एसआईटी द्वारा की जा रही जांच में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को चार बार समन भेजे जाने का जिक्र करते हुए, उनके वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जांच के दायरे में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए।

फोटो साभार : द हिंदू
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसने केवल अशोक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था, को सब-ज्यूडिस (न्यायालय के विचाराधीन) मामलों पर लिखने से रोक दिया है और वे अन्य विषयों पर लिखने या अपनी राय व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं।
विशेष जांच दल (एसआईटी) से पूछते हुए कि वह खुद को क्यों "गलत दिशा में ले जा रहा है," न्यायाधीश सूर्य कांत और जोयमलय बागची की पीठ ने चार हफ्तों में जांच पूरी करने का निर्देश दिया।
न्यायाधीश कांत ने कहा, "हम पूछ रहे हैं कि एसआईटी अपने आपको स्पष्ट रूप से क्यों गलत दिशा में ले जा रही है। उन्हें पोस्ट की सामग्री की जांच करनी थी।” इस दौरान महमूदाबाद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईटी ने उनके डिवाइस जब्त कर लिए हैं और पिछले 10 वर्षों में उनकी विदेश यात्राओं के बारे में पूछताछ कर रही है।
कपिल सिब्बल ने दलील दिया कि 28 मई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार एसआईटी को केवल उन दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की सामग्री की जांच करनी थी जिनके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कहा कि इस जांच के सिलसिले में प्रोफेसर को चार बार समन भेजा गया और यह भी जोड़ा कि जांच के दायरे में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए।
हरियाणा राज्य के वकील ने कहा कि जांच कैसे की जाए, यह जांच अधिकारी पर निर्भर करता है और सभी आपत्तिजनक या आरोप सिद्ध करने वाले पहलुओं की जांच किया जाना आवश्यक है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि प्रोफेसर को अब दोबारा समन करने की आवश्यकता नहीं है और निर्देश दिया कि जांच चार सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। न्यायमूर्ति कांत ने राज्य के वकील से कहा, आपको उनकी जरूरत नहीं है, आपको एक डिक्शनरी की जरूरत है।”
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “हालांकि यह हमारे लिए उपयुक्त या वांछनीय नहीं होगा कि हम एसआईटी द्वारा की गई कार्यवाही की प्रक्रिया पर टिप्पणी करें, फिर भी हम यह आवश्यक समझते हैं कि उसे हमारे दिनांक 28 मई के आदेश में निहित निर्देशों की याद दिलाई जाए और उसी के अनुसार एसआईटी को निर्देशित किया जाता है कि वह केवल उन दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की सामग्री के संदर्भ में जांच जितना जल्द हो लेकिन ज्यादा से ज्यादा चार सप्ताह के भीतर पूरी करे।”
पीठ ने आगे कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता पहले ही जांच में शामिल हो चुके हैं और अपने व्यक्तिगत गैजेट्स सौंप चुके हैं, हमें लगता है कि उन्हें जांच के लिए दोबारा समन करना आवश्यक नहीं है।”
ज्ञात हो कि आशोका विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. अली खान महमूदाबाद को रविवार 18 मई को दिल्ली में उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी के बाद हरियाणा में दो एफआईआर दर्ज की गईं। उन पर आरोप है कि उन्होंने देश को तोड़ने की कोशिश की, धार्मिक आस्थाओं का अपमान किया और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की कोशिश की।
ये गिरफ्तारी हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और जठेरी गांव के सरपंच और बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी की शिकायतों के आधार पर की गई।
उन्हें भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं के तहत आरोप लगाया गया, जिनमें शामिल हैं:
● धारा 152 – भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य
● धारा 353 – सार्वजनिक अशांति पैदा करने वाली बयानबाजी
● धारा 79 – महिला की इज्जत को अपमानित करने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य
● धारा 196(1)(b) – धार्मिक आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाने की कोशिश
● धारा 197(1)(c) – राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बयानबाजी
● धारा 299 – धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से दुर्भावनापूर्ण कृत्य
प्रोफेसर महमूदाबाद को मिला व्यापक समर्थन
