बनारस के संकटमोचन मंदिर में सजी संगीत रसिकों की महफिल, श्रोताओं में न कोई हिंदू, न मुसलमान !

Written by विजय विनीत | Published on: April 29, 2024
उत्तर प्रदेश के बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा भले ही धधकते ज्वालामुखी की तरह दुनिया भर में चर्चा और चिंता का विषय है, लेकिन इसी शहर में संकटमोचन मंदिर एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहां संगीत की ऐसी धारा बहती है जिसमें न कोई हिन्दू होता है और न ही मुसलमान। इस मंदिर में हर साल आयोजित होने वाले संगीत समारोह में गीत-संगीत ही नहीं, भाईचारा, कौमी एकता और सौहार्द की बारिश होती है। गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए यह मंदिर हमेशा नई इबारत लिखता है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में पिछले एक सौ एक साल से गीत-संगीत की सरिता बह रही है। ऐसी सरिता जिसमें दुनिया भर के संगीत प्रेमी गोता लगाते हैं।



बनारस का संकटमोचन एक हिंदू मंदिर है, जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) में स्थित है। यहां 27 अप्रैल 2024 से संगीत समारोह शुरू हो गया है, जो 02 मई 2024 तक चलेगा। यह समारोह इसलिए खास है कि पिछले साल इसके सौ बरस पूरे हो चुके हैं। समारोह को भव्य रूप देने के लिए संकटमोचन मंदिर परिसर को भव्य तरीके से सजाया गया है। यहां एक वीथिका भी बनाई गई है, जिसमें पूर्वांचल के तमाम कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की गई है। कई स्थानों पर एलईडी स्क्रीन और कटआउट लगाए गए हैं। संकटमोचन मंदिर परिसर के किसी भी कोने में बैठकर श्रोता संगीत का आनंद लेते हैं।

नागरी प्रचारिणी के प्रधानमंत्री, लेखक, कवि एवं रंगकर्मी व्योमेश शुक्ल कहते हैं, "संकटमोचन संगीत समारोह गरीबों और कलाकारों का समारोह है। इसमें बड़े-बड़े कलाकारों को मुफ्त में सुनना किसी अचरज से कम नहीं है। यहां रिक्शा खींचने वाला संगीत प्रेमी करोड़पति कारोबारी के बराबर में बैठक शास्त्रीय संगीत का आनंद लेता है। महानगरों में ऐसे इवेंट में शामिल होने के लिए हर दर्शक को करीब 22 से 25 हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे। इस आयोजन के पीछे कोई पेशवर इवेंट मैनेजर, संस्था अथवा सरकार नहीं है।"


संकटमोचन संगीत समारोह में उपस्थित श्रोता

व्योमेश के मुताबिक, "संकटमोचन संगीत समारोह स्रोताओं का समारोह है। ‘तानसेन’ वहीं पैदा होते हैं जहां ‘कानसेन’ पहले से हों। संकटमोचन समारोह में श्रोताओं के कान बहुत पारखी होते हैं। संगीत के मामले में उन्हें कोई छल नहीं सकता। वे साधारणतः गुणवत्ता और महानता को आसानी से पहचान लेते हैं। हर-हर महादेव के उद्घोष, तिहाई के सम पर गरजती हुई तालियों और सही मौके पर क्या बात और वाह-वाह से अपना अभिमत कलाकार तक पहुंचा देते हैं। संकटमोचन संगीत समारोह में आने वाला बड़े से बड़ा कलाकार महान श्रोताओं के आगे सिर नवाता है। इन श्रोताओं को भगवान हनुमान के स्वरूप का रुतबा हासिल है। यहां मनुष्य और ईश्वर के बीच का फर्क मिट जाता है। जाति-पाति का फर्क मिट जाता है।"

