वैध वीज़ा के बावजूद हिंदी की विद्वान ऑर्सीनी भारत में प्रवेश से रोकी गईं

Written by sabrang india | Published on: October 22, 2025
लंदन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर फ़्रांचेस्का ऑर्सीनी को दिल्ली एयरपोर्ट पर उस समय भारत में प्रवेश से रोक दिया गया, जब उनके पास पाँच साल की वैध ई-वीज़ा अनुमति थी। उन्हें इस निर्णय का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया। विदेशी शोधकर्ताओं को भारत में प्रवेश से रोके जाने की बढ़ती घटनाओं में यह एक और मामला जुड़ गया है।


फोटो साभार : द वायर/Pervaiz Alam/X (फाइल फोटो)

हिंदी की प्रतिष्ठित विद्वान और लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) की प्रोफेसर एमेरिटा फ़्रांचेस्का ऑर्सीनी को सोमवार, 20 अक्टूबर की रात भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, जबकि उनके पास पाँच वर्षों के लिए मान्य ई-वीज़ा था। उन्हें सूचित किया गया कि उन्हें तुरंत देश छोड़ना होगा।

फ़्रांचेस्का ऑर्सीनी चीन में एक शैक्षणिक सम्मेलन में भाग लेने के बाद हांगकांग के रास्ते 20 अक्टूबर की रात दिल्ली पहुँची थीं। वे पिछली बार अक्टूबर 2024 में भारत आई थीं और इस बार केवल अपने मित्रों से मिलने के उद्देश्य से आई थीं। हालांकि, इमिग्रेशन अधिकारियों ने उन्हें देश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी।

उनकी पुस्तकों में The Hindi Public Sphere 1920–1940: Language and Literature in the Age of Nationalism (2002) जैसे प्रतिष्ठित शोध-ग्रंथ शामिल हैं।

दिल्ली एयरपोर्ट से द वायर से बात करते हुए ऑर्सीनी ने कहा कि उन्हें किसी भी तरह का कारण नहीं बताया गया। उन्होंने कहा, “मुझे देश से वापस भेजा जा रहा है। बस इतना ही मुझे पता है।”

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, लंदन में रहने वाली ऑर्सीनी को अब लौटने के लिए अपनी यात्रा का इंतज़ाम खुद करना होगा। हाल के वर्षों में वैध वीज़ा होने के बावजूद भारत में प्रवेश से रोके जाने वाली ऑर्सीनी ऐसी चौथी विदेशी शोधकर्ता बताई जा रही हैं।

साल 2021 में, जब कोविड महामारी के चलते अंतरराष्ट्रीय यात्रा लगभग पूरी तरह बंद थी, तब मोदी सरकार ने ऑनलाइन माध्यम से आयोजित शैक्षणिक सेमिनारों और कॉन्फ़्रेंसों के लिए भी विदेशी विद्वानों को भेजे जाने वाले निमंत्रणों पर नियंत्रण की कोशिश की थी। सरकार की नीति के अनुसार, केवल उन्हीं विद्वानों को आमंत्रित किया जा सकता था जिन्हें पहले से राजनीतिक मंज़ूरी प्राप्त हो।

मार्च 2022 में, ब्रिटेन के मानवविज्ञानी फिलिप्पो ओसेला को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर रोका गया और भारत में प्रवेश की अनुमति दिए बिना वापस भेज दिया गया। उसी वर्ष, ब्रिटिश आर्किटेक्चर प्रोफेसर लिंडसे ब्रीम्नर को भी बिना किसी स्पष्ट कारण बताए देश छोड़ने के लिए कहा गया।

साल 2024 में, ब्रिटेन में रहने वाली कश्मीरी मूल की अकादमिक निताशा कौल को बेंगलुरु एयरपोर्ट पर भारत में प्रवेश से रोक दिया गया, जबकि वह कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने आई थीं। इसके बाद उनका ओसीआई (Overseas Citizen of India) कार्ड भी रद्द कर दिया गया।

सरकार ने स्वीडन निवासी अकादमिक अशोक स्वेन का ओसीआई कार्ड भी रद्द कर दिया था। स्वेन सोशल मीडिया पर भाजपा की राजनीति की आलोचना करते रहे हैं। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जहाँ से उन्हें राहत मिली।

डीपोर्टेशन की इन अनिश्चित और अप्रत्याशित घटनाओं ने विदेशी विद्वानों के बीच भय का माहौल पैदा कर दिया है।

फ़्रांचेस्का ऑर्सीनी को भारत में प्रवेश से रोके जाने की यह हालिया घटना ऐसे समय पर सामने आई है, जब एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि भारत अब उन देशों की सूची में शामिल हो चुका है जहाँ शैक्षणिक स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज की जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालयों और राजनीतिक समूहों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं।

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