आशोका विश्वविद्यालय के छात्रों और टीचर्स ने प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी के खिलाफ पुरजोर समर्थन किया। उनकी गिरफ्तारी को लेकर पूरे देश में नाराजगी देखी गई। कुछ टीचर्स और प्रोफेसरों ने तो पुलिस स्टेशन के बाहर रातभर जागरण किया ताकि गिरफ्तार प्रोफेसर को दवाइयां और जरूरी चीजें टाइम पर मिल सके।
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फोटो साभार : द हिंदू
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसने केवल अशोक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर पर सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था, को सब-ज्यूडिस (न्यायालय के विचाराधीन) मामलों पर लिखने से रोक दिया है और वे अन्य विषयों पर लिखने या अपनी राय व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं।
विशेष जांच दल (एसआईटी) से पूछते हुए कि वह खुद को क्यों "गलत दिशा में ले जा रहा है," न्यायाधीश सूर्य कांत और जोयमलय बागची की पीठ ने चार हफ्तों में जांच पूरी करने का निर्देश दिया।
न्यायाधीश कांत ने कहा, "हम पूछ रहे हैं कि एसआईटी अपने आपको स्पष्ट रूप से क्यों गलत दिशा में ले जा रही है। उन्हें पोस्ट की सामग्री की जांच करनी थी।” इस दौरान महमूदाबाद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईटी ने उनके डिवाइस जब्त कर लिए हैं और पिछले 10 वर्षों में उनकी विदेश यात्राओं के बारे में पूछताछ कर रही है।
कपिल सिब्बल ने दलील दिया कि 28 मई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार एसआईटी को केवल उन दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की सामग्री की जांच करनी थी जिनके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कहा कि इस जांच के सिलसिले में प्रोफेसर को चार बार समन भेजा गया और यह भी जोड़ा कि जांच के दायरे में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए।
हरियाणा राज्य के वकील ने कहा कि जांच कैसे की जाए, यह जांच अधिकारी पर निर्भर करता है और सभी आपत्तिजनक या आरोप सिद्ध करने वाले पहलुओं की जांच किया जाना आवश्यक है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि प्रोफेसर को अब दोबारा समन करने की आवश्यकता नहीं है और निर्देश दिया कि जांच चार सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। न्यायमूर्ति कांत ने राज्य के वकील से कहा, आपको उनकी जरूरत नहीं है, आपको एक डिक्शनरी की जरूरत है।”
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “हालांकि यह हमारे लिए उपयुक्त या वांछनीय नहीं होगा कि हम एसआईटी द्वारा की गई कार्यवाही की प्रक्रिया पर टिप्पणी करें, फिर भी हम यह आवश्यक समझते हैं कि उसे हमारे दिनांक 28 मई के आदेश में निहित निर्देशों की याद दिलाई जाए और उसी के अनुसार एसआईटी को निर्देशित किया जाता है कि वह केवल उन दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की सामग्री के संदर्भ में जांच जितना जल्द हो लेकिन ज्यादा से ज्यादा चार सप्ताह के भीतर पूरी करे।”
पीठ ने आगे कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता पहले ही जांच में शामिल हो चुके हैं और अपने व्यक्तिगत गैजेट्स सौंप चुके हैं, हमें लगता है कि उन्हें जांच के लिए दोबारा समन करना आवश्यक नहीं है।”
ज्ञात हो कि आशोका विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. अली खान महमूदाबाद को रविवार 18 मई को दिल्ली में उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी के बाद हरियाणा में दो एफआईआर दर्ज की गईं। उन पर आरोप है कि उन्होंने देश को तोड़ने की कोशिश की, धार्मिक आस्थाओं का अपमान किया और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की कोशिश की।
ये गिरफ्तारी हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया और जठेरी गांव के सरपंच और बीजेपी युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेरी की शिकायतों के आधार पर की गई।
उन्हें भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं के तहत आरोप लगाया गया, जिनमें शामिल हैं:
● धारा 152 – भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कृत्य
● धारा 353 – सार्वजनिक अशांति पैदा करने वाली बयानबाजी
● धारा 79 – महिला की इज्जत को अपमानित करने के इरादे से शब्द, इशारा या कृत्य
● धारा 196(1)(b) – धार्मिक आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ाने की कोशिश
● धारा 197(1)(c) – राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बयानबाजी
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प्रोफेसर महमूदाबाद को मिला व्यापक समर्थन
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