" रामराज की कल्पना तभी साकार हो सकती है जब उसमें जाति और संप्रदाय का भेद नहीं होगा। संकटमोचन के दरबार में सभी के लिए जगह है। हनुमान जी के आंगन में न कोई हिन्दू रहता है और न कोई मुसलमान। यहां हर कोई शाश्वत बनारसी ताना-बाना धारण कर लेता है। संकटमोचन मंदिर के महंत आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विश्वमंभरनाथ मिश्र इसके यजमान हैं, जो खुद पखावज के कमाल के कलाकार हैं। वह रोज के रियाजिया भी हैं। इनके पूर्वज दादा अमरनाथ मिश्र और इनके पिता वीरभद्र मिश्र भी मजे हुए कलाकार थे। इस आयोजन को शिखर तक पहुंचाने में किशन महाराज और आशुतोष भट्टाचार्य की बहुत बड़ी भूमिका रही है।"
 
रूढ़ियों को तोड़ता रहा है यह मंदिर
 
बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहजीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। इस संगीत समारोह में जो कोई आता है उसका धर्म और ईमान सिर्फ संगीत होता है। यहां जो एक बार भी गा-बजा लेता है, वह जगत प्रसिद्ध हो जाता है। संकटमोटन मंदिर पर सालों से चल रहे संगीत समारोह ने कई रूढ़ियों को तोड़ा है। साथ ही यह भी संदेश दिया है कि दुनिया में अगर कुछ अनमोल है तो वह बंधुत्व और प्यार की भाषा। वह भाषा जिसे नए जमाने ने भुला दिया है। संकटमोचन मंदिर बनारस का इकलौता ऐसा धार्मिक स्थल ऐसे है जहां गंगा-जमुनी तहजीब का दर्शन होता है।


चित्रकला प्रदर्शनी

संकटमोचन संगीत समारोह आयोजक महंत विशंभरनाथ मिश्र कभी हिन्दू-मुस्लिम फनकारों में भेद नहीं करते। संकटमोचन मंदिर में 07 मार्च 2006 को आतंकवादियों ने बम धमाकों से बनारस को दहलाने की कोशिश की थी। आतंकवादी घटना के बाद भाजपा से जुड़े संगठनों ने बितंडा खड़ा करना चाहा और मंदिर परिसर में धरना देने के लिए सरकार व प्रशासन से अनुमति मांगी थी, लेकिन सांप्रदायिकता का जहर घोलने में वो नाकाम रहे।

साल 2006 में संकटमोचन बम विस्फोट के बाद 2008 से तात्कालीन महंत पंडित वीरभद्र मिश्र ने संगीत समारोह में मुस्लिम कलाकारों को आमंत्रित करना शुरू किया। इसके बाद गजल गायकी का भी चलन हुआ। उस्ताद गुलाम अली भी आए।

शहनाई वादक भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भी संकटमोचन में शहनाई वादन करना चाहते थे, मगर अनुमति न होने की वजह से वह नहीं आ सके। उन्हें अनुमति तब मिली जब उनका इंतकाल हो चुका था। कुछ साल पहले बनारस के संकटमोचन संगीत समारोह में शिरकत करने पहुंचे प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक गुलाम अली ने कहा था, "हमें मोहब्बत का पैगाम बांटने की जरूरत है। पाकिस्तान ही नहीं, भारत में भी कुछ ताकतें ऐसी हैं जो यह नहीं चाहती हैं कि हम मिलकर रहें। चाहे वो खेल का मैदान हो या फिर गीत-संगीत का मंच। हम दोनों ही मुल्कों के अवाम शांति और भाईचारा चाहते हैं, लेकिन चंद मुट्ठी भर लोगों को शायद ये गवारा नहीं ताकि उनकी सियासी रोटियां सिकतीं रहें।"


संगीत समारोह का लाइव प्रसारण
 
150 कलाकार होंगे शामिल
 
संकटमोटन मंदिर के महंत प्रो.विशंभरनाथ मिश्र के मुताबिक, "संगीत समारोह में इस साल 150 कलाकार हनुमत दरबार में हाजिरी लगाएंगे। अबकी युवा कलाकारों को खास तबज्जो दी जाएगी। 12 पद्म पुरस्कार विजेता कलाकार भी शिरकत करेंगे। प्रख्यात गायिका कविता कृष्णमूर्ति बजरंगबली की स्तुति करेंगी। पंडित साजन मिश्र अपनी स्वरांजलि हनुमानजी के चरणों में अर्पित करेंगे। यह पहला मौका होगा, जब ध्रुपद गायिकी भी लोगों को सुनने को मिलेगी।"

