बीते दो दशकों से यहां रह रहे कई मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। गांव के कई हिंदू निवासियों ने इस बहिष्कार को यह कहकर जायज़ ठहराने की कोशिश की कि ये लोग ‘स्थानीय मुसलमान नहीं’ हैं।

साभार : एक्सचेंज फॉर मीडिया
पीयूसीएल और एपीसीआर की एक टीम ने पिछले सप्ताह पुणे के दो गांवों का दौरा किया, जहां मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की खबरें आई थीं। टीम ने वहां भय और दहशत का माहौल, बंद पड़ी दुकानें, बिखरी ज़िंदगियां और उजड़े हुए परिवार देखे।
महाराष्ट्र के पुणे जिले की मुलशी तालुका स्थित पौड़ और पिरंगुट गांवों में मुस्लिम समुदाय को धमकियों और सामाजिक व आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बीते दो दशकों से यहां रह रहे कई मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। गांव के कई हिंदू निवासियों ने इस बहिष्कार को यह कहकर जायज़ ठहराने की कोशिश की कि ये लोग ‘स्थानीय मुसलमान नहीं’ हैं।
2 जुलाई को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की संयुक्त टीम ने दोनों गांवों में जाकर ज़मीनी हकीकत जानने की कोशिश की। टीम को वहां खौफ का माहौल, बंद दुकानें, उजड़े परिवार और बिखरती ज़िंदगियां देखने को मिलीं।
पीयूसीएल और एपीसीआर की यह जांच 2 मई को पौड़ गांव में अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति के कथित अपमान और 5 मई को भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा निकाली गई रैली के बाद शुरू हुई। इस रैली के दौरान ‘ग़ैर-स्थानीय मुसलमानों’ के बहिष्कार की अपील करते हुए अवैध पोस्टर लगाए गए थे। रैली में मुस्लिम समुदाय को खुलेआम धमकियां भी दी गईं।
पीयूसीएल के अनुसार, इन पोस्टरों और लगातार मिल रही धमकियों के चलते गांव में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया। संगठन ने 4 जुलाई को पुणे ग्रामीण पुलिस अधीक्षक संदीप सिंह गिल को एक ज्ञापन भी सौंपा। हालांकि पोस्टर हटा दिए गए हैं, लेकिन उनका असर अब भी देखा जा सकता है—मुस्लिम समुदाय की बेकरी, कबाड़ी, नाई और चिकन सेंटर जैसी कई दुकानें अभी भी बंद हैं।
पौड़ स्थित रोशन बेकरी के मालिक ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया, “हमारी बेकरी पिछले 40 वर्षों से चल रही है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि मेरे पिता उत्तर प्रदेश से हैं, हमें ‘बाहरी’ कहकर निशाना बनाया गया। हमें धमकी दी गई कि अगर हमने दुकान दोबारा खोली तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पुलिस में कई बार शिकायत करने के बावजूद हमें कोई सुरक्षा नहीं मिली।”
रोशन बेकरी के अलावा, न्यू संगम और न्यू भारत बेकरी भी बंद कर दी गई हैं, जिससे लगभग 400 दिहाड़ी मज़दूरों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। भारत बेकरी के मालिक ने बताया, “हमारी दुकान से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों को रोज़गार मिलता था। हमारे यहां काम करने वाले पांच हिंदू विक्रेता, जो घर-घर जाकर ब्रेड बेचते थे, अब बेरोज़गार हो गए हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि हमारी आजीविका छीनने की साज़िश है।”
जांच टीम ने पौड़ थाने के इंस्पेक्टर संतोष गिरिगोसावी से भी मुलाक़ात की, जिन्होंने बताया कि एसपी के आदेश पर विवादित पोस्टर हटा दिए गए हैं। लेकिन सिर्फ पोस्टर हटाने से समस्या का समाधान नहीं हुआ है।
जानकारी के अनुसार, कई हिंदुत्व संगठनों से जुड़े लोगों ने मुस्लिम दुकानदारों को दुकानें किराए पर न देने और इलाका छोड़ने के लिए धमकाया है।
हिंदू राष्ट्र सेना से जुड़े धनंजय देसाई, जो 2014 में आईटी प्रोफेशनल मोहसिन शेख की हत्या के मामले में आरोपी थे लेकिन साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए, एक बार फिर हालिया धमकियों के पीछे मुख्य चेहरा बताए जा रहे हैं। पुलिस ने पुष्टि की है कि देसाई के खिलाफ एक फार्महाउस पर अवैध कब्जे का मामला दर्ज है और वह इस समय फ़रार हैं।
