मनमाने आरक्षण नियमों की शिकार हुईं सभी वर्गों की महिला उम्मीदवार

Written by Mahendra Narayan Singh Yadav | Published on: August 30, 2018
मनमाने आरक्षण नियमों के कारण मध्यप्रदेश में असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती में महिला उम्मीदवारों का भारी नुकसान झेलना पड़ गया है।

असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा-2017 की चयन सूची के बाद जारी कटऑफ ने साबित कर दिया है कि जातिगत आरक्षण को रोकने के लिए अधिकारी और सरकारें किस तरह की साजिश करती रही हैं। हालांकि, इस बार सभी वर्गों की महिलाएं इस साजिश की शिकार हो गई हैं।

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(Courtesy: Duniya-post.com)



अनुचित आरक्षण नियमों के कारण कई विषयों में महिलाओं की कटऑफ पुरुष उम्मीदवारों से ज्यादा रहा। पूरी प्रक्रिया में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया गया लेकिन वास्तव में इस बहाने पुरुषों को 67 प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया और महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण की जगह, केवल 33 प्रतिशत सीटों तक ही सीमित कर दिया गया।

इसका कारण क्षैतिज आरक्षण नियम रहा जिसे अधिकारियों ने जातिगत आरक्षण को बेअसर करने के लिए लागू किया था, लेकिन अब सारी महिलाएं ही इसकी शिकार हो गईं। अब महिलाओं में नाराजगी है। सबसे बड़ी उलझन तो सामान्य वर्ग की महिलाओं की है जो जातिगत आरक्षण को रोकने के लिए क्षैतिज आरक्षण का समर्थन करती रही हैं।

मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग ने आरक्षण के सामान्य सिद्धांत का भी पालन नहीं किया। सामान्य सिद्धांत तो ये है कि आरक्षण के तहत किसी वर्ग के आवेदकों को निर्धारित पदों पर मौका दिया जाता है और बाकी पदों को मेरिट के आधार पर भरा जाता है, जिसमें आरक्षित वर्ग के लोग भी योग्यता के आधार पर चयनित हो सकते हैं। हालांकि एमपीपीएससी हमेशा क्षैतिज आरक्षण ही लागू करता रहा है। इसका फायदा पुरुष उम्मीदवारों को मिला।

अब कटऑफ की बात करें तो हिंदी विषय में एससी पुरुष का चयन 354 पर हुआ, जबकि महिला उम्मीदवार 356 पर चयनित हो सकीं। कॉमर्स में एसटी पुरुष 142 और एसटी महिला 152, हिंदी में ओबीसी पुरुष 366 और ओबीसी महिला 367, हिंदी में ही एसटी पुरुष 218 और एसटी महिला 290, अंग्रेजी में एसटी पुरुष 160 और एसटी महिला 272 अंक लाने पर ही चयनित हो पाईं। अन्य विषयों में भी ज्यादा अंक लाने वाली महिलाओं का चयन नहीं हो पाया।
 

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