रक्षक बना भक्षक? ओडिशा में पुलिस ने महिलाओं, बच्चों, पादरियों पर हमला किया: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट

Written by sabrang india | Published on: April 15, 2025
वकीलों और कार्यकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि ओडिशा पुलिस ने बच्चों और पादरियों पर लाठी डंडों से हमला किया, जबकि महिलाओं को ‘पीटा और छेड़छाड़’ किया गया। यह सब 22 मार्च, 2025 को ओडिशा के गजपति जिले में जुबा कैथोलिक चर्च के अंदर हुआ। फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कुछ लड़कियों, महिलाओं और पादरियों से मुलाकात की ताकि उनके साथ हुई क्रूरता को उजागर किया जा सके।



ओडिशा लॉयर्स फोरम के प्रतिनिधियों के साथ एक आठ सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम, जिसमें सात वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता शामिल थे, 9 अप्रैल, 2025 को ओडिशा के गजपति जिले के जुबा, मोहना में चर्च और आवासों में 22 मार्च, 2025 को पादरियों और महिलाओं पर हुए हमलों की कथित घटनाओं की पड़ताल करने के लिए गए थे। टीम में अधिवक्ता क्लारा डी सूजा, गीतांजलि सेनापति, थॉमस ईए, कुलकांत दंडसेना, सुजाता जेना, अंजलि नायक, अजय कुमार सिंह और सुबल नायक शामिल थे जिनमें से कई इस फोरम के साथ हैं।

कथित तौर पर पुलिस ने मारिजुआना की खेती की कथित रिपोर्ट पर पास के एक गांव में छापा मारा था। इससे तनाव बढ़ गया और स्थानीय लोगों व पुलिस के बीच संघर्ष हुआ। इस दौरान पुलिस प्रतिरोध का सामना करते हुए पीछे हट गई। ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों के बीच शांति समझौता हो गया है। जुबा गांव पड़ोसी गांवों में जाने का रास्ता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

चर्च को अपवित्र करना

22 मार्च, 2025 को जुबा चर्च में अगले दिन की रविवार की प्रार्थना और पूजा के लिए तैयारियां चल रही थीं। कोंध आदिवासी समूह की चार युवा आदिवासी महिलाएं, 20 और 18 साल की दो युवतियां और 12 साल की उम्र के दो नाबालिग इस काम में लगे लोगों में शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना तब हुई जब लगभग 15 पुलिसकर्मियों ने दोपहर 1.30 बजे कैथोलिक चर्च में घुसकर युवतियों पर हमला कर दिया। आक्रामक पुलिसकर्मियों ने सफाई के उपकरण तोड़ दिए और चर्च को अपवित्र कर दिया।

कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन: आरोप है कि पुलिस ने बिना वारंट के कैथोलिक चर्च परिसर में प्रवेश किया और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन करते हुए पवित्र स्थान को अपवित्र किया, जिसमें धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 298 का उल्लंघन शामिल है (धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना)।

युवतियों पर हमला, दुर्व्यवहार, छेड़छाड़

कंध आदिवासी समूह से संबंधित दो युवतियों को चर्च के भीतर लाठियों से पीटा गया और फिर लगभग 300 मीटर दूर पुलिस बस में घसीटा गया, उन्हें हर जगह पीटा गया। यह देखकर, दो अन्य नाबालिग लड़कियां अपनी जान बचाने के लिए प्रेस्बिटेरी की ओर भागीं। रोते हुए और सदमे में लड़कियों ने परिसर में अपने रेसिडेंस में मौजूद पुजारियों से मदद मांगी।

सबर आदिवासी समूह की 38 वर्षीय एक अन्य युवा महिला रसोइया जो रेसिडेंस में मौजूद थी वह नाबालिग लड़कियों की चीखें सुनकर बरामदे में आई और उसे भी बुरी तरह पीटा गया। दो पुरुष पुलिसकर्मियों ने उसकी गर्दन पकड़ी और चेहरे पर जोरदार हमला किया, महिला की कुर्ती (ऊपरी कपड़ा) फाड़ दी और गर्दन को खींचते हुए इस बात की परवाह किए बिना घसीटा कि वे महिला की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं।

