“न तो अस्पष्ट था और न ही दो अर्थों वाला” बल्कि यह स्पष्ट रूप से धर्म से प्रेरित हिंसा के लिए उकसाने के समान है।

फोटो साभार : द हिंदू ; (प्रतीकात्मक तस्वीर)
कैथोलिक बिशप कन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने देश में अल्पसंख्यक समुदायों के सामने बढ़ती दुश्मनी और हिंसा को लेकर गहरी चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि भारत एक खतरनाक माहौल का सामना कर रहा है जो “डर और पीड़ा से जकड़ा हुआ है।”
मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली में CBCI के महासचिव आर्चबिशप अनिल जे.टी. काउटो द्वारा आयोजित एक प्रेस ब्रीफिंग में चर्च संगठन ने चिंता जाहिर की कि अल्पसंख्यक समुदाय “सांप्रदायिक तत्वों द्वारा बढ़ते हमलों” के प्रति बढ़ती असुरक्षा में हैं और यह कि “कानून लागू करने और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के दायित्व में लगे लोगों की चिंताजनक उदासीनता” इस स्थिति को और बढ़ा रही है।
CBCI ने भड़काऊ बयानबाजी के एक गंभीर उदाहरण को उजागर करते हुए महाराष्ट्र के सांगली जिले के कुपवाड में 17 जून 2025 को दिए गए भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर के एक कथित भाषण का हवाला दिया। इस भाषण में उन्होंने कथित रूप से कहा, “जो पहले पादरी को मारेगा उसे पांच लाख मिलेंगे, दूसरे को मारने वाले को चार लाख और तीसरे को तीन लाख।”
CBCI ने कहा कि यह बयान “न तो अस्पष्ट था और न ही दो अर्थों वाला,” बल्कि यह स्पष्ट रूप से धर्म से प्रेरित हिंसा के लिए उकसाने के समान है।
उन्होंने कहा, “ऐसा बयान तत्काल और निर्णायक कानूनी दखल की मांग करता है, विशेष रूप से तब जब उकसावा स्पष्ट, प्रत्यक्ष और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए निकटवर्ती खतरा पैदा करता हो।”
बिशपों के संगठन ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे बयान भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 152 के तहत दंडनीय हैं, जो नफरत फैलाने और राष्ट्रीय एकता को खतरे में डालने से संबंधित है।
उन्होंने आरोप लगाया कि विरोध और जनआक्रोश के बावजूद, कानून प्रवर्तन एजेंसियां कथित रूप से “एफआईआर दर्ज करने में भी असफल रही हैं।”
CBCI ने इस निष्क्रियता की तीखी आलोचना करते हुए इसकी तुलना उन मामलों से की, जहां “छात्रों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के खिलाफ केवल एक ट्वीट या शांतिपूर्ण असहमति के लिए भी तेजी से कानूनी कार्रवाई होती है।”
CBCI ने 25 जुलाई 2025 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक धार्मिक सिस्टर्स की गिरफ्तारी की भी निंदा की, जब वे दो बालिग लड़कियों के साथ यात्रा कर रही थीं, जिन्होंने अपने माता-पिता की लिखित सहमति-पत्र भी दिए थे।
उन्होंने दावा किया कि यह गिरफ्तारी “सांप्रदायिक तत्वों के इशारे पर की गई” और सिस्टर्स के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
इसके अलावा, जब लड़कियों के माता-पिता स्टेशन पर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें “गैरकानूनी रूप से अपनी बेटियों से मिलने से रोक दिया।”
CBCI ने छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के जोड़ को लेकर चिंता व्यक्त की, जो मूल FIR का हिस्सा नहीं थी लेकिन बाद में धारा 173 BNSS रिपोर्ट में शामिल कर दी गई।
इसे संवैधानिक नैतिकता का संकट बताते हुए, CBCI ने राष्ट्र को याद दिलाया कि “मानसिक स्वतंत्रता केवल एक मौलिक अधिकार ही नहीं, बल्कि संविधान की मूल संरचना भी है।” उन्होंने संविधान सभा के लोकनाथ मिश्रा के शब्द उद्धृत करते हुए कहा, “वैदिक संस्कृति किसी भी चीज को बाहर नहीं करती। प्रत्येक दर्शन और संस्कृति का अपना स्थान है।”
