जाने का फरमान जारी किया गया और दो रोज में ही सारा इंतजाम ध्वस्त हो गया। शवयात्रियों के लिए लागू किए गए नियम की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ा। पहले दिन तो शवों को मणिकर्णिका घाट पहुंचाने के लिए एक नाव में चार-चार शव ले जाना पड़ा।


वाराणसी में एक साथ निकलतीं दो अर्थियां

मुसीबत बना शवदाह
 
शहर के व्यस्ततम क्षेत्र मैदागिन, गोदौलिया मार्ग पर ट्रैफिक का दबाव कम करने के लिए शव वाहनों को मैदागिन के बजाय भदऊं चुंगी होते हुए भैंसासुर घाट ले जाने की रूट प्रशासन ने तय किया है। प्रशासन ने यहां मणिकर्णिका घाट जाने के लिए एनडीआरएफ की तीन नौकाएं तैनात की गई हैं, लेकिन प्रशासन की व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करना अब मुहाल हो गया है। सड़क मार्ग से शवों लेकर लोग भैंसासुर घाट तक तो पहुंच जा रहे हैं, लेकिन अंतिम संस्कार स्थल तक ले जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। इसके लिए घंटों लाइन लगनी पड़ रही है। अंतिम संस्कार के लिए चार से पांच घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है।

भदोही से एक शव लेकर बनारस में अंतिम संस्कार करने पहुंचे सरयू के परिजनों को निजी नाव का सहारा लेना पड़ा। एनडीआरएफ के जवानों ने बताया कि तीन-चार अर्थियां इकट्ठा होने पर ही नाव लेकर जाएगी। लाचारी में सरयू के घर वालों को निजी नाव के जरिये मणिकर्णिका घाट तक जाना पड़ा। अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोगों को बगैर लाइफ जैकेट के ही नाव पर सवार होकर यात्रा करनी पड़ी। ये दुश्वारियां सिर्फ सरयू के परिवार वालों को ही उठानी नहीं पड़ रही, बल्कि उन सभी लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जो परिजनों के मौत से पहले ही काफी दुखी होते हैं।

बनारस की मशहूर कचौड़ी गली में पहले मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए आने वाले लोगों के लिए तमाम होटल हुआ करते थे। जब से प्रशासन ने शवों का रुट बदला है, तब से इस गली मे सन्नाटा पसर गया है। कचौड़ी गली में जम्बू दादा की एक दुकान है। इत्तेफाक से मुर्दे के अंत्येष्टि करने वालों की एक टोली वहां दोपहर में पहुंची थी। जम्बू दादा कहते हैं, "मणिकर्णिका घाट का रूट बदले जाने से कचौड़ी गली की रौनक घट गई है। अब इधर कोई नहीं आ रहा है। कारोबार चौपट हो गया है। सभी होटल और मिठाई के कारोबारी काफी परेशान हैं। किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि उनकी आजीविका कैसे चलेगी? बनारस की गलियां को बाबा भोले की जटाएं मानी जाती रही हैं। लगता है कि कचौड़ी गली अब इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी।"


मणिकर्णिका घाट पर जलते शव

प्रशासन का नया फरमान
 
वाराणसी में गोदौलिया मार्ग से होकर जाने वाले शव वाहनों के रूट को भदऊ चुंगी की ओर डायवर्ट कर दिया गया है। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों का दावा है कि यह फैसला मैदागिन-काशी विश्वनाथ मंदिर इलाके में ट्रैफिक की समस्या को सुलझाने के लिए किया गया है। इस बाबत पुलिस की ओर से रूट डायवर्जन के जरूरी आदेश जारी कर दिए गए हैं। शव यात्रा के दौरान लोगों को अब गोदौलिया मार्ग से नहीं, बल्कि भदऊ चुंगी होते हुए मणिकर्णिका घाट जाना पड़ेगा। प्रशासनिक आदेश में कहा गया है कि शव यात्रा ले जा रहे लोगों को संयम और सद्भाव के साथ रूट की जानकारी दी जाए, लेकिन अर्थी लेकर आने वालों के साथ पुलिस का बर्ताव बहुत अच्छा नहीं है।