ऐसा बताया जाता है कि बगल के गांव के बच्चों को भी नहीं बख्शा गया, जिनमें से कुछ अपनी मां की गोद में थे। बच्चों और महिलाओं को बस में कुछ दूर ले जाया गया और वहीं छोड़ दिया गया, जिससे उन्हें लंबी दूरी पैदल चलकर वापस आना पड़ा। महिलाओं से कुछ मोबाइल फोन छीन लिए गए जो अभी तक उन्हें वापस नहीं किए गए हैं।

कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन: चर्च परिसर में और उसके आसपास आदिवासी महिलाओं की पिटाई और छेड़छाड़ की गई, जो कि BNS की धारा 74 का उल्लंघन है - महिला की शील भंग करने के इरादे से उन पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग और अनुच्छेद 21 और POCSO अधिनियम, 20212 का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें नाबालिग शामिल थे और अनुच्छेद 15 (3 और 4) का उल्लंघन है - भेदभाव को रोकता है और महिलाओं और आदिवासी समुदायों की सुरक्षा का आह्वान करता है।

दो कैथोलिक पादरियों पर क्रूर हमले

कैथोलिक चर्च के पवित्र स्थान का उल्लंघन करने के बाद, पुलिस ने छोटी लड़कियों का पीछा करते हुए पादरियों के रेसिडेंस की तरफ गए। बच्चों और महिलाओं की चीखें सुनकर, दो कैथोलिक पादरी अपने रेसिडेंस से बाहर आए। वे गांव में एक अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद आराम कर रहे थे। एक महिला पुलिस अधिकारी ने अपने बेंत से पुजारी पर हमला कर दिया।

फादर जेजी (बदला हुआ नाम) उम्र 56 वर्ष केरल के पाला/कोट्टायम के मूल निवासी हैं। वे पिछले 40 वर्षों से इन पहाड़ियों में रहने वाले आदिवासी और दलित समुदायों के विकास के लिए काम कर रहे हैं। फादर डीएन (बदला हुआ नाम) गजपति जिले के मूल निवासी हैं। पुलिस द्वारा उन पर किए गए हमले से हैरान थे। दोनों पादरियों को दो अलग-अलग तरफ घसीटा गया। पुलिस द्वारा लगभग 300 से 400 मीटर दूर पुलिस बसों तक उन्हें पीटा गया। पादरियों पर "पाकिस्तानी" होने और लोगों का धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया गया था। फादर डीएन, जिन्हें केवल तीन महीने पहले ही पुजारी नियुक्त किया गया था और वे चर्च में सहायक पुजारी के रूप में शामिल हुए थे, उस दिन अपना जन्मदिन मनाने वाले थे। फादर डीएन कंधे की हड्डी टूटने से बुरी तरह से घायल हो गए। एक बार तो वह बेहोश होकर गिर पड़े, लेकिन उन्हें खींचकर बस में चढ़ाया गया।

जब पुजारियों को पीटा जा रहा था, तो बच्चे और महिलाएं अपना तकलीफ भूल गए और पुलिस से विरोध करने लगे कि वे धर्मगुरूओं को क्यों पीट रहे हैं। इसके बाद पुलिस ने पुजारियों के फेवर में बोलने के लिए रसोइए की पिटाई कर दी। इस बीच, पुलिस कर्मियों का एक समूह भी पादरी के घर में घुस गया, पानी पीया और कथित तौर पर पुजारियों के रेसिडेंस से 40,000 का नकदी नोट ले गया।

एक महिला पुलिस अधिकारी के नेतृत्व में किया गया ये क्रूर हमला जाहिर तौर पर नफरत से भरा हुआ था, मानवीय गरिमा या आदिवासी समुदाय के प्रति सम्मान की भावना और धार्मिक अल्पसंख्यकों के रूप में पुजारियों की स्थिति की परवाह किए बिना किया गया।

कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन: धार्मिक परिसर के भीतर निहत्थे पुजारियों पर बिना किसी उकसावे के किया गया हमला भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) और 19(1)(ड) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आवागमन की स्वतंत्रता – के साथ-साथ भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 23 – अपराधों को रोकने और शांति व्यवस्था बनाए रखने की पुलिस की जिम्मेदारी – का स्पष्ट उल्लंघन है।

