प्रभावित शिक्षक पिछले दो दिनों से दिल्ली के रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं।

फोटो साभार : द मूकनायक
पश्चिम बंगाल में ग्रामीण और वंचित छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों समेत स्कूलों के हजारों शिक्षकों को एक विवादास्पद कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के बाद रातों-रात अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा और मजबूरन उन्हें दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत सरकारी स्कूल प्रणाली को "सुनियोजित तरीके से खत्म किए जाने" का शिकार बताए जा रहे ये शिक्षक अब रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं। वे सुप्रीम कोर्ट से न्याय की मांग कर रहे हैं और शिक्षाविदों द्वारा "शिक्षा के निजीकरण की राजनीतिक साजिश" करार दी गई स्थिति को उजागर कर रहे हैं।
"ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और गरीब व निम्न-मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र कहां जाएंगे?"
"हम सुप्रीम कोर्ट से यही सवाल पूछते हैं कि16,000 निर्दोष शिक्षकों की छंटनी को न्याय कैसे कहा जा सकता है?"
"हममें से कई लोग पहले पीढ़ी के शिक्षक हैं, जो पहले पीढ़ी के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं। कई लोगों ने अपना जीवन बेहतर बनाने की उम्मीद में घर बनाने के लिए लोन लिया है। क्या हमें उन नौकरियों का हक़दार नहीं माना जाएगा, जिन्हें हमने कड़ी मेहनत से हासिल किया है? केंद्र और राज्य सरकार के बीच सत्ता संघर्ष में हमें बलि का बकरा क्यों बनाया जा रहा है?"
ये शब्द महबूब मंडल के हैं, जो पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के एक गांव में स्थित डोसा चंदनेश्वर हाई स्कूल में पढ़ाते हैं। महबूब उन 16,000 स्कूल शिक्षकों में हैं जिन्हें बेदाग और ईमानदार कहे जाने के बावजूद उनकी नौकरियों से हटा दिया गया है।
यह छंटनी 22 अप्रैल 2024 को कलकत्ता हाई कोर्ट के एक विवादास्पद फैसले का नतीजा है, जिसमें 2016 की स्कूल सेवा आयोग (SSC) की पूरी भर्ती सूची को रद्द कर दिया गया।
यह फैसला अपने आप में अभूतपूर्व है, क्योंकि यह निर्दोष लोगों की आजीविका पर हमला करता है, जबकि भ्रष्ट प्रशासनिक ढांचा करीब करीब जस का तस बना हुआ है। इस फैसले को न्यायपालिका द्वारा निर्दोष स्कूल शिक्षकों पर अन्यायपूर्ण सख्ती के रूप में देखा जा रहा है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि आजीविका का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा सुरक्षित है। प्रदेश के लोगों का मानना है कि ये सब राज्य और केंद्र सरकार के सत्ता संघर्ष के चलते हो रहा है।
जामिया मिलिया इस्लामिया में फैकल्टी और मशहूर किताब द इंडियन यूनिवर्सिटी : अ क्रिटिकल हिस्ट्री के लेखक देबादित्य भट्टाचार्य ने कहा, "स्कूल शिक्षकों को उस भ्रष्टाचार के लिए दंडित किया जा रहा है जो सत्ता में बैठे लोगों ने किया है। सिस्टम में किसी को परवाह नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप है, जो सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का निर्देश देती है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और झारखंड में हजारों स्कूल बंद हो चुके हैं।"
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक (AUD) फैकल्टी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गोपाल प्रधान ने कहा, "यह एक ऐसी नीति व्यवस्था का सीधा परिणाम है जिसने देश में सार्वजनिक वित्तपोषित शिक्षा के विनाश को निशाना बनाया है। यही रवैया हम अपने विश्वविद्यालयों में भी देखते हैं, जहां सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान बढ़ती महंगाई के समय में भी फंड कटौती का सामना कर रहे हैं।"
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर अतुल सूद ने कहा, “यह कामकाजी लोगों पर एक हमला है। हमें पता है कि सरकारी वित्तपोषित स्कूल ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कामकाजी वर्ग के परिवारों के बच्चों के लिए हैं। सरकारी स्कूलों पर यह हमला उसी नीति का हिस्सा है जो कामकाजी लोगों पर व्यापार मालिकों के नियम थोपती है, जैसे कि लेबर कोड। ये नीतियां कामगारों और आम लोगों के खिलाफ हैं।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की फैकल्टी और DTI की नेता उमा गुप्ता ने कहा, “यही वह जगह है जहां हमने अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी की चर्चा की थी, ये गिरफ्तारी एक फेसबुक पोस्ट के कारण हुई, जिसमें उन्होंने वर्तमान राजनीति पर गहरी शैक्षणिक समझ के साथ लिखा था। शिक्षा पर हमला वास्तविक है। मौजूदा सत्ता शिक्षा-विरोधी है।”
प्रभावित शिक्षक 23 जुलाई से दिल्ली के रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं। दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन के दौरान अपनी ताकत दिखाते हुए कई शिक्षकों को गत प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से रोक दिया। विरोध के साथ-साथ शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले की समीक्षा की भी अपील की है।
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फोटो साभार : द मूकनायक
पश्चिम बंगाल में ग्रामीण और वंचित छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों समेत स्कूलों के हजारों शिक्षकों को एक विवादास्पद कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के बाद रातों-रात अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा और मजबूरन उन्हें दिल्ली की सड़कों पर उतरना पड़ा।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत सरकारी स्कूल प्रणाली को "सुनियोजित तरीके से खत्म किए जाने" का शिकार बताए जा रहे ये शिक्षक अब रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं। वे सुप्रीम कोर्ट से न्याय की मांग कर रहे हैं और शिक्षाविदों द्वारा "शिक्षा के निजीकरण की राजनीतिक साजिश" करार दी गई स्थिति को उजागर कर रहे हैं।
"ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और गरीब व निम्न-मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र कहां जाएंगे?"