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, जून की शुरुआत में एक कबाड़ी दुकानदार की दुकान में आग लगा दी गई, जिससे लगभग 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ। पीड़ित दुकानदार ने बताया, “मैंने यहीं शादी की, यहीं अपना घर बसाया, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि मुझे अपने परिवार को कामशेत (पुणे जिले का एक गांव) भेजना पड़ा। मैंने शिकायत दर्ज कराई है और मुआवज़े की मांग भी की है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।”
नफरत फैलाने का यह अभियान अब धार्मिक स्थलों तक पहुंच गया है। दो मस्जिदों के बाहर ऐसे पोस्टर चिपकाए गए, जिनमें नमाज़ अदा करने को केवल ‘स्थानीय मुसलमानों’ तक सीमित बताया गया था। इसके चलते पास के कोलवन गांव से आने वाले लोग अब मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से डरने लगे हैं। एक स्थानीय मुसलमान ने कहा, “भले ही पोस्टर हटा लिए गए हों, लेकिन डर आज भी कायम है।”
स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि कई मुस्लिम परिवार अपने पुश्तैनी गांवों, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, लौटने को मजबूर हो गए हैं, जबकि कुछ ने पास के कामशेत गांव में शरण ली है।
इन सबमें सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की पढ़ाई को हुआ है, जो बीच में ही छूट गई।
एक स्थानीय निवासी ने बताया कि मुस्लिम समुदाय की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है। उन्होंने कहा, “400 गांववालों का एक वॉट्सऐप ग्रुप हमारी हर हरकत पर नजर बनाए हुए है। जब मैं अपने बेटे के लिए दवाई लेने मेडिकल स्टोर गया, तो मेरी तस्वीर तुरंत उस ग्रुप में साझा कर दी गई।”
पिरंगुट के पूर्व कांग्रेस तालुका अध्यक्ष अशोक मात्रे ने मुलशी की ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ पर मंडरा रहे खतरे को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “पहले मुस्लिम समुदाय हरिनाम सप्ताह जैसे हिंदू त्योहारों में पारंपरिक पोशाक पहनकर हिस्सा लेता था, लेकिन अब आरएसएस, शिव प्रतिष्ठान और हिंदू राष्ट्र सेना जैसे संगठनों ने गांव का माहौल बिगाड़ दिया है।”
पीयूसीएल ने इस सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार को ‘संविधान विरोधी’ बताया है और अन्य नागरिक संगठनों के साथ मिलकर इस मामले में कानूनी कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है।
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साभार : एक्सचेंज फॉर मीडिया
पीयूसीएल और एपीसीआर की एक टीम ने पिछले सप्ताह पुणे के दो गांवों का दौरा किया, जहां मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार की खबरें आई थीं। टीम ने वहां भय और दहशत का माहौल, बंद पड़ी दुकानें, बिखरी ज़िंदगियां और उजड़े हुए परिवार देखे।
महाराष्ट्र के पुणे जिले की मुलशी तालुका स्थित पौड़ और पिरंगुट गांवों में मुस्लिम समुदाय को धमकियों और सामाजिक व आर्थिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, बीते दो दशकों से यहां रह रहे कई मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। गांव के कई हिंदू निवासियों ने इस बहिष्कार को यह कहकर जायज़ ठहराने की कोशिश की कि ये लोग ‘स्थानीय मुसलमान नहीं’ हैं।
2 जुलाई को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) और एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की संयुक्त टीम ने दोनों गांवों में जाकर ज़मीनी हकीकत जानने की कोशिश की। टीम को वहां खौफ का माहौल, बंद दुकानें, उजड़े परिवार और बिखरती ज़िंदगियां देखने को मिलीं।
पीयूसीएल और एपीसीआर की यह जांच 2 मई को पौड़ गांव में अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति के कथित अपमान और 5 मई को भाजपा व अन्य दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा निकाली गई रैली के बाद शुरू हुई। इस रैली के दौरान ‘ग़ैर-स्थानीय मुसलमानों’ के बहिष्कार की अपील करते हुए अवैध पोस्टर लगाए गए थे। रैली में मुस्लिम समुदाय को खुलेआम धमकियां भी दी गईं।
पीयूसीएल के अनुसार, इन पोस्टरों और लगातार मिल रही धमकियों के चलते गांव में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया। संगठन ने 4 जुलाई को पुणे ग्रामीण पुलिस अधीक्षक संदीप सिंह गिल को एक ज्ञापन भी सौंपा। हालांकि पोस्टर हटा दिए गए हैं, लेकिन उनका असर अब भी देखा जा सकता है—मुस्लिम समुदाय की बेकरी, कबाड़ी, नाई और चिकन सेंटर जैसी कई दुकानें अभी भी बंद हैं।