पत्नी और नाबालिग बेटी पर शोक के बीच हमला किया गया

एमएम (बदला हुआ नाम) की उम्र 62 वर्ष थी जिसने पिछली रात अपने पति को खो दिया था और वह सुबह 10 बजे के आसपास कब्रिस्तान से लौटी थी; और अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ रो रही थी। पुलिस के हमले के समय, उनके रिश्तेदार और अन्य लोग भाग गए; जबकि वह और उनकी नाबालिग बेटी आरएम (उम्र 17 वर्ष) वहीं रुकी रही। उन दोनों को लाठियों से पीटा गया, पुलिस को इस बात की परवाह नहीं थी कि इस परिवार ने अभी-अभी अपने प्रियजन को दफनाया था और वे शोक में डूबे थे। विधवा मां और उनकी नाबालिग बेटी को पुलिस द्वारा पुलिस बस में ले जाकर लाठियों से पीटा गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।

कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन: जेजे अधिनियम, 2015 की धारा 5 के तहत एक शोकग्रस्त विधवा और उनकी नाबालिग बेटी को पीटना और घसीटना - बच्चे के साथ क्रूरता के लिए सजा और अनुच्छेद 39 (ई+एफ) का उल्लंघन - बच्चों की रक्षा करना और उनका विकास सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य।

कमजोर ईसाइयों पर हमले

टीम के सदस्यों को बताया गया कि पुलिस जबरन लोगों के घरों में घुसी और उन्हें नुकसान पहुंचाया; लगभग 20 मोटरसाइकिलें नष्ट कर दी गईं। साथ ही टीवी सेट, चावल, धान, मुर्गियां और अंडे सहित पूरे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति नष्ट कर दी गई।

यह साफ था कि पुलिस ईसाइयों को निशाना बना रही थी क्योंकि उन्होंने यीशु और मरियम की मूर्ति को भी तोड़ा और अपवित्र किया। घरों व खाद्य आपूर्ति को नष्ट किया, धार्मिक प्रतीकों का अपमान किया।

कानूनी और संवैधानिक उल्लंघन: ये सभी कार्य अनुच्छेद 14 और 21- कानून के समक्ष जीवन और समानता के अधिकार और कानूनों के समान संरक्षण और एससीएसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, धारा 3(1)(आर), 3(1)(एस), और 3(2)(vii) का उल्लंघन हैं - अनुसूचित जनजातियों के अपमान और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के अपराध।

हमारा निष्कर्ष:

गजपति जिला मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले जिलों में से एक है। वास्तव में 30 जिलों में से 27वें स्थान पर है। गजपति को 30 जिलों में से केवल एक अल्पसंख्यक केंद्रित जिले के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसमें 38% ईसाई हैं। गजपति उन जिलों में से एक है, जिसमें 50% से ज्यादा आदिवासी आबादी है। हिंसा प्रभावित मोहना ब्लॉक जिले के सबसे कम विकसित ब्लॉकों में से एक है और ओडिशा का दूसरा सबसे बड़ा ब्लॉक है, जिसमें 37.11% महिला साक्षरता दर और 93% लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, कुल आबादी में से 7% लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं जबकि 93% ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। एसटी पुरुष और महिला साक्षरता दर क्रमशः 55.4% और 32.8% है।

गजपति जिले में सामाजिक और धार्मिक दोनों तरह के जातीय अल्पसंख्यकों की आबादी है जो कई स्तरों पर वंचित हैं। जिला पुलिस और सामान्य प्रशासन को संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों की भावना से जिले में आदिवासी, दलित और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दों को निपटाने के लिए अपनी नीतियों/निर्णयों पर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह की घटना हुई है, जहां निर्दोष लोग पुलिस के हाथों पीड़ित हैं।

1. आदिवासी समुदायों के बच्चों और महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और कई कानूनों के उल्लंघन के 20 दिन से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद अभी तक कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है।

2.पुजारी द्वारा मोहना पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई शिकायतों के बारे में पुजारियों को कोई जानकारी नहीं मिली है क्योंकि उन्हें शिकायतों की कोई रिसिविंग नहीं दी गई है। हालांकि, बताया जाता है कि पुलिस अधीक्षक गजपति को भी शिकायत की गई है।

3. गंभीर रूप से घायल पुजारी फादर डीएन वरिष्ठ पादरी के साथ सदमे की हालत में हैं। फैक्ट यह है कि खोजी टीम उनसे पूछताछ नहीं कर सकी। बच्चों, महिलाओं और पुजारी सहित सभी में साफ तौर पर भय, असुरक्षा और अविश्वास है क्योंकि रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। प्रशासन के लिए यह अच्छा नहीं लगता।