CBCI ने ऋग्वेद (5:85) से भी उदाहरण दिया, “यदि हमने उस व्यक्ति के प्रति पाप किया है जो हमसे प्रेम करता है… हे वरुण, हमारे ऊपर से इस अपराध को हटा दो।” CBCI ने बताया कि यह श्लोक भारत की प्राचीन समझ को दर्शाता है, जिसमें “अपने पड़ोसी के प्रति कर्तव्य” शामिल है, जिसमें दूसरों के धर्म का सम्मान करना भी शामिल है।
उन्होंने हाल के न्यायिक रुझानों की भी निंदा करते हुए कहा, ‘अदालतों द्वारा अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ना अराजकता की शुरुआत है।’ उन्होंने ऐसे चिंताजनक घटनाओं का जिक्र किया जिनमें ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश स्वयं पर लगे आरोपों की सुनवाई करते हैं’ और कुछ न्यायाधीश संवैधानिक सिद्धांतों की बजाय जटिल मामलों में दिव्य सहायता पर भरोसा करते नजर आते हैं।”
उन्होंने कहा, “देश में बहुसंख्यक शासन के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा उपदेश देना; नकदी से भरे बोरे रखना आदि जैसी हाल की प्रवृत्तियां हमारे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत हैं।”
CBCI ने चेतावनी दी कि ऐसी प्रवृत्तियां संविधानिक राज्य के टूटने और स्वतंत्र संस्थानों के सांप्रदायिक होने के लक्षण हैं और इसे “नजरअंदाज करना बहुत गंभीर होगा।”
CBCI ने देशवासियों से जोरदार आह्वान किया और “भारत सरकार, सभी राजनीतिक दलों तथा अच्छे इरादों वाले सभी लोगों” से आग्रह किया कि वे तुरंत और निर्णायक कार्रवाई करें।
उन्होंने आग्रह किया, “राष्ट्र और उसके नागरिकों को बचाने के लिए उचित संवैधानिक कदम उठाए जाएं।”
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फोटो साभार : द हिंदू ; (प्रतीकात्मक तस्वीर)
कैथोलिक बिशप कन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने देश में अल्पसंख्यक समुदायों के सामने बढ़ती दुश्मनी और हिंसा को लेकर गहरी चिंता जताई है और चेतावनी दी है कि भारत एक खतरनाक माहौल का सामना कर रहा है जो “डर और पीड़ा से जकड़ा हुआ है।”
मकतूब की रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली में CBCI के महासचिव आर्चबिशप अनिल जे.टी. काउटो द्वारा आयोजित एक प्रेस ब्रीफिंग में चर्च संगठन ने चिंता जाहिर की कि अल्पसंख्यक समुदाय “सांप्रदायिक तत्वों द्वारा बढ़ते हमलों” के प्रति बढ़ती असुरक्षा में हैं और यह कि “कानून लागू करने और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के दायित्व में लगे लोगों की चिंताजनक उदासीनता” इस स्थिति को और बढ़ा रही है।
CBCI ने भड़काऊ बयानबाजी के एक गंभीर उदाहरण को उजागर करते हुए महाराष्ट्र के सांगली जिले के कुपवाड में 17 जून 2025 को दिए गए भाजपा विधायक गोपीचंद पडलकर के एक कथित भाषण का हवाला दिया। इस भाषण में उन्होंने कथित रूप से कहा, “जो पहले पादरी को मारेगा उसे पांच लाख मिलेंगे, दूसरे को मारने वाले को चार लाख और तीसरे को तीन लाख।”
CBCI ने कहा कि यह बयान “न तो अस्पष्ट था और न ही दो अर्थों वाला,” बल्कि यह स्पष्ट रूप से धर्म से प्रेरित हिंसा के लिए उकसाने के समान है।
उन्होंने कहा, “ऐसा बयान तत्काल और निर्णायक कानूनी दखल की मांग करता है, विशेष रूप से तब जब उकसावा स्पष्ट, प्रत्यक्ष और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए निकटवर्ती खतरा पैदा करता हो।”
