ग्राउंड रिपोर्टः आजमगढ़ में आठ जिंदगियां लेकर भी नहीं थम रही बच्चों का गला घोंटने वाली रहस्यमयी बीमारी, दलित-मुस्लिम बस्तियों में दहशत और सन्नाटा

Written by विजय विनीत | Published on: August 28, 2024

डोडोपुर में मेडिकल कैंप

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ का सीधा सुल्तानपुर वह गांव है जहां नट बस्ती में गला घोंटने वाली रहस्यमयी बीमारी ने पांच बच्चों को मौत की नींद सुला दी है। कई रोज गुजर गए। नट समुदाय की इस बस्ती में कुछ भी नहीं बदला है। समूची बस्ती अभी भी गंदगी में डूबी है। बच्चों का गला घोंटने वाली बीमारी सिर्फ सीधा सुल्तानपुर तक सीमित नहीं, फरिहां और डोडोपुर टोडर में भी तीन बच्चों की मौत हुई है और कई बच्चे चक्रपानपुर (आजमगढ़) स्थित पीजीआई में जीवन-मौत से जूझ रहे हैं। गलाघोंटू अब तक आठ बच्चों की जान ले चुका है। इसी बीमारी ने उन्नाव में भी चार बच्चों की जान ले ली है। स्वास्थ्य महकमा इसे गलाघोंटू नहीं मान रहा है। अचरज की बात यह है कि, मौत की मिस्ट्री न सरकार सुलझा पा रही है और न ही आजमगढ़ जिला प्रशासन। नट, दलित और मुस्लिम बस्तियों में रहने वाले लोग बच्चों का गला घोंटने वाली इस रस्यमयी बीमारी के चलते आतंक और दहशत में हैं।

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर है सीधा सुल्तानपुर गांव। लगभग 17 सौ की आबादी वाली नट बस्ती में बच्चों की मौत के बाद से सियापा छाया हुआ है। इस बस्ती के लोगों के पास अगर कुछ है तो सिर्फ बेचारगी और बदहाली। नट बस्ती में रहने वाले कुछ लोग मजूरी करते हैं तो महिलाएं और बच्चे भीख मांगते हैं। ज्यादातर लोगों के मकान कच्चे हैं। कुछ झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। कुछ लोगों के पास सरकारी आवास है, पर बिजली नहीं है। नट बस्ती के लोगों को पीने का पानी मुश्किल से मिलता है। शौचालय तो मयस्सर है ही नहीं। सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में चुपके से 02 अगस्त 2024 को चुपके से बच्चों का गला घोंटने वाली बीमारी ने दस्तक दी और और कई बच्चों को अपनी चपेट में ले लिया।


रिज़वाना ने अपने बेटे को खो दिया

सीधा सुल्तानपुर गांव की नट बस्ती की अख्तरून के पांच साल के पुत्र अलीराज की 12 अगस्त, 2024 को मौत हो गई थी। तभी से वह सदमे में हैं। इनके आठ बच्चे थे, जिनमें सरफराज, आशिया, शानिया, कविया, मारिया, समीर और मोअज्जम एक घास-फूस की झोपड़ी में रहते हैं। पति मिहनाज मजूरी करते हैं और मुश्किल से बच्चों का पेट भर पाता है। दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए कुछ बच्चे भीख मांगते हैं। अख्तरून कहती हैं, “अचानक मेरे बेटे अलीराज के गले में सूजन हुई। मैं और मेरे पति मिहनाज उसे लेकर लाहीडीह बाजार में एक प्राइवेट डॉक्टर के पास गए। बेटे की हालत कुछ ज्यादा गंभीर थी। इसलिए डॉक्टर ने इलाज करने से मना कर दिया। बाद में मैं बच्चे को लेकर आजमगढ़ गई और वहां एक निजी क्लिनिक में डा.एलडी यादव को दिखाया। उन्होंने भी इस बीमारी का इलाज करने से मना कर दिया। हमें आजमगढ़ के चक्रपानपुर में स्थित पीजीआई के डॉक्टरों को दिखाने का सुझाव दिया। पीजीआई में हमारे बेटे का इलाज शुरू हुआ, लेकिन हम उसे नहीं बचा सके। हम अपने बेटे अलीराज को नहीं भुला पा रहे हैं। उसकी मौत हमें सालों-साल सालती रहेगी।"