पौड़ स्थित रोशन बेकरी के मालिक ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया, “हमारी बेकरी पिछले 40 वर्षों से चल रही है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि मेरे पिता उत्तर प्रदेश से हैं, हमें ‘बाहरी’ कहकर निशाना बनाया गया। हमें धमकी दी गई कि अगर हमने दुकान दोबारा खोली तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पुलिस में कई बार शिकायत करने के बावजूद हमें कोई सुरक्षा नहीं मिली।”
रोशन बेकरी के अलावा, न्यू संगम और न्यू भारत बेकरी भी बंद कर दी गई हैं, जिससे लगभग 400 दिहाड़ी मज़दूरों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। भारत बेकरी के मालिक ने बताया, “हमारी दुकान से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों को रोज़गार मिलता था। हमारे यहां काम करने वाले पांच हिंदू विक्रेता, जो घर-घर जाकर ब्रेड बेचते थे, अब बेरोज़गार हो गए हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि हमारी आजीविका छीनने की साज़िश है।”
जांच टीम ने पौड़ थाने के इंस्पेक्टर संतोष गिरिगोसावी से भी मुलाक़ात की, जिन्होंने बताया कि एसपी के आदेश पर विवादित पोस्टर हटा दिए गए हैं। लेकिन सिर्फ पोस्टर हटाने से समस्या का समाधान नहीं हुआ है।
जानकारी के अनुसार, कई हिंदुत्व संगठनों से जुड़े लोगों ने मुस्लिम दुकानदारों को दुकानें किराए पर न देने और इलाका छोड़ने के लिए धमकाया है।
हिंदू राष्ट्र सेना से जुड़े धनंजय देसाई, जो 2014 में आईटी प्रोफेशनल मोहसिन शेख की हत्या के मामले में आरोपी थे लेकिन साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए, एक बार फिर हालिया धमकियों के पीछे मुख्य चेहरा बताए जा रहे हैं। पुलिस ने पुष्टि की है कि देसाई के खिलाफ एक फार्महाउस पर अवैध कब्जे का मामला दर्ज है और वह इस समय फ़रार हैं।
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, जून की शुरुआत में एक कबाड़ी दुकानदार की दुकान में आग लगा दी गई, जिससे लगभग 20 लाख रुपये का नुकसान हुआ। पीड़ित दुकानदार ने बताया, “मैंने यहीं शादी की, यहीं अपना घर बसाया, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि मुझे अपने परिवार को कामशेत (पुणे जिले का एक गांव) भेजना पड़ा। मैंने शिकायत दर्ज कराई है और मुआवज़े की मांग भी की है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।”
नफरत फैलाने का यह अभियान अब धार्मिक स्थलों तक पहुंच गया है। दो मस्जिदों के बाहर ऐसे पोस्टर चिपकाए गए, जिनमें नमाज़ अदा करने को केवल ‘स्थानीय मुसलमानों’ तक सीमित बताया गया था। इसके चलते पास के कोलवन गांव से आने वाले लोग अब मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से डरने लगे हैं। एक स्थानीय मुसलमान ने कहा, “भले ही पोस्टर हटा लिए गए हों, लेकिन डर आज भी कायम है।”
स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि कई मुस्लिम परिवार अपने पुश्तैनी गांवों, विशेषकर उत्तर प्रदेश में, लौटने को मजबूर हो गए हैं, जबकि कुछ ने पास के कामशेत गांव में शरण ली है।
इन सबमें सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की पढ़ाई को हुआ है, जो बीच में ही छूट गई।
एक स्थानीय निवासी ने बताया कि मुस्लिम समुदाय की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखी जा रही है। उन्होंने कहा, “400 गांववालों का एक वॉट्सऐप ग्रुप हमारी हर हरकत पर नजर बनाए हुए है। जब मैं अपने बेटे के लिए दवाई लेने मेडिकल स्टोर गया, तो मेरी तस्वीर तुरंत उस ग्रुप में साझा कर दी गई।”
पिरंगुट के पूर्व कांग्रेस तालुका अध्यक्ष अशोक मात्रे ने मुलशी की ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ पर मंडरा रहे खतरे को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “पहले मुस्लिम समुदाय हरिनाम सप्ताह जैसे हिंदू त्योहारों में पारंपरिक पोशाक पहनकर हिस्सा लेता था, लेकिन अब आरएसएस, शिव प्रतिष्ठान और हिंदू राष्ट्र सेना जैसे संगठनों ने गांव का माहौल बिगाड़ दिया है।”
पीयूसीएल ने इस सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार को ‘संविधान विरोधी’ बताया है और अन्य नागरिक संगठनों के साथ मिलकर इस मामले में कानूनी कार्रवाई की तैयारी शुरू कर दी है।
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