पुलिस हिरासत में दलित की मौत: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा, परिवार के लिए 25 लाख मुआवजे की मांग

Written by sabrang india | Published on: September 20, 2025
नवाबगंज थाने में हिरासत के दौरान मौत मामले में याचिकाकर्ताओं ने परिवार को 25 लाख रूपये मुआवजा देने और हाईकोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच की मांग की।


साभार : पत्रिका न्यूज

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रयागराज के नवाबगंज थाने में पुलिस हिरासत में एक दलित व्यक्ति की मौत के मामले की जांच की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह दो हफ्ते के भीतर अपना पक्ष (काउंटर एफिडेविट) अदालत में प्रस्तुत करे।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं ने मृतक के परिजनों को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की है। परिवार का आरोप है कि व्यक्ति की मौत थाने परिसर में पुलिस हिरासत के दौरान दी गई यातना से हुई, जबकि पुलिस का कहना है कि मौत का कारण दिल का दौरा था।

अधिवक्ता मंच और दो अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति संतोष राय की खंडपीठ ने बुधवार को निर्देश दिया कि इस याचिका को अगली सुनवाई के लिए 10 अक्टूबर को उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता चार्ली प्रकाश के अनुसार, 27 मई को दर्ज एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ चोरी के मामले में पुलिस ने मजदूर हीरा लाल को उसके घर से उठाया था। आरोप है कि हिरासत में रहते हुए उसके परिवार को उससे मिलने की अनुमति नहीं दी गई। इसके कुछ समय बाद पुलिस ने परिवार को सूचित किया कि हीरा लाल की मृत्यु हो चुकी है। उन्हें स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल के मुर्दाघर पहुंचने के लिए कहा गया।

जनहित याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि हीरा लाल का शव उसके परिजनों को नहीं सौंपा गया, बल्कि पुलिस ने स्वयं ही प्रयागराज के दारागंज घाट पर उसका अंतिम संस्कार कर दिया।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता चार्ली प्रकाश ने तर्क दिया कि यह मामला पुलिस स्टेशन परिसर में पुलिस द्वारा की गई क्रूरता के चलते हिरासत में हुई मौत और हत्या से जुड़ा है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।

उन्होंने नवाबगंज थाना क्षेत्र के नररेपार गांव, बुदौना निवासी हीरा लाल की अवैध हिरासत, हिरासत के दौरान दी गई यातना और हिरासत में हुई मृत्यु की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच समिति के गठन की मांग की।

जनहित याचिका में यह भी आग्रह किया गया है कि जांच उच्च न्यायालय की निगरानी में कराई जाए और निर्धारित समय सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, इसी साल जून महीने में तमिलनाडु में सोना चोरी के एक मामले में हिरासत में लिए गए 27 वर्षीय मंदिर कर्मी बी. अजित कुमार की शिवगंगा जिले में पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया जिसके बाद अधिकारियों ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया।

बता दें कि बीते महीने गुजरात के बोटाद जिले में आयोजित एक मेले के दौरान, सोना और नकदी चोरी के मामले में बोटाद टाउन पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने एक नाबालिग लड़के को हिरासत में लिया था। आरोप है कि 19 अगस्त से 28 अगस्त के बीच, उसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखकर चार से छह पुलिसकर्मियों द्वारा बुरी तरह पीटा गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उसके साथ ऐसी क्रूरता की गई।

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