आज़मगढ़ के मिर्जापुर प्रखंड के सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में बच्चों  का गले घोंटने वाली बीमारी से पहली मौत दो अगस्त को कैश नामक व्यक्ति के पांच साल के बच्चे आतिब की हुई। इसके पिता मजूरी करते हैं और महिलाएं भीख मांगकर जीवनयापन करती हैं। कैश भी मजूरी करते हैं। इनके पास इलाज करने के लिए पैसे ही नहीं थे। कैश की पत्नी रिजवाना से मुलाकात हुई तो उसकी आंखें छलछला गईं। रुआसे स्वर में कहा, "हुजूर, हम अनपढ़ हैं। हमारे बेटे आतिब के गले में सूजन हुआ तो समझ में ही नहीं आया कि यह बीमारी उसकी जान ले लेगा। इलाज के लिए पैसे नहीं थे। सरकारी अस्पताल में पहुंचने से पहले ही मेरे बेटे ने दम तोड़ दिया। हमारे तीन बच्चे थे-शादिया सबसे बड़ी थी। इसके बाद आतिब और फिर अजायान था। फिलहाल दो बच्चे जिंदा है, लेकिन हम सभी दहशत में है और डर सता रहा है कि गला घोंटने वाली बीमारी दोबारा हमारे घरों में घुस गई तब क्या होगा?"

कर्ज में डूब गए कई परिवार 

सीधा सुल्तालनपुर गांव में गला घोंटने वाली बीमारी दो ऐसे बच्चों को निगल गई जो अपने ननिहाल में आए थे। इनमें एक है डेढ़ साल की बच्ची कश्मीरा, जिसकी छह अगस्त को इलाज के अभाव में मौत हो गई। यह लड़की अपनी मां के साथ कुछ रोज पहले ही अपने नाना के घर आई थी। कश्मीरा के पिता रोजन शादी-विवाह में खाना बनाते हैं। वह मूल रूप से मोहम्मदपुर के कमरावां गांव के रहने वाले हैं। रोजन कहते हैं, "हमारा नसीब ही खराब है साहब। हम अपने बच्चों के लिए किसी तरह से रोटी का इंतजाम कर सकते हैं। इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं है। हमारे बच्चों का इलाज तो भगवान करते हैं। वो नाराज होते हैं तो हमारे बच्चों की जान चली जाया करती है। हमारी बेटी कश्मीरा की तबीयत खराब हुई तो उसे लेकर हम मिर्जापुर ब्लाक मुख्यालय के सरकारी अस्पताल में पहुंचे, लेकिन वहां पहुंचने से कुछ मिनट पहले ही उसने दम तोड़ दिया। हम अपने बेटी की यादों को भला कैसे भूल सकते हैं।"

आजमगढ़ के कमरांवा गांव की चार साल की साजमा भी अपने ननिहाल में आई थी और 13 अगस्त 2024 को उसकी मौत हो गई। इसके पिता मीरू के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे। इसके पिता भी मुहम्मदपुर ब्लॉक के कमरावा में रहते हैं। इससे पहले 11 अगस्त, 2024 को सुहैल के तीन साल के पुत्र मुहम्मद की मौत हो गई। मुहम्मद की मौत के अगले दिन 12 अगस्त को अलीराज नामक बच्चे की गलाघोंटू से मौत थी। बच्चों की जानें जाती रहीं और स्वास्थ्य महकमा खामोश बैठा रहा। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने बच्चों को इस तरह से तड़प-तड़पकर मरते हुए पहले नहीं देखा था।

अपने पांच साल के बेटे को गंवाने वाली अख्तरून बताती हैं, "प्राइवेटट अस्पतालों में इलाज कराने के लिए हमारे पास जो था, उसे हमने बेच दिया, ताकि अपने बेटे की जान बचा सकें। मैंने कर्ज लेकर बेटे का इलाज कराया, फिर भी वो नहीं बच सका। मेरे पास अब खाने तक के लिए पैसे नहीं हैं। हजारों रुपये खर्च कर चुकी हूं।" और फिर वह रोने लगती हैं।  ग्रामीणों का आरोप है कि बच्चों की मौत की सूचना मिलने पर स्वास्थ्य महकमे की टीम आई और खानापूरी कर लौट गई। आजमगढ़ के कलेक्टर तक ने बच्चों की मौत को गंभीरता से नहीं लिया। आरोप है कि गला घोंटने वाली बीमारी बारी-बारी से बच्चों की जिंदगियां लीलता रहा और न तो कलेक्टर उनका हाल देखने आए और न ही कोई प्रशासनिक अफसर। कई दिन बाद मुख्य चिकित्साधिकारी अशोक कुमार आए और दवाओं का वितरण कराकर लौट गए। फिलहाल सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में सभी बब्चों का टीकाकरण कर दिया गया है।

हर घर में बीमारी और भूख

चारपाई के पास से बार-बार मक्खियों को भगाते हुए, भारी मन से झिनकू कहते हैं, "सीधा सुल्तानपुर में सभी बीमार और भूखे हैं। हमारे पास न नकोई काम है और न ही बच्चों को खिलाने के लिए पैसे। समूची नट बस्ती में जब भी कोई बीमार होता है तो प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराने के लिए दूसरों से सूद पर पैसे लेने पड़ते हैं। जिन बच्चों की मौतें हुई हैं उनके परिवार के लोगों के लाखों रुपये इलाज में खर्च हो चुके हैं। कुछ पैसा रिश्तेदारों से उधार लिया और कुछ पैसे जेवर गिरवी रखकर इक्ट्ठा किए थे। हमारी बस्ती में हर घर का कोई न कोई सदस्य बीमार है।"

