गुजरात : मुस्लिम नाबालिग के साथ पुलिस की हिरासत में यौन हमले और टॉर्चर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Written by sabrang india | Published on: September 15, 2025
एक मेले में सोने और नकदी की चोरी के आरोप में पुलिसकर्मियों ने नाबालिग लड़के को हिरासत में लेकर थाने में बुरी तरह पीटा गया और उस पर यौन हमला किया गया।



सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के बोताड़ टाउन थाने में एक नाबालिग लड़के को पुलिस हिरासत में बर्बर यातना दिए जाने के मामले में उसके भाई द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है। इस याचिका में मांग की गई है कि पीड़ित नाबालिग को परामर्श सेवाएं और मुआवजा दिया जाए, साथ ही घटना की निष्पक्ष जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 12 सितंबर को इस मामले का जिक्र मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति विनोद के. चंद्रन की पीठ के समक्ष किया गया। पीठ ने उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी, जिसमें अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने या वैकल्पिक रूप से जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की गई है। याचिका में पीड़ित नाबालिग को परामर्श सेवाएं और मुआवजा देने की भी अपील की गई है। मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस मामले को 15 सितंबर सोमवार के लिए सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।

याचिका के अनुसार, बीते महीने बोटाद जिले में आयोजित एक मेले के दौरान, सोना और नकदी चोरी के मामले में बोटाद टाउन पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने एक नाबालिग लड़के को हिरासत में लिया था। आरोप है कि 19 अगस्त से 28 अगस्त के बीच, उसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखकर चार से छह पुलिसकर्मियों द्वारा बुरी तरह पीटा गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि उसके साथ ऐसी क्रूरता की गई जिसमें उसके गुदा में लाठियां डाली गईं।

इसके अलावा, 21 अगस्त को पुलिस ने नाबालिग के दादा को भी हिरासत में लिया और उनके साथ प्रताड़ना की गई। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई गिरफ्तारी की स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं और उच्चतम न्यायालय द्वारा तय दिशा-निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है। नाबालिग को न तो गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर किशोर न्याय बोर्ड या मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया और न ही गिरफ्तारी के समय उसका चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया।

अदालत को यह भी बताया गया कि नाबालिग लड़के को 1 सितंबर को बोटाद के स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसकी चोटों का इलाज किया गया। हालांकि, याचिका दायर करने तक परिवार के किसी सदस्य को उसकी भर्ती या इलाज से जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी गई। याचिकाकर्ता के चाचा ने नाबालिग की स्थिति का सही कारण जानने के लिए विष विष्लेषण रिपोर्ट मांगी, लेकिन जाइडस अस्पताल के डॉक्टरों ने परिवार को रिपोर्ट उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया।

वर्तमान में, नाबालिग की बेरहमी से हुई मारपीट के कारण उसकी किडनी क्षतिग्रस्त हो चुकी है और वह डायलिसिस पर है। साथ ही, उसे आंखों में भी चोट आई है और दौरे पड़ने के कारण कई परेशानी भी पैदा हुई है। याचिका दायर करने के समय नाबालिग अहमदाबाद के जाइडस अस्पताल की आईसीयू में है। उसके चाचा नाबालिग के साथ अस्पताल में रहकर उसकी देखरेख और चिकित्सा सहायता दे रहे हैं।

याचिका के अनुसार, जब नाबालिग आईसीयू में भर्ती था, तब मजिस्ट्रेट कार्यालय का दावा करने वाले कुछ लोग नाबालिग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर लेने आए। नाबालिग के परिवार को भी उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, जिनमें यह जिक्र था कि बच्चा साइकिल से गिर गया था। परिवार ने बताया कि ये हस्ताक्षर पुलिस अधिकारियों के दबाव में किए गए, क्योंकि पुलिस ने उन्हें बताया कि चोरी के मामले में बच्चे को रिहा कराने के लिए ये हस्ताक्षर आवश्यक हैं।

पुलिस की इन कृत्यों के जवाब में, शीर्ष अदालत को बताया गया कि गुजरात की एक एनजीओ, माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमिटी, ने अपने संयोजक के माध्यम से पुलिस महानिदेशक को एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया है। इस प्रतिनिधित्व में दोषी पुलिस अधिकारियों को तुरंत निलंबित करने, घटना के संबंध में एफआईआर दर्ज करने और अन्य आवश्यक राहतें देने की मांग की गई है, जिस पर राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई की गई है।

नाबालिग लड़के को हिरासत में यातना और यौन हिंसा के शिकार बनाए जाने की जांच के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 2023; यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम; किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015; तथा/या अन्य लागू कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में बोताड़ टाउन पुलिस स्टेशन के अगस्त और सितंबर महीनों के सभी सीसीटीवी फुटेज को तुरंत सुरक्षित करने और उन्हें अदालत के अवलोकन के लिए रिकॉर्ड पर रखने के निर्देश देने की मांग की गई है। इसके साथ ही बोताड़ अस्पताल व अहमदाबाद के जाइडस अस्पताल से नाबालिग के सभी चिकित्सा रिकॉर्ड तत्काल प्रस्तुत करने, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में एक मेडिकल बोर्ड गठित कर नाबालिग को लगी चोटों की प्रकृति एवं गंभीरता पर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में नाबालिग को पर्याप्त परामर्श एवं चिकित्सा सेवाओं के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने तथा नाबालिग और उसके दादा को हिरासत में हुई यातना के लिए उचित और मुआवजा देने की भी प्रार्थना की गई है।

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