मौलाना आज़ाद फेलोशिप के भुगतान में देरी से आर्थिक संकट और मानसिक तनाव में अल्पसंख्यक शोधार्थी

Written by sabrang india | Published on: June 3, 2025
मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप के तहत पीएचडी कर रहे सैकड़ों अल्पसंख्यक समुदायों के शोधार्थियों को दिसंबर 2024 से अब तक छात्रवृत्ति नहीं मिली है।



मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप के सहारे पीएचडी कर रहे शोधार्थी एक बार फिर वजीफे की देरी से जूझ रहे हैं। अधिकांश शोधार्थियों को दिसंबर 2024 से लेकर अब तक (मई 2025) की राशि नहीं मिली है, जबकि कुछ को इससे पहले की किश्तें भी अब तक नहीं मिली हैं।

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा संचालित मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप उन शोधार्थियों को आर्थिक सहायता प्रदान करती है जो भारत के छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों-मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी-से आते हैं। हालांकि, वजीफे के भुगतान में लगातार हो रही देरी ने इस छात्रवृत्ति पर निर्भर शोधार्थियों को न केवल आर्थिक संकट में डाल दिया है, बल्कि उन्हें गंभीर मानसिक तनाव का सामना भी करना पड़ रहा है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, वजीफे में देरी के चलते कई छात्र कर्ज लेकर अपना गुजारा कर रहे हैं। शोध से जुड़ी गतिविधियां लगभग ठप हो गई हैं, क्योंकि न तो किताबें खरीदने के लिए पैसे हैं और न ही फील्डवर्क के लिए संसाधन शेष बचे हैं।

वजीफे में जारी देरी की गंभीर स्थिति को देखते हुए तीन सांसद-जिया उर रहमान (सांसद, संभल), मोहम्मद जावेद (सांसद, किशनगंज) और टी. सुमति (सांसद, चेन्नई दक्षिण)-ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर मामले पर तत्काल संज्ञान लेने और आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की है।

यह छात्रवृत्ति अधिकतम पांच वर्षों के लिए दी जाती है। इसके पहले दो वर्षों को जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) कहा जाता है, जिसके तहत शोधार्थियों को प्रति माह 37,000 रूपये की आर्थिक सहायता मिलती है। अंतिम तीन वर्षों को सीनियर रिसर्च फेलोशिप (SRF) के रूप में 42,000 रूपये प्रति माह की राशि दी जाती है। दिसंबर 2023 तक इस फेलोशिप से कुल 1,466 शोधार्थी लाभान्वित हो रहे थे, जिनमें 907 जेआरएफ और 559 एसआरएफ के तहत दाखिल थे।

वर्ष 2022-23 में केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को बंद करने का फैसला लिया था। इसके बाद 2025-26 के केंद्रीय बजट में इस फेलोशिप के लिए आवंटित राशि में 4.9% की कटौती की गई जो पहले 45.08 रूपये करोड़ थी, उसे घटाकर 42.84 करोड़ रूपये कर दिया गया।

द वायर हिंदी ने देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों से बात की है। कोलकाता के प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के शोधार्थी कालू तमांग बताते हैं, ‘मैं करीब छह महीने से जूझ रहा हूं। आर्थिक बोझ के कारण रिसर्च करना मुश्किल हो रहा है।’ इस फेलोशिप के लिए तमांग का चयन साल 2021 में हुआ था। तमांग बौद्ध हैं। उनकी किरेन रिजिजू से मांग है कि फेलोशिप जल्द से जल्द रिलीज किया जाए।

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में पीएचडी कर रहे एक शोधार्थी ने कहा, ‘पीएचडी का चौथा साल चल रहा है और फेलोशिप आना बंद हो गयी है। आर्थिक कठिनाई ने मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला है।. रेंट का पैसा नहीं दे पा रहे हैं। दोस्तों से उधार लिया और लगातार टाल रहे कि आज देंगे-कल देंगे।’

यह शोधार्थी मूल रूप से नॉर्थ ईस्ट का रहने वाला है और बौद्ध समुदाय से ताल्लुक़ रखता है।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के फिजोओलॉजी विभाग से पीएचडी कर रहीं रजिया ख़ातून ने कहा कि लगातार गुहार लगाने के बावजूद अधिकारियों की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। ‘कई शोधार्थी लगातार आर्थिक मुसीबत से जूझ रहे हैं। लगातार तनाव के कारण मेरी तबीयत ख़राब हो चुकी है।’

मणिपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहीं सलीमा सुल्तान को भी दिसंबर 2024 से अब तक मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप की राशि नहीं मिली है। सलीमा कहती हैं, 'अल्पसंख्यक समुदाय के शोधार्थियों के लिए यह फेलोशिप ही एकमात्र उम्मीद है। इसी के सहारे हम अपने शोध कार्य का खर्च उठा पाते हैं। वजीफे में हो रही देरी से हमारा अकादमिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यह छात्रवृत्ति हमारा अधिकार है, और हम सरकार से मांग करते हैं कि अन्य फेलोशिप्स की तरह इसे भी नियमित और सुचारू रूप से संचालित किया जाए।'

शोधार्थियों का कहना है कि फेलोशिप मिलने में पहले भी देरी होती रही है, लेकिन पहले उन्हें इसकी वजह बताई जाती थी। इस बार न तो कोई स्पष्ट सूचना दी जा रही है और न ही देरी का कारण बताया जा रहा है। इस अनिश्चितता और संवादहीनता के कारण छात्रों में तनाव और असुरक्षा की भावना और बढ़ गई है।

लंबित फेलोशिप के भुगतान को लेकर अब तक अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

फेलोशिप जारी करने की मांग को लेकर शोधार्थियों का एक समूह 15 मई को अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय पहुंचा था। जामिया मिलिया इस्लामिया के एक शोधार्थी के अनुसार, मंत्रालय के अधिकारियों ने उनसे मिलने से भी इनकार कर दिया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक शोधार्थी ने आरटीआई के माध्यम से छात्रवृत्ति जारी होने की तारीख पूछी, लेकिन मंत्रालय की ओर से अस्पष्ट जवाब मिला।

मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप भारतीय विश्वविद्यालयों में पीएचडी कर रहे अल्पसंख्यक समुदायों के शोधार्थियों को दी जाती है। इसके लिए नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (NET) पास करना अनिवार्य होता है। यह छात्रवृत्ति केवल उन्हीं शोधार्थियों को मिलती है, जिनके परिवार की वार्षिक आय 6 लाख रूपये से कम हो।

मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अंतर्गत आती है। अक्टूबर 2022 से इसकी नोडल एजेंसी नेशनल माइनॉरिटीज़ डेवलपमेंट एंड फाइनेंस कॉरपोरेशन (NMDFC) है, जो लंबित भुगतान और प्रशासनिक मामलों को देखती है। इससे पहले इस फेलोशिप की जिम्मेदारी यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के पास थी। शोधार्थियों का मानना है कि UGC के अंतर्गत यह छात्रवृत्ति अधिक सुचारू और प्रभावी रूप से संचालित हो रही थी।

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक शोधार्थी ने कहा, 'यूजीसी के साथ अच्छी बात यह थी कि जब फेलोशिप में देरी होती थी, तो वे कारण स्पष्ट करते और जानकारी साझा करते थे। लेकिन अब एनएमडीएफसी पूरी तरह से हाथ खड़े कर देती है।

द वायर हिंदी ने वजीफे में हो रही देरी के कारण जानने के लिए एनएमडीएफसी के उप महाप्रबंधक (योजना)/कंपनी सचिव निक्सन माथुर से संपर्क किया। उन्होंने बताया, 'हमारा काम राशि का वितरण करना है, लेकिन मंत्रालय से फंड अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। मामला अभी प्रक्रिया में है और जैसे ही फंड मिलेगा, शोधार्थियों को फेलोशिप दे दी जाएगी।' माथुर ने यह भी कहा कि मंत्रालय की ओर से आखिरी बार फंड अक्टूबर-नवंबर 2024 में आया था।

मंत्रालय द्वारा फंड जारी करने में हो रही देरी के कारणों का पता लगाने के लिए द वायर हिंदी ने संयुक्त सचिव (शिक्षा), राम सिंह से संपर्क किया। राम सिंह, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय में प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाएं, पढ़ो प्रदेश और मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप देख रहे हैं, का अभी तक कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।

मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप बंद हो चुकी

ज्ञात हो कि मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप की शुरुआत साल 2009 में अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना और उनकी राह में आने वाली आर्थिक बाधाओं को कम करना था।

दिसंबर 2022 में भारत सरकार ने मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को बंद करने का निर्णय लिया। लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में अल्पसंख्यक मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि चूंकि मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (MANF) योजना उच्च शिक्षा के लिए उपलब्ध अन्य कई फेलोशिप योजनाओं से मिलती-जुलती है, इसलिए इसे 2022-23 से बंद करने का निर्णय लिया गया है।

हालांकि अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने यह आश्वासन दिया था कि ‘जिन छात्रों को पहले से यह फेलोशिप मिल रही है, उन्हें उनकी निर्धारित अवधि तक यह सुविधा जारी रहेगी।’ मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप की नोडल एजेंसी, एनएमडीएफसी ने भी अपने नोटिस में इस बात का उल्लेख किया था।
 

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