झिनकू यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं, "प्रशासन की तरफ से किसी ने हमसे हमारी परेशानी के बारे में पूछा तक नहीं है। कुछ अधिकारी आए, एक बार चक्कर लगाया और चले गए। अगर उन्होंने हमें दो किलो गेहूं भी दिया होता तो उनका बड़ा उपकार रहता। तब हम अपने बच्चों को कुछ खिला तो सकते थे। नट बस्ती में आने के लिए जो रास्ता है वह ऊबड़-खाबड़ है। दूल्हे की गाड़ियां भी पलट जाया करती हैं। हमारी बस्ती में गलाघोंटू का प्रकोप हुआ तो डाक्टरों की टीम जिस गाड़ी से आई, वह भी रास्ते में पलट गई थी।"

आजमगढ़ के निजामाबाद के सीधा सुल्तानपुर में छह बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर पहुंची तो पता चला कि इन बच्चों का टीकाकरण ही नहीं हुआ था। आनन- फानन में सभी का टीकाकरण कराया गया। बीमार 10 बच्चों के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। सीएमओ डॉ. अशोक कुमार ने इस बात की पुष्टि की कि जिन बच्चों की मौतें हुई हैं उनमें डिप्थीरिया के लक्षण थे। इन बच्चों ने टीकाकरण नहीं कराया था। स्थिति अब पूरी तरह नियंत्रण में है।

मौत से सीधा सुल्तानपुर के आसपास के गांवों में दहशत है। ज्यादातर तीन साल तक के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आए हैं। स्वास्थ्य महकमा अभी तक सिर्फ दो बच्चों की मौत की पुष्टि कर रहा है। सीएमओ डा.अशोक कुमार कहते हैं, "सीधा सुल्तानपुर में स्वास्थ्य विभाग की टीम रोज दौरा कर रही है। मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कहीं भी पानी जमा न हो, यह सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके लिए आधिकारिक चेतावनी जारी की गई है।"

नट बस्ती के जावेद अहमद ने सबरंग इंडिया से शिकायत की, "आसानी से कोई दवा उपलब्ध नहीं है, पानी की समस्या है, नालियां खुली हुई और गंदी हैं और हमारे पास कोई सड़क नहीं है, और न ही यहां पर कोई छिड़काव या फॉगिंग नहीं हुई है। सरकारी अस्पताल में गरीबों की बात कोई नहीं सुनना चाहता। केवल पैसे वालों पर ध्यान दिया जा रहा है।" उन्होंने गुस्से में कहा, "पांच बच्चों की मौत के बाद बजबजाती नालियों को दुरुस्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन वो आधी-अधूरी हालत में पड़ी है। इस गांव में न सफाई हुई और न ही दवा छिड़की गई। फॉगिंग भी नहीं कराई गई।"


सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती आज भले ही सुविधाएं मयस्सर नहीं, लेकिन कई दशक पहले यही बस्ती पहलवान बनाया करती थी। पूर्वांचल में कुश्ती लड़ने वाले लोग नट बस्ती में आते थे और अखाड़े में उतरने और लड़ने का हुनर सीखते थे। नट बस्ती के खदेरन, चंदर, फेकू समेत न जाने कितने पहलवानों ने हजारों नौजवानों को कुश्ती लड़ने का हुनर सिखाया। न जाने कितने लोगों को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खिताब दिलवाया। बहुतों के लिए सेना और पुलिस में नौकरियों का द्वार खोला, लेकिन नट बस्ती के लोग का भविष्य जस का तस रहा।

नट बस्ती में हमारी मुलाकात कुश्ती के जादूगर कहे जाने वाले हवलदार से हुई तो हमें देखकर उनकी आखों में चमक उभरी। बोले, "हमने अखाड़ों में अपनी जवानी बिता दी। पचासो अखड़ों में हजारों नौजवानों को हमने कुश्ती लड़ने का हुनर सिखाया, लेकिन सरकार ने हमारी कद्र नहीं की।" इनके पास चारपाई पर बैठे 70 वर्षीय पहलवान शामा और 65 साल के फैजान कहते हैं, "पहले हम खुशहाल थे। कुश्ती लड़ाते थे तब हर घर से हमें सावां-कोदो, मक्का, धान-गेहूं, कपड़ा और विदायी में पैसे भी मिलते थे। आजामगढ़, फैजाबाद, जौनपुर, मऊ, बस्ती, गोरखपुर, प्रतापगढ़, अंबेडकर नगर, गाजीपुर और बनारस तक में हमने नौजवानों कुश्ती सिखाई है। अब न अखाड़े रहे और न नौजवानों में कुश्ती लड़ने का शौक। हमारी बस्ती के बगल में जो अखड़ा था, उसे भी जोत लिया गया।"

