महाराष्ट्र: रिपोर्टिंग के दौरान पुणे की पत्रकार स्नेहा बर्वे पर जानलेवा हमला, आरोपी अभी भी गिरफ्तार नहीं

Written by sabrang india | Published on: July 16, 2025
इसी महीने की 4 तारीख को पुणे के पास एक कस्बे में नदी के किनारे अवैध निर्माण की रिपोर्टिंग कर रहीं पत्रकार स्नेहा बर्वे पर जानलेवा हमला किया गया। आरोपी जमीन मालिक ने उन्हें लाठी से उस वक्त तक पीटा जब तक वह बेहोश नहीं हो गईं।


फोटो साभार : द वायर

4 जुलाई 2025 को पुणे के पास एक कस्बे में नदी किनारे हो रही अवैध निर्माण गतिविधियों की रिपोर्टिंग कर रहीं पत्रकार स्नेहा बर्वे पर दिनदहाड़े एक क्रूरतापूर्ण हमला किया गया। हमलावरों ने उन्हें डंडे से बेरहमी से पीटा, जब तक कि वे बेहोश नहीं हो गईं।

स्थानीय स्तर पर राजनीतिक रूप से प्रभावशाली माने जाने वाले हमले के मुख्य आरोपी पांडुरंग सखाराम मोर्डे अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।

ज्ञात हो कि इस दिल दहला देने वाले हमले का वीडियो समर्थ भारत अखबार और एसबीपी यूट्यूब चैनल की संस्थापक-संपादक पत्रकार स्नेहा बर्वे द्वारा महाराष्ट्र के पुणे जिले में मंचर कस्बे के नजदीक निगोथवाड़ी गांव में नदी किनारे अवैध निर्माण गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करते समय रिकॉर्ड हुआ। वीडियो में देखा जा सकता है कि जब वे कैमरे के सामने बोल रही थीं, तभी आरोपी पांडुरंग मोर्डे अचानक लाठी उठाकर उन पर हमला कर देता है। बर्वे बार-बार मदद के लिए चीखती-चिल्लाती हैं, लेकिन इसके बावजूद हमला बेरहमी से जारी रहता है।

पत्रकार बर्वे को उस रॉड से तब तक पीटा गया, जब तक वह बेहोश नहीं हो गईं। जब मोर्डे के सहयोगियों को पता चला कि हमले की वीडियोग्राफी की जा रही है तो इस हमले की रिकॉर्डिंग कर रहे कैमरामैन एजाज शेख के साथ भी मारपीट की गई। उन्हें बचाने आए राहगीरों को भी बुरी तरह पीटा गया, जिसमें एक का हाथ टूट गया, जबकि दूसरे की नाक टूट गई।

हमले के बाद बर्वे को तत्काल पास के एक स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से उन्हें पिंपरी चिंचवाड़ स्थित डीवाई पाटिल अस्पताल में रेफर किया गया। उनके सिर और पीठ पर गंभीर चोटें आई हैं और सिर के सीटी स्कैन में अंदरूनी चोटों के साथ सूजन भी पाई गई है।

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फ्री स्पीच कलेक्टिव से बातचीत में बर्वे ने कहा कि जब तक उन्होंने हमले का वीडियो नहीं देखा, तब तक वे खुद उस हमले की भयावहता को पूरी तरह समझ भी नहीं पाई थीं।

बर्वे ने बताया कि आरोप यह हैं कि मोर्डे ने नदी के बहाव को रोकने के लिए एक दीवार खड़ी कर दी थी, जिससे नजदीकी सब्जी मंडी में पानी भरने का खतरा पैदा हो गया था।

बर्वे ने कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझ पर इस तरह का हमला होगा।" उन्होंने आगे कहा, "मैं इससे पहले भी घटनास्थल पर गई थी, तस्वीरें ली थीं और अपनी रिपोर्ट की स्क्रिप्ट तैयार की थी। मैं उनका पक्ष भी लेना चाहती थी, लेकिन उन्होंने कैमरे पर बोलने से इनकार कर दिया और अचानक मुझ पर हमला कर दिया।"

कौन हैं पांडुरंग मोर्डे ?

