प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स ने आरोप लगाया कि असम पुलिस ने क्राइम ब्रांच के जरिए पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्रवाई की।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स ने द वायर के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर के खिलाफ असम पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर असंतोष जताया है। इस मामले में दूसरी बार भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं।
इन संगठनों ने कहा कि यह दो महीनों में द वायर के खिलाफ दर्ज की गई दूसरी ऐसी FIR है। उन्होंने आरोप लगाया कि असम पुलिस ने गुवाहाटी की क्राइम ब्रांच के जरिए पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्रवाई की है। यह FIR कथित रूप से एक बीजेपी नेता द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर की गई है, जो द वायर में 28 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट से जुड़ी है। यह रिपोर्ट इंडोनेशिया में भारत के डिफेंस अटैशे, कैप्टन (इंडियन नेवी) शिव कुमार द्वारा दी गई एक प्रस्तुति पर आधारित थी।
बयान में कहा गया, “यह उल्लेखनीय है कि 12 अगस्त 2025 को समन जारी किए गए, जबकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 11 जुलाई 2025 को असम पुलिस द्वारा मोरीगांव में दर्ज की गई FIR (0181/2025) के सिलसिले में वरदराजन और द वायर के सभी पत्रकारों को किसी भी जबरन कार्रवाई से संरक्षण दिया था। यह FIR भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 और अन्य धाराओं के तहत दर्ज की गई थी। अब असम पुलिस ने बिना किसी स्पष्ट कारण के एक और FIR दर्ज कर दी है और वरदराजन तथा थापर को 22 अगस्त को गुवाहाटी की क्राइम ब्रांच में जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने के लिए कहा है और ऐसा न करने पर गिरफ्तारी की चेतावनी दी गई है।”
द वायर की रिपोर्ट में कहा गया, “यह समन 14 अगस्त को यहां द वायर के कार्यालय में प्राप्त हुआ। 18 अगस्त को थापर के नाम इसी तरह का समन प्राप्त हुआ, जो उसी FIR से संबंधित है।” हालांकि, समन में FIR की तारीख का जिक्र नहीं किया गया, न ही कथित अपराध से जुड़ी कोई जानकारी दी गई और FIR की कोई प्रति भी संलग्न नहीं थी।
समन में कहा गया है, “यह सामने आया है कि वर्तमान जांच से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों को स्पष्ट करने के लिए आपसे पूछताछ करने के उचित आधार हैं।” समन के अनुसार, सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर दोनों को शुक्रवार, 22 अगस्त को गुवाहाटी के पानबाजार स्थित क्राइम ब्रांच कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। समन में आगे चेतावनी दी गई है, “इस नोटिस की शर्तों का पालन न करने या उपस्थित न होने की स्थिति में आपको गिरफ्तार किया जा सकता है।”
द वायर की रिपोर्ट में कहा गया है, “जहां 11 जुलाई 2025 को मोरीगांव में वरदराजन के खिलाफ दर्ज की गई FIR, 28 जून 2025 को द वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट (‘IAF लॉस्ट फाइटर जेट्स टू पाक बिकॉज ऑफ पॉलिटिकल लीडरशिप कन्स्ट्रैंट्स’: इंडियन डिफेंस अटैशे) को लेकर एक बीजेपी पदाधिकारी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से संबंधित है, वहीं यह स्पष्ट नहीं है कि क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज की गई नई FIR किस लेख या वीडियो से जुड़ी हुई है।”
असम में इसी लेख को लेकर पहले दर्ज की गई FIR के मामले में द वायर ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 की वैधता को चुनौती देने के लिए अदालत का रुख किया था जिस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने नोटिस जारी किया था। समन के जवाब में, वरदराजन और थापर दोनों ने कहा है कि वे किसी भी जांच में सहयोग करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं, लेकिन भारत की संवैधानिक अदालतों द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन हर हाल में किया जाना चाहिए। अपने जवाब में उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उन्हें “ऐसे मामले में पूछताछ के लिए समन नहीं किया जा सकता और उनसे जवाब की उम्मीद नहीं की जा सकती, जिसमें तथ्यों और परिस्थितियों की जानकारी देने को कहा गया हो लेकिन उस FIR की प्रति या विवरण ही नहीं दिया गया हो, जिसके तहत यह जांच हो रही है।”
सेडिशन प्लस: ‘अब मीडिया को निशाना बनाने का हथियार बन गई है धारा 152’
मीडिया संगठनों ने कहा कि मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की पूर्ववर्ती धारा 124A के तहत देशद्रोह से संबंधित मामलों और आपराधिक कार्यवाहियों पर रोक लगाने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा, “भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, धारा 124A का ही नया और रिपैकेज्ड रूप है। पिछले सप्ताह द वायर ने अपनी रिट याचिका में धारा 152 की वैधता को भी चुनौती दी है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार समेत अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया है।”
