आंध्र प्रदेश में 15 वर्षीय दलित लड़की के साथ दो साल तक सामूहिक बलात्कार से लेकर 10 वर्षीय आदिवासी बच्चे के साथ खुलेआम अत्याचार, जातिगत अत्याचारों, नौकरशाही की चुप्पी और राजनीतिक दोषारोपण के बोझ तले दबा हुआ है।

आंध्र प्रदेश में वंचित समुदायों की नाबालिग लड़कियों के खिलाफ हिंसा के दो भयावह मामलों ने राज्य की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। एक मामले में 15 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित तौर पर करीब दो साल में 17 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया, जिससे वह आठ महीने की गर्भवती हो गई। दूसरी घटना में, केवल मोबाइल फोन चोरी करने के संदेह पर एक 10 वर्षीय आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) लड़की के साथ क्रूरता से मारपीट की गई, उसे नग्न कर दिया गया और गर्म लकड़ी से जला दिया गया।
दोनों मामलों ने जाति और जनजाति आधारित हिंसा के भयावह रूप से बेखौफ होने और कमजोर बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई व्यवस्थाओं की घोर विफलता को उजागर किया है। जैसे-जैसे नाराजगी बढ़ रही है, न केवल अपराधियों के बारे में बल्कि राज्य संरचना को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं जो अपने सबसे वंचित लोगों की सुरक्षा और सम्मान के प्रति उदासीन बनी हुई है।
10 वर्षीय आदिवासी लड़की को निर्वस्त्र कर जलाया गया
सामूहिक बलात्कार के मामले पर नाराजगी बढ़ने के साथ ही आंध्र प्रदेश के दूसरे हिस्से से एक और घटना सामने आई। इस बार कथित तौर पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय की 10 वर्षीय आदिवासी लड़की को निशाना बनाया गया। बच्ची पर मोबाइल फोन चोरी करने का झूठा आरोप लगाया गया था। भीड़ की हिंसा और अपमान की एक भयावह घटना में, कथित तौर पर उसके कपड़े उतार दिए गए और उसके शरीर को गर्म लकड़ी से जलाया गया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्ची चेन्चम्मा अपनी मौसी सन्नारी मणिक्यम के साथ जिले के कुडिटेपलेम काकरला डिब्बा में अनुसूचित जनजाति कॉलोनी में रहती थी। पड़ोसियों को शक था कि चेन्चम्मा ने पास के घर से मोबाइल फोन चुराया है, इसलिए उन्होंने कथित तौर पर उसके शरीर को गर्म लोहे की छड़ से जला दिया और उसकी पिटाई की।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नेल्लोर के इंदुकुरूपेट मंडल में पुलिस ने लड़की को कथित तौर पर प्रताड़ित करने के मामले में करीब दो लोगों को हिरासत में लिया है। जब लड़की के गालों पर लोहे की गर्म छड़ से कथित तौर पर जलाया जा रहा था तो उसके रोने की आवाज दूसरे पड़ोसियों ने सुनी। उन्होंने उसे बचाया और पुलिस को बुलाया, फिर उसे सरकारी अस्पताल ले गए जहां उसका इलाज किया गया और उसे छुट्टी दे दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, इंदुकुरूपेट पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने कहा, "लड़की ने पड़ोसी के घर जाने और फोन चोरी करने की बात से इनकार किया और खुद को निर्दोष बताया। हमने एफआईआर दर्ज कर ली है और पूछताछ के लिए दो लोगों को हिरासत में लिया है।"
दो साल की खामोशी: नाबालिग दलित लड़की से दो साल तक 17 लोगों ने किया बलात्कार
जाति, लिंग और संस्थागत उदासीनता के भयावह फर्क को उजागर करने वाले एक मामले में, आंध्र प्रदेश के श्री सत्य साईं जिले की 15 वर्षीय दलित लड़की को करीब दो वर्षों में 17 लोगों द्वारा कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किए जाने के बाद आठ महीने की गर्भवती पाया गया। पुलिस का कहना है कि यह दुर्व्यवहार तब शुरू हुआ जब लड़की सिर्फ 13 साल की थी और बिना किसी रिपोर्ट और बिना किसी रोक-टोक के ये सब जारी रहा। इस महीने की शुरुआत में उसकी मां द्वारा अधिकारियों से संपर्क करने तक ये सब चलता रहा।
