महाराष्ट्र में नफरत की लहर: जनवरी 2025 में रिपोर्ट किए गए छह घटनाएँ महाराष्ट्र में बढ़ती साम्प्रदायिक और जातिवादी हिंसा को उजागर करती हैं  

Written by CJP Team | Published on: January 22, 2025
नई सरकार में नफरत से प्रेरित अपराधों और समाज को बांटने वाली बयानबाजी में वृद्धि महाराष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी पहचान के लिए बढ़ते खतरे को दर्शाती है, जिसमें अल्पसंख्यक और हाशिए पर पड़े समुदाय इसका खामियाजा भुगत रहे हैं।



महाराष्ट्र में नई राज्य सरकार के गठन के बाद से दिसंबर 2025 में नफरत से प्रेरित घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है। इसने राज्य के सामाजिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ दी है। ये घटनाएँ न तो छिटपुट हैं और न ही आकस्मिक। ये सांप्रदायिक और जाति-आधारित विभाजन को गहरा करने के सुनियोजित प्रयासों का परिणाम हैं, जो न्यायिक दंड से मुक्त होकर अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े समूहों को निशाना बनाते हैं। इस वृद्धि को लेकर परेशान करने वाली बात यह है कि जिस बेशर्मी से नफरत भरे भाषण दिए जा रहे हैं और नफरत से भरे अपराध किए जा रहे हैं, वे अक्सर धार्मिक या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बैनर तले होते हैं। सत्ता में बैठे लोगों की चुप्पी या इससे भी बदतर, मिलीभगत ने इन तत्वों को और बढ़ावा दिया है, जिससे ऐसा माहौल बना है, जहां कट्टरता बेरोकटोक पनप रही है।

यहाँ दर्ज की गई घटनाएँ सांप्रदायिक निशाना बनाने और भड़काऊ भाषणों से लेकर अमानवीय हिंसा और व्यवस्थागत भेदभाव तक की हैं, जो जनवरी के महीने से लेकर अब तक हुई हैं। सार्वजनिक मंचों और राजनीतिक आयोजनों को नफरती विचारधाराओं को फैलाने के लिए हथियार बनाया गया है, जिसमें बड़े नेता खुले तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों के बहिष्कार और हिंसा का आह्वान कर रहे हैं। कमजोर समूहों, विशेष रूप से मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों ने इस हमले का खामियाजा भुगता है, उन्हें आर्थिक परेशानी, सार्वजनिक अपमान और यहां तक कि हमलों का सामना करना पड़ा है।

यह खतरनाक प्रवृत्ति न केवल व्यक्तिगत पीड़ितों के लिए अपमान है, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और सद्भाव की महाराष्ट्र की विरासत के लिए एक गंभीर खतरा है। राज्य, जो कभी अपने प्रगतिशील आंदोलनों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था, अब खुद को एक जहरीले माहौल में फंसा हुआ पाता है, जहां डर, विभाजन और नफरत सार्वजनिक चर्चा पर हावी है। ये घटनाएँ कानून के शासन को कायम रखने और अपने नागरिकों की सुरक्षा करने में सरकार की विफलता को उजागर करती हैं, जिससे जवाबदेही और न्याय को लेकर सवाल उठते हैं।

जनवरी 2025 के महीने में महाराष्ट्र में नफरत और भेदभाव की कुछ सबसे भयावह घटनाओं का विवरण नीचे दिया गया है। ये घटनाएँ अलग-अलग घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता, समानता और मानवीय गरिमा के सिद्धांतों पर एक बड़े और व्यवस्थित हमले का हिस्सा हैं। वे तत्काल कार्रवाई और भारत के संविधान में निहित आदर्शों को बहाल करने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता की मांग करती हैं।

नफरत से भरी घटनाओं की डिटेल रिपोर्ट


यवतमाल में मुस्लिमों के स्वामित्व वाले व्यवसायों को निशाना बनाना

14 जनवरी को यवतमाल के वानी में दो मुस्लिम स्वामित्व वाले रेस्तरां को बजरंग दल के सदस्यों द्वारा जबरन बंद कर दिया गया। समूह ने प्रतिष्ठानों पर गोमांस परोसने का आरोप लगाया, जिसके कारण पुलिस ने बिना कोई सबूत दिए या निष्पक्ष जांच किए मांस को जब्त कर लिया। यह घटना मुसलमानों को आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर रखने के लिए धार्मिक भावनाओं को हथियार बनाने के एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करती है। इस तरह के कृत्य न केवल लोगों की आजीविका छीनते हैं, बल्कि डर और बहिष्कार का माहौल भी बनाते हैं, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का हनन होता है।

