काशी : जहां रामलीला और नमाज एक साथ होती है वहीं मंदिरों में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की मांग बेमानी है

Written by sabrang india | Published on: November 18, 2024
इस तरह की मांग के बीच उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल पिछले महीने देखने को मिली। लाटभैरव में रामलीला का आयोजन किया गया। यहां की फर्श पर एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे के साथ मानस का दोहा गूंज रहा था।


प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

काशी के मंदिरों में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की मांग की गई है। साथ ही यह मांग की गई है मंदिरों में बढ़ रहीं अनुचित गतिविधियां रोकी जाएं। इसकी मांग करने वाले संगठन का कहना है कि मंदिरों को पर्यटन स्थल के रूप में बताने से उनकी गरिमा प्रभावित हो रही है। इसका प्रस्ताव रविवार को दुर्गाकांड स्थित आनंद पार्क में हिंदू व सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों की बैठक पास किया गया। कहा गया कि हिंदुओं को एकजुट करने के लिए अब जिला स्तर का मुहिम चलाई जाएगी।

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, ब्राह्मण महासभा के सुधीर मिश्रा ने कहा कि हिंदू समाज को एकजुट होकर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करनी होगी। बीएचयू के विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख करते हुए कहा कि यह लोगों के लिए पर्यटन स्थल बन गया है। जल्द ही विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन देंगे और मांग करेंगे कि मंदिर में अनुचित गतिविधियों पर रोक लगाई जाए।

हिंदू युवा वाहिनी के अभिषेक सिंह गोलू ने कहा कि सनातन का अर्थ है शाश्वत, यानी ऐसा जो सदा बना रहे। इसे वैदिक और हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है। विश्व वैदिक सनातन न्यास राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष ने कहा कि देशभर में हिंदू संगठनों की संख्या लाखों में है लेकिन आपसी एकजुटता की कमी के कारण ये प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर पाते। अगर सभी संगठन एकजुट हो जाएं तो सरकार को सनातन बोर्ड बनाने के लिए विवश किया जा सकता है।

वीडीए के मानद सदस्य अंबरीश सिंह भोला ने सुझाव दिया कि हर वार्ड और मंदिर में बैठक आयोजित की जाए, जहां लोग एकजुट होकर आवश्यक कदम उठाने पर सहमत हों। इस दौरान अक्षयवर सिंह, अजय सिंह, रौनक, सारिका दुबे, अजीत श्रीवास्तव, राजन पांडेय, काली सेना के जिलाध्यक्ष अभिपाल उपस्थित रहे।

हिंदू समाज के मंदिरों में या किसी दूसरे समाज के धार्मिक स्थलों में अन्य धर्म के लोगों के प्रवेश पर रोक की मांग समाज को संकीर्ण बनाने की ओर ले जाएगा। इन मांगों से वर्षों पुरानी देश की गंगा-जमुनी तहजीब के लिए खतरा पैदा होगा।

अपने देश में कई ऐसे धर्म स्थल हैं जहां दूसरे धर्म के लोग अपनी इच्छा और खुशी से जाते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका दूसरे धर्म के धर्म स्थल में आस्था है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म के त्योहार में मुस्लिम, ईसाई और सिख शामिल हैं वहीं मुस्लिम समाज के त्योहार में दूसरे धर्म के लोग शामिल होते हैं।

बात करें मुस्लिम धर्म के मस्जिद या मजार की तो बड़ी संख्या में दूसरे मजहब के लोग अपनी-अपनी आस्था को लेकर यहां आते हैं, मन्नतें मांगते हैं और दुआएं करते हैं। ऐसे में मंदिरों में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक की मांग करना बरसों पुराने सामाजिक ताने बाने को तोड़ सकता है। मौजूदा समय में यह देखा जा सकता है राजनीतिक नेता अपनी रोटी सेंकने के लिए भड़काऊ बयान देते रहे हैं ताकि वो अपने वोट बैंक को मजबूत कर सकें और सत्ता हासिल कर सके।

ज्ञात हो कि इस तरह की मांग के बीच उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल पिछले महीने देखने को मिली। लाटभैरव में रामलीला का आयोजन किया गया। यहां की फर्श पर एक तरफ मगरिब की नमाज की अजान दी गई, वहीं दूसरी ओर ढोलक और मंजीरे के साथ मानस का दोहा गूंज रहा था।

नमाजी जहां नमाज पढ़ने में व्यस्त थे, वहीं रामलीला के पात्र अपनी भूमिका निभाने में तल्लीन थे। अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, इस रामलीला में 481 वर्षों की परंपरा और भारत की विविधता में एकता का संदेश भी मुखर हुआ। तुलसी के दौर से चली आ रही बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की यह मिसाल लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के विशाल फर्श पर मंचित हुई। मगरिब की नमाज और जयंत नेत्रभंग की लीला एक साथ हुई।

रिपोर्ट के अनुसार, शाम को 4:45 बजे रामलीला की शुरुआत हुई। चबूतरे के पूर्वी हिस्से में "सीता चरन चोंच हति भागा, मूढ़ मंदमति कारन कागा" का दोहा गूंज रहा था। वहीं, ठीक पांच बजे चबूतरे के पश्चिमी हिस्से में नमाजी अपनी नमाज पढ़ रहे थे। श्री आदि लाट भैरव रामलीला के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी जयंत को उसके संवाद बता रहे थे, जबकि हाफिज शाबान अली की इमामत में लोग नमाज पढ़ रहे थे।    

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