"शास्त्रीय संगीत की अलग-अलग विधाओं के 13 कलाकार ऐसे हैं, जो संकटमोचन संगीत समारोह में पहली बार हाजिरी लगाएंगे। इनमें वाराणसी की अवंतिका महाराज व डॉ. के शशि कुमार, मुंबई की नंदिनी नरेंद्र बेडेकर, पंडित सौनक अभिषेकी व अभेद अभिषेकी, कोलकाता की मीनाक्षी मजूमदार, पंडित सुररंजन मुखर्जी व मधुमिता राय, प्रयागराज के विजय चंद्रा व ऋषि-वरुण मिश्रा, अहमदाबाद की बीना नेहुल मेहता और बेंगलुरु की भावना रामण्णा शामिल हैं।"

प्रो.मिश्र के मुताबिक, "छह दिवसीय समारोह में दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, कोलकाता, जालंधर, अहमदाबाद और लंदन से लोग आएंगे। लंदन से तबला वादक संजू सहाय, दिल्ली से मालिनी अवस्थी, जयपुर से मोहनवीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट, मुंबई से भक्ति गायक अनूप जलोटा, सितार वादक निलाद्रि कुमार आएंगे। उस्ताद अकरम खान तबला वादन करेंगे। चेन्नई के मैंडोलिन वादक यू राजेश और ड्रम प्लेयर शिवमणि प्रस्तुति देंगे। हैदराबाद से आने वाले मृदंगम वादक येल्ला वैंकटेश्वर राव की प्रस्तुति भी देखने को मिलेगी।"


संकटमोचन संगीत समारोह के दौरान कलाकारों की चित्रकला प्रदर्शनी भी लगाई गई

ज्ञानवापी मुद्दे का जिक्र करने पर महंत प्रो. विशंभर नाथ कहते हैं, "झगड़े-फसाद का कोई शड्यूल नहीं बनता। धर्म बांटने में नहीं, जोड़ने का दूसरा नाम है। इंसानियत का जज्बा पैदा करने का नाम है। फसाद की कोई प्लानिंग नहीं होती। प्लानिंग से शुरू किया गया फसाद धर्म नहीं होता। अगर दिमाग खराब है तो आप झगड़ा कीजिए। सैकड़ों साल पीछ जाना हो तो फसाद शुरू कर कीजिए। संकटमोचन मंदिर गोस्वामी तुलसीदास की पद्धति से संचालित होता। तुलसीदास ने मुगलकाल में रामचरित मानस की रचना की। सम्राट अकबर से उनके अच्छे संबंध थे। तुलसीदास ने ही रामलीला के जरिये ओपेन थिएटर का कांसेप्ट इंट्रोडूयूज किया था। यह देश सबका है। क्या हिन्दू,क्या मुसलमान। भगवान सभी के दिल में रहते हैं।"
  
महिला फ़नकारों को मिली पहचान
 
बनारस के मंदिरों में पहले महिला कलाकारों को गाने-बजाने का अवसर नहीं मिलता था। संकटमोचन संगीत समारोह के आयोजकों ने सत्तर के दशक में इन रूढ़ियों को तोड़ना शुरू किया तो पूर्वांचल के अन्य मंदिरों में होने वाले सालाना जलसों में महिला फनकारों को एंट्री मिलने लगी। बनारस में अस्सी के दशक में मुस्लिम और अन्य धर्मों के कलाकारों को परफार्मेंस देने का अवसर दिया जाने लगा। मौका मिला तो पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली संकटमोचन संगीत समारोह के सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले कलाकार बन गए। इनके अलावा पंडित जसराज हर साल इस संगीत समारोह में शामिल होने के लिए अमेरिका से बनारस आते थे।



