ये बयान 17 जून को सांगली (कुपवाड) में आयोजित मशाल रैली के दौरान दी गई थीं।

फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
पुणे क्रिश्चियन फोरम के सदस्यों ने ईसाई समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को पुणे जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने विधायक गोपीचंद पडलकर द्वारा कथित तौर पर की गई ईसाई धर्म विरोधी टिप्पणियों की कड़ी निंदा की।
प्रेस नोट के अनुसार ये कथित टिप्पणियां 17 जून को सांगली (कुपवाड) में आयोजित एक मशाल रैली के दौरान की गई थीं। पडलकर पर आरोप है कि उन्होंने ईसाई धर्मगुरुओं को निशाना बनाते हुए भड़काऊ बयान और उनके खिलाफ हिंसक हमले करने वालों को 3 लाख से 11 लाख रूपये तक के इनाम की घोषणा की। फोरम ने इन टिप्पणियों को बेहद आहत करने वाला और गंभीर चिंता का विषय बताया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विरोध प्रदर्शनकारियों ने पडलकर को तत्काल उनके विधायक पद से अयोग्य घोषित करने की मांग की और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की। प्रेस नोट में आगे कहा गया कि उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyaya Sanhita) की संबंधित धाराओं के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए, जिनमें धारा 192 (हिंसा और दंगे के लिए उकसाना), धारा 198 (किसी लोक सेवक द्वारा क़ानून का अपमान), धारा 111 (अपराध में उकसावे का सहयोग), और धारा 302 (हत्या के लिए प्रोत्साहन) शामिल हैं।
फोरम ने किसी भी तरह के नफरती बयान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की।
ज्ञात हो कि यह कोई पहला मौका नहीं जब अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए हों या उनके खिलाफ हिंसा न हुई हो।
बता दें कि इसी साल मई महीने में क्रिश्चियन समुदाय के खिलाफ हिंसा को लेकर एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया था। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने कहा था कि उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों से ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के संबंध में 245 कॉल प्राप्त हुए थे। यह डेटा फोरम की हेल्पलाइन सेवा के जरिए तीन महीनों में इकट्ठा किया गया था।
बयान में कहा गया, "यूसीएफ हेल्पलाइन नंबर 1-800-208-4545 के जरिए बताया गया कि भारत में ईसाइयों को रोजाना औसतन दो हिंसा की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। साल 2014 के बाद से इसमें तेजी आई है।"
यूसीएफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ईसाई आदिवासी और महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा हिंसा का शिकार हुईं।
जहां 2014 में 127 घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं तब से इसमें भारी वृद्धि देखी गई है। यूसीएफ के अनुसार, 2015 में 142, 2016 में 226, 2017 में 248, 2018 में 292, 2019 में 328, 2020 में 279, 2021 में 505, 2022 में 601, 2023 में 734 और 2024 में 834 घटनाएं दर्ज की गईं।
यूसीएफ ने एक बयान में कहा, "2025 में जनवरी से अप्रैल के बीच भारत के 19 राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 245 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जनवरी में 55, फरवरी में 65, मार्च में 76 और अप्रैल में 49 घटनाएं शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा—50 घटनाओं—के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद छत्तीसगढ़ में 46 घटनाएं हुई हैं।"
भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं का सामना करने वाले अन्य 17 राज्य हैं:
आंध्र प्रदेश (14), बिहार (16), दिल्ली (1), गुजरात (8), हरियाणा (12), हिमाचल प्रदेश (3), झारखंड (17), कर्नाटक (22), मध्य प्रदेश (14), महाराष्ट्र (6), ओडिशा (2), पंजाब (6), राजस्थान (18), तमिलनाडु (1), तेलंगाना (1), उत्तराखंड (2), और पश्चिम बंगाल (11)।
इस डेटा में शारीरिक हिंसा, हत्या, यौन हिंसा, धमकी और डराना, सामाजिक बहिष्कार, धार्मिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना, धार्मिक प्रतीकों का अपमान और प्रार्थना सेवाओं में रुकावट शामिल हैं।
ज्ञात हो कि इस साल जनवरी में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम द्वारा जारी आंकड़ों में कहा गया था कि 2024 में ऐसी 834 घटनाएं हुईं, जो 2023 की 734 घटनाओं से 100 अधिक थीं।