4.यह पहली बार है कि ओडिशा के इतिहास में पुलिस द्वारा कैथोलिक पादरियों को निशाना बनाया गया, पीटा गया और लाठियों और गालियों की बौछार करते हुए परेड कराई गई। यह अपने आप में सब कुछ बयां करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 29 का घोर उल्लंघन।

5. टीम का मानना है कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति सांप्रदायिक रूप से पक्षपाती कुछ पुलिसकर्मियों का काम है, और/या आदिवासी समूहों के प्रति जातिवादी मानसिकता है, और बच्चों और महिलाओं के लिए मानवाधिकारों और सम्मान की कोई भावना नहीं है; यहां तक कि अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, मृत व्यक्ति को दी जाने वाली एक बुनियादी गरिमा) के प्रति बहुत कम सम्मान के साथ उन्हें अपने प्रिय परिवार के सदस्यों की मृत्यु पर शोक मनाने की भी अनुमति नहीं है।

6. टीम को यहां क्रूरता की घटनाओं पर ध्यान देने और पीड़ितों के बचे लोगों को शिकायतों को दूर करने और न्याय मांगने में मदद करने के लिए सक्रिय समुदाय और नागरिक समाज नहीं मिल सका; एन/ओएससीपीसीआर, महिला आयोग, राष्ट्रीय/ओडिशा राज्य मानवाधिकार आयोग/अनुसूचित जनजाति आयोग/राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, नई दिल्ली जैसी वैधानिक संस्थाओं के प्रति अज्ञानता या अविश्वास हो सकता है।

7. टीम को या यहां तक कि मीडिया से भी बच्चों और महिलाओं पर होने वाले हमलों और घटनाओं की क्रूरता के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं मिली।

राज्य प्रशासन के लिए सिफारिशें

1. महिलाओं, आदिवासियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति सांप्रदायिक और जातिगत पूर्वाग्रह रखने वाले पुलिस के बीच आपराधिक तत्वों की पहचान करें और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। एससी/एसटी (पीओए) अधिनियम, पोक्सो अधिनियम, बीएनएसएस की लागू धाराओं और संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को तत्काल लागू करें।

2. सामुदायिक पुलिसिंग को सक्रिय करें; विविध पृष्ठभूमि से पुलिस की भर्ती करें; उन्हें एससी एसटी रोकथाम अधिनियम, पोक्सो, महिला और अल्पसंख्यक संरक्षण कानूनों के बारे में जानकारी दें; साथ ही सभी धार्मिक स्थलों; मंदिरों, चर्चों और मस्जिदों के प्रति सम्मान की भावना पैदा करें।

3. हाशिए पर पड़े और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का सम्मान करने के लिए संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और सिद्धांतों के साथ पुलिस को प्रशिक्षित करें; सभी धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करें। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) प्रोटोकॉल के तहत कानून प्रवर्तन के लिए अनिवार्य मानवाधिकार प्रशिक्षण लागू करें।

4. क्षेत्र के लिए नागरिक केंद्रित योजनाओं का समर्थन करने के लिए समग्र विकास कार्यक्रमों और खुले कानूनी प्रकोष्ठों पर ध्यान केंद्रित करें और नागरिक समाज को सच्चाई और सुलह की दिशा में प्रशासन के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करें और सुविधा प्रदान करें।

5. राज्य प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस प्रतिशोध की भावना से काम न करे। पुलिस गरीबों के घर, संपत्ति, आजीविका को नुकसान न पहुँचाए, न ही उनकी खाद्य सामग्री और मवेशियों को लूटे, जो उनकी जीवन भर की कमाई है। ऐसा करने से नागरिकों के बीच पुलिस की साख और भरोसा खत्म हो जाता है।

6. कानून प्रवर्तन एजेंसियों, जिला प्रशासन और नागरिक/सामुदायिक नेताओं के बीच एक प्रभावी संवाद और समन्वय की आवश्यकता है, जिससे समुदायों का विश्वास पुनः स्थापित हो सके और विकास की प्रक्रियाएं तेज गति से आगे बढ़ सकें।

मीडिया लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अपेक्षित निगरानीकर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभा सकता है और दुर्दशा और क्रूरताओं को सामने ला सकता है।

निष्कर्ष

इस रिपोर्ट का उद्देश्य ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने और शांति और सद्भाव लाने के लिए इसे रिकॉर्ड करना और सार्वजनिक करना है। रिपोर्ट पीड़ित लोगों द्वारा सुनाई गई गवाही पर आधारित है, जिनके नाम प्रकाशित नहीं किए गए।

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