संकटमोचन संगीत समारोह में पंडित साजन मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "संकटमोचन संगीत समारोह में सिर्फ उन्हीं फनकारों को गाने-बजाने का अवसर मिलता है जो सचमुच सिद्धहस्त होते हैं। संकटमोचन मंदिर के महंत पं. विशंभर मिश्र के पुत्र पुष्कर मिश्र होनहार तबला वादक हैं। इसके बावजूद उन्हें इस मंच पर अपनी प्रस्तुति देने का आज तक मौका नहीं मिला। यहां कोई सोर्स सिफारिश नहीं चलती। संगीत समारोह में आने वाले दर्शक खुद ही संगीत के मर्मज्ञ होते हैं। इनके आगे भला कौन टिक पाएगा? पिछले कुछ बरस से महिला और युवा कलाकारों को खास अहमियत दी जा रही है।  यह संगीत समारोह शास्त्रीय संगीत का नया ऑडियंस भी तैयार करता है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं,  "संकटमोचन मंदिर में बम धमाकों के बाद प्रशासन ने इसकी देख-रेख करने वाले प्रबंधन को दबाव में लेने की कोशिश की, लेकिन मुफ्ती-ए-बनारस और लाल चर्च के पादरी ने यहां पहुंचकर भाई-चारा और गंगा-जमुनी संस्कृति की एक नई मिसाल पेश की। आस्था के इस केंद्र को पर्यटन स्थल भी नहीं बनने दिया गया। संकटमोचन मंदिर ने दुनिया को बताया है कि गीत-संगीत का कोई धर्म नहीं होता, इसकी जाति नहीं होती, कोई जेंडर नहीं होता, कोई क्लास नहीं होता। इस कार्यक्रम का आयोजन कलाकार ही करते हैं। पंडित अमरनाथ मिश्र पखावज (वादक), प्रो.वीरभद्र मिश्र (गायक) के बाद अब पंडित विशंभरनाथ मिश्र (पखावज) अहर्निस इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं।"


 
मंदिर के सामने होता है महोत्सव
 
संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. मिश्र के मुताबिक, "संगीत महोत्सव का पहला आयोजन 1923 में हुआ था। पहला मंच मंदिर की ड्योढ़ी था, जहां से कलाकारों ने हनुमान से राम मिलन की गुहार लगाई थी। गर्भगृह के बाहर बैठकर कलाकार गायन-वादन की प्रस्तुतियां देते थे। पंडित अमरनाथ मिश्र संगीत समारोह की पूरी जिम्मेदारी निभाते थे। 25 साल तक यह संगीत समारोह सिर्फ एक दिन का होता था। इस समारोह में जब भीड़ बढ़ने लगी तो बड़े महंत पंडित बांकेराम मिश्र ने कुएं की जगत को मंच बनवा दिया। कलाकार कुएं की जगत पर बैठकर हनुमान जी को संगीत सुनाने लगे। कलाकारों की संख्या और आयोजन की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो स्थानीय के बाद बाहरी कलाकारों का प्रवेश शुरू हुआ।"

"40वें साल में आयोजन स्थल गर्भगृह के दक्षिणी छोर के बरामदे में हो गया। आयोजन दो दिन का होने लगा। 66 के दशक में बाहर से आने वाले पंडित सियाराम तिवारी बड़े कलाकार थे। 71 और 72 में पंडित जसराज के बड़े भाई पंडित मणिराम रहे, दूसरे आयोजन में दिल्ली के वायलिन वादक विजी जोग और पंडित राजन मिश्र के चाचा पंडित गोपाल मिश्र ने सारंगी पर जुगलबंदी की। तबले पर थे पंडित किशन महाराज। किशन महाराज ने तबले पर ऐसी थाप दी कि ट्यूबलाइट ही टूट गई। इसको लेकर चर्चाएं भी खूब हुईं। समापन पर तबला वादक पंडित कंठे की अंतिम प्रस्तुति से होती थी। संकटमोचन संगीत समारोह को लेकर बनारस के लोगों का यह उल्लास, उत्साह और आनंद नया नहीं, दशकों पुराना है। इस राग उत्सव का रस चखने के लिए संगीत प्रेमी अधीर रहते हैं।"


