भूख से मौत: भुखमरी से लोगों की मौत पर सरकारी अनदेखी के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन

Written by Sabrangindia Staff | Published on: December 17, 2018
नई दिल्ली। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में 119 देशों की सूची में भारत का 103वां स्थान है। पिछले साल भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में 100वें स्थान पर था। गौर करने वाली बात यह है कि साल 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनने के बाद से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट आई है। ऐसे में भारत में पिछले तीन साल में 65 मौत हो चुकी है। भूख से मौतों पर भारतीय सरकार के उदासीन रवैये के विरोध में भोजन का अधिकार के तहत दिल्ली कृषि भवन के नजदीक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध दर्ज कराया। 
 
पिछले तीन साल में 56 मौतें भूख के चलते हुई हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीम ने 2017 से 18 के बीच 42 मौतों का संकलन किया है। जिन लोगों की भूख से मौत हुई है उनमें से अधिकांश दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। ये मौतें तत्कालीन भाजपा शासित झारखंड और उत्तर प्रदेश में हुई हैं।  

इन मौतों को कभी भुखमरी की मौत नहीं कहा जाता है। बहुत से लोग और यहां तक कि सरकार भुखमरी की मौतों पर विश्वास करने से इंकार कर देती है। फिर भी, तथ्य यह है कि 19 करोड़ लोग भारत में भूख पेट पर सोते हैं, जो बताता है कि भारत वैश्विक भूख इंडेक्स में 119 देशों में से 103 वें स्थान पर क्यों है।

भोजन का अधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकारियों के मुताबिक, भारत भर में, पिछले चार वर्षों में भुखमरी से 50 से अधिक लोगों की मौत हुई है, जिन लोगों की मौत हुई है उनमें से ज्यादातर के राशन कार्ड आधार से जुड़े नहीं होने के चलते रद्द कर दिए गए थे। 

साल 2017 में झारखंड सरकार फेक आधार कैंसिल कराने के नाम पर 225 करोड़ रुपये की बचत का हवाला देकर अपनी पीठ थपथपा रही थी। सरकार ने इसके लिए पूरे पेज का विज्ञापन भी दिया था। जबकि हकीकत यह थी कि इसमें बहुत सारे लोग ऐसे थे जिनका चूल्हा ही सरकारी राशन की वजह से चलता था। सरकारी राशन वितरण प्रणाली के बायोमेट्रिक करने के चलते उसमें कई कमियां आईं जिसकी वजह से लोगों को राशन से वंचित होना पड़ा।  

भुखमरी से हो रही मौतों पर आरटीएफ ने कई फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट्स पेश कीं लेकिन अधिकारी या सरकार इन्हें मानने से इंकार करते रहे। सरकारों द्वारा भुखमरी को गरीबों की मौत का कारण नहीं माने जाने के विरोध में आरटीएफ ने कृषि भवन पर विरोध दर्ज कराने का फैसला किया ताकि सरकार के कानों तक आवाज पहुंच सके। 

इन राज्यों में हुईं भुखमरी से मौत

पश्चिम बंगाल 
नवंबर के मध्य में पश्चिम बंगाल से सात लोगों की भूख से मौत की खबरें मीडिया में आईं। यहां जो भी भूख से मरे ये सभी सबर कम्युनिटी से संबंधित थे जो कि राज्य के झारग्राम के जंगल महल एरिया के बासिंदे थे। सबार समुदाय एक जातीय जनजाति है, जो मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पायी जाती है। पश्चिम बंगाल के खाद्य और कार्य अभियान दल ने तथ्य खोजने के लिए गांवों का दौरा किया। तथ्य-खोज रिपोर्ट और अनुबंध को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

मीडिया में भुखमरी से मौत की खबरें छाने के कुछ दिन बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया। ममता बनर्जी ने कहा कि ये मौत ज्यादा शराब और बढ़ती उम्र की वजह से हुई हैं, सरकार गरीबों को राशन दे रही है ऐसे में कोई भी मौत भूख की वजह से नहीं हुई।  

झारखंड
झारखंड में 28 सितंबर 2017 तक भूख की वजह से 17 लोगों की मौत हुई। इनमें सबसे हाल में 45 वर्षीय कालेश्वर सोरेन की मौत हुई। कालेश्वर सोरेन झारखंड के दुमका जिले के जामा ब्लॉक के महुआंत गांव के रहने वाले थे जिनकी 11 नवंबर को भूख से मौत हो गई। झारखंड के राइट टू फूड अभियान की एक तथ्य-खोज टीम ने पाया कि कालेश्वर के परिवार का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया था क्योंकि यह आधार से जुड़ा नहीं था।

कालेश्वर से पहले 1 नवंबर को मार्गोमुंडा ब्लॉक (देवघर) मोदी यादव की मौत हुई थी। इसके अलावा 25 अक्टूबर को बसिया ब्लॉक (गुमला) की रहने वाली सीता देवी ने दम तोड़ दिया। मोती यादव जो दृष्टि विकलांगता से पीड़ित थे उन्हें इसकी पेंशन भी नहीं मिल पा रही थी। 75 वर्षीय सीता देवी जो अकेली रहती थीं उनकी मौत भूख की वजह से हुई। उनकी मौत के समय घर में खाने के लिए कुछ नहीं था। बीमारी के चलते वे राशन भी नहीं ला पा रही थीं। सीता देवी का बैंक खाता आधार से लिंक नहीं होने की वजह से उन्हें वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिल रही थी। 