इन घटनाओं में चर्चों या प्रार्थना सभाओं पर हमले, धर्म का पालन करने वालों को परेशान करना, बहिष्कृत करना, सामुदायिक संसाधनों तक पहुंच सीमित करना, और झूठे आरोप व आपराधिक मामल-विशेष रूप से 'जबरन धर्मांतरण' से संबंधित-शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी शासित कई राज्यों में लागू विवादास्पद, कठोर धर्मांतरण-विरोधी कानूनों ने हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं और राज्य को अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई के टूल के रूप में काम करने में मदद दी।
2024 में सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश (209) में दर्ज की गईं, इसके बाद छत्तीसगढ़ (165) का स्थान रहा। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनमें से कई मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होती। कई बार, पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद एफआईआर नहीं होती। अन्य मामलों में, पीड़ित पुलिस से संपर्क करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें आशंका होती है कि पुलिस अपराधियों का पक्ष लेते हुए मामले को पलट देगी और पीड़ितों के खिलाफ ही झूठे आरोप दर्ज कर देगी।
यूसीएफ के राष्ट्रीय संयोजक ए.सी. माइकल ने 2023 में द वायर को बताया था, "ज्यादातर मामलों में हिंसा के पीड़ितों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की जाती है, जबकि अपराधियों को बिना किसी सजा के छोड़ दिया जाता है।" उन्होंने आगे कहा, "पुलिस आमतौर पर पीड़ितों को शांत करने की कोशिश करती है और कहती है कि अगर आप मामला दर्ज करते हैं तो हमलावर और अधिक आक्रामक हो सकते हैं और आपकी ज़िंदगी ज्यादा खतरे में पड़ सकती है।"
यूसीएफ ने पाया कि इन हमलों का मुख्य निशाना हाशिए पर रहने वाले समुदाय होते हैं। दिसंबर 2024 में संगठन द्वारा दर्ज की गई 73 घटनाओं में से 25 मामलों में पीड़ित अनुसूचित जनजाति से थे और 14 में दलित समुदाय से। इनमें से नौ घटनाओं में महिलाएं पीड़ित थीं।
31 दिसंबर 2024 को, 400 से अधिक वरिष्ठ ईसाई नेताओं और 30 चर्च समूहों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने की अपील की थी। उनकी यह अपील क्रिसमस के समय हुई कई घटनाओं के बाद की गई थी। यह पहली बार नहीं था जब ऐसी अपील की गई हो। विपक्षी नेताओं ने भी बढ़ती हिंसा को लेकर मामला उठाया था।
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भारत में पिछले 3 महीनों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 245 घटनाएं: क्रिश्चियन कलेक्टिव
फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
पुणे क्रिश्चियन फोरम के सदस्यों ने ईसाई समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को पुणे जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने विधायक गोपीचंद पडलकर द्वारा कथित तौर पर की गई ईसाई धर्म विरोधी टिप्पणियों की कड़ी निंदा की।
प्रेस नोट के अनुसार ये कथित टिप्पणियां 17 जून को सांगली (कुपवाड) में आयोजित एक मशाल रैली के दौरान की गई थीं। पडलकर पर आरोप है कि उन्होंने ईसाई धर्मगुरुओं को निशाना बनाते हुए भड़काऊ बयान और उनके खिलाफ हिंसक हमले करने वालों को 3 लाख से 11 लाख रूपये तक के इनाम की घोषणा की। फोरम ने इन टिप्पणियों को बेहद आहत करने वाला और गंभीर चिंता का विषय बताया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विरोध प्रदर्शनकारियों ने पडलकर को तत्काल उनके विधायक पद से अयोग्य घोषित करने की मांग की और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की। प्रेस नोट में आगे कहा गया कि उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyaya Sanhita) की संबंधित धाराओं के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए, जिनमें धारा 192 (हिंसा और दंगे के लिए उकसाना), धारा 198 (किसी लोक सेवक द्वारा क़ानून का अपमान), धारा 111 (अपराध में उकसावे का सहयोग), और धारा 302 (हत्या के लिए प्रोत्साहन) शामिल हैं।
फोरम ने किसी भी तरह के नफरती बयान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की।
ज्ञात हो कि यह कोई पहला मौका नहीं जब अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान दिए गए हों या उनके खिलाफ हिंसा न हुई हो।
बता दें कि इसी साल मई महीने में क्रिश्चियन समुदाय के खिलाफ हिंसा को लेकर एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया था। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने कहा था कि उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों से ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के संबंध में 245 कॉल प्राप्त हुए थे। यह डेटा फोरम की हेल्पलाइन सेवा के जरिए तीन महीनों में इकट्ठा किया गया था।
बयान में कहा गया, "यूसीएफ हेल्पलाइन नंबर 1-800-208-4545 के जरिए बताया गया कि भारत में ईसाइयों को रोजाना औसतन दो हिंसा की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। साल 2014 के बाद से इसमें तेजी आई है।"
यूसीएफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ईसाई आदिवासी और महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा हिंसा का शिकार हुईं।
जहां 2014 में 127 घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं तब से इसमें भारी वृद्धि देखी गई है। यूसीएफ के अनुसार, 2015 में 142, 2016 में 226, 2017 में 248, 2018 में 292, 2019 में 328, 2020 में 279, 2021 में 505, 2022 में 601, 2023 में 734 और 2024 में 834 घटनाएं दर्ज की गईं।
यूसीएफ ने एक बयान में कहा, "2025 में जनवरी से अप्रैल के बीच भारत के 19 राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 245 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जनवरी में 55, फरवरी में 65, मार्च में 76 और अप्रैल में 49 घटनाएं शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा—50 घटनाओं—के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद छत्तीसगढ़ में 46 घटनाएं हुई हैं।"
भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं का सामना करने वाले अन्य 17 राज्य हैं:
आंध्र प्रदेश (14), बिहार (16), दिल्ली (1), गुजरात (8), हरियाणा (12), हिमाचल प्रदेश (3), झारखंड (17), कर्नाटक (22), मध्य प्रदेश (14), महाराष्ट्र (6), ओडिशा (2), पंजाब (6), राजस्थान (18), तमिलनाडु (1), तेलंगाना (1), उत्तराखंड (2), और पश्चिम बंगाल (11)।
इस डेटा में शारीरिक हिंसा, हत्या, यौन हिंसा, धमकी और डराना, सामाजिक बहिष्कार, धार्मिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना, धार्मिक प्रतीकों का अपमान और प्रार्थना सेवाओं में रुकावट शामिल हैं।
ज्ञात हो कि इस साल जनवरी में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम द्वारा जारी आंकड़ों में कहा गया था कि 2024 में ऐसी 834 घटनाएं हुईं, जो 2023 की 734 घटनाओं से 100 अधिक थीं।
इन घटनाओं में चर्चों या प्रार्थना सभाओं पर हमले, धर्म का पालन करने वालों को परेशान करना, बहिष्कृत करना, सामुदायिक संसाधनों तक पहुंच सीमित करना, और झूठे आरोप व आपराधिक मामल-विशेष रूप से 'जबरन धर्मांतरण' से संबंधित-शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी शासित कई राज्यों में लागू विवादास्पद, कठोर धर्मांतरण-विरोधी कानूनों ने हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं और राज्य को अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई के टूल के रूप में काम करने में मदद दी।
2024 में सबसे ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश (209) में दर्ज की गईं, इसके बाद छत्तीसगढ़ (165) का स्थान रहा। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनमें से कई मामलों में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं होती। कई बार, पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद एफआईआर नहीं होती। अन्य मामलों में, पीड़ित पुलिस से संपर्क करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें आशंका होती है कि पुलिस अपराधियों का पक्ष लेते हुए मामले को पलट देगी और पीड़ितों के खिलाफ ही झूठे आरोप दर्ज कर देगी।
यूसीएफ के राष्ट्रीय संयोजक ए.सी. माइकल ने 2023 में द वायर को बताया था, "ज्यादातर मामलों में हिंसा के पीड़ितों के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज की जाती है, जबकि अपराधियों को बिना किसी सजा के छोड़ दिया जाता है।" उन्होंने आगे कहा, "पुलिस आमतौर पर पीड़ितों को शांत करने की कोशिश करती है और कहती है कि अगर आप मामला दर्ज करते हैं तो हमलावर और अधिक आक्रामक हो सकते हैं और आपकी ज़िंदगी ज्यादा खतरे में पड़ सकती है।"
यूसीएफ ने पाया कि इन हमलों का मुख्य निशाना हाशिए पर रहने वाले समुदाय होते हैं। दिसंबर 2024 में संगठन द्वारा दर्ज की गई 73 घटनाओं में से 25 मामलों में पीड़ित अनुसूचित जनजाति से थे और 14 में दलित समुदाय से। इनमें से नौ घटनाओं में महिलाएं पीड़ित थीं।
31 दिसंबर 2024 को, 400 से अधिक वरिष्ठ ईसाई नेताओं और 30 चर्च समूहों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समुदाय के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने की अपील की थी। उनकी यह अपील क्रिसमस के समय हुई कई घटनाओं के बाद की गई थी। यह पहली बार नहीं था जब ऐसी अपील की गई हो। विपक्षी नेताओं ने भी बढ़ती हिंसा को लेकर मामला उठाया था।
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