नट बस्ती के के महबूब और फिरोज अहमद कहते हैं, "हम लोगों को शौच करने तक के लिए जगह नहीं है। दो सीट वाले एक सामुदायिक शौचालय दलित बस्ती में जहां शौच करने के लिए घंटों लाइन लगानी पड़ती है। गर्मी के दिनों में पीने के पानी के लिए समूची बस्ती को एक नए तरीके की जंग लड़नी पड़ती है। सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती ऐसी है जो बुनियादी सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है।"

कई गांवों में फैली बीमारी

बच्चों का गला घोंटने वाली रहस्यमयी बीमारी ने सिर्फ सीधा सुल्तानपुर में ही नहीं, आजमगढ़ सके कई और गांवों में दस्तक दी है। आजमगढ़ के दौलतपुर की नट बस्ती में पिंटू की बेटी अतीकुन की 20 अगस्त 2024 को गलाघोंटू से मौत हो गई थी, जबकि इसी गांव के दो बच्चों को पीडीआई चक्रपानपुर रेफर किया गया है। दोनों बच्चों की हालत गंभीर बनी हुई है। डोडोपुर टोडर गांव की नट बस्ती में पांच वर्षीय अशरफ और उसकी तीन साल की बहन काजल बीमार है। अशरफ का इलाज पीजीआई चक्रपानपुर में चल रहा है। इसी गांव का शाहवाज भी गले वाली बीमारी की जद में है। चकबारी गांव के प्रजापति समुदाय का एक अन्य बच्चा भी पीजीआई में भर्ती है, जिसकी हालत गंभीर है।


दूसरी ओर, निजामाबाद तहसील के फरिहां में इसी बीमारी से सात दिन के भीतर दो बच्चों की मौत हो गई और दो अन्य दो बच्चों की हालत चिंताजनक बनी हुई है। इसमें एक बच्चे का इलाज जिले में चल रहा है, जबकि दूसरे का इलाज वाराणसी में चल रहा है। करीब 25 हजार की बस्ती के दक्षिणी और पश्चिम टोले में ज्यादातर मुस्लिम और दलित समुदाय के लोग रहते हैं। फरिहां में सर्वाधिक आबादी मुसलमानों की है। दलित, यादव, मौर्य, कोहार और लोहार समुदाय की बड़ी आबादी है।

हम फरिहां पहुंचे तो हमारी मुलाकात अब्दुल रशीद से हुई। इनके बेटे रमजान के पांच साल के बच्चे आरिज की कुछ रोज पहले ही गला घोंटने वाली बीमारी के चलते मौत हो गई थी। अब्दुल रशीद के तीन बेटे थे, जिनमें बड़े बेटे की कुछ साल पहले कैंसर से मौत हो गई थी। छोटा बेटा शाहबान दुबई रहता है और वहां एक दुकान पर जूस बनाने का काम करता है। दूसरा बेटा रहमान की इलेक्ट्रानिक्स की दुकान है। रहमान के पांच बच्चे थे, जिनमें आरिज की गलाघोंटू से मौत हो गई। शमद, अर्श, नदीम और बड़ी बेटी कायनात फिलहाल सकुलश हैं। रशीद कहते हैं, "आरिज को पहले बुखार हुआ, फिर गला सूजने लगा। हम बच्चे को लेकर एक प्राइवेट डाक्टर के यहां गए। तबीयत ज्यादा खराब होने पर उन्होंने किसी और अस्पताल में ले जाने की बात कही। लड़के की हालत नाजुक थी। आरिज की मां नाजरीन बच्चे को लेकर चौराहे पर गई, तभी उसकी मौत हो गई।"

कुछ इसी तरह की दर्दनाक कहानी फरिहां की दलित बस्ती में रहने वाली नौ साल की बच्ची मोहनी की है। मोहनी अपने छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थी। बेरोजगार अजीम के बेटे इब्राहिम, अजीम, आसिया, युनूस, जोएब है, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल में यदाकदा पढ़ने जाता हैं। अजीम के भाई फहीम सउदी अरब में गाड़ी मैकेनिक हैं और उनकी कमाई से ही परिवार चलता है। फहीम इन दिनों अपने घर फरिहां आए हुए हैं। मुलाकात हुई तो उन्होंने दलित बस्ती की उस ऊबड़-खाबड़ गली को दिखाते हुए कहा, "गली के नीचे डाली गई सीवर की लाइन जाम है। बदबू और सड़ांध से जीना मुहाल हो गया है। अभी तो फरिहां में सिर्फ दो बच्चों की मौत हुई है। गला घोंटने वाली बीमारी न जाने और कितने बच्चों की जान लेगी। दलित बस्ती में रहने वाले लोग दहशत में हैं।