अमरावती में आदिवासी बुजुर्ग महिला पर जानलेवा हमला

सबसे भयावह घटनाओं में से एक घटना में अमरावती के रेत्याखेड़ा गांव में 77 वर्षीय आदिवासी महिला को 30 दिसंबर, 2024 को हिंसा का शिकार होना पड़ा। यह घटना 30 दिसंबर को हुई थी, लेकिन यह 5 जनवरी, 2025 को सामने आई, जब पीड़िता के बेटे और बहू ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

सियासत की एक रिपोर्ट के अनुसार, काला जादू करने के आरोप में आदिवासी महिला को बांध दिया गया, डंडों से पीटा गया, गर्म लोहे की छड़ों से दागा गया और मिर्च का धुआं सूंघने के लिए मजबूर किया गया। गांव के मुखिया के नेतृत्व में हमलावरों ने उसे पेशाब पिलाया, कुत्ते का मल खिलाया और उसे चप्पलों की माला पहनाकर पूरे गांव में घुमाया। हमले की गंभीरता के बावजूद अधिकारियों ने अभी तक अंधविश्वास विरोधी अधिनियम लागू नहीं किया है, जिससे आदिवासी और हाशिए पर पड़े समुदायों के प्रति व्यवस्थागत उदासीनता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

पीड़ित परिवार ने न्याय की मांग करते हुए महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग और पुलिस महानिरीक्षक सहित उच्च अधिकारियों से संपर्क किया है। जबकि जिला कलेक्टर ने उन्हें आगे की जांच का आश्वासन दिया है, इस तरह की देरी और उचित आरोपों में शुरुआती अनिच्छा इस तरह के बर्बर कृत्यों को रोकने में बड़ी विफलता को दर्शाती है।


कुर्ला कार्यक्रम में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी

विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल द्वारा मुंबई के कुर्ला में आयोजित "सम्राट यात्रा" कार्यक्रम में एक जैन साधु ने मुस्लिम विरोधी प्रचार वाला नफरती भाषण दिया। उन्होंने डॉ. बी.आर. अंबेडकर के बयानों को गलत तरीके से पेश किया और दावा किया कि दलित नेता ने भारत से मुसलमानों को बाहर निकालने का आह्वान किया था। इतिहास को जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश करने से सांप्रदायिक नफरत को सही ठहराने के लिए बड़ी हस्तियों को हथियार बनाया जा रहा है।

साधु के भाषण में बांग्लादेशी मुसलमानों को भी शैतान बताया गया, उन्हें "लुंगीवाला" कहा गया और हिंदुओं को उनके खिलाफ हिंसक कार्रवाई करने के लिए उकसाया गया। कानूनी नतीजों के डर के बिना सार्वजनिक कार्यक्रम में नफरत भरे भाषण का यह खुल्लम-खुला प्रचार मौजूदा राजनीतिक माहौल में चरमपंथी आवाजों के हौसले को दर्शाता है।


मंत्री नितेश राणे का नफरत भरा भाषण

महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नितेश राणे सांप्रदायिक नफरत फैलाने में बार-बार सामने आ रहे हैं। 10 जनवरी को सांगली में हिंदू जागरण सभा में राणे ने खुले तौर पर मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया और उन पर अपने कारोबार का इस्तेमाल “लव जिहाद” और “भूमि जिहाद” जैसी मनगढ़ंत साजिशों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने यह दावा करके लोगों में भय पैदा किया कि मुसलमानों का लक्ष्य 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना है।

कई मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राणे ने सांप्रदायिक अपशब्द “हर वोट मुल्ला के खिलाफ” को भी विभाजनकारी नारे के रूप में गढ़ा। भड़काऊ बयानबाजी और गुप्त धमकियों से भरा उनका भाषण इस बात का उदाहरण है कि कैसे निर्वाचित प्रतिनिधि सद्भाव और समावेशिता को बढ़ावा देने के बजाय सांप्रदायिक दरारों को गहरा करने के लिए अपने पदों का दुरुपयोग कर रहे हैं।