बनारस के जिलाधिकारी एस. राजलिंगम कहते हैं, "मणिकर्णिका घाट का पुनरुद्धार होना है। कार्यदायी एजेंसी जल्द ही काम शुरू करेगी। इसके मद्देनजर मणिकर्णिका द्वार बंद किया गया है। इस घाट के पुनरोद्धार पर कुल 18 करोड़ रुपये खर्च होंगे। भू-तल का कुल क्षेत्रफल 29.350 वर्ग फीट, दाह संस्कार का क्षेत्रफल 12,250 वर्गफीट होगा। प्रथम तल 20, 200 वर्गफीट होगा, जबकि दाह-संस्कार का क्षेत्रफल 9100 वर्गफीट होगा। चुनाव के बलुआ और जयपुर के गुलाबी पत्थरों से महाश्माशन क्षेत्र को संवारा जाएगा। मणिकर्णिका कुंड व रत्नेश्वर महादेव मंदिर को भी  सजाने-संवारने की तैयारी है। स्नान के लिए पवित्र जल कुंड, वेटिंग एरिया होंगे। भूतल पर पंजीकरण कक्ष, नीचे के खुले में दाह संस्कार के 19 बर्थ, लकड़ी भंडारण क्षेत्र, सामुदायिक प्रतिक्षा कक्ष, दो सामुदायिक शौचालय, अपशिष्ट ट्रालियां का स्थापन मुंडन क्षेत्र होंगे। इसके अलावा आसपास के क्षेत्र को विकसित किया जाएगा।"

एडिशनल पुलिस कमिश्नर एस. चन्नप्पा ने कहा कि मणिकर्णिका द्वार से शव घाट की तरफ नहीं जा रहे हैं। भैंसासुर घाट से शव लाने का अनुरोध किया जा रहा है। जो शव वाहन पहले मैदागिन से गोदौलिया मार्ग होते हुए मणिकर्णिका घाट पहुंचते थे उन्हें वो अब भदऊ चुंगी होते हुए महिषासुर घाट पर पहुंचेंगे। वहां से उन्हें मणिकर्णिका घाट पर पहुंचाया जाएगा। कंधे पर शव लेकर आने वाले लोगों को महिषासुर घाट पर अनुरोध के साथ भेजने के लिए पुलिस को निर्देशित किया गया है। महिषासुर घाट से एनडीआरएफ की टीम की देखरेख में जल शव वाहिनी से शवों को महाश्मशान तक पहुंचाया जा रहा है। इस बोट पर शव यात्रा में आने वाले भी जा सकेंगे। यह व्यवस्था पूरी तरह निःशुल्क हैं।

बनारस कमिश्नरेट पुलिस का कहना है कि महिषासुर घाट पर नगर निगम जल्द ही साइनेज लगवाएगा। साथ ही शव लेकर आने वालों के के आराम के लिए वहां एक बड़ा शेड भी लगावाया और पीने के पानी आदि का इंतजाम भी कराया जाएगा। महिषासुर घाट पर शव यात्रा में आए लोगों के लिए एनडीआरएफ की तीन नौकाएं जरूर लगाई गई हैं, लेकिन उन पर सिर्फ पांच-छह लोगों को ही बैठने दिया जा रहा है। लाशों को घंटों इतजार कराया जा रहा है सो अलग।
 
तोड़ दी गईं सालों पुरानी परंपराएं
 

काशी में अपनों को मोक्ष दिलवाने की इच्छा लेकर देश के कोने-कोने से लोग मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं। वहां शवों के दाह संस्कार की व्यवस्था अनादि काल से चली आ रही है। पूर्वांचल के अलावा तमाम शव बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड से भी आते हैं। गर्मी के चलते शव यात्रियों की दुश्वारियां बढ़ने लगी हैं। आमतौर पर मणिकर्णिका घाट पर 125 से 200 शवों की अंत्येष्टि होती है। भीषण ठंड और गर्मी के दिनों मुर्दों की संख्या सवा सौ तक पहुंच जाया करती है। शव लेकर आने वालों को दो से तीन घंटे इंतजार तक इंतजार करना पड़ता है। मणिकर्णिका घाट को मोक्ष का मार्ग कहा जाता है और मान्यता है कि यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती है। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर न छांव है और न पानी की व्यवस्था। शाम के समय स्थिति और ज्यादा विकट हो जाती है।