फरिहां के लोगों का दर्द भी अजीब है। दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि उनके यहां इसलिए साफ-सफाई का पुख्ता इंतजाम नहीं है क्योंकि यहां के लोगों ने मौजूदा ग्राम प्रधान अबू बकर को वोट नहीं दिया था। प्रधान के इशारे पर सफाई कर्मचारी कुछ चुनिंदा लोगों के यहां साफ-सफाई करके लौट जाते हैं।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

अपने पोते आरिज की जान गंवाने वाले अब्दुल रशीद को इस बात का दर्द है कि हम दौड़ते रहे, लेकिन हमारे बच्चों को टीका लगाने कोई नहीं आया। जिस समय वह यह बात कह रहे थे, तभी उनके पास मौजूद एएनएम रूपम सिंह ने उनकी बात काटते हुए कहा, "हम टीका लगाने के लिए कई बार गए, लेकिन हमें बैरंग लौटा दिया गया।" अब्दुल रशीद के घर के सामने मेडिकल कैंप लगाया गया था और मरीजों का उपचार करने के लिए रानी के बाजार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्साधिकारी डा.मनीष तिवारी फरिहां में मौजूद थे। गौर करने की बात यह रही कि कैंप में मौजूद ज्यादातर स्वास्थ्य कर्मियों के पास खुद लगाने के लिए मास्क तक नहीं था। फरिहां में सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य के चिकित्साधिकारी डा.बेलाल अहमद लापता थे, जिसे लेकर ग्रामीणों में जबर्दस्त गुस्सा और आक्रोश दिखा।

डाक्टर बेलाल लापता

कैंप में मौजूद ग्रामीणों ने डा.बेलाल की खुलेआम शिकायत की और बताया कि सीएमओ अशोक कुमार को यह तक बताया गया कि वो महीने में सिर्फ एक दिन हाजिरी लगाने और वेतन लेने आते हैं। बाकी दिन वो कहां रहते हैं, किसी को पता नहीं रहता। कुछ लोगों ने यहां तक बताया कि अफसरों को सुविधा शुल्क देकर वो गायब रहते हैं और अस्पताल भगवान भरोसे चलता है। कैंप में मौजूद फरिहां पीएसी के फार्मेसिस्ट बीएस रावत ने दावा किया कि अस्पताल में यदा-कदा डा.बेलाल अहमद आते हैं। उनके अलावा स्टाफ नर्स धर्मेंद्र उपाध्याय, पूजा तिवारी, वार्ड व्याय-छोटेलाल, लैव टेक्निशियन विनोद कुमार रोजाना मौजूद रहते हैं। हालांकि कैंप में मौजूद रानी के सराय के प्रभारी चिकित्साधिकारी डा.मनीष तिवारी ने ग्रामीणों की शिकायत को गंभीरता से लिया और इस बारे में उच्चाधिकारियों को सूचित करने की बात कही।

डा.तिवारी ने सबरंग इंडिया से बातचीत में दावा किया कि जिन बच्चों की मौतें हुई हैं वह गलाघोंटू (डिप्थिरिया) नहीं है। अब तक पांच बच्चों की जांच में गलाघोंटू की पुष्टि नहीं हुई है। वह कहते हैं, "जिस बीमारी से बच्चों की मौत हुई है उसे ऊपरी श्वसन पथ संक्रमण (URTI)  कहते हैं। एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है, जो नाक, गला, साइनस, और गले के ऊपरी हिस्से को प्रभावित करती है। यह संक्रमण मुख्य रूप से वायरस के कारण होता है, और इसमें सर्दी, गले की खराश, साइनसाइटिस, और लारेंजाइटिस जैसी बीमारियां शामिल हैं। URTI हर आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित कर सकता है, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों को। इसके प्रमुख लक्षणों में नाक बहना, गले में खराश, खांसी, सिरदर्द, हल्का बुखार, और थकान शामिल हैं। ये लक्षण आमतौर पर हल्के होते हैं और संक्रमण कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है। हालांकि, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए यह संक्रमण गंभीर हो सकता है और लंबे समय तक रह सकता है।"

डा.मनीष तिवारी कहते हैं, "URTI  दो तीन दिन में यह तेजी से फैल जाती है। अभी तक गांव में आठ बच्चों को चिन्हित किया गया है। और बच्चों को चिन्हित कर उनका टीकाकरण और उपचार किया जा रहा है। इसका इलाज आमतौर पर लक्षणों को कम करने के लिए किया जाता है, जिसमें पर्याप्त आराम, तरल पदार्थों का सेवन, और ओवर-द-काउंटर दवाओं का उपयोग शामिल है। एंटीबायोटिक्स का उपयोग URTI के इलाज में कम ही किया जाता है, क्योंकि यह एक वायरल संक्रमण है। संक्रमण से बचने के लिए, हाथों की सफाई, भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना, और संक्रमित लोगों के संपर्क से दूरी बनाए रखना महत्वपूर्ण है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाकर भी URTI से बचा जा सकता है। इस प्रकार, URTI एक सामान्य लेकिन अस्थायी स्वास्थ्य समस्या है, जो सही देखभाल और रोकथाम से आसानी से नियंत्रित की जा सकती है।"

प्रियंका का पोस्ट वायरल

आजमगढ़ में बच्चों का गला घोंटने वाली बीमारी के पांव पसारने के बावजूद सरकारी मशीनरी तब हरकत में आई जब कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने वीडियो के साथ अपने फेसबुक पर एक मार्मिक पोस्ट लिखी। प्रियंका ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है, "उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में गलाघोंटू बीमारी से बड़ी संख्या में बच्चों की मौतें अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद हैं। आजमगढ़ के सीधा सुल्तानपुर गांव में पूरी नट बस्ती संक्रमण की चपेट में है। खबरों में कहा गया है कि गांव में बच्चों का टीकाकरण ही नहीं हुआ था। पूरे गांव में नाली और गंदगी का साम्राज्य है। उन्नाव में भी कुछ बच्चों की मौतें हुई हैं। यह लापरवाही अक्षम्य है। क्या जिन बच्चों की जान चली गई, उन्हें वापस लाया जा सकता है? "

प्रियंका के फेसबुक पोस्ट के वायरल होने के बाद अफसरों की नींद उड़ी और वो नट बस्ती में दौड़ने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल यादव के नेतृत्व में पार्टी के कई नेता व कार्यकर्ता कई दिनों तक यहां डाले रहे। अनिल कहते हैं, "सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में किसी व्यक्ति के पास पक्का मकान नहीं है। ज्यादतर लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। यहां ज्यादातर दलित और नट समुदाय के लोग रहते हैं। पेयजल की स्थिति बेहद खराब है। नट समुदाय के लोगों के लिए सरकार अभी तक शौचालय तक का इंतजाम नहीं करा पाई है। इस समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके घरों की महिलाओं को इकलौते शौचालय की सुविधा नहीं मिलती। वहां लंबी लाइन लगानी पड़ती है। लाचारी में लोगों को खेत में शौच करने जाना पड़ता है।"

अनिल कहते हैं, "सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती एक ऐसी बस्ती है जहां ज्यादातर लोगों के पास न आधार कार्ड है और न ही राशन कार्ड। वोटर आईडी कार्ड भी नहीं। कई लोगों के नाम वोटर लिस्ट में भी नहीं हैं, जिसके चलते लोग मतदान भी नहीं कर पाते हैं। लगता है कि इस गांव में सरकार विकास करना ही भूल गई है। सड़कें हैं, लेकिन वो ठोकर मारती हैं। उनकी दशा ठीक नहीं है। सीधा सुल्तानपुर जैसी स्थिति फरिहां, डोडोपुर और दौलतपुर नट व दलित बस्तियों में है।"

आजमगढ़ में गलाघोटू से हुई पांच मौतों के लिए काग्रेस के प्रदेश महासचिव अनिल यादव ने प्रशासन ज़िम्मेदार ठहराया है। वह कहते हैं, “बच्चों का इलाज करने के बजाय सरकारी मशीनरी बीमारी को छिपाने में जुट गई है। सीधा सुल्तानपुर, फरिहा, दौलतपुर आदि गांवों में में पिछले दस दिनों के अंदर गला घोंटने वाली बीमारी से से आठ मासूम बच्चों की मौत कोई छोटी घटना नहीं है। अगर ऊंची जातियों की बहुलता वाले इलाके में यह बीमारी फैली होती तो योगी सरकार के मंत्री फर्राटे भर रहे होते। गलाघोंटू से मरने वाले सभी बच्चे घुमंतू नट समुदाय के थे, इसलिए इनकी मौत को गिनने की जरूरत तक नहीं समझी गई। मामूली साफ-सफाई और टीकाकरण के बाद सरकारी नुमाइंदे लौट गए।"

कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद ने आजमगढ़ में नट समुदाय की बस्तियों के बच्चों में तेजी से फैल रही गला घोंटने वाली रहस्यमय बीमारी पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रसाद नड्डा का ध्यान आकृष्ट कराया है। सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में पांच बच्चों की मौत का जिक्र करते हुए सांसद इमरान ने कहा पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग उठाई है। मंत्री को भेजे गए पत्र में कहा गया है, "आजमगढ़ में गलाघोंटू का संक्रमण तेज़ी से फैलता जा रहा है। अस्पतालों में मरीज़ों की तादाद बढ़ती जा रही है। अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है, जिसके चलते मरीज़ों की मृत्य दर बढ़ रही है। सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता ज़रूरी है।"

