130 से ज्यादा विपक्षी सांसदों ने केंद्रीय मंत्री से डीपीडीपी अधिनियम 2023 की धारा 44(3) को खत्म करने का आग्रह किया

Written by sabrang india | Published on: April 14, 2025
विपक्षी सांसदों ने इस विवादास्पद संशोधन को लेकर गंभीर चेतावनी दी है, उनका कहना है कि डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) पारदर्शिता की मूल भावना पर हमला करती है, क्योंकि यह RTI अधिनियम की एक अहम सुरक्षा-व्यवस्था को बदल देती है — धारा 8(1)(j) में उस महत्वपूर्ण अपवाद को संशोधित कर दिया गया है, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि “ऐसी जानकारी जो संसद या राज्य विधानसभा को देने से इंकार नहीं की जा सकती, उसे किसी व्यक्ति को भी देने से इंकार नहीं किया जा सकता।” विपक्षी नेताओं का आरोप है कि डीपीडीपी अधिनियम के जरिए लाए गए ये बदलाव RTI को गंभीर रूप से कमजोर करते हैं और जनता के "जानने के अधिकार" पर सीधा हमला करते हैं।



विपक्षी इंडिया गठबंधन के 130 से ज्यादा सांसदों ने 26 मार्च को संयुक्त रूप से केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव से डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम 2023 की धारा 44(3) को रद्द करने का आग्रह किया। उनकी अपील इस बढ़ती चिंता को लेकर कि यह प्रावधान सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 को कमजोर करता है। आरटीआई एक ऐतिहासिक कानून जिसने नागरिकों को सूचना तक पहुंच के जरिए सरकार को जवाबदेह ठहराने का अधिकार दिया है।

मंत्री को लिखे अपने पत्र में सांसदों ने चेतावनी दी कि यह संशोधन "आरटीआई अधिनियम के तहत महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंचने की लोगों की क्षमता को कमजोर करने का गंभीर जोखिम पैदा करता है।" उनकी चिंता का बड़ा कारण आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में किया गया बदलाव है जो मूल रूप से सार्वजनिक अधिकारियों को केवल विशिष्ट परिस्थितियों में व्यक्तिगत जानकारी को रोकने की अनुमति देता है, यदि जानकारी का सार्वजनिक गतिविधि या हित पर कोई असर नहीं पड़ता है, या यदि इसके देने से निजता का अनुचित उल्लंघन होगा।

हालांकि, डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) आरटीआई ढांचे के भीतर पहले से अंतर्निहित सुरक्षा उपायों और अपवादों को हटाकर इस संतुलित दृष्टिकोण को खत्म कर देती है। यह उस महत्वपूर्ण प्रावधान को समाप्त कर देता है जिसमें कहा गया था: "जो जानकारी संसद या राज्य विधानमंडल को देने से इनकार नहीं की जा सकती है, उसे किसी भी व्यक्ति को देने से इनकार नहीं किया जाएगा।" यह खंड पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण जांच के रूप में कार्य करता है, यहां तक कि व्यक्तिगत जानकारी से जुड़े मामलों में भी।

व्यक्तिगत डेटा को बिना किसी गहराई या प्रसंग के पूरी तरह गोपनीय कर देना, RTI कानून की उस मूल भावना को ही कमजोर कर देता है, जिसके तहत शासन और सार्वजनिक जीवन से जुड़े मामलों में निजता नहीं, बल्कि जनहित को प्राथमिकता दी जाती है। आलोचकों का मानना है कि यह बदलाव केवल एक तकनीकी संशोधन नहीं है, बल्कि एक ऐसा संरचनात्मक हमला है, जिसने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को लगभग दो दशकों से जो अधिकार दिया था, उसे कमजोर कर दिया है।

विपक्षी सांसदों ने ज़ोर देकर कहा कि कोई भी मजबूत डेटा संरक्षण ढांचा सूचना के अधिकार (RTI) कानून के साथ सामंजस्य में कार्य करना चाहिए, न कि उसकी कीमत पर। उन्होंने कहा, हम मानते हैं कि निजता और डेटा संरक्षण के लिए जो भी कानूनी ढाँचा तैयार किया जाए, वह RTI कानून का पूरक होना चाहिए — न कि उसे कमजोर करने या उसके महत्व को कम करने वाला।

सांसदों ने मंत्री से कहा, "इसलिए हम आपसे डीपी़डीपी अधिनियम की धारा 44(3) को रद्द करने का आग्रह करते हैं।"

मंत्री को लिखा गया पत्र यहां पढ़ा जा सकता है:



धारा 44(3) के अलावा इस पत्र में डीपीडीपी अधिनियम के बारे में व्यापक चिंताओं को भी दर्शाया गया है। सांसदों ने कहा कि कई प्रावधान गोपनीयता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की उन अवधारणाओं के विपरीत प्रतीत होते हैं, जिनकी वे रक्षा करने का दावा करते हैं। इन पर भी समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह अधिनियम डेटा सुरक्षा की आड़ में अस्पष्टता या सेंसरशिप का साधन न बन जाए।

इस पत्र पर विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव और अन्य संसद सदस्यों के हस्ताक्षर हैं।

इंफॉर्मेशन ब्लैकआउट? कार्यकर्ताओं को डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) के RTI पर पड़ने वाले प्रभाव का डर है

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम की धारा 44(3) को लेकर कार्यकर्ताओं में चिंताएं बढ़ रही हैं। हालांकि, डीपीडीपी अधिनियम में "व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित जानकारी" को छूट देने वाला एक सरल प्रावधान प्रस्तावित है।

इस मुद्दे पर पारदर्शिता और जवाबदेही पर अपने काम के लिए जानी जाते वाली कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने एक्स पर लिखा कि “इंडिया अलायंस के 130 से अधिक सांसदों ने डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44(3) को रद्द करने के लिए मंत्री वैष्णव को पत्र लिखा है, जो आरटीआई कानून में संशोधन करता है और उसे बुरी तरह कमजोर करता है। उम्मीद है कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी कि लोगों के सूचना के अधिकार को खत्म न किया जाए। #सेव आरटीआई”



उन्होंने यह भी बताया कि डेटा सुरक्षा कानून के माध्यम से आरटीआई अधिनियम में संशोधन कैसे पेश किए गए। एक अन्य पोस्ट में, उन्होंने कहा कि “मैं समझाती हूं कि हमें डेटा सुरक्षा कानून के माध्यम से आरटीआई अधिनियम में किए गए परिवर्तनों का कड़ा विरोध क्यों करना चाहिए। ये संशोधन महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच को बुरी तरीके से रोकते हैं और जवाबदेही के संघर्ष में रूकावट पैदा करते हैं।”



द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस संशोधन ने इस आशंका को जन्म दिया है कि "जनहित" की कसौटी को ही समाप्त किया जा सकता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए आवश्यक सूचनाओं — जैसे कि सरकारी अधिकारियों की संपत्तियों का विवरण — को व्यापक रूप से नकारा जा सकता है। राहुल गांधी और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने आरटीआई कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इसका कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह संशोधन आरटीआई अधिनियम के मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है, क्योंकि इसमें गोपनीयता को जनता के जानने के अधिकार से ऊपर रखा गया है, भले ही महत्वपूर्ण सार्वजनिक हित दांव पर लगा हो। वे आरटीआई अधिनियम की प्रभावशीलता की रक्षा के लिए धारा 44(3) को रद्द करने की वकालत करते हैं।

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