अब तक 17 में से 13 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें तीन नाबालिग भी शामिल हैं। मुख्य आरोपी, जिसने इस घिनौनी हरकतों को शुरू किया, वह अभी तक फरार है। सभी वयस्क आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है, जबकि नाबालिग आरोपी किशोर न्याय बोर्ड की निगरानी में हैं। इस मामले में बच्चों के यौन शोषण से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, भारतीय न्याय संहिता (BNS) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की कई सख्त धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
शोषण और चुप्पी का एक दुष्चक्र: पुलिस जांच के अनुसार यह अत्याचार उस समय शुरू हुआ जब लड़की आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। लगभग तीन साल पहले उसके पिता की मृत्यु के बाद वह और उसकी मां [मदिगा (अनुसूचित जाति) समुदाय] कर्नाटक सीमा के पास एक छोटे से गांव में रहने आ गई थीं। यह परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर और सामाजिक रूप से वंचित था और बेहद मुश्किल में जिंदगी गुजार रहा था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एक दिन स्कूल के बाद, लड़की और उसके एससी सहपाठी की स्थानीय बोया समुदाय के एक व्यक्ति ने कथित तौर पर तस्वीरें खींच लीं। बोया इस क्षेत्र में एक प्रमुख और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जाति है। आरोपी ने इन तस्वीरों का इस्तेमाल लड़की को ब्लैकमेल करने के लिए किया, उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दी। इसके बाद दो लोगों ने उसका यौन शोषण किया। इस घटना का वीडियो बनाया गया और उनके परिचितों के बीच वायरल किया गया, जिसके नतीजे में दो वर्षों में कम से कम 14 लोगों द्वारा बार-बार बलात्कार का सिलसिला जारी रहा।
रिमांड रिपोर्ट और पीड़िता के बयान से पता चलता है कि ब्लैकमेल, जबरदस्ती और धमकियां कभी रूकी नहीं हुईं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार जिला पुलिस अधीक्षक वी रत्न ने कहा, "उसकी उम्र, उसकी जाति और उसकी सामाजिक कमजोरी ने उसे आसान शिकार बना दिया।" "ये शोषण लगातार लंबे समय तक चला। यह सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह संगठित दुर्व्यवहार था जो दो साल तक जारी रहा।"
जिन लोगों ने कथित तौर पर उसके साथ मारपीट की, उनकी उम्र 18 से 51 वर्ष के बीच है। उनमें से अधिकांश बोया समुदाय से हैं, जबकि उसकी सहपाठी सहित तीन अन्य अनुसूचित जाति समुदाय से हैं और दुर्व्यवहार की रिपोर्ट न करने के लिए उनकी जांच की जा रही है।
गिरफ्तारियां और आरोप: 9 जून को पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार किया:
● अचमपल्ली वर्धन (21)
● तलारी मुरली (25)
● बडगोर्ला नंदवर्धन राज उर्फ नंदा (23)
● अरेंचेरु नागराजू उर्फ हरियाणा चेरुवु नागराजू (51)
● बोया संजीव (40)
● बुदिदा राजन्ना (49)
अगले दिन नाबालिगों सहित सात अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। मुख्य आरोपी अभी भी फरार है। पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई का पहले से ही आपराधिक रिकॉर्ड है। द वीक के अनुसार, फरार आरोपियों का पता लगाने के लिए धर्मावरम उपखंड के तहत एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है।
मामला बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, आपराधिक धमकी और शोषण के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से संबंधित धाराओं के तहत दर्ज किया गया है। पुलिस ने गर्भ में पल रहे बच्चे के डीएनए परीक्षण की भी अनुमति मांगी है, जो अभियोजन पक्ष के लिए आवश्यक होगा।
हर स्तर पर व्यवस्थागत विफलता