सपा सांसद इमरान मसूद ने मंत्री को लिखा खत

दस से अधिक बच्चों की मौत

गले की रहस्यमय बीमारी से प्रभावित करीब आधा दर्जन गांवों का दौरा करने के बाद ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट तारिक शफीक ने दावा किया कि आजमगढ़ जिले के मिर्जापुर, रानी के सराय, मोहम्मदपुर और ताबरपुर प्रखंड में दस से अधिक बच्चों की मौतें हुई, जिनमें आठ की पुष्टि हो चुकी है। वह कहते हैं, "समूचे जिले में गलाघोंटू की बीमारी से हालात गंभीर हैं और प्रशासन सोया हुआ नजर आ रहा है। खासतौर पर नट, बंजारा, कंकाली, सोनकर, मुसहर बस्तियों में साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है, जिससे हालात बेकाबू होते जा रहे हैं और प्रशासन चुप्पी साधे हुए हैं। अचरज की बात यह है कि आजमगढ़ के कलेक्टर विशाल भारद्वाज को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि जनजातियों के लोगों की जाने जा रही हैं। यह वजह है कि उन्होंने आज तक किसी भी बीमारी से प्रभावित गांवों का दौरा नहीं किया। बीमारी से बचाव के लिए डीएम अथवा सीएमओ की ओर से इस रहस्यमय बीमारी से बचाव के लिए कोई मुहिम नहीं शुरू की गई है।"

आजमगढ़ में आठ बच्चों की मौत से नट और दलित बस्तियों के लोग थर्रा गए हैं। सीधा सुल्तानपुर और फरिहां गांव में किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दौरा किया। बाद में किसान नेता राजीव यादव, वीरेंद्र यादव, मो. अकरम, तारिक शफीक, जंगल देव, राज शेखर श्याम सुन्दर मौर्या शामिल ने सबरंग इंडिया से कहा, "आज़ादी के 78 साल बाद भी टीकाकरण न होने और गंदगी की वजह से मासूम बच्चों की मौत हुई है तो इसके लिए सीधे तौर पर सरकार ज़िम्मेदार है। बच्चों की मौत के बाद कहा जा रहा है कि टीकाकरण इस बस्ती के लोग नहीं कराते थे तो सवाल है कि इस समस्या का हल करने की ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग ने क्यों नहीं लिया?"

"नट बस्ती की नालियों और पोखरे गंदगी से बजबजा रहे हैं। इनकी सफाई आजतक क्यों नहीं की गई? नट और दलित बस्तियों की घेर उपेक्षा के लिए कौन ज़िम्मेदार है? सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती और फरिहां की दलित बस्ती गंदगी से पटी पड़ी है। नालियों की साफ-सफाई और जल निकासी की व्यवस्था की जाए। सभी परिवारों के लिए शौचालय की व्यवस्था की जाए। नट, धरकार, बांसफोंड, बंजारा समेत सभी विमुक्त जातियों की बस्तियों की साफ सफाई और स्वास्थ्य के लिए विशेष अभियान चलाया जाए।"

बदहाल नट बस्ती का हाल

उन्नाव में तीन बच्चों की मौत

दूसरी ओर, उन्नाव जिले के नवाबगंज और असोहा प्रखंड के तीन गांवों में डिप्थीरिया (गला घोंटू) बीमारी से तीन बच्चों की मौत हो गई। छह बच्चे संक्रमण की चपेट में आ गए, जो इलाज के बाद अब स्वस्थ हैं। नवाबगंज ब्लॉक क्षेत्र के सतगुरखेड़ा गांव निवासी गोविंद की छह साल की बेटी शिवन्या को गले में खरास के साथ खांसी-बुखार हुआ। हालत में सुधार नहीं होने पर 12 अगस्त को लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में लेकर गए। बाद में डॉक्टरों ने गलाघोंटू की आशंका जताते हुए उसे लखनऊ मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया। जांच में डिप्थीरिया की पुष्टि हुई। इलाज के दौरान 15 अगस्त को शिवन्या की मौत हो गई। शिवन्या की बड़ी बहन सेजल (9 साल) में डिप्थीरिया के लक्षण दिखने पर मेडिकल टीम को मौके पर भेजा गया।