भूख से मरे इन 17 लोगों में से कम से कम सात पीड़ित सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लिए पात्र थे, लेकिन उन्हें या तो पेंशन जारी नहीं की गई थी या प्रशासनिक चूक या आधार से संबंधित मुद्दों के कारण उनकी पेंशन नहीं मिली थी। इनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय है।  उन्हें शिक्षा, हेल्थ आदि की सुविधाएं भी नहीं मिल पा रहीं।  भोजन का अधिकार कैंपेन झारखंड ने इसके बारे में एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि इन लोगों को पीडीएस के तहत अंत्योदय अन्न योजना का लाभ नहीं मिला। 

मृत व्यक्तियों में आठ आदिवासी थे, चार दलित और बाकी पांच पिछड़ी जाति के। इन सभी के परिवारों के लिए पर्याप्त भोजन व पोषण का अभाव सामान्य बात थी। कई परिवारों में तो महीनों से दाल तक नहीं बनी थी। मरने के दिन घर में न अनाज था और न ही पैसे। परिवार के सदस्यों के पास आजीविका और रोज़गार के पर्याप्त साधन नहीं थे।

ये मौतें झारखंड में व्यापक भुखमरी की स्थिति के सूचक मात्र हैं। ये मौतें चर्चा में इसीलिए आ पाईं क्योंकि स्थानीय अख़बारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन्हें उजागर किया। ऐसी अनेक मौतों का तो पता भी नहीं चलता होगा। राज्य में कुपोषण की भयंकर स्थिति भी खाद्य असुरक्षा की ओर इशारा करती है। लेकिन राज्य गठन के 18 वर्षों के बाद भी भुखमरी के निराकरण पर राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी दिखती है।

खाद्य असुरक्षा की स्थिति में जी रहे परिवारों के लिए सामाजिक-आर्थिक अधिकार जैसे राशन, मध्याह्न भोजन, पेंशन, मनरेगा में काम आदि जीवनरेखा समान हैं। भूख से मौत के शिकार हुए अधिकांश परिवार विभिन्न कारणों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से मिलने वाले अनाज से वंचित थे। कई महीनों से मनरेगा में काम भी नहीं मिला था। कुछ एकल महिलाएं व वृद्ध सामाजिक सुरक्षा पेंशन से भी वंचित थे।

ये सभी मौतें झारखंड सरकार द्वारा 11।6 राशन कार्ड निरस्त किये जाने के बाद दर्ज की गई। इन राशन कार्डों को कैंसिल करने के पीछे सरकार ने तर्क दिया था कि ये सभी बोगस हैं या आधार से लिंक नहीं हैं। कार्डों के निरस्त किए जाने की जानकारी राज्य खाद्य सेक्रेट्री विनय चौबे द्वारा दी गई थी।   

मध्य प्रदेश
भोजन का अधिकार कैंपेन ने एक मैनिफीस्टो तैयार किया और सभी पार्टियों के पास भेजा जिसमें मैटरनिटी, ICDS, न्यूट्रीशन, न्यूट्रीशन में डायवर्सिटी, पीडीएस सिस्टम, प्रोटीन के प्रावधान और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम आदि का विस्तृत उल्लेख किया गया। इस पर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में अपने मेनिफीस्टो में कहा कि वे असंगठित क्षेत्र के परिवारों को मातृत्व के अधिकार के तहत 90 दिन का वेतन या 21000 रुपये उपलब्ध कराएंगे।  

बिहार
संविधान दिवस (26 नवंबर) को आरटीएफ ने अन्य संगठनों के साथ मिलक 2019 के चुनावों के लिए घोषणापत्र पर एक दिवसीय चर्चा का आयोजन किया। उनकी मांग में खाद्य अधिकार, पेंशन, शिक्षा का अधिकार, सभी के लिए न्याय, और सांप्रदायिकता को रोकने की मांग शामिल है। उन्होंने इन मुद्दों में से प्रत्येक पर सरकारी उत्तरदायित्व के साथ घोषणापत्र में पर्यावरण को बचाने, लोगों के संकट में सुधार, भूमि सुधार, रोजगार गारंटी, बेघर आदि को रोकने के लिए भी कार्रवाई की मांग की है ।। 
पूर्ण घोषणापत्र यहां देखा जा सकता है

आधार पर स्टेटमेंट
विभिन्न अभियानों के सैकड़ों सदस्यों ने कहा कि वे आधार अधिनियम की धारा 7 की संवैधानिकता को कायम रखने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से "बेहद निराश" थे, जो राज्य को सामाजिक लाभ प्राप्त करने के लिए आधार और बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण अनिवार्य रूप से उपयोग करने की अनुमति देता है।"
 
विभिन्न समूहों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया है, "आधार का अनिवार्य उपयोग आपातकाल में घातक साबित हो सकता है। यही कारण है कि हम लोगों को आधार अधिनियम में संशोधन करने के लिए सभी पक्षों पर दबाव डालने के लिए एक साथ आने के लिए कहते हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि वे आधार को "चुनावी मुद्दा" बनाएंगे। पूर्ण विवरण पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
 
राजनेताओं के लिए पत्र
खाद्य अधिकार सेक्रेट्रिएट ने भुखमरी और कुपोषित लोगों की ओर से संसद में आवाज उठाने का अनुरोध करने के लिए भूख के मुद्दे पर सभी राजनेताओं को एक पत्र भेजा। देश में एक मूक आपातकाल है जिसमें पिछले 45 वर्षों में विभिन्न राज्यों से भूख से संबंधित मौतों की सूचना मिली है। ये मौतें देश के कई हिस्सों में भूख और परेशानी की गंभीर स्थिति का प्रतिबिंब हैं और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्य करना चाहिए कि एक भी व्यक्ति भूख की वजह से दम ना तोड़े। 

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