इस मामले ने संस्थागत विफलताओं को उजागर कर दिया है। सरकारी स्कूल की छात्रा होने के बावजूद, लड़की ने कक्षा 10वीं की यानी एक अहम शैक्षणिक वर्ष पढ़ाई छोड़ दी। उसके शिक्षकों ने कोई चिंता नहीं जताई या अधिकारियों को बताया नहीं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एसपी रत्ना ने कहा, "यह अकल्पनीय है कि एक बच्ची स्कूल से गायब हो जाए और कोई भी कारण न पूछे।" "यहां तक कि जब वह गर्भवती हो गई, तब भी गांव में किसी ने इसकी सूचना नहीं दी।"
स्थानीय कल्याण संरचनाएं भी दखल देने में विफल रहीं। ग्राम महिला संरक्षण कार्यादर्सी (महिला स्वयंसेवकों का एक ग्राम स्तरीय कैडर जो ‘महिला पुलिस’ के रूप में काम करता है) ने कोई वेलफेयर जांच नहीं की। न ही आशा कार्यकर्ताओं ने कोई जांच की जिन्हें सामुदायिक स्तर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की निगरानी करनी होती है।
आईई की रिपोर्ट के अनुसार रत्ना ने कहा, "हम इन विफलताओं की जांच कर रहे हैं। ये प्रणालियां विशेष रूप से कमजोर बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं। उनकी निष्क्रियता के परिणाम होते हैं।"
जाति, ताकत और चुप रहने का दबाव: आईई से बात करने वाले स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, गांव में मौजूद जातिगत समीकरण इस चुप्पी को बनाए रखने में बेहद अहम भूमिका निभा रहे थे। पीड़िता का परिवार मडिगा समुदाय से है जो अनुसूचित जाति समूह है और गांव में इसकी मौजूदगी बहुत कम है। 17 आरोपियों में से 14 प्रभावी बोया समुदाय से हैं। पुलिस का कहना है कि जब मामला उजागर होना शुरू हुआ, तो बोया समुदाय के नेताओं ने लड़की पर उसके एससी सहपाठी (जांच के दायरे में आने वाले नाबालिगों में से एक नाबालिग) से शादी करने का दबाव बनाकर इसे दबाने का कोशिश की ताकि सहमति का जामा पहनाया जा सके और मामले को रफा दफा किया जा सके।
आई की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पीड़िता के गर्भवती दिखने के बावजूद किसी ने भी इस अपराध की सूचना नहीं दी। गांव की यह चुप्पी संयोग नहीं थी, यह जातिगत स्थिति और सामाजिक डर के जरिए थोपी गई थी।”
जारी है देखभाल और राज्य संरक्षण: डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता फिलहाल अनंतपुर के सरकारी जनरल अस्पताल में इलाजरत है। डॉक्टरों ने पुष्टि की है कि गर्भावस्था का समय काफी आगे जा चुका है, इसलिए गर्भपात संभव नहीं है। लड़की एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त है और गहरे मानसिक अवसाद से जूझ रही है। उसे काउंसलिंग, पोषण संबंधी सहायता और 24 घंटे की निगरानी और देखभाल कराई जा रही है।
डिलीवरी के बाद उसे गांव वापस नहीं भेजा जाएगा। इसके बजाय, मां और नवजात दोनों को राज्य संचालित एक महिला आश्रय गृह में स्थानांतरित किया जाएगा। आईई की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अधीक्षक (SP) ने कहा, “हमें दबाव डाले जाने का डर है। ये आरोपी, भले ही जेल में हों, परिवार पर केस वापस लेने के लिए दबाव बना सकते हैं।”
राज्य सरकार ने अभी गर्भ में पल रहे बच्चे की डीएनए जांच के लिए अदालत से अनुमति लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि यह जांच मामले को मजबूत करेगी और आरोपियों में व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने में मदद मिलेगी।
राजनीतिक प्रभाव: इस मामले ने राजनीतिक हलकों में विवाद और जनता में भारी नाराजगी पैदा कर दी है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस घटना को लेकर गहरा सदमा जाहिर करते हुए कहा कि मामले की तेजी से जांच, फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई और दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। अपने बयान में उन्होंने कहा, “मजबूत सबूत इकट्ठा किए जाने चाहिए ताकि दोषी बच न सकें।”
विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने टीडीपी सरकार पर राजनीतिक संबंध रखने वाले अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में रेड्डी ने लिखा, “सरकार की संवेदनहीनता का प्रमाण है कि राज्य में एक साल में 188 बलात्कार और 15 बलात्कार व हत्या की घटनाएं हुई हैं। हाल ही में अनंतपुर के इंटरमीडिएट में पढने वाले एक आदिवासी छात्र पर भी बुरी तरीके से हमला कर जंगल में फेंक दिया गया।”
आगे उन्होंने टीडीपी की महिलाओं की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाते हुए स्थिति को “शर्मनाक” और “अविश्वसनीय” बताया।
संस्थागत लापरवाही और जातिगत बचाव
जाति, गरीबी और लिंग के संबंध ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) की लड़कियों को शोषण के प्रति असमान तरीके से कमजोर बना दिया है। ये दोनों मामले केवल व्यक्तिगत हिंसा के कृत्य नहीं हैं, बल्कि व्यवस्थागत उपेक्षा, जातिगत प्रभुत्व और संस्थागत विफलता की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। दलित लड़की के मामले में, स्कूल के शिक्षकों ने उसकी दसवीं कक्षा में अचानक ड्रॉपआउट पर ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा, आशा कार्यकर्ता, महिला पुलिस वॉलंटियर और बाल संरक्षण अधिकारी भी स्पष्ट चेतावनी के बावजूद दखल नहीं दे सके। आदिवासी बच्चे के मामले में, हिंसा तब तक छिपी रही जब तक पड़ोसियों ने इसकी सूचना नहीं दी।
समय पर दखल न देना, सामाजिक कलंक और प्रभावशाली जाति समूहों का डर दोनों मामलों में चुप्पी के बड़े कारण बने। सामूहिक बलात्कार के मामले में, कहा जाता है कि बोया समुदाय के नेताओं ने पीड़िता को मामले को रफा दफा करने के लिए उसके शादी करने पर दबाव डालने की कोशिश की।
आदिवासी लड़की के मामले में, समाज का कोई भी बुजुर्ग हिंसा को रोकने या अपराध की सूचना देने के लिए आगे नहीं आया।
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आंध्र प्रदेश में वंचित समुदायों की नाबालिग लड़कियों के खिलाफ हिंसा के दो भयावह मामलों ने राज्य की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। एक मामले में 15 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित तौर पर करीब दो साल में 17 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया, जिससे वह आठ महीने की गर्भवती हो गई। दूसरी घटना में, केवल मोबाइल फोन चोरी करने के संदेह पर एक 10 वर्षीय आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) लड़की के साथ क्रूरता से मारपीट की गई, उसे नग्न कर दिया गया और गर्म लकड़ी से जला दिया गया।
दोनों मामलों ने जाति और जनजाति आधारित हिंसा के भयावह रूप से बेखौफ होने और कमजोर बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई व्यवस्थाओं की घोर विफलता को उजागर किया है। जैसे-जैसे नाराजगी बढ़ रही है, न केवल अपराधियों के बारे में बल्कि राज्य संरचना को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं जो अपने सबसे वंचित लोगों की सुरक्षा और सम्मान के प्रति उदासीन बनी हुई है।
10 वर्षीय आदिवासी लड़की को निर्वस्त्र कर जलाया गया