नवाबगंज प्रखंड के बजेहरा निवासी सुनील कुमार की 12 वर्षीया बेटी शगुन को सात अगस्त को बुखार व गले में दर्द होने पर परिजन सीएचसी लेकर गए थे। डॉक्टर ने जिला अस्पताल रेफर किया था। जांच में डिप्थीरिया की पुष्टि होने पर कानपुर ने हैलट भेजा था, जहां आठ अगस्त को इलाज के दौरान मौत हो गई। उन्नाव के असोहा प्रखंड के दरियारखेड़ा निवासी रामेश्वर की सात वर्षीया बेटी आरती को चार अगस्त को बुखार आने के साथ गले में दर्द व सूजन की शिकायत हुई। इलाके के एक डॉक्टर ने इलाज किया। सुधार न होने पर उसे लखनऊ स्थति किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज भेजा था। सात अगस्त को वहां उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी। रामेश्वर का बड़ा बेटा मोहित (12 साल) और उनके पड़ोसी राजोले के दो बेटे शुभ (7 साल) और राजन (4 साल), सहरावां के लक्ष्मण के पुत्र शिवा (6 साल) को भी गले में खरास व दर्द की शिकायत होने पर जिला अस्पताल भेजा गया। हालत में सुधार होने पर परिजन उसे घर ले आए।

उमर्रा निवासी संदीप के पुत्र अंकित को डिप्थीरिया के चलते किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। वहां उसका इलाज चल रहा है। हालत में थोड़ा सुधार है। गलाघोंटू बीमारी से तीन बच्चों की मौत और एक ही परिवार के तीन बच्चों को इस बीमारी के लक्षण दिखने पर डाक्टरों की टीम को सतगुरखेड़ा गांव भेजा गया है। उन्नाव के सीएमओ डॉ सत्यप्रकाश ने बताया कि बजेहरा गांव की मरीज शगुन में डिप्थीरिया की पुष्टि होने पर उसे कानपुर हैलट भेजा गया था, जहां उसकी मौत हो गई। डाक्टरों की टीम को गांव भेजा गया है, ताकि बच्चों की जांच कराने के साथ उन्हें दवा दी जा सके।

सरकार का दावा

स्वास्थ्य विभाग की ओर से डिप्थीरिया सहित अन्य बीमारियों से बचाव के लिए 95 फीसदी टीकाकरण का दावा किया गया है।  सरकार का दावा है कि 49 जिले के 92 ब्लॉक में डिप्थीरिया रोकने के लिए विशेष टीकाकरण अभियान भी चलाया गया है, लेकिन आजमगढ़ और उन्नाव में बच्चों की मौत के बाद हकीकत कुछ और ही सामने आई। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के सामने ग्रामीणों ने बताया कि उनके बच्चों का टीकाकरण नहीं किया गया। बच्चों की मौत से फैली दहशत के बीच संबंधित गांवों में टीकाकरण कराया गया।

चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण विभाग के मुख्य सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा के मुताबिक, "आजमगढ़ में सिर्फ एक बच्चे की डिप्थीरिया से मौत की पुष्टि हुई है। बाकी मामले संदिग्ध हैं। छह अन्य के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। उन्नाव में भी डिप्थीरिया से एक बच्चे की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि अन्य की मौत के कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं। 14 के सैंपल भेजे गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीम मौके पर है। प्रदेश के 86 ब्लॉकों में डिप्थीरिया के केस पाए गए हैं। इनमें उन्नाव के असोहा में सात, हसनगंज में तीन और नवाबगंज में दो बच्चों में डिप्थीरिया की पुष्टि हुई है। बीमारी फैलने के कारणों की जानकारी जुटाकर इसे रोकने की योजना बनाई गई है। प्रभावित गांवों में स्वास्थ्य अधिकारी कैंप कर रहे हैं। स्थिति नियंत्रण में है।"

बीएचयू के वायरल रिसर्च एंड डायगोनेस्टिक लेबोरेटरी के प्रोफेसर इंचार्ज गोपालनाथ कहते हैं, " पूर्वांचल में ब्रेक-बोन फीवर (हड्डी तोड़ बुखार) का प्रकोप बढ़ रहा है। इस बीमारी से सतर्क रहने की जरूरत है। गलाघोंटू की रोकथाम के लिए सार्थक पहल की जरूरत है। चिकनगुनिया का मतलब होता है,-अकड़े हुए आदमी की बीमारी। एक ख़ास प्रजाति का एडीज एजेप्टी मच्छर चिकनगुनिया फैलाता है। एडीज एजिप्टी में कई बार डेंगू और चिकनगुनिया दोनों के वायरस पाए जाते हैं। इस बीमारी से बचाव ही इसका इलाज है। अपने आसपास जलभराव न होने दें। साफ-सफाई पर ध्यान दें। मच्छरों से बचने के लिए पूरी बांह की शर्ट पहनें। रात में पूरे शरीर को ढंक कर सोएं।"

सभी तस्वीरेः विजय विनीत

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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