पांडुरंग मोर्डे एक स्थानीय व्यापारी हैं, जिनके राजनीतिक संबंध शिवसेना के शिंदे गुट और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अजित पवार गुट दोनों से ही मज़बूत बताए जाते हैं।

पांडुरंग मोर्डे का आपराधिक रिकॉर्ड भी रहा है। उनके खिलाफ 2003 और 2007 में दर्ज दो अलग-अलग मामलों में हत्या और हत्या के प्रयास के गंभीर आरोप लगाए गए थे। इनमें से एक मामले में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया है, जबकि दूसरा मामला अब भी न्यायालय में लंबित है। फिलहाल मोर्डे ज़मानत पर रिहा हैं।

गौरतलब है कि स्नेहा बर्वे ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत आठ साल पहले की थी। उन्होंने अपने दम पर एक समाचार प्रकाशन और यूट्यूब चैनल शुरू करने का फैसला किया। बर्वे ने कहा, 'मैं लगातार कड़ी मेहनत कर रही हूं और अब तक कई घोटालों का पर्दाफाश किया है। इस क्षेत्र में इस तरह का काम कोई और नहीं कर रहा।

स्नेहा बर्वे ऐसे विवादों से अनजान नहीं हैं। पिछले वर्ष जुलाई में उन्होंने अंबेगांव पुलिस थाने में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने शिरूर के पूर्व सांसद शिवाजीराव अधलराव पाटिल पर धमकी देने का आरोप लगाया था। पाटिल का कहना था कि बर्वे की रिपोर्टिंग के चलते उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

इस बातचीत की एक वीडियो रिकॉर्डिंग स्थानीय टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रसारित की गई थी।

ताजा हमले को लेकर स्नेहा बर्वे ने कहा, 'मैं किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागी, लेकिन मैं चुप नहीं बैठूंगी। मुझ पर हुआ यह हमला किसी भी महिला, किसी भी पत्रकार पर हो सकता है।’

स्नेहा बर्वे पर हुआ यह हमला देश में प्रेस की आजादी की नाजुक स्थिति को उजागर करता है विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पत्रकारों को स्थानीय सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करने की कीमत हिंसक प्रतिशोध के रूप में चुकानी पड़ती है।

पिछले वर्ष रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2014 से भारत में मारे गए 28 पत्रकारों में से कम से कम 13 ऐसे थे जो पर्यावरणीय मुद्दों पर काम कर रहे थे, जिनमें जमीन पर अवैध कब्जा, औद्योगिक खनन और भ्रष्टाचार प्रमुख थे।

यूनेस्को की 'प्रेस एंड प्लैनेट इन डेंजर, 2024' रिपोर्ट में 2009 से 2023 तक पर्यावरणीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाले कम से कम 749 पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को हत्या, शारीरिक हिंसा, हिरासत, गिरफ्तारी, ऑनलाइन उत्पीड़न या कानूनी हमलों का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, 2019 से 2023 के बीच हमलों की संख्या 300 से ज्यादा रही, जो पिछले पांच वर्षों (2014-2018) की तुलना में 42% अधिक है।

पिछले 15 वर्षों में कम से कम 44 पत्रकारों ने पर्यावरणीय मुद्दों की पड़ताल की है, लेकिन इनमें से केवल 5 मामलों में ही दोषसिद्धि हुई है, यानी करीब 90% मामलों में कोई न्याय नहीं हो पाया।

बर्वे मामले में भी स्थानीय पत्रकार, जो हमले के विरोध में प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं, ने आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस ने तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं की और पांडुरंग मोर्डे की गिरफ्तारी में देरी किया।