बिशपों के संगठन ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे बयान भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 152 के तहत दंडनीय हैं, जो नफरत फैलाने और राष्ट्रीय एकता को खतरे में डालने से संबंधित है।
उन्होंने आरोप लगाया कि विरोध और जनआक्रोश के बावजूद, कानून प्रवर्तन एजेंसियां कथित रूप से “एफआईआर दर्ज करने में भी असफल रही हैं।”
CBCI ने इस निष्क्रियता की तीखी आलोचना करते हुए इसकी तुलना उन मामलों से की, जहां “छात्रों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के खिलाफ केवल एक ट्वीट या शांतिपूर्ण असहमति के लिए भी तेजी से कानूनी कार्रवाई होती है।”
CBCI ने 25 जुलाई 2025 को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो कैथोलिक धार्मिक सिस्टर्स की गिरफ्तारी की भी निंदा की, जब वे दो बालिग लड़कियों के साथ यात्रा कर रही थीं, जिन्होंने अपने माता-पिता की लिखित सहमति-पत्र भी दिए थे।
उन्होंने दावा किया कि यह गिरफ्तारी “सांप्रदायिक तत्वों के इशारे पर की गई” और सिस्टर्स के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
इसके अलावा, जब लड़कियों के माता-पिता स्टेशन पर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें “गैरकानूनी रूप से अपनी बेटियों से मिलने से रोक दिया।”
CBCI ने छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के जोड़ को लेकर चिंता व्यक्त की, जो मूल FIR का हिस्सा नहीं थी लेकिन बाद में धारा 173 BNSS रिपोर्ट में शामिल कर दी गई।
इसे संवैधानिक नैतिकता का संकट बताते हुए, CBCI ने राष्ट्र को याद दिलाया कि “मानसिक स्वतंत्रता केवल एक मौलिक अधिकार ही नहीं, बल्कि संविधान की मूल संरचना भी है।” उन्होंने संविधान सभा के लोकनाथ मिश्रा के शब्द उद्धृत करते हुए कहा, “वैदिक संस्कृति किसी भी चीज को बाहर नहीं करती। प्रत्येक दर्शन और संस्कृति का अपना स्थान है।”
CBCI ने ऋग्वेद (5:85) से भी उदाहरण दिया, “यदि हमने उस व्यक्ति के प्रति पाप किया है जो हमसे प्रेम करता है… हे वरुण, हमारे ऊपर से इस अपराध को हटा दो।” CBCI ने बताया कि यह श्लोक भारत की प्राचीन समझ को दर्शाता है, जिसमें “अपने पड़ोसी के प्रति कर्तव्य” शामिल है, जिसमें दूसरों के धर्म का सम्मान करना भी शामिल है।
उन्होंने हाल के न्यायिक रुझानों की भी निंदा करते हुए कहा, ‘अदालतों द्वारा अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ना अराजकता की शुरुआत है।’ उन्होंने ऐसे चिंताजनक घटनाओं का जिक्र किया जिनमें ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश स्वयं पर लगे आरोपों की सुनवाई करते हैं’ और कुछ न्यायाधीश संवैधानिक सिद्धांतों की बजाय जटिल मामलों में दिव्य सहायता पर भरोसा करते नजर आते हैं।”
उन्होंने कहा, “देश में बहुसंख्यक शासन के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा उपदेश देना; नकदी से भरे बोरे रखना आदि जैसी हाल की प्रवृत्तियां हमारे लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरे का संकेत हैं।”
CBCI ने चेतावनी दी कि ऐसी प्रवृत्तियां संविधानिक राज्य के टूटने और स्वतंत्र संस्थानों के सांप्रदायिक होने के लक्षण हैं और इसे “नजरअंदाज करना बहुत गंभीर होगा।”
CBCI ने देशवासियों से जोरदार आह्वान किया और “भारत सरकार, सभी राजनीतिक दलों तथा अच्छे इरादों वाले सभी लोगों” से आग्रह किया कि वे तुरंत और निर्णायक कार्रवाई करें।
उन्होंने आग्रह किया, “राष्ट्र और उसके नागरिकों को बचाने के लिए उचित संवैधानिक कदम उठाए जाएं।”
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