राजस्थान में चला हिंदुत्व कार्ड: भाजपा के 4 भगवाधारी जीते, हवा महल विधायक ने जीतते ही नॉनवेज शॉप हटाने का आदेश दिया

Written by sabrang india | Published on: December 5, 2023
कर्नाटक के बाद तेलंगाना के लोगों ने कांग्रेस की विकासपरक सोच को धर्म के ऊपर तरजीह दी, लेकिन हिंदी पट्टी में धर्म बाजी मार गया। 



चार राज्यों -राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावों को 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा था। इन चुनावों में प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने वादे और गारंटी जैसे शब्द दिए। लेकिन चुनावों के रिजल्ट में देखा गया कि सिर्फ तेलंगाना की जनता ने कांग्रेस की गारंटी पर भरोसा किया, बाकी तीनों राज्यों में मोदी के वादों का असर रहा। इन चुनावों में यह देखा जाना महत्वपूर्ण है कि क्या भाजपा सिर्फ वादों की वजह से ही जीती या फिर कांग्रेस भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे का मुकाबला करने में पिछड़ रही है। 

कई बार चुनावों में देखा जाता रहा है कि मोदी मंदिर जाते हैं तो गर्भगृह से भी उनकी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं। इसके मुकाबले राहुल गांधी भी मंदिरों में पूजा करते व जनेऊ सार्वजनिक करते नजर आ चुके हैं। लेकिन इस दौड़ में मोदी ही जीतते नजर आते हैं। अब दूसरी बात पर गौर करें तो इसी साल कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो यात्रा करने के बाद राहुल गांधी की छवि को लेकर माना जा रहा था कि उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया है। लेकिन इन चुनाव परिणामों ने सारी बातों को हवा कर दिया है। 

राजस्थान चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को मात देने के लिए अपनी हिंदुत्व की रणनीति को अपनाया। इसके लिए भाजपा ने चार भगवाधारियों को चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा ने चार भगवाधारी उम्मीदवार - हवा महल निर्वाचन क्षेत्र से बालमुकुंद आचार्य, पोखरण से महंत प्रताप पुरी, सिरोही से ओटाराम देवासी और तिजारा से बालक नाथ को चुनाव में उतारा था। ये सभी चुनाव जीत गए हैं। 

बेशक, आज भाजपा के पास धन एवं प्रचार माध्यमों (मीडिया) के रूप में अकूत संसाधन हैं। लेकिन उसकी जीत का सिर्फ यही कारण नहीं है। बल्कि वह अपनी हिंदुत्व की राजनीति के पक्ष में इतनी ठोस गोलबंदी कर चुकी है कि चुनावों में उसे परास्त करना अति कठिन हो गया है। राष्ट्रवाद को हिंदुत्व के नजरिए से परिभाषित कर उसने बड़ी संख्या में लोगों की मन-मस्तिष्क में पैठ बना ली है। दूसरी तरफ विपक्ष में कोई भाजपा की वैचारिक शक्ति का विकल्प तैयार करने का प्रयास करता हुआ भी नहीं दिखता है। संभवतः विपक्षी दलों को लगता है कि वे मतदाताओं को प्रत्यक्ष लाभ बांटने की होड़ में आगे दिखा कर चुनाव जीत लेंगे। जबकि भाजपा इस बिंदु पर भी उन्हें ज्यादा जगह नहीं देती। इस पृष्ठभूमि में विपक्षी दलों के लिए असल विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या बिना राजनीति की नई परिकल्पना किए और बिना राजनीति करने के नए तरीके ढूंढे वे कभी भी भाजपा को चुनौती दे पाएंगे? इसके साथ ही दूसरे कारण भाजपा की सांगठनिक मजबूती, लोगों से जुड़ाव और उसके लिए पूरे समय पांच साल चौबीस गुना सात की राजनीति भी विपक्ष के लिए विचारणीय प्रश्न होना चाहिए।

बात करें तो हिंदी पट्टी राज्यों में धर्म का कार्ड कैसे चलना है, इस की विशेषज्ञ भाजपा है। जबकि कांग्रेस उसकी नकल करने के चक्कर में पिट गई। सामाजिक- राजनीतिक विश्लेषकों और वरिष्ठ पत्रकारों की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब लोगों को धर्म के आधार पर ही वोट देना है, तो वो असली छोड़, नकली माल की ओर क्यों देखेंगे। कांग्रेस पता नहीं कब इस बात को समझेगी कि सॉफ्ट हिंदुत्व से वो बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पाएगी। बागेश्वरधाम जैसे बाबा के चरणों में सिर नवाने में किसी कांग्रेस नेता की निजी श्रद्धा हो सकती है, और ऐसा करके वह अपनी और अपने परिवार की जीत सुनिश्चित कर सकता है, लेकिन यहां पार्टी आलाकमान की जिम्मेदारी है कि वे पूछें कि इससे कांग्रेस का भला कैसे हो सकता है। जाहिर है कमलनाथ जैसे नेताओं की इस तरह की मनमर्जी पर आलाकमान रोक नहीं लगा पाया और इसका नतीजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है।

हालांकि तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनने से भाजपा के लिए दक्षिण के दरवाजे एक बार फिर बंद हो गए हैं। इन नतीजों की एक और व्याख्या ये है कि देश में दक्षिण और उत्तर भारत की मानसिकता का फर्क पूरी तरह सतह पर आ गया है। कांग्रेस ने जैसी गारंटियां कर्नाटक में दी थीं, वैसी ही तेलंगाना और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी दी थीं। लेकिन इन गारंटियों का असर दक्षिण भारत में अलग हुआ और उत्तर भारत में अलग रहा। रोजगार, नौकरियों के लिए परीक्षाएं, सस्ता परिवहन, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, किसानों, मजदूरों के हित, ओबीसी का हक ऐसे तमाम मुद्दों पर उत्तर और दक्षिण भारत की जनता की सोच अलग नजर आई।

चुनाव जीतते ही मीट शॉप बंद कराते नजर आए भाजपा विधायक आचार्य बालमुकुंद
जयपुर के हवामहल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतते ही बीजेपी नेता बालमुकुंद आचार्य का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वे फोन पर एक अधिकारी को कानून का पाठ पढ़ा रहे हैं।वीडियो में बीजेपी विधायक फोन पर अधिकारी को सख्ती से निर्देश देते नजर आ रहे हैं कि जयपुर के सिल्वर मिंट रोड पर चल रही सभी अवैध मीट की दुकानों को तुरंत बंद कराया जाए। कांग्रेस के आरआर तिवारी को 974 वