भूख भी कोई मुद्दा है !! जाओ कोई वोट दिलाने वाला मुद्दा लेकर आओ हम मदद करेंगे

Written by Mithun Prajapati | Published on: October 27, 2017
मोहम्मद ज़ियाउद्दीन की चौराहे पर दुकान थी जिसमें वे कपड़े सिलने का काम करते थे। कितना अच्छा काम है न सिलने का जो हमें जोड़ना सिखाता है। अलग-अलग रंग, क्वालिटी के कपड़ों को जोड़कर जब दर्जी एक पहनावे का निर्माण करता है तो ऐसा लगता है उसनें विभिन्नताओं वाले भारत को एक धागे में बांध दिया। ज़ियाउद्दीन का व्यक्तित्व भी ऐसा ही था। वे अनेकता में एकता की बात करते। उन्हें दर्द हिन्दू मुस्लिम देखकर नहीं उठता था, वे किसी भी इंसान को तकलीफ में देखते तो तड़प उठते।  पर पिछले कुछ सालों से सब बदल गया। एक कहावत है-

Hunger Deaths
Photo credit: Taramani Sahu
 
काजल की कोठरी में कैसो हू सयानो जाय
एक लीक काजल की लगी है सो लागि है।
 
ज़ियाउद्दीन भी इसी का शिकार हो गए। कुछ कट्टर मुल्लों की संगति ने उन्हें बदल दिया। उनका दिन दुकान की बजाय कट्टरपंथियों के संग ज्यादा बीतने लगा। उनके अंदर बदलाव आ गए। कट्टरता आ गयी। हिंदुओं के प्रति थोड़ी  नफरत बढ़ गयी। वे अब हर चीज को हिन्दू मुस्लिम के नजरिये से देखने लगे थे। यहाँ तक कि ग्राहकों से भी बात करते वक्त कभी-कभी मामला हिन्दू मुस्लिम हो जाता। 
 
एक पंडित जी थे जो अक्सर उनके पास कपड़े सिलने आया करते थे। वे बूढ़े थे। कट्टरता उनके अंदर भी थी पर हिलोरे नहीं मार पाती थी। शरीर साथ नहीं देता था।  उस दिन पंडित जी जब लंगोट सिलाने आये तो ज़ियाउद्दीन से बात-बात में बहस हो गयी। मामला हिन्दू बनाम मुस्लिम हो गया। ज़ियाउद्दीन ने कहा- आप के लोगों में तो ठीक से नमस्कार भी नहीं होता।
 
पंडित जी बिगड़ गए, बोले- तुम्हारे सलाम अले कुम से तो अच्छा ही है हमारा नमस्कार।
 
"तुम्हें तो ठीक ढंग से कहना भी नहीं आता पंडित जी, अच्छा बुरा हमें बाद में समझाइयेगा पहले ठीक से कहना सीख लीजिए।"
 
"इतना बड़ा कहने से क्या होगा !! छोटा सा नमस्कार कहके चलते बनो वो बेहतर है"
 
"कहने से ही क्या होगा, कुछ मतलब तो निकले कहने का। बताओ क्या होगा मतलब नमस्कार का !" ज़ियाउद्दीन ने फिरकी लेते हुए कहा।
 
"नमस्कार का मतलब  मैं आपको प्रणाम करता हूँ।" पंडित जी ने गंभीरता से कहा। 
 
ज़ियाउद्दीन  हंस पड़े, बोले-  यह भी कोई बात हुई !! इससे अच्छा तो हमारा है जिसका अर्थ होता है ' मैं आपके सलामती की दुआ करता हूँ।
 
इसी तरह की बहसें होती रहीं। मामला गरमाता गया।  तू तू मैं मैं होते- होते बात झगड़े तक आ गयी । बूढ़े पंडित की आवाज कांपने लगी। ज़ियाउद्दीन बोले- जाओ पंडित, बूढ़े हो नहीं तो मजा चखाता। 
 
पंडित जी अपमान का घूंट पीकर रह गए और वहां से चल दिये। 
 
इलेक्शन का समय था। यह सब होता हुआ वहां खड़ा एक लोकल गुंडा देख रहा था जो उभरता हुआ नेता भी था। उसने मौके का फायदा उठाना चाहा। शाम को पंडित जी के घर जाकर वह बोला- पंडित जी , हम सब के रहते एक मुस्लिम आपको इतनी बातें सुना गया और आप सुन लिए !! कहो तो साले को आज ही मजा चखा दें। हम सब के रहते कोई अपना तकलीफ झेले हमसे देखा नहीं जाता।
 
पंडित जी खुश हुए। उन्हें यह बात जानकर खुशी हुई कि इस भीड़ में उनकी फिक्र करने वाले भी हैं। उन्होंने मजा चखाने के लिए हामी भर दी।  शाम को बाज़ार में चहल-पहल ज्यादा थी। दुकान पर ज़ियाउद्दीन को  कुछ  लोगों ने पीट दिया। भीड़ इकट्ठा होने लगी। गुंडों ने कहा- फलाने भाई के रहते तूने एक हिन्दू को कैसे धमकी दी !! भीड़ सुन रही थी। कोई ज़ियाउद्दीन को बचाने नहीं आया। हिन्दू खुश थे कि मुस्लिम मारा जा रहा है। जो मुस्लिम थे डर से कट लिए। 
 
ज़ियाउद्दीन  के पिटने से वहां के हिंदुओं में उस गुंडे की पकड़ मजबूत हुई। इलेक्शन में उस गुंडे को टिकट मिला और वह जीत गया। 
 
इन घटना को चार महीने बीत चुके थे। पंडित की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। कमाई का कोई जरिया नहीं था। स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि भूखे रहने की नौबत आ गयी। उन्हें वह नेता याद आ गया जिससे उन्होंने ज़ियाउद्दीन को पिटवाया था। 
 
वे उसके पास गए और कहा- बाबू, स्थिति बहुत खराब है। घर मे एक अन्न का दाना नहीं है। कुछ मदद कर देते तो अच्छा था। आप ने कहा था न कि आपके रहते हमें कोई तकलीफ हुई तो आपको तकलीफ होगी !!
 
वह बोला- देखिए, किसी मुस्लिम ने कुछ कहा हो तो बताइए। हम अभी आदमी भेजकर ठीक किये देते हैं। बाकी रही पैसे या भोजन से मदद करने की बात तो वो हमसे नहीं हो पायेगा। बताओ भूख भी कोई समस्या है !! 
 
पंडित जी का मुंह उतर गया। अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे। मुंह झुलाकर घर की ओर चल दिये।
 
पीछे से आवाज आई- आपकी भूख मिटाकर हमें वोट नहीं मिलने वाला पंडित जी। कोई वोट दिलाने वाला मामला लेकर आइए जरूर मदद मिलेगी।  
 
पंडित जी ने चाल और तेज कर दी जैसे कोई कीचड़ उछाला गया हो और वे अपने आप को उससे बचा लेना चाहते हों।

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