बनारस में शिव बारात समिति के संयोजक दिलीप सिंह को इस बात से रंज है कि प्रशासन को वीवीआईपी की गाड़ियों से नहीं, सिर्फ मुर्दों से दिक्कत है। मणिकर्णिका द्वार से मुर्दों को ले जाने की परंपरा सालों पुरानी है। यहां शीतला देवी का एक छोटा सा मंदिर है, जहां कुछ देर के लिए अर्थियों को रखने की सालों पुरानी परंपरा है। कुछ लोग यहां पिंडदान भी करते हैं। मान्यता है शीतला देवी स्वर्ग का दरवाजा खोलती हैं। मुर्दों को रुट बदले जाने से आस्थावान लोग काफी दुखी हैं। धरती पर सिर्फ़ इंसान ही ऐसा जीव है, जो अपने गुज़र चुके साथियों को सम्मान के साथ आख़िरी विदाई देता है। ये इंसानी सभ्यता की बुनियादी ख़ूबियों में से एक है। आज भी हर समाज में यही सिखाया जाता है कि लाश से बदसलूकी नहीं होनी चाहिए।"

"काशी में रहने वाले लोग अपनी परंपराओं को आने वाली नस्लों के हाथों में सौंपना चाहती हैं। ये बहुत जज़्बाती बात है। जिसके ऊपर बीतती है, वो ही समझ सकता है। अफसोस इस बात की है काशी की पुरातन परंपराओं की तिलांजलि दी जा रही है। बहुत से लोग अपनों का गम बांटने के लिए मणिकर्णिका घाट जाते हैं, लेकिन एनडीआरएफ के जवान उन्हें ढोने के लिए तैयार ही नहीं हैं। ऐसे में वो लोग अब कहां जाएंगे? विश्वनाथ मंदिर को जब से धाम बनाया गया है तब से काशी की परंपराओं की तिलांजलि देने की नई रवायत शुरू हो गई है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि हजारों साल पुरानी हमारी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को क्यों तोड़ा जा रहा है? "
  
शासन-तंत्र की नीयत पर सवाल
 
काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत राजेंद्र तिवारी मोदी-योगी सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार ने काशी में धर्म का व्यापारीकरण कर दिया है। इन्हें विश्वनाथ मंदिर पर जाम लगाने वाली वीवीआईपी की गाड़ियों से कोई दिक्कत नहीं है। दिक्कत है तो सिर्फ मुर्दों से और काशी की धार्मिक मान्यताओं व परंपराओं से। अपनी गाड़ी पर कोई बीजेपी का झंडा लगा लेता है तो उसके लिए बनारस के भीड़भाड़ वाले इलाके में जाने पर कोई रोकता-टोकता नहीं है। कई बार बीजेपी से जुड़े ग्राम प्रधानों और ब्लाक प्रमुखों की गाड़ियां बीजेपी का झंडा लगाकर ज्ञानवापी मंदिर तक चली आती हैं। शाम के समय हर वक्त अफसरों, जजों और नेताओं की गाड़ियों का रेला लगा रहता है। इनके लिए कोई रोक-टोक नहीं।

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने  वाले राहुल गांधी का हवाला देते हुए महंत राजेंद्र तिवारी कहते हैं, "मोदी के पैदल चलकर जाना पड़ा था। उनके मोबाइल फोन तक रखवा लिए गए थे। विश्वनाथ मंदिर की स्थिति यह है कि यह बीजेपी और आरएसएस का दफ्तर हो गया है। काशी के इतिहास में ऐसी बदसलूकी किसी राजनीतिक दल के वरिष्ठ नेता के साथ नहीं की गई थी। मुर्दों की कौन कहें, काशी में तो सब कुछ इवेंट हो गया है। विश्वनाथ मंदिर परिसर में बनी भीमा शंकर अतिथिशाला ऐशगाह बन गई है। मंदिर परिसर में सितारा होटलों की तरह महंगे रेस्टुरेंट खुल गए हैं। विश्वनाथ मंदिर अब मंदिर नहीं, माल बनकर रह गया है। मणिकर्णिका घाट पर कोई मनोरंजन का स्थान नहीं। यहां तो लोग मोक्ष की कामना लेकर आते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान शिव मृतकों को तारक मंत्र देते हैं।"