सामूहिक बलात्कार के मामले पर नाराजगी बढ़ने के साथ ही आंध्र प्रदेश के दूसरे हिस्से से एक और घटना सामने आई। इस बार कथित तौर पर अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय की 10 वर्षीय आदिवासी लड़की को निशाना बनाया गया। बच्ची पर मोबाइल फोन चोरी करने का झूठा आरोप लगाया गया था। भीड़ की हिंसा और अपमान की एक भयावह घटना में, कथित तौर पर उसके कपड़े उतार दिए गए और उसके शरीर को गर्म लकड़ी से जलाया गया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्ची चेन्चम्मा अपनी मौसी सन्नारी मणिक्यम के साथ जिले के कुडिटेपलेम काकरला डिब्बा में अनुसूचित जनजाति कॉलोनी में रहती थी। पड़ोसियों को शक था कि चेन्चम्मा ने पास के घर से मोबाइल फोन चुराया है, इसलिए उन्होंने कथित तौर पर उसके शरीर को गर्म लोहे की छड़ से जला दिया और उसकी पिटाई की।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नेल्लोर के इंदुकुरूपेट मंडल में पुलिस ने लड़की को कथित तौर पर प्रताड़ित करने के मामले में करीब दो लोगों को हिरासत में लिया है। जब लड़की के गालों पर लोहे की गर्म छड़ से कथित तौर पर जलाया जा रहा था तो उसके रोने की आवाज दूसरे पड़ोसियों ने सुनी। उन्होंने उसे बचाया और पुलिस को बुलाया, फिर उसे सरकारी अस्पताल ले गए जहां उसका इलाज किया गया और उसे छुट्टी दे दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, इंदुकुरूपेट पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने कहा, "लड़की ने पड़ोसी के घर जाने और फोन चोरी करने की बात से इनकार किया और खुद को निर्दोष बताया। हमने एफआईआर दर्ज कर ली है और पूछताछ के लिए दो लोगों को हिरासत में लिया है।"
दो साल की खामोशी: नाबालिग दलित लड़की से दो साल तक 17 लोगों ने किया बलात्कार
जाति, लिंग और संस्थागत उदासीनता के भयावह फर्क को उजागर करने वाले एक मामले में, आंध्र प्रदेश के श्री सत्य साईं जिले की 15 वर्षीय दलित लड़की को करीब दो वर्षों में 17 लोगों द्वारा कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किए जाने के बाद आठ महीने की गर्भवती पाया गया। पुलिस का कहना है कि यह दुर्व्यवहार तब शुरू हुआ जब लड़की सिर्फ 13 साल की थी और बिना किसी रिपोर्ट और बिना किसी रोक-टोक के ये सब जारी रहा। इस महीने की शुरुआत में उसकी मां द्वारा अधिकारियों से संपर्क करने तक ये सब चलता रहा।
अब तक 17 में से 13 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें तीन नाबालिग भी शामिल हैं। मुख्य आरोपी, जिसने इस घिनौनी हरकतों को शुरू किया, वह अभी तक फरार है। सभी वयस्क आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है, जबकि नाबालिग आरोपी किशोर न्याय बोर्ड की निगरानी में हैं। इस मामले में बच्चों के यौन शोषण से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, भारतीय न्याय संहिता (BNS) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की कई सख्त धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
शोषण और चुप्पी का एक दुष्चक्र: पुलिस जांच के अनुसार यह अत्याचार उस समय शुरू हुआ जब लड़की आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। लगभग तीन साल पहले उसके पिता की मृत्यु के बाद वह और उसकी मां [मदिगा (अनुसूचित जाति) समुदाय] कर्नाटक सीमा के पास एक छोटे से गांव में रहने आ गई थीं। यह परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर और सामाजिक रूप से वंचित था और बेहद मुश्किल में जिंदगी गुजार रहा था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, एक दिन स्कूल के बाद, लड़की और उसके एससी सहपाठी की स्थानीय बोया समुदाय के एक व्यक्ति ने कथित तौर पर तस्वीरें खींच लीं। बोया इस क्षेत्र में एक प्रमुख और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जाति है। आरोपी ने इन तस्वीरों का इस्तेमाल लड़की को ब्लैकमेल करने के लिए किया, उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी दी। इसके बाद दो लोगों ने उसका यौन शोषण किया। इस घटना का वीडियो बनाया गया और उनके परिचितों के बीच वायरल किया गया, जिसके नतीजे में दो वर्षों में कम से कम 14 लोगों द्वारा बार-बार बलात्कार का सिलसिला जारी रहा।
