‘डिजिटल एक्सेस’ मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है : सुप्रीम कोर्ट

Written by sabrang india | Published on: May 2, 2025
डिजिटल एक्सेस को सुप्रीम कोर्ट ने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा बताया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि डिजिटल बदलाव समावेशी हों और दृष्टिहीनों सहित वंचित समुदायों के लिए ब्रेल, वॉइस जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।



सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 30 अप्रैल को अपने फैसले में कहा कि डिजिटल एक्सेस का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के मूल अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे गांवों की आबादी, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, भाषाई अल्पसंख्यकों और दिव्यांग लोगों को डिजिटल दुनिया से जोड़ने और डिजिटल डिवाइड को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से दृष्टिहीन और श्रवण बाधित लोगों के लिए मौजूदा केवाईसी प्रक्रिया को संशोधित करने और ब्रेल व वॉइस-इनेबल्ड सेवाओं जैसे वैकल्पिक फॉर्मेट विकसित करने हेतु विस्तृत दिशानिर्देश दिए, ताकि सभी के लिए डिजिटल सेवाएं सुलभ बन सकें।

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान समय में शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक अवसरों जैसी आवश्यक सेवाओं की पहुँच मुख्य रूप से डिजिटल माध्यमों से होती है। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 21 में शामिल जीवन के अधिकार की व्याख्या करना आवश्यक हो गया है, ताकि डिजिटल युग की वास्तविकताओं को उसमें समाहित किया जा सके।

डिजिटल असमानता न सिर्फ शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों, वरिष्ठ नागरिकों, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और भाषाई अल्पसंख्यकों को भी व्यवस्था से बाहर कर देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तविक समानता की भावना तभी साकार हो सकती है जब डिजिटल परिवर्तन समावेशी और न्यायसंगत हो।

जस्टिस आर. महादेवन (जिन्होंने यह निर्णय लिखा) और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह फैसला दो एसिड अटैक पीड़ित महिलाओं की याचिका पर सुनाया, जो चेहरे की विकृति और पूरी तरह से दृष्टिहीन होने की स्थिति से जूझ रही हैं।

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उन्हें डिजिटल केवाईसी/ई-केवाईसी प्रक्रिया में कठिनाई हो रही है, क्योंकि वे ‘लाइव फोटो’ के दौरान आंखों से जुड़ी शर्त पूरी नहीं कर सकतीं। इसी कारण वे न तो बैंक खाता खोल पा रही हैं और न ही सिम कार्ड खरीदने में सक्षम हैं।

कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सरकारी एजेंसियों और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) को निर्देश दिया कि वे ‘लाइवनेस’ या ‘लाइव फोटो’ की प्रक्रिया के लिए समावेशी और वैकल्पिक उपायों को अपनाने हेतु दिशा-निर्देश जारी करें। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पेपर-आधारित केवाईसी प्रक्रिया को भी जारी रखा जाए।

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिजिटल डिवाइड को भरना अब केवल नीतिगत मसला नहीं रह गया है, बल्कि यह एक संवैधानिक आवश्यकता बन गया है, जिससे हर नागरिक को गरिमा, स्वायत्तता और सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इसलिए डिजिटल पहुंच का अधिकार जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा बन जाता है। इसका मतलब यह है कि सरकार को ऐसे समावेशी डिजिटल ढांचे तैयार करने होंगे जो केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित न हों, बल्कि वंचित और हाशिए पर खड़े समुदायों की भी पूरी भागीदारी सुनिश्चित करें।

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