अध्ययन में खुलासा : भारत के करीब 60% ज़िलों में ज़हरीली हवा सालभर की समस्या

Written by sabrang india | Published on: November 27, 2025
सिर्फ राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी चिंताजनक बनी हुई है। मंगलवार को प्रकाशित एक शोध संस्थान के विश्लेषण के अनुसार, भारत के 60% ज़िले केवल सर्दियों में ही नहीं, बल्कि पूरे साल प्रदूषित हवा के संपर्क में रहते हैं।



राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बुधवार 26 नवंबर की सुबह वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ स्तर पर दर्ज की गई, जिसमें वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 335 रहा। जानकारी के अनुसार, शहर दीपावली के बाद से ही खराब वायु गुणवत्ता की समस्या से जूझ रहा है।

हालांकि, केवल राजधानी दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी चिंताजनक बनी हुई है।

इस संबंध में मंगलवार 25 नवंबर को प्रकाशित एक शोध संस्थान के विश्लेषण से पता चला कि भारत के 60% ज़िले केवल सर्दियों में ही नहीं, बल्कि पूरे साल प्रदूषित हवा के संपर्क में रहते हैं।

द हिंदू के अनुसार, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्लेषण में शामिल भारत के 749 में से 447 ज़िलों—यानी लगभग 60%—में पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) का स्तर राष्ट्रीय मानक से अधिक पाया गया। इनमें दिल्ली सबसे प्रदूषित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के रूप में उभरकर सामने आया।

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में वार्षिक औसत पीएम2.5 स्तर 101 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है, जो भारतीय मानक से ढाई गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सीमा से 20 गुना अधिक है।

जानकारी के अनुसार, इस अध्ययन में फरवरी 2024 से मार्च 2025 तक के आंकड़े शामिल किए गए हैं। पीएम2.5 हवा में मौजूद बेहद छोटे हानिकारक कण होते हैं, जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर कहा जाता है। ये कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें केवल माइक्रोस्कोप से देखा जा सकता है और इन्हें सबसे खतरनाक वायु प्रदूषकों में से एक माना जाता है।

इस विश्लेषण में पाया गया कि देश के किसी भी ज़िले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 5 μg/m³ (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) के दिशानिर्देश के भीतर पीएम2.5 की सांद्रता नहीं थी, जो भारत के मानक (40 μg/m³) की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक कठोर है।

अध्ययन ने इस तथ्य पर जोर दिया है कि आम धारणा के विपरीत, वायु प्रदूषण का गंभीर प्रभाव केवल सर्दियों तक सीमित नहीं है।

सबसे अधिक प्रदूषित ज़िले कुछ राज्यों में केंद्रित पाए गए। दिल्ली (11 ज़िले) और असम (11 ज़िले) में अकेले शीर्ष 50 सबसे प्रदूषित ज़िलों में से लगभग आधे शामिल हैं।

इसके बाद बिहार और हरियाणा के सात-सात ज़िले हैं। अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश (4), त्रिपुरा (3), राजस्थान (2), पश्चिम बंगाल (2), तथा चंडीगढ़, मेघालय और नागालैंड के एक-एक ज़िले शामिल हैं।

दक्षिण और तटीय इलाके स्वच्छ

रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, सिक्किम, गोवा, कर्नाटक और तमिलनाडु के अधिकांश ज़िले राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों (NAQS) की सीमा के भीतर पाए गए।

द वायर ने लिखा कि शोध के लेखक मनोज कुमार एन और मोनीश राज ने कहा, “ये पैटर्न भारत के पीएम2.5 प्रदूषण हॉटस्पॉट में उत्तरी और पूर्वी राज्यों के निरंतर प्रभुत्व को उजागर करते हैं, जबकि दक्षिणी और तटीय क्षेत्र अपेक्षाकृत स्वच्छ रहते हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर, जनवरी और फरवरी के सर्दियों के महीने अब भी सबसे अधिक प्रदूषित होते हैं। इस दौरान भारत के लगभग 82% ज़िलों (749 में से 616) में वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से अधिक रही, क्योंकि इस समय उत्सर्जन बढ़ जाता है और स्थिर मौसम प्रदूषकों को सतह के पास फंसा देता है।

मानसून (जून–सितंबर) के दौरान वायु गुणवत्ता में काफी सुधार देखा जाता है, जब 90% ज़िलों (749 में से 675) में वायु प्रदूषण सुरक्षित सीमा के भीतर दर्ज किया गया।

हालांकि, मानसून के बाद वायु गुणवत्ता फिर तेजी से खराब हो जाती है और चार में से तीन ज़िले (749 में से 566) सुरक्षित मानी जाने वाली ऊपरी सीमा से ऊपर पहुंच जाते हैं।

गौरतलब है कि 19 नवंबर 2024 तक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास भारत के 419 शहरों और कस्बों में 966 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन थे। इसमें राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के तहत 940 स्टेशन और 26 ग्रामीण स्टेशन शामिल हैं।

इसके अतिरिक्त, वास्तविक समय के आंकड़ों के लिए 144 शहरों में 274 सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (CAQMS) का एक अलग नेटवर्क संचालित किया जाता है। ये आधिकारिक आंकड़ों का मुख्य स्रोत हैं, लेकिन इनका वितरण असमान है—कुछ बड़े शहरों में सेंसर की संख्या अधिक केंद्रित है।

अध्ययन का एक उद्देश्य इस असमान वितरण से उत्पन्न विसंगतियों को कम करना भी था, क्योंकि अधिकांश राज्यों में नेटवर्क की कमी से वास्तविक वायु प्रदूषण का कम आकलन होने की संभावना रहती है।

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