अखबार प्रकाशित करने वाला और यूट्यूब चैनल प्रसारित करने वाला समर्थ भारत परिवार के निदेशक डॉ. समीर राजे ने आरोप लगाया कि पुलिस ने मामले की जांच को बहुत हल्के में लिया। उन्होंने बताया कि स्नेहा बर्वे उस समय एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में नहीं थीं, लेकिन जब होश में आईं तो उन्होंने अपनी शिकायत पुलिस में दर्ज कराई। पुलिस का कहना है कि हमले में घायल अन्य लोगों ने पहले ही शिकायत दर्ज कराई थी।

हमले की गंभीरता के बावजूद, शिकायतकर्ता सुधाकर बाबूराव काले द्वारा दर्ज एफआईआर में केवल गंभीर चोट, धमकी, गैरकानूनी जमावड़ा और धमकी के आरोप शामिल हैं। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धाराएं 118(2), 115(2), 189(2), 190, 191(2) और 351(2) का उल्लेख है, जिनके तहत अधिकतम सजा एक से दो वर्ष तक हो सकती है।

इस मामले में पुलिस अधीक्षक संदीप सिंह गिल ने एफएससी को बताया कि पांडुरंग मोर्डे को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि मोर्डे को फ्रैक्चर हुआ है और वे एक स्थानीय अस्पताल में भर्ती हैं।

पुलिस अधीक्षक संदीप सिंह गिल ने कहा, ‘जैसे ही पांडुरंग मोर्डे को अस्पताल से छुट्टी मिलेगी, हम उन्हें गिरफ्तार कर लेंगे। उनके परिवार के अन्य सदस्य, जिनमें उनके बेटे प्रशांत और नीलेश मोर्डे शामिल हैं, को पहले गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

स्थानीय पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, मोर्डे नदी के किनारे एक दीवार का निर्माण कर रहे थे, जिसे लेकर स्थानीय लोगों को शक था कि यह अवैध है। हालांकि, जांच के दौरान यह स्पष्ट होगा कि यह निर्माण सार्वजनिक भूमि पर था या नहीं।

पुलिस अधीक्षक गिल ने बताया, ‘मुख्य आरोपी ने पांच भाइयों की जमीन का एक हिस्सा खरीदा था, जिसमें से चार भाइयों ने अपनी जमीन बेच दी, जबकि एक भाई ने नहीं बेची। संभव है कि उनके रिश्तेदारों ने पत्रकार को बताया हो कि मोर्डे सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर रहे हैं।’

उन्होंने कहा कि पुलिस मामले की पूरी जांच करेगी और वीडियो देखने के तुरंत बाद एक वरिष्ठ अधिकारी को घटनास्थल पर भेजा गया था।

गिल ने कहा, ‘अगर उन्हें लगता था कि वीडियो से उनकी छवि को नुकसान हो रहा है, तो वे पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते थे या कानूनी रास्ते अपना सकते थे। हिंसा का सहारा लेना उनका अधिकार नहीं है, और किसी पर हमला करने का कोई औचित्य नहीं है।

गिल ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘अपराध दर्ज करना जांच अधिकारी का अधिकार है, लेकिन कभी-कभी तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है। स्नेहा चाहती थीं कि उनकी शिकायत पर एफआईआर दर्ज की जाए, लेकिन एक ही घटना के लिए दो एफआईआर दर्ज नहीं की जातीं और उस समय वह बयान देने की स्थिति में नहीं थीं। हमने घायल व्यक्ति का बयान दर्ज किया है और उनसे विस्तृत बयान लेने के लिए कहा है। जरूरत पड़ने पर हम धाराएं बढ़ाने पर भी विचार करेंगे। मैं व्यक्तिगत रूप से इस मामले की जांच करूंगा।’

नोट : यह लेख मूलतः फ्री स्पीच कलेक्टिव पर प्रकाशित हुआ था

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