"हम सुप्रीम कोर्ट से यही सवाल पूछते हैं कि16,000 निर्दोष शिक्षकों की छंटनी को न्याय कैसे कहा जा सकता है?"
"हममें से कई लोग पहले पीढ़ी के शिक्षक हैं, जो पहले पीढ़ी के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं। कई लोगों ने अपना जीवन बेहतर बनाने की उम्मीद में घर बनाने के लिए लोन लिया है। क्या हमें उन नौकरियों का हक़दार नहीं माना जाएगा, जिन्हें हमने कड़ी मेहनत से हासिल किया है? केंद्र और राज्य सरकार के बीच सत्ता संघर्ष में हमें बलि का बकरा क्यों बनाया जा रहा है?"
ये शब्द महबूब मंडल के हैं, जो पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के एक गांव में स्थित डोसा चंदनेश्वर हाई स्कूल में पढ़ाते हैं। महबूब उन 16,000 स्कूल शिक्षकों में हैं जिन्हें बेदाग और ईमानदार कहे जाने के बावजूद उनकी नौकरियों से हटा दिया गया है।
यह छंटनी 22 अप्रैल 2024 को कलकत्ता हाई कोर्ट के एक विवादास्पद फैसले का नतीजा है, जिसमें 2016 की स्कूल सेवा आयोग (SSC) की पूरी भर्ती सूची को रद्द कर दिया गया।
यह फैसला अपने आप में अभूतपूर्व है, क्योंकि यह निर्दोष लोगों की आजीविका पर हमला करता है, जबकि भ्रष्ट प्रशासनिक ढांचा करीब करीब जस का तस बना हुआ है। इस फैसले को न्यायपालिका द्वारा निर्दोष स्कूल शिक्षकों पर अन्यायपूर्ण सख्ती के रूप में देखा जा रहा है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि आजीविका का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा सुरक्षित है। प्रदेश के लोगों का मानना है कि ये सब राज्य और केंद्र सरकार के सत्ता संघर्ष के चलते हो रहा है।
जामिया मिलिया इस्लामिया में फैकल्टी और मशहूर किताब द इंडियन यूनिवर्सिटी : अ क्रिटिकल हिस्ट्री के लेखक देबादित्य भट्टाचार्य ने कहा, "स्कूल शिक्षकों को उस भ्रष्टाचार के लिए दंडित किया जा रहा है जो सत्ता में बैठे लोगों ने किया है। सिस्टम में किसी को परवाह नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप है, जो सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का निर्देश देती है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और झारखंड में हजारों स्कूल बंद हो चुके हैं।"
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक (AUD) फैकल्टी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गोपाल प्रधान ने कहा, "यह एक ऐसी नीति व्यवस्था का सीधा परिणाम है जिसने देश में सार्वजनिक वित्तपोषित शिक्षा के विनाश को निशाना बनाया है। यही रवैया हम अपने विश्वविद्यालयों में भी देखते हैं, जहां सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान बढ़ती महंगाई के समय में भी फंड कटौती का सामना कर रहे हैं।"
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और जेएनयू के प्रोफेसर अतुल सूद ने कहा, “यह कामकाजी लोगों पर एक हमला है। हमें पता है कि सरकारी वित्तपोषित स्कूल ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कामकाजी वर्ग के परिवारों के बच्चों के लिए हैं। सरकारी स्कूलों पर यह हमला उसी नीति का हिस्सा है जो कामकाजी लोगों पर व्यापार मालिकों के नियम थोपती है, जैसे कि लेबर कोड। ये नीतियां कामगारों और आम लोगों के खिलाफ हैं।”
दिल्ली विश्वविद्यालय की फैकल्टी और DTI की नेता उमा गुप्ता ने कहा, “यही वह जगह है जहां हमने अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी की चर्चा की थी, ये गिरफ्तारी एक फेसबुक पोस्ट के कारण हुई, जिसमें उन्होंने वर्तमान राजनीति पर गहरी शैक्षणिक समझ के साथ लिखा था। शिक्षा पर हमला वास्तविक है। मौजूदा सत्ता शिक्षा-विरोधी है।”
प्रभावित शिक्षक 23 जुलाई से दिल्ली के रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं। दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन के दौरान अपनी ताकत दिखाते हुए कई शिक्षकों को गत प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से रोक दिया। विरोध के साथ-साथ शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले की समीक्षा की भी अपील की है।
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