असम एनआरसी की लिस्ट में नाम ना आने को लेकर आत्महत्या के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. अब उदलगिरी जिले के एक शख्स दीपक देबनाथ 'विदेशी' कहलाने का दंश झेल नहीं पाए और आत्महत्या कर ली. दीपक देबनाथ का शव असम में उनके घर के पास फांसी पर लटकता हुआ मिला है. एनआरसी अपडेटिंग के मामले में पिछले चार साल में इस तरह का यह तेहरवां मामला है.
असम एनआरसी एक त्रासदी की भविष्यवाणी की तरह साबित हो रही है. एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन के लिए एनआरसी राज्य समन्वयक द्वारा उठाए गए अंतिम अंतिम निर्णय और असम में सीमा पुलिस द्वारा विदेशियों के ट्रिब्यूनल को संदर्भित 'डी-वोटर' के मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि ने सुनिश्चित किया है कि बहुत सारे भारतीय नागरिक ऐसे हैं जिन्हें अब विदेशी बना दिया गया है.
दीपक देबनाथ का नाम 31 दिसंबर 2017 को प्रकाशित एनआरसी के पहले मसौदे (ड्राफ्ट) में दिखाई दिया था लेकिन इस साल 30 जुलाई को प्रकाशित एनआरसी के अंतिम मसौदे में उसका नाम नहीं था. सूची में उसकी अस्वीकृति का कारण विदेशी ट्रिब्यूनल में लंबित मामला था इन बीच के महीनों में सीमा पुलिस ने रहस्यमय तरीके से उसे फंसाया। लेकिन नया मोड़ तब आया जब उसका नाम 1971 की वोटर लिस्ट में शामिल था.
अपने ही देश में 'विदेशी' लेबल लगने के भय, अपमान, परिवार के भविष्य और विशेष रुप से दक्षिणपंथी राजनेताओं व क्षेत्रीय सर्वोच्च समूहों के डर से दीपक देबनाथ ने आज सुबह मौत का रास्ता चुना। यहां देखें सबरंग इंडिया की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
सबरंग इंडिया असम में सामने आने वाली त्रासदी को राष्ट्रीय स्तर पर फोकस में लाने के प्रयास कर रहा है. विशेष रुप से उन समुदायों को विमर्श के केंद्र लाने का प्रयास कर रहा है जो हाशिए पर हैं और जिनकी न्याय प्रणाली तक कम पहुंच है. आरएसएस-बीजेपी की राजनीति से प्रेरित नौकरशाही ने एनआरसी के संकलन की प्रक्रिया को एक भयंकर त्रासदी में तब्दील कर दिया है.
यह भी तब है जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस प्रक्रिया का संचालन हो रहा है और देश की कथित मुख्यधारा की मीडिया सेलेक्टिवली रिपोर्ट कर रही है.
असम एनआरसी एक त्रासदी की भविष्यवाणी की तरह साबित हो रही है. एनआरसी के अंतिम मसौदे के प्रकाशन के लिए एनआरसी राज्य समन्वयक द्वारा उठाए गए अंतिम अंतिम निर्णय और असम में सीमा पुलिस द्वारा विदेशियों के ट्रिब्यूनल को संदर्भित 'डी-वोटर' के मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि ने सुनिश्चित किया है कि बहुत सारे भारतीय नागरिक ऐसे हैं जिन्हें अब विदेशी बना दिया गया है.
दीपक देबनाथ का नाम 31 दिसंबर 2017 को प्रकाशित एनआरसी के पहले मसौदे (ड्राफ्ट) में दिखाई दिया था लेकिन इस साल 30 जुलाई को प्रकाशित एनआरसी के अंतिम मसौदे में उसका नाम नहीं था. सूची में उसकी अस्वीकृति का कारण विदेशी ट्रिब्यूनल में लंबित मामला था इन बीच के महीनों में सीमा पुलिस ने रहस्यमय तरीके से उसे फंसाया। लेकिन नया मोड़ तब आया जब उसका नाम 1971 की वोटर लिस्ट में शामिल था.
अपने ही देश में 'विदेशी' लेबल लगने के भय, अपमान, परिवार के भविष्य और विशेष रुप से दक्षिणपंथी राजनेताओं व क्षेत्रीय सर्वोच्च समूहों के डर से दीपक देबनाथ ने आज सुबह मौत का रास्ता चुना। यहां देखें सबरंग इंडिया की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-
सबरंग इंडिया असम में सामने आने वाली त्रासदी को राष्ट्रीय स्तर पर फोकस में लाने के प्रयास कर रहा है. विशेष रुप से उन समुदायों को विमर्श के केंद्र लाने का प्रयास कर रहा है जो हाशिए पर हैं और जिनकी न्याय प्रणाली तक कम पहुंच है. आरएसएस-बीजेपी की राजनीति से प्रेरित नौकरशाही ने एनआरसी के संकलन की प्रक्रिया को एक भयंकर त्रासदी में तब्दील कर दिया है.
यह भी तब है जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस प्रक्रिया का संचालन हो रहा है और देश की कथित मुख्यधारा की मीडिया सेलेक्टिवली रिपोर्ट कर रही है.