MP: दलित महिला सरपंच को कहा, "कुर्सी चाहिए तो अपने घर से लाओ नहीं तो ज़मीन पर बैठ जाओ"

Written by sabrang india | Published on: August 27, 2024

फोटो साभार : द मूक नायक

राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, ध्वजारोहण का कार्य सरपंच द्वारा ही किया जाना चाहिए था। सरपंच ने पंचायत सचिव विजय प्रताप सिंह को भी इस निर्देश की जानकारी दी थी, लेकिन जब वह पंचायत भवन पहुंचीं, तब तक उपसरपंच धर्मेन्द्र सिंह बघेल ध्वजारोहण कर चुके थे।

मध्य प्रदेश के सतना ज़िले के अकौना ग्राम पंचायत में जातीय भेदभाव का एक शर्मनाक मामला सामने आया है। यहां ठाकुर बहुल क्षेत्र में पहली दलित महिला सरपंच को लगातार अपमानित किया जा रहा है। यह मामला 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर और भी स्पष्ट हो गया, जब उन्हें तिरंगा फहराने से रोक दिया गया।

द मूक नायक की रिपोर्ट के मुताबिक ग्राम पंचायत की सरपंच श्रद्धा सिंह ने पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को लिखे पत्र में बताया कि स्वतंत्रता दिवस के दिन ध्वजारोहण का कार्यक्रम ग्राम पंचायत में तय था। राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, ध्वजारोहण का कार्य सरपंच द्वारा ही किया जाना चाहिए था। सरपंच ने पंचायत सचिव विजय प्रताप सिंह को भी इस बात की जानकारी दी थी, लेकिन जब वह पंचायत भवन पहुंचीं, तब तक उपसरपंच धर्मेन्द्र सिंह बघेल ने ध्वजारोहण कर दिया था।

यह घटना केवल एक महिला होने के कारण नहीं, बल्कि दलित समाज से होने के कारण जानबूझकर की गई योजना का हिस्सा थी। सरपंच ने इसे अपने ख़िलाफ़ एक साजिश और अपमान का खुला उदाहरण बताया।

द मूकनायक से बातचीत में 28 वर्षीय सरपंच श्रद्धा सिंह ने बताया कि 17 अगस्त को ग्राम सभा की बैठक के दौरान भी उन्हें अपमानित किया गया। सरपंच ने बताया कि जब उन्होंने बैठक के दौरान कुर्सी मांगी तो उपसरपंच और सचिव ने उन्हें कुर्सी देने से इंकार कर दिया और कहा, "अगर कुर्सी चाहिए तो अपने घर से लेकर आओ, नहीं तो ज़मीन पर बैठ जाओ या खड़े रहो।"

श्रद्धा ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जब उनके साथ इस तरह का व्यवहार किया गया हो। एक दलित महिला होने के नाते उन्हें हमेशा से अपमान और भेदभाव का सामना करना पड़ा है। जब भी वह गांव में कोई काम करवाने की कोशिश करती हैं, तो उनके काम में अड़चनें डाली जाती हैं।

बता दें कि अकौना ग्राम पंचायत में 2 गांव ग्राम अकौना और ग्राम टिकरी हैं। जुलाई 2022 में श्रद्धा इस गांव की सरपंच चुनी गई थीं। इस गांव में लगभग 1600 वोटर हैं, जिनमें से 50% ठाकुर समुदाय के हैं जबकि बाकी में दलित आदिवासी और ओबीसी समुदाय के लोग शामिल हैं। वह बताती हैं कि वे महज 58 वोटों के अंतर से चुनाव जीती थीं जिसपर भी कुछ जातिवादी लोगों द्वारा बवाल किया गया क्योंकि ये पहली बार हुआ था की ठाकुर बहुल गांव में कोई दलित महिला सरपंच चुनी गई हो। हालांकि बाद में कलेक्टर महोदय और एसडीएम साहब से फोन पर बात हुई थी उसके बाद मामला शांत हुआ था. तब से कई जातिवादी लोग श्रद्धा के लिए चुनौती खड़ी करते रहे हैं।

सरपंच श्रद्धा का कहना है कि उनके ख़िलाफ़ हो रहे इस बर्ताव से वह बेहद आहत हैं लेकिन वह हार मानने वाली नहीं हैं। वह इस भेदभाव और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती रहेंगी और अपनी पंचायत में विकास कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष जारी रखेंगी। सरपंच ने इस मामले की शिकायत मध्य प्रदेश सरपंच संघ और पंचायत राज परिषद को भी की है। उन्होंने बताया कि 5 सितंबर को भोपाल में आयोजित होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी, साथ ही जातिगत भेदभाव करने वाले पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई और उन्हें पद से हटाने की मांग की जाएगी।

अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार और पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री इस मामले में क्या कार्रवाई करते हैं और क्या दलित महिला सरपंच को उनका हक व सम्मान मिल पाता है या नहीं।

भीम आर्मी - भारत एकता मिशन के एडवोकेट विजयकुमार आजाद ने द मूक नायक को बताया कि संस्था द्वारा सभी ज़िलों में इस घटना के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन और ज्ञापन दिए जाएंगे।

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