महंत राजेंद्र यह भी कहते हैं, "हाल के सालों में सरकार ने यहां जो कुछ किया है उसे भौड़े और घिनौने कृत्य के लिए जाना जाएगा। काशी में शवयात्रा को रोके जाने का संविधान में कोई प्राविधान नहीं है। हुक्मरानों को खुश करने के लिए काशी की संस्कृति के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है। पिछले पांच-छह सालों में यहां कई मिथक गढ़े गए और नई परंपराएं शुरू की गईं। होटल मालिकों और यू-ट्यूबरों के काकस ने यहां मशाने की होली को मेगा इवेंट बना दिया है। पहले औघड़, अघोरी और किन्नर ही मणिकर्णिका घाट पर भस्म होली खेलते थे। अब बाहर से आने वाले पर्यटकों को भी इस होली में शामिल कर लिया गया है। मशाने के होली के दिन विश्वनाथ परिसर में जूते-चप्पल फेंकने की नई परंपरा गढ़ी गई।"

"विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए घाटों के रास्ते से आने-जाने वाली महिला श्रद्धालुओं के साथ बदसलूकी होती रही और पुलिस के जवान तमाशा देखते रहे। कई महिलाओं के साथ बदसलूकी के वीडियो वायरल हो रहे हैं। घाटों पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं अब खुलेआम होने लगी हैं। औरतों की इज्जत से खिलवाड़ कभी भी काशी की संस्कृति नहीं रही है। आखिर बीजेपी सरकार बनारस में कौन सी संस्कृति विकसित करना चाहती है? "
 
मर्ज ठीक हुआ नहीं, बढ़ गई बीमारी
  
मणिकर्णिका घाट पर लकड़ियों के विक्रेता विभूति सिंह कहते हैं, "बनारस गलियों और घाटों का शहर है। यहा आस्था की नगरी है, पर्यटन की नहीं। अफसोस यह है कि आस्था की तिलांजलि दी जा रही है। मणिकर्णिका घाट पर कई हेरिटेज भवनों को तोड़ने की कवायद शुरू कर दी गई है। बनारस में अर्थियां रोकने का चलन नहीं है। पुलिस अफसर वीआईपी के बजाय शवों को रोक रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। विश्वनाथ मंदिर में इतना बड़ा कारिडोर बनवाया गया, फिर भी दर्शनार्थियों की गलियों में लाइन लगवाई जा रही है। कारिडोर के मतलब खुला हुआ गलियारा होता है। मंदिर प्रशासन ने बड़े-बड़े हाल बनाकर छोड़ा है। इन्हें एक लाख रुपये प्रति एक घंटे की दर पर किराये पर अलाट किया जाता है। लगता है कि विश्वनाथ मंदिर अब आस्था का केंद्र नहीं कोई व्यावसायिक माल है।"

"अब यहां ज्यादातर वो लोग आ रहे हैं, जिनमें दर्शन का भाव कम है। गलियों में युवा लड़के–लड़कियां गांजा और वाइन तलाशती हुई मलिती हैं। पहले लोग दर्शन के भाव से आते थे लोग। अब सेल्फी-सेल्फी चल रहा है। मशान की होली में खूब भीड़ उमड़ी और जमकर बत्तमीजी हुई। हम जिस गली में रहते हैं, वहां औरतों पर छींटाकशी की गईं। पहले मणिकर्णिका पर कोई जाता ही नहीं था। यू-ट्यूबरों और होटल वालों ने वहां लोगों का रेला लगा दिया है। इनका एक बड़ा काकस खड़ा होता जा रहा है। पौराणिकता गायब हो रही है। कुछ बचा ही नहीं।"