दादर में साध्वी ऋतंभरा का भड़काऊ भाषण

5 जनवरी को दादर में विश्व हिंदू परिषद की मातृशक्ति और दुर्गा वाहिनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में साध्वी ऋतंभरा ने भड़काऊ भाषण दिया। उन्होंने ऐतिहासिक मुस्लिम हस्तियों के साथ-साथ महिलाओं को भी बदनाम किया और कहा कि “औरंगजेब और तैमूर जैसे लोगों को जन्म देने वाली महिलाएं हमारी आदर्श महिलाएं नहीं हो सकतीं।” इस तरह के बयान न केवल पूरे समुदाय को बदनाम करते हैं, बल्कि विभाजनकारी तरीकों को भी बढ़ावा देते हैं।

ऋतंभरा ने ‘लव जिहाद’ के निराधार बातों को बढ़ावा दिया और भारतीय महिलाओं से “लव जिहादियों की आंखें फोड़ देने” का आह्वान किया। कार्यक्रम का समापन इसमें शामिल प्रतिभागियों द्वारा इस मनगढ़ंत खतरे के खिलाफ शपथ लेने के साथ हुआ जिससे एक विशेष समूह के खिलाफ नफरत और मजबूत हुई।


शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़ द्वारा जातिवादी अपशब्द भरा बयान

बुलढाणा में एक सार्वजनिक सभा में शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़ ने मतदाताओं पर मामूली पैसे, शराब और मांस के लिए अपने वोट बेचने का आरोप लगाकर उनका अपमान किया। मतदाताओं, महिलाओं और वंचित समूहों दोनों के प्रति सम्मान की कमी को दिखाते हुए उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया कि “एक वेश्या भी इससे बेहतर है।” एक जनप्रतिनिधि की ओर से इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी न केवल नागरिकों की गरिमा को ठेस पहुंचाती है, बल्कि राजनीतिक विमर्श में जातिवादी और वर्गवादी भाषा के सामान्य इस्तेमाल को भी उजागर करती है।


जवाबदेही और कार्रवाई की सख्त जरूरत

ये घटनाएँ कोई अलग-थलग घटना नहीं हैं, बल्कि नफरत को सामान्य बनाने, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और भारत के बहुलवादी लोकाचार को नष्ट करने के उद्देश्य से एक व्यापक, व्यवस्थित पैटर्न का हिस्सा हैं। खास तौर से परेशान करने वाली बात यह है कि राज्य की साफ मिलीभगत है, चाहे वह प्रत्यक्ष समर्थन, मौन स्वीकृति या सरासर उदासीनता के माध्यम से हो। पुलिस की निष्क्रियता, देरी से जांच और कानूनी परिणामों की अनुपस्थिति अपराधियों को प्रोत्साहित करती है और एक खतरनाक संकेत देती है कि नफरती अपराध और विभाजनकारी बयानबाजी अनियंत्रित हो जाएगी।

नफरत की घटनाओं में वृद्धि सांप्रदायिक और जातिगत विभाजन को गहरा करके सामाजिक-आर्थिक मुद्दों से ध्यान हटाने की एक सुनियोजित रणनीति की ओर भी इशारा करती है। निर्वाचित प्रतिनिधि और प्रभावशाली व्यक्ति जो घृणा फैलाने वाले भाषण देते हैं, उन्हें कानून के तहत जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। इसके अलावा, नागरिक समाज को ऐसे बयानों का मुकाबला करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाना चाहिए और न्याय की रक्षा में न्यायिक हस्तक्षेप त्वरित और निर्णायक होना चाहिए।

महाराष्ट्र में नफरत की घटनाओं में वृद्धि आत्मनिरीक्षण और प्रणालीगत सुधार की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है। राज्य सरकार को नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा पर नकेल कस कर जनता का विश्वास बहाल करने के लिए निर्णायक रूप से काम करना चाहिए, चाहे अपराधियों की राजनीतिक या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। इससे कम कुछ भी न केवल न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों के साथ विश्वासघात करेगा, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के ताने-बाने को खत्म करने की कोशिश करने वालों को भी बढ़ावा देगा।

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