इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. नायक ने 30 नवंबर 2012 को ST कोटे के तहत एमएनएनआईटी इलाहाबाद में अपनी सेवाएं शुरू की थीं। वर्षों तक उन्होंने अपनी शिक्षण क्षमता के बल पर छात्रों के बीच सम्मान और सराहना हासिल की। लेकिन उनका कहना है कि वर्ष 2017 से उन्हें निरंतर जातिगत भेदभाव, पेशेवर कामकाज में बाधा पहुंचाने और प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
इलाहाबाद स्थित मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) के सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखते हुए गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि पिछले आठ वर्षों से उन्हें जातीय भेदभाव, संस्थागत अनदेखी और प्रशासनिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। अपने पत्र में उन्होंने सवाल उठाया कि, क्या भारतीय संविधान अनुसूचित जनजातियों के नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता? क्या आदिवासी समुदायों को न्याय और समानता के उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है?"
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. नायक का यह मार्मिक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। अम्बेडकरवादी इस बात पर सहमति जाहिर करते हैं कि संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद प्रतिष्ठित संस्थानों में ST शिक्षकों को अक्सर व्यवस्थागत पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. नायक ने 30 नवंबर 2012 को ST कोटे के तहत एमएनएनआईटी इलाहाबाद में अपनी सेवाएं शुरू की थीं। वर्षों तक उन्होंने अपनी शिक्षण क्षमता के बल पर छात्रों के बीच सम्मान और सराहना हासिल की। लेकिन उनका कहना है कि वर्ष 2017 से उन्हें निरंतर जातिगत भेदभाव, पेशेवर कामकाज में बाधा पहुंचाने और प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
जनवरी 2025 में जब उनके सामान्य और अनुसूचित जाति वर्ग के सहकर्मियों को एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) के पद पर पदोन्नत किया गया, तो डॉ. नायक की पदोन्नति बिना किसी स्पष्ट या वैध कारण के रोक दी गई। उनका आरोप है कि वर्ष 2018-2019 के दौरान उन्हें जानबूझकर पीएचडी शोध छात्रों के आवंटन और अनुसंधान संसाधनों से वंचित रखा गया। वहीं, उनके कुछ सहकर्मियों-जो प्रभावशाली सामाजिक पृष्ठभूमि से थे-को महज़ दो वर्षों में पांच-पांच शोध छात्र आवंटित किए गए।
इस संबंध में उन्होंने एमएनएनआईटी के निदेशक, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष और आंतरिक एससी/एसटी सेल से लगातार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि, उनका कहना है कि उन्हें धमकी भरे ईमेल, झूठी शिकायतें और अनुशासनात्मक नोटिस देकर चुप कराने की कोशिश की गई। एससी/एसटी सेल, जिसका काम वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है, प्रशासनिक दबाव में निष्क्रिय बना रहा।
न्याय को लेकर डॉ. नायक ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी), शिक्षा मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और यहां तक कि राष्ट्रपति भवन तक अपनी बात पहुंचाई। एनसीएसटी ने उनके पक्ष में सिफारिशें भी जारी कीं, लेकिन एमएनएनआईटी प्रशासन ने इन्हें लागू नहीं किया। शिकायतों को पीजी पोर्टल पर डाला गया लेकिन उन्हीं अधिकारियों के पास भेज दिया गया जिनके खिलाफ शिकायत थी और बिना किसी नतीजे के मामला बंद कर दिया गया। स्थानीय पुलिस में दर्ज कराई गई एफआईआर भी प्रभावशाली हस्तक्षेप के कारण दबा दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पीड़ादायक पहलू यह रहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में डॉ. नायक के अपने वकील ने ही उनके मामले को कमजोर कर दिया, जबकि विपक्षी वकील ने उन्हें धमकाया ताकि वे न्याय की लड़ाई न लड़ सकें। इन सबसे परेशान होकर डॉ. नायक ने सवाल उठाया है कि "क्या भारत में एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) का व्यक्ति, स्वयं वकील होने के बावजूद, न्याय नहीं पा सकता?"
अपने पत्र में डॉ. नायक ने स्पष्ट किया है कि यह केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि उन सभी वंचित शिक्षकों की लड़ाई है, जो उच्च शिक्षण संस्थानों में इसी तरह के भेदभाव और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से मांग की है कि उन्हें पूर्व प्रभाव से पदोन्नति की जाए, एमएनएनआईटी में जातिगत भेदभाव की घटनाओं की सीबीआई से निष्पक्ष जांच कराई जाए, दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, और देश के केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति/जनजाति के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।
गौरतलब है कि हाल ही आंध्रप्रदेश के श्री वेंकटेश्वर वेटरनरी यूनिवर्सिटी (एसवीवीयू) के डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज के एक दलित शिक्षक ने भी इसी तरह अपने साथ जातिगत भेदभाव और संस्थागत उत्पीडन की शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पिछले महीने भेजी थी।
Related
ओडिशा में गौ तस्करी के आरोप में दलितों के सिर मुंड दिए गए, उनसे मारपीट की गई और नाले का पानी पीने को मजबूर किया गया
आंध्र प्रदेश में दलित और आदिवासी लड़कियों के साथ क्रूरता: इस दोहरे अपराध ने जातिगत हिंसा और व्यवस्थागत नाकामी को उजागर किया

फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
इलाहाबाद स्थित मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) के सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखते हुए गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि पिछले आठ वर्षों से उन्हें जातीय भेदभाव, संस्थागत अनदेखी और प्रशासनिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। अपने पत्र में उन्होंने सवाल उठाया कि, क्या भारतीय संविधान अनुसूचित जनजातियों के नागरिकों की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता? क्या आदिवासी समुदायों को न्याय और समानता के उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है?"
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. नायक का यह मार्मिक पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। अम्बेडकरवादी इस बात पर सहमति जाहिर करते हैं कि संवैधानिक सुरक्षा के बावजूद प्रतिष्ठित संस्थानों में ST शिक्षकों को अक्सर व्यवस्थागत पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. नायक ने 30 नवंबर 2012 को ST कोटे के तहत एमएनएनआईटी इलाहाबाद में अपनी सेवाएं शुरू की थीं। वर्षों तक उन्होंने अपनी शिक्षण क्षमता के बल पर छात्रों के बीच सम्मान और सराहना हासिल की। लेकिन उनका कहना है कि वर्ष 2017 से उन्हें निरंतर जातिगत भेदभाव, पेशेवर कामकाज में बाधा पहुंचाने और प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
जनवरी 2025 में जब उनके सामान्य और अनुसूचित जाति वर्ग के सहकर्मियों को एसोसिएट प्रोफेसर (AGP 9500) के पद पर पदोन्नत किया गया, तो डॉ. नायक की पदोन्नति बिना किसी स्पष्ट या वैध कारण के रोक दी गई। उनका आरोप है कि वर्ष 2018-2019 के दौरान उन्हें जानबूझकर पीएचडी शोध छात्रों के आवंटन और अनुसंधान संसाधनों से वंचित रखा गया। वहीं, उनके कुछ सहकर्मियों-जो प्रभावशाली सामाजिक पृष्ठभूमि से थे-को महज़ दो वर्षों में पांच-पांच शोध छात्र आवंटित किए गए।
इस संबंध में उन्होंने एमएनएनआईटी के निदेशक, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष और आंतरिक एससी/एसटी सेल से लगातार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बल्कि, उनका कहना है कि उन्हें धमकी भरे ईमेल, झूठी शिकायतें और अनुशासनात्मक नोटिस देकर चुप कराने की कोशिश की गई। एससी/एसटी सेल, जिसका काम वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है, प्रशासनिक दबाव में निष्क्रिय बना रहा।
न्याय को लेकर डॉ. नायक ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी), शिक्षा मंत्रालय, जनजातीय कार्य मंत्रालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और यहां तक कि राष्ट्रपति भवन तक अपनी बात पहुंचाई। एनसीएसटी ने उनके पक्ष में सिफारिशें भी जारी कीं, लेकिन एमएनएनआईटी प्रशासन ने इन्हें लागू नहीं किया। शिकायतों को पीजी पोर्टल पर डाला गया लेकिन उन्हीं अधिकारियों के पास भेज दिया गया जिनके खिलाफ शिकायत थी और बिना किसी नतीजे के मामला बंद कर दिया गया। स्थानीय पुलिस में दर्ज कराई गई एफआईआर भी प्रभावशाली हस्तक्षेप के कारण दबा दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पीड़ादायक पहलू यह रहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में डॉ. नायक के अपने वकील ने ही उनके मामले को कमजोर कर दिया, जबकि विपक्षी वकील ने उन्हें धमकाया ताकि वे न्याय की लड़ाई न लड़ सकें। इन सबसे परेशान होकर डॉ. नायक ने सवाल उठाया है कि "क्या भारत में एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) का व्यक्ति, स्वयं वकील होने के बावजूद, न्याय नहीं पा सकता?"
अपने पत्र में डॉ. नायक ने स्पष्ट किया है कि यह केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि उन सभी वंचित शिक्षकों की लड़ाई है, जो उच्च शिक्षण संस्थानों में इसी तरह के भेदभाव और उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से मांग की है कि उन्हें पूर्व प्रभाव से पदोन्नति की जाए, एमएनएनआईटी में जातिगत भेदभाव की घटनाओं की सीबीआई से निष्पक्ष जांच कराई जाए, दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, और देश के केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति/जनजाति के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।
गौरतलब है कि हाल ही आंध्रप्रदेश के श्री वेंकटेश्वर वेटरनरी यूनिवर्सिटी (एसवीवीयू) के डेयरी टेक्नोलॉजी कॉलेज के एक दलित शिक्षक ने भी इसी तरह अपने साथ जातिगत भेदभाव और संस्थागत उत्पीडन की शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पिछले महीने भेजी थी।
Related
ओडिशा में गौ तस्करी के आरोप में दलितों के सिर मुंड दिए गए, उनसे मारपीट की गई और नाले का पानी पीने को मजबूर किया गया
आंध्र प्रदेश में दलित और आदिवासी लड़कियों के साथ क्रूरता: इस दोहरे अपराध ने जातिगत हिंसा और व्यवस्थागत नाकामी को उजागर किया
दलित महिला मुख्य रसोइया नियुक्त होने पर अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल से निकाला