विभूति यह कहते हैं, "बाबा विश्वनाथ अब बनारसियों से दूर कर दिए गए हैं। पता नहीं बाबा हैं भी अथवा कहीं और चले गए हैं। काशी विश्वनाथ कारिडोर के विस्तार के समय सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा गया। काशी खंडोत्व के कई मंदिरों और कई विनायकों को नेस्तनाबूत कर दिया गया। छप्पन बिनायक में एक थे मणिकेश्वर विनायक, जिन्हें तोड़कर फेंक दिया गया। काशी के आस्थावान लोग अब महामृत्युंजय महादेव मंदिर में जाने लगे हैं। वहां बड़े आराम से दर्शन पूजन किया जा सकता है। सरकारी मशीनरी मणिकर्णिका घाट पर क्या करने जा रही है, वो किसी को कुछ भी नहीं बता रही है। पीएम मोदी ने शुरू में कहा था कि विश्वनाथ मंदिर का कोई स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन सब कुछ बदला जा रहा है। अफसर कुछ भी बदल दे रहे हैं। लगता है कि लोकसभा चुनाव बाद यहां बहुत कुछ तोड़ दिया जाएगा।"

एक दैनिक अखबार के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार ऋषि झिंगरन बीजेपी सरकार और उनकी मशीनरी की नई नीतियों से बेहद खफा नजर आते हैं। वह कहते हैं, "बनारस में मैदागिन, बेनियाबाग और गोदौलिया पर करोड़ों की लागत से मल्टी स्टोरी पार्किंग्स बनवाई गई हैं। पार्किंग में गाड़ियों का टोटा है। पहले ढेरों शव वाहन मैदागिन पर खड़ा हुआ करते थे। वहां सेलोग पैदल मणिकर्णिका द्वार तक अर्थियां लेकर आते-जाते थे। प्रशासन ने अब शवों को रोक दिया है। इससे काशी की एक बड़ी परंपरा टूट गई है। दुनिया जानती है कि काशी मोक्ष की नगरी है। यहां मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अर्थी कंधे पर आती है। अब लोग नाव से लेकर आएंगे तो शीतला देवी का आशीर्वाद कैसे मिलेगा? जीवित रहते इंसान धक्का खाता है और अब मरने पर भी धक्के खाएगा। मौत के बाद काशी में शवों की ठेला-ठेली होगी। जिस रास्ते से पहले शव यात्राएं निकला करती थीं, वहां अब सन्नाटा है। गौर करने की बात यह है कि भीषण लू और बाढ़ के समय लोग कैसे आएंगे जाएगे? "  

"जाम की समस्या का निवारण करने के बजाय बीमारी को बढ़ाया जा रहा है। महिषासुर घाट पर न तो पानी का इंतजाम है, न छाजन का। बुजुर्गों और बच्चों पैदल भेज रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। शासन-तंत्र पर सत्तारूढ़ दल के नेताओं, उनके रिश्तेदारों और अफसरों-जजों की गाड़ियां जाम लगाती हैं। आखिर इन्हें कौन रोकेगा? ज्ञानवापी चार नंबर गेट के पास जगह है नहीं, लेकिन वहां गाड़ियों का रेला लगा रहता है। जब पार्किंग की व्यवस्था नहीं थी, तब की बात और थी। अब तो बेनिया, मैदागिन और गोदौलिया पर पार्किंग की व्यवस्था करा दी है। इसके बाद भी वहां नेताओं की गाड़ियां क्यों नहीं खड़ा कराई जा रही हैं। जिस तीर्थयात्रा में त्याग नहीं, उस यात्रा का क्या मतलब। दूसरों को कष्ट पहुंचाकर आप तीर्थ करते हैं तो पुण्य कैसे मिलेगा? बीजेपी सरकार सिर्फ हंटर चलाना जानती है। जो पहले से ही दुखी होते हैं उन्हें और दुख देने का क्या मतलब है? "

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बनारस में रहते हैं)

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