 
पांच सौ साल पुरानी है परंपरा
 

बनारस के जाने-माने संगीतकार पद्मश्री राजेश्वर आचार्य कहते हैं, "संकटमोचन मंदिर में गीत-संगीत की परंपरा करीब पांच सौ साल पुरानी है। इसे गोस्वामी तुलसीदास ने ही शुरू कराया था। पहले विख्यात कलाकार आते थे और अपने मधुर कंठों का जादू बिखेरते थे। सौ साल पहले 1923 में संकटमोचन मंदिर के महंत पंडित बाकेराम मिश्रा ने आधिकारिक तौर पर इस कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके बाद मंदिर में विधिवत मंच बनाकर शास्त्रीय गायन और वादन किया जाने लगा।"

"संकटमोचन संगीत समारोह की सबसे बड़ी खासियत है शास्त्रीय संगीत के राग। वो राग जो अलग-अलग समय में गाए और बजाए जाते हैं। जिस पहर का संगीत होगा, आप उसे उसी पहर में सुनेंगे। पूरी रात चलता है संगीत समारोह। भोर में आएंगे तो राग भैरवी सुनेंगे। सुबह होने पर राग सोहनी, गुणकली, बिलासखानी तोड़ी, तोड़ी, जोगिया आदि सुनने को मिलेगा। इसी तरह शाम के वक्त राग यमन, पुरिया, देस तो आधी रात में राग बागेश्री, रागेश्री, मालकौंस, अड़ाना, दरबारी आदि। राग-रागिनियों पर आधारित गायन, वादन और नृत्य देख हर कोई झूमने और ताली बजाने पर मजबूर हो जाता है। संकटमोचन संगीत समारोह में संगीत सुनना एक ऐसी सिद्धि हासिल करना है जिसका प्रभाव जीवन में सालों-साल दिखता है।"



देश के जाने-माने सरोदवादक पंडित विकास महाराज कहते हैं, "संकटमोचन मंदिर प्रांगण की ख़ासियत है वहां दाख़िल होते ही हर कोई अपना वैभव भूल जाता है। इस दरबार में पहुंचते कलाकार अपनी सारी कीर्ति एक तरफ छोड़कर अपनी अंजुरी में जो भी रस है उसे तिरोहित करते दिखाई देते हैं। इस प्रांगण में शामिल होना और परफॉर्म करना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है किसी कलाकार को सुनना। यहां मंच पर अपनी कला को पेश करने वाला कलाकार जब अपनी प्रस्तुति ख़त्म कर नीचे उतरता है तो अपना सारा गौरव, अपना सारा ज्ञान एक तरफ रखकर नवोदित कलाकारों को विद्यार्थियों की तरह सुनता दिखाई देता है। संकटमोचन संगीत समारोह का जो आनंद है वह कहीं देखने-सुनने को नहीं मिलता है।"

बनारस के जाने-माने वायलिनवादक पंडित सुखदेव मिश्र कहते हैं, " संकटमोचन संगीत समारोह अनमोल हैं। अनुभूतियों में संकटमोचन समारोह का सबसे असाधारण प्रभाव यह है पूरे मंदिर परिसर में संगीत हमारी हर स्थल पर उपस्थिति को तरंगित करता है, जहां हम विचरण कर रहे होते हैं। संगीत समारोह की प्रस्तुतियां हमारी ऐसी अनुभूतियों को अपने अनूठेपन के साथ अलंकृत करती हैं। यह संगीत समारोह वैश्विक हो चुका है। हनुमत दरबार में हाजिरी लगाने वालों और समारोह का चाहने वाले ऑनलाइन प्रसारण करवाने का अनुरोध भी करते हैं। इस समारोह से लाखों लोग जुड़ते हैं।"

 
"संकटमोचन मंदिर में संगीत समारोह की खासियत है कि न कोई कार्ड छपता है और न किसी के न्योता दी जाती है। फिर भी हजारों की तादाद में आस्तिक और नास्तिक भी संगीत सुनने आते हैं। महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि इस समारोह का एक और खास बात है कि इसके कोई अध्यक्ष और अतिथि भी नहीं होते हैं। आम व खास का भी बंधन नहीं होता है। संकटमोचन संगीत समारोह सादगी में आनंद लेने का एक अवसर पेश करता है और यह ताकीद करता है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।"
 
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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