"सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के मंसूबों को नाकाम कर दिया है। मदरसों को संकीर्ण नजरों से देखना अच्छे संकेत नहीं है। मुस्लिम समाज के बच्चे भी संस्कृत स्कूलों में पढ़ते हैं और हिंदू समाज के बच्चे भी मदरसों में पढ़ते हैं।"
साभार : सोशल मीडिया
मदरसों को बंद करने की राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एनसीपीसीआर की सिफारिश पर कार्रवाई करने से मना कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। चार हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी।
टीवी9 भारतवर्ष की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने के यूपी सरकार के फैसले पर भी रोक लगाई है। दरअसल, एनसीपीसीआर ने शिक्षा के अधिकार कानून का अनुपालन नहीं करने पर सरकारी वित्त पोषित और सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने की सिफारिश की थी।
अपनी हालिया रिपोर्ट में एनसीपीसीआर ने मदरसों की कार्यप्रणाली पर चिंता जताई थी और सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली धनराशि तब तक रोकने का आह्वान किया था, जब तक वे शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते।
एनसीपीसीआर की सिफारिश
एनसीपीसीआर ने सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराने की सिफारिश की थी। आयोग ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय के जो बच्चे मदरसों में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और आरटीई अधिनियम 2009 के अनुसार निर्धारित समय और पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाए।
आयोग ने कहा कि गरीब पृष्ठभूमि के मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दबाव डाला जाता है। एनसीपीसीआर ने कहा कि जिस तरह संपन्न परिवार धार्मिक और नियमित शिक्षा में निवेश करते हैं, उसी तरह गरीब पृष्ठभूमि के बच्चों को भी यह शिक्षा दी जानी चाहिए। हम चाहते हैं कि सभी को समान शैक्षणिक अवसर मुहैया हो।
मदरसों को बंद करने के लिए नहीं कहा—एनसीपीसीआर
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि उन्होंने मदरसों को बंद करने के लिए कभी नहीं कहा, बल्कि उन्होंने इन संस्थानों को सरकार द्वारा दी जाने वाली धनराशि पर रोक लगाने की सिफारिश की क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने बच्चों को मदरसा के बजाय सामान्य विद्यालयों में दाखिला देने की सिफारिश की है।
शीर्ष कोर्ट के आदेश पर मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने इस फैसले को लेकर कहा कि एनसीपीसीआर मदरसों के खिलाफ काम कर रहा है। मदरसों पर मौका मिलते ही आरोप लगाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम समाज स्वागत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के मंसूबों को नाकाम कर दिया है। मदरसों को संकीर्ण नजरों से देखना अच्छे संकेत नहीं है। मुस्लिम समाज के बच्चे भी संस्कृत स्कूलों में पढ़ते हैं और हिंदू समाज के बच्चे भी मदरसों में पढ़ते हैं। जावेद ने कहा, "मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पढ़कर यहां तक पहुंचा हूं। अभिभावक अपनी मर्जी से अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। शिक्षा के केंद्र में हिंदू-मुसलमान करना उचित नहीं है।"
साभार : सोशल मीडिया
मदरसों को बंद करने की राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एनसीपीसीआर की सिफारिश पर कार्रवाई करने से मना कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। चार हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी।
टीवी9 भारतवर्ष की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने के यूपी सरकार के फैसले पर भी रोक लगाई है। दरअसल, एनसीपीसीआर ने शिक्षा के अधिकार कानून का अनुपालन नहीं करने पर सरकारी वित्त पोषित और सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने की सिफारिश की थी।
अपनी हालिया रिपोर्ट में एनसीपीसीआर ने मदरसों की कार्यप्रणाली पर चिंता जताई थी और सरकार द्वारा उन्हें दी जाने वाली धनराशि तब तक रोकने का आह्वान किया था, जब तक वे शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते।
एनसीपीसीआर की सिफारिश
एनसीपीसीआर ने सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर आरटीई अधिनियम, 2009 के अनुसार बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में भर्ती कराने की सिफारिश की थी। आयोग ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय के जो बच्चे मदरसों में पढ़ रहे हैं, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, उन्हें औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए और आरटीई अधिनियम 2009 के अनुसार निर्धारित समय और पाठ्यक्रम की शिक्षा दी जाए।
आयोग ने कहा कि गरीब पृष्ठभूमि के मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए दबाव डाला जाता है। एनसीपीसीआर ने कहा कि जिस तरह संपन्न परिवार धार्मिक और नियमित शिक्षा में निवेश करते हैं, उसी तरह गरीब पृष्ठभूमि के बच्चों को भी यह शिक्षा दी जानी चाहिए। हम चाहते हैं कि सभी को समान शैक्षणिक अवसर मुहैया हो।
मदरसों को बंद करने के लिए नहीं कहा—एनसीपीसीआर
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि उन्होंने मदरसों को बंद करने के लिए कभी नहीं कहा, बल्कि उन्होंने इन संस्थानों को सरकार द्वारा दी जाने वाली धनराशि पर रोक लगाने की सिफारिश की क्योंकि ये संस्थान गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने बच्चों को मदरसा के बजाय सामान्य विद्यालयों में दाखिला देने की सिफारिश की है।
शीर्ष कोर्ट के आदेश पर मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने इस फैसले को लेकर कहा कि एनसीपीसीआर मदरसों के खिलाफ काम कर रहा है। मदरसों पर मौका मिलते ही आरोप लगाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुस्लिम समाज स्वागत करता है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के मंसूबों को नाकाम कर दिया है। मदरसों को संकीर्ण नजरों से देखना अच्छे संकेत नहीं है। मुस्लिम समाज के बच्चे भी संस्कृत स्कूलों में पढ़ते हैं और हिंदू समाज के बच्चे भी मदरसों में पढ़ते हैं। जावेद ने कहा, "मैं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पढ़कर यहां तक पहुंचा हूं। अभिभावक अपनी मर्जी से अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। शिक्षा के केंद्र में हिंदू-मुसलमान करना उचित नहीं है।"