उन्होंने कहा, “हालांकि हम पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा द वायर और वरदराजन को दी गई राहत का स्वागत करते हैं, लेकिन उनके और थापर के खिलाफ एक नया मामला दर्ज किया जाना यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 अब भारत में मीडिया को निशाना बनाने का एक हथियार बन गई है।” इन संगठनों ने वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ दर्ज इन मामलों को तुरंत वापस लेने की मांग की, साथ ही BNS की “दमनकारी” धारा 152 को भी रद्द करने की अपील की क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन गई है।
उन्होंने कहा, “जैसा कि असम पुलिस की कार्रवाईयों से स्पष्ट है, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 को प्रेस को चुप कराने के लिए हथियार बनाया गया है।”
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इन संगठनों ने कहा कि यह दो महीनों में द वायर के खिलाफ दर्ज की गई दूसरी ऐसी FIR है। उन्होंने आरोप लगाया कि असम पुलिस ने गुवाहाटी की क्राइम ब्रांच के जरिए पत्रकारों के खिलाफ बदले की कार्रवाई की है। यह FIR कथित रूप से एक बीजेपी नेता द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर की गई है, जो द वायर में 28 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट से जुड़ी है। यह रिपोर्ट इंडोनेशिया में भारत के डिफेंस अटैशे, कैप्टन (इंडियन नेवी) शिव कुमार द्वारा दी गई एक प्रस्तुति पर आधारित थी।
बयान में कहा गया, “यह उल्लेखनीय है कि 12 अगस्त 2025 को समन जारी किए गए, जबकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 11 जुलाई 2025 को असम पुलिस द्वारा मोरीगांव में दर्ज की गई FIR (0181/2025) के सिलसिले में वरदराजन और द वायर के सभी पत्रकारों को किसी भी जबरन कार्रवाई से संरक्षण दिया था। यह FIR भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 और अन्य धाराओं के तहत दर्ज की गई थी। अब असम पुलिस ने बिना किसी स्पष्ट कारण के एक और FIR दर्ज कर दी है और वरदराजन तथा थापर को 22 अगस्त को गुवाहाटी की क्राइम ब्रांच में जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने के लिए कहा है और ऐसा न करने पर गिरफ्तारी की चेतावनी दी गई है।”
द वायर की रिपोर्ट में कहा गया, “यह समन 14 अगस्त को यहां द वायर के कार्यालय में प्राप्त हुआ। 18 अगस्त को थापर के नाम इसी तरह का समन प्राप्त हुआ, जो उसी FIR से संबंधित है।” हालांकि, समन में FIR की तारीख का जिक्र नहीं किया गया, न ही कथित अपराध से जुड़ी कोई जानकारी दी गई और FIR की कोई प्रति भी संलग्न नहीं थी।
समन में कहा गया है, “यह सामने आया है कि वर्तमान जांच से संबंधित तथ्यों और परिस्थितियों को स्पष्ट करने के लिए आपसे पूछताछ करने के उचित आधार हैं।” समन के अनुसार, सिद्धार्थ वरदराजन और करन थापर दोनों को शुक्रवार, 22 अगस्त को गुवाहाटी के पानबाजार स्थित क्राइम ब्रांच कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। समन में आगे चेतावनी दी गई है, “इस नोटिस की शर्तों का पालन न करने या उपस्थित न होने की स्थिति में आपको गिरफ्तार किया जा सकता है।”
द वायर की रिपोर्ट में कहा गया है, “जहां 11 जुलाई 2025 को मोरीगांव में वरदराजन के खिलाफ दर्ज की गई FIR, 28 जून 2025 को द वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट (‘IAF लॉस्ट फाइटर जेट्स टू पाक बिकॉज ऑफ पॉलिटिकल लीडरशिप कन्स्ट्रैंट्स’: इंडियन डिफेंस अटैशे) को लेकर एक बीजेपी पदाधिकारी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से संबंधित है, वहीं यह स्पष्ट नहीं है कि क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज की गई नई FIR किस लेख या वीडियो से जुड़ी हुई है।”
असम में इसी लेख को लेकर पहले दर्ज की गई FIR के मामले में द वायर ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 की वैधता को चुनौती देने के लिए अदालत का रुख किया था जिस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने नोटिस जारी किया था। समन के जवाब में, वरदराजन और थापर दोनों ने कहा है कि वे किसी भी जांच में सहयोग करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं, लेकिन भारत की संवैधानिक अदालतों द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन हर हाल में किया जाना चाहिए। अपने जवाब में उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि उन्हें “ऐसे मामले में पूछताछ के लिए समन नहीं किया जा सकता और उनसे जवाब की उम्मीद नहीं की जा सकती, जिसमें तथ्यों और परिस्थितियों की जानकारी देने को कहा गया हो लेकिन उस FIR की प्रति या विवरण ही नहीं दिया गया हो, जिसके तहत यह जांच हो रही है।”
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उन्होंने कहा, “हालांकि हम पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा द वायर और वरदराजन को दी गई राहत का स्वागत करते हैं, लेकिन उनके और थापर के खिलाफ एक नया मामला दर्ज किया जाना यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 अब भारत में मीडिया को निशाना बनाने का एक हथियार बन गई है।” इन संगठनों ने वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ दर्ज इन मामलों को तुरंत वापस लेने की मांग की, साथ ही BNS की “दमनकारी” धारा 152 को भी रद्द करने की अपील की क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन गई है।
उन्होंने कहा, “जैसा कि असम पुलिस की कार्रवाईयों से स्पष्ट है, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 को प्रेस को चुप कराने के लिए हथियार बनाया गया है।”
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