"ऐसे भारत में यकीन है जहां व्यक्ति की पहचान उसकी प्रतिभा और योगदान से होती है, न कि उसके धर्म से"

Written by sabrang india | Published on: April 22, 2025
धर्म के आधार पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान नफ़रत की राजनीति को आगे बढ़ाने का जरिया है।



पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि कुछ लोग भले ही नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए धर्म की पहचान का सहारा लेते हों, लेकिन उनका विश्वास उस भारत में है जहां व्यक्ति की पहचान उसकी प्रतिभा और योगदान से होती है, न कि उसके धर्म से।

ज्ञात हो कि हाल ही भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे ने कुरैशी को ‘मुस्लिम आयुक्त’ कहा था।

बता दें कि 17 अप्रैल को एसवाई कुरैशी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर केंद्र सरकार के विवादित वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर प्रतिक्रिया दी थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा था, ‘यह वक्फ अधिनियम निश्चित रूप से सरकार की मुस्लिम समुदाय की ज़मीनों पर कब्ज़ा जमाने की एक बेहद आपत्तिजनक और चालाकी से रची गई योजना है। मुझे पूरा यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को खारिज करेगा। दुर्भाग्यवश, भ्रामक प्रचार तंत्र ने झूठी सूचनाएं फैलाकर अपने मकसद में सफलता पा ली है।

20 अप्रैल को सांसद निशिकांत दुबे ने एस.वाई. कुरैशी की पोस्ट को साझा करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, ‘आप चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम आयुक्त थे. झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिया को वोटर सबसे ज़्यादा आपके कार्यकाल में ही बनाया गया. पैगंबर मुहम्मद साहब का इस्लाम भारत में 712 में आया. उसके पहले तो यह ज़मीन हिंदुओं की या उस आस्था से जुड़ी आदिवासी, जैन या बौद्ध धर्मावलंबी की थी. मेरे गांव विक्रमशिला को बख्तियार ख़िलजी ने 1189 में जलाया, विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने दुनिया को पहला कुलपति दिया अतीश दीपंकर के तौर पर. इस देश को जोड़ो, इतिहास पढ़ो, तोड़ने से पाकिस्तान बना, अब बंटवारा नहीं होगा?’

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट नहीं है कि दुबे ने अपने तथ्यों के लिए किन ऐतिहासिक स्रोतों का हवाला दिया।. विपक्षी पार्टियों – कांग्रेस और आम आदमी पार्टी – ने उनके इस बयान की आलोचना की है।

धर्म के आधार पर कुरैशी को निशाना बनाने से पहले दुबे ने भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को ‘देश में चल रहे गृह युद्धों’ के लिए जिम्मेदार ठहराया था। भाजपा ने दुबे के इस बयान से खुद को अलग कर लिया था। लेकिन कुरैशी पर दिए बयान पर भाजपा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।

ध्यान रहे कि 1971 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी कुरैशी, युवा और खेल मंत्रालय में सचिव के रूप में भी सेवाएं दे चुके हैं।

निशिकांत दुबे की विवादित टिप्पणी को लेकर न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कुरैशी ने कहा है, ‘मैंने एक संवैधानिक पद पर पूरी निष्ठा और क्षमता के साथ काम किया और प्रशासनिक सेवा में एक लंबा और संतोषजनक करिअर रहा। मैं उस भारत में विश्वास करता हूं जहां व्यक्ति को उसकी प्रतिभा और योगदान के आधार पर आंका जाता है, न कि उसकी धार्मिक पहचान के आधार पर।’

‘लेकिन शायद कुछ लोगों के लिए धार्मिक पहचान नफरत भरी राजनीति को आगे बढ़ाने का जरिया है। भारत ने हमेशा संवैधानिक संस्थाओं और सिद्धांतों की रक्षा की है और करता रहेगा।’

ज्ञात हो कि सरकारी नीतियों के मुखर आलोचक रहे कुरैशी शासन-प्रणाली पर लगातार नजर रखते रहे हैं। द वायर के लिए करन थापर को दिए इंटरव्यू में उन्होंने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि हाल की घटनाओं से ‘सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।’

कुरैशी के समर्थन में आईएएस अधिकारियों का फोरम

दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन ऑफिसर्स अकेडमिक फोरम के मानद अध्यक्ष के महेश ने कुरैशी का समर्थन किया है और उन्हें चुनाव आयुक्त तथा मुख्य चुनाव आयुक्त दोनों पदों पर सेवा देने वाला एक ‘विशिष्ट और प्रभावशाली’ व्यक्तित्व बताया है।

महेश ने पीटीआई से कहा, ‘उन्होंने इन दोनों अहम जिम्मेदारियों को आत्मविश्वास और विशिष्टता के साथ निभाया और चुनाव आयोग की संस्था को कई सुधारों के जरिए समृद्ध किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने मतदाता शिक्षा प्रभाग, व्यय नियंत्रण प्रभाग की स्थापना की और इंडिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी और इलेक्शन मैनेजमेंट जैसी संस्थाओं की भी स्थापना की।’

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