दलित पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला आत्महत्या मामला फिर से खुलेगा: तेलंगाना सरकार

Written by sabrang india | Published on: July 12, 2025
तेलंगाना के उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने कहा, “हमने पहले ही हाई कोर्ट में एक नोट दायर किया है, जिसमें अदालत से इस मामले को दोबारा खोलने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। इस मामले में जो भी लोग शामिल हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।”


फोटो साभार : टीओआई

तेलंगाना सरकार ने रोहित वेमुला आत्महत्या मामले को दोबारा खोलने के लिए एक कानूनी नोट दाखिल किया है। यह जानकारी राज्य के उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने दी। उन्होंने कहा, “हमने पहले ही हाई कोर्ट में एक नोट दायर किया है, जिसमें अदालत से इस मामले को फिर से खोलने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। इस मामले में जो भी शामिल हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।”

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विक्रमार्क यह बात नई दिल्ली स्थित ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) कार्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कह रहे थे। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस रामचंदर राव को तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के संबंध में आयोजित की गई थी। रामचंदर राव, जो उस समय विधान परिषद (MLC) के सदस्य थे, रोहित वेमुला आत्महत्या मामले में नामित आरोपियों में से एक हैं।

विक्रमार्क ने आरोप लगाते हुए कहा, “(यह नियुक्ति) दिखाती है कि जो भी आदिवासियों और दलितों के खिलाफ है, उसे बीजेपी इनाम देती है।” उन्होंने कहा, “बीजेपी को देश से माफी मांगनी चाहिए। क्या दलितों को निशाना बनाना ही बीजेपी में अध्यक्ष बनने की योग्यता है?”

दलित छात्र रोहित वेमुला हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर थे। वर्ष 2016 में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी, जिसके बाद देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में जातीय भेदभाव के खिलाफ जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए थे।

रोहित वेमुला की मृत्यु के तुरंत बाद आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत भी आरोप लगाए गए थे। यह मामला तत्कालीन कुलपति अप्पाराव पोडिले, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय, तत्कालीन विधान परिषद सदस्य एन. रामचंदर राव और विश्वविद्यालय के छात्रों — कृष्णा चैतन्य, एन. सुशील कुमार और एन. दिवाकर — के खिलाफ दर्ज किया गया था।

हालांकि, आठ साल बाद, मई 2024 में तेलंगाना पुलिस ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी, जिसमें सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया गया। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि रोहित वेमुला दलित नहीं थे, बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित थे।

उपमुख्यमंत्री मल्लू भट्टी विक्रमार्क ने यह भी कहा कि राहुल गांधी के आह्वान पर तेलंगाना सरकार शैक्षणिक संस्थानों में भेदभाव रोकने के लिए 'रोहित वेमुला एक्ट' लागू करेगी। विक्रमार्क ने कहा,
“हम इस पर काम कर रहे हैं और इसे कानूनी विभाग को भेज दिया गया है ताकि वह इसकी अच्छी तरह से जांच कर सके और भविष्य में किसी भी प्रकार की (कानूनी) चुनौती का सामना न करना पड़े।”

रोहित वेमुला की आत्महत्या को संस्थागत हत्या (Institutional Murder) करार देते हुए उपमुख्यमंत्री विक्रमार्क ने कहा, “एक ऐसा युवा जो पीएचडी के स्तर तक पहुंच चुका था... एक ऐसा युवा, जिसके सपनों में बेहतर जीवन जीने और नेतृत्व करने की आकांक्षा थी, वह इतना टूट गया कि उसे अपनी जान देने का फैसला करना पड़ा। जरा सोचिए, आखिर ऐसी कौन-सी चीजें हैं जो इन युवाओं को इतने कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर रही हैं? क्या यह एक संस्थागत हत्या नहीं है?”

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, विक्रमार्क ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ASA) के सक्रिय सदस्य थे। वे और उनके कुछ साथी जो भेदभाव झेल रहे थे, उसके खिलाफ दलितों की आत्मसम्मान और सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे थे और विश्वविद्यालय का ध्यान इस ओर खींचने की कोशिश कर रहे थे।”

उन्होंने आगे आरोप लगाया, “जब रोहित इन मुद्दों के लिए संघर्ष कर रहे थे, उसी दौरान बीजेपी की छात्र शाखा के नेता सुशील कुमार ने उनके खिलाफ एक झूठा मामला दर्ज कराया और विश्वविद्यालय प्रशासन पर दबाव डाला कि इन छात्रों पर केस किया जाए, उन्हें निष्कासित किया जाए और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाए। और अंततः यही घटनाएं रोहित की मौत का कारण बनीं।”

विक्रमार्क ने आगे कहा, “उस समय बीजेपी के एमएलसी रामचंदर राव अपने ‘गुंडों’ के साथ आए, धरना दिया, कुलपति से मिले और प्रशासन पर ASA के छात्रों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव डाला और एक झूठा केस भी दर्ज कराया। इसी तरह के दबावों ने अंततः रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया।”

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