रिमांड रिपोर्ट और पीड़िता के बयान से पता चलता है कि ब्लैकमेल, जबरदस्ती और धमकियां कभी रूकी नहीं हुईं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार जिला पुलिस अधीक्षक वी रत्न ने कहा, "उसकी उम्र, उसकी जाति और उसकी सामाजिक कमजोरी ने उसे आसान शिकार बना दिया।" "ये शोषण लगातार लंबे समय तक चला। यह सिर्फ एक घटना नहीं थी, यह संगठित दुर्व्यवहार था जो दो साल तक जारी रहा।"
जिन लोगों ने कथित तौर पर उसके साथ मारपीट की, उनकी उम्र 18 से 51 वर्ष के बीच है। उनमें से अधिकांश बोया समुदाय से हैं, जबकि उसकी सहपाठी सहित तीन अन्य अनुसूचित जाति समुदाय से हैं और दुर्व्यवहार की रिपोर्ट न करने के लिए उनकी जांच की जा रही है।
गिरफ्तारियां और आरोप: 9 जून को पुलिस ने छह लोगों को गिरफ्तार किया:
● अचमपल्ली वर्धन (21)
● तलारी मुरली (25)
● बडगोर्ला नंदवर्धन राज उर्फ नंदा (23)
● अरेंचेरु नागराजू उर्फ हरियाणा चेरुवु नागराजू (51)
● बोया संजीव (40)
● बुदिदा राजन्ना (49)
अगले दिन नाबालिगों सहित सात अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। मुख्य आरोपी अभी भी फरार है। पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई का पहले से ही आपराधिक रिकॉर्ड है। द वीक के अनुसार, फरार आरोपियों का पता लगाने के लिए धर्मावरम उपखंड के तहत एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है।
मामला बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, आपराधिक धमकी और शोषण के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से संबंधित धाराओं के तहत दर्ज किया गया है। पुलिस ने गर्भ में पल रहे बच्चे के डीएनए परीक्षण की भी अनुमति मांगी है, जो अभियोजन पक्ष के लिए आवश्यक होगा।
हर स्तर पर व्यवस्थागत विफलता
इस मामले ने संस्थागत विफलताओं को उजागर कर दिया है। सरकारी स्कूल की छात्रा होने के बावजूद, लड़की ने कक्षा 10वीं की यानी एक अहम शैक्षणिक वर्ष पढ़ाई छोड़ दी। उसके शिक्षकों ने कोई चिंता नहीं जताई या अधिकारियों को बताया नहीं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एसपी रत्ना ने कहा, "यह अकल्पनीय है कि एक बच्ची स्कूल से गायब हो जाए और कोई भी कारण न पूछे।" "यहां तक कि जब वह गर्भवती हो गई, तब भी गांव में किसी ने इसकी सूचना नहीं दी।"
स्थानीय कल्याण संरचनाएं भी दखल देने में विफल रहीं। ग्राम महिला संरक्षण कार्यादर्सी (महिला स्वयंसेवकों का एक ग्राम स्तरीय कैडर जो ‘महिला पुलिस’ के रूप में काम करता है) ने कोई वेलफेयर जांच नहीं की। न ही आशा कार्यकर्ताओं ने कोई जांच की जिन्हें सामुदायिक स्तर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य की निगरानी करनी होती है।
आईई की रिपोर्ट के अनुसार रत्ना ने कहा, "हम इन विफलताओं की जांच कर रहे हैं। ये प्रणालियां विशेष रूप से कमजोर बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं। उनकी निष्क्रियता के परिणाम होते हैं।"
जाति, ताकत और चुप रहने का दबाव: आईई से बात करने वाले स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, गांव में मौजूद जातिगत समीकरण इस चुप्पी को बनाए रखने में बेहद अहम भूमिका निभा रहे थे। पीड़िता का परिवार मडिगा समुदाय से है जो अनुसूचित जाति समूह है और गांव में इसकी मौजूदगी बहुत कम है। 17 आरोपियों में से 14 प्रभावी बोया समुदाय से हैं। पुलिस का कहना है कि जब मामला उजागर होना शुरू हुआ, तो बोया समुदाय के नेताओं ने लड़की पर उसके एससी सहपाठी (जांच के दायरे में आने वाले नाबालिगों में से एक नाबालिग) से शादी करने का दबाव बनाकर इसे दबाने का कोशिश की ताकि सहमति का जामा पहनाया जा सके और मामले को रफा दफा किया जा सके।
आई की रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “पीड़िता के गर्भवती दिखने के बावजूद किसी ने भी इस अपराध की सूचना नहीं दी। गांव की यह चुप्पी संयोग नहीं थी, यह जातिगत स्थिति और सामाजिक डर के जरिए थोपी गई थी।”
जारी है देखभाल और राज्य संरक्षण: डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता फिलहाल अनंतपुर के सरकारी जनरल अस्पताल में इलाजरत है। डॉक्टरों ने पुष्टि की है कि गर्भावस्था का समय काफी आगे जा चुका है, इसलिए गर्भपात संभव नहीं है। लड़की एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त है और गहरे मानसिक अवसाद से जूझ रही है। उसे काउंसलिंग, पोषण संबंधी सहायता और 24 घंटे की निगरानी और देखभाल कराई जा रही है।
डिलीवरी के बाद उसे गांव वापस नहीं भेजा जाएगा। इसके बजाय, मां और नवजात दोनों को राज्य संचालित एक महिला आश्रय गृह में स्थानांतरित किया जाएगा। आईई की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस अधीक्षक (SP) ने कहा, “हमें दबाव डाले जाने का डर है। ये आरोपी, भले ही जेल में हों, परिवार पर केस वापस लेने के लिए दबाव बना सकते हैं।”
राज्य सरकार ने अभी गर्भ में पल रहे बच्चे की डीएनए जांच के लिए अदालत से अनुमति लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि यह जांच मामले को मजबूत करेगी और आरोपियों में व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करने में मदद मिलेगी।
राजनीतिक प्रभाव: इस मामले ने राजनीतिक हलकों में विवाद और जनता में भारी नाराजगी पैदा कर दी है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने इस घटना को लेकर गहरा सदमा जाहिर करते हुए कहा कि मामले की तेजी से जांच, फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई और दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। अपने बयान में उन्होंने कहा, “मजबूत सबूत इकट्ठा किए जाने चाहिए ताकि दोषी बच न सकें।”
विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने टीडीपी सरकार पर राजनीतिक संबंध रखने वाले अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में रेड्डी ने लिखा, “सरकार की संवेदनहीनता का प्रमाण है कि राज्य में एक साल में 188 बलात्कार और 15 बलात्कार व हत्या की घटनाएं हुई हैं। हाल ही में अनंतपुर के इंटरमीडिएट में पढने वाले एक आदिवासी छात्र पर भी बुरी तरीके से हमला कर जंगल में फेंक दिया गया।”
आगे उन्होंने टीडीपी की महिलाओं की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता पर सवाल उठाते हुए स्थिति को “शर्मनाक” और “अविश्वसनीय” बताया।
संस्थागत लापरवाही और जातिगत बचाव
जाति, गरीबी और लिंग के संबंध ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) की लड़कियों को शोषण के प्रति असमान तरीके से कमजोर बना दिया है। ये दोनों मामले केवल व्यक्तिगत हिंसा के कृत्य नहीं हैं, बल्कि व्यवस्थागत उपेक्षा, जातिगत प्रभुत्व और संस्थागत विफलता की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। दलित लड़की के मामले में, स्कूल के शिक्षकों ने उसकी दसवीं कक्षा में अचानक ड्रॉपआउट पर ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा, आशा कार्यकर्ता, महिला पुलिस वॉलंटियर और बाल संरक्षण अधिकारी भी स्पष्ट चेतावनी के बावजूद दखल नहीं दे सके। आदिवासी बच्चे के मामले में, हिंसा तब तक छिपी रही जब तक पड़ोसियों ने इसकी सूचना नहीं दी।
समय पर दखल न देना, सामाजिक कलंक और प्रभावशाली जाति समूहों का डर दोनों मामलों में चुप्पी के बड़े कारण बने। सामूहिक बलात्कार के मामले में, कहा जाता है कि बोया समुदाय के नेताओं ने पीड़िता को मामले को रफा दफा करने के लिए उसके शादी करने पर दबाव डालने की कोशिश की।
आदिवासी लड़की के मामले में, समाज का कोई भी बुजुर्ग हिंसा को रोकने या अपराध की सूचना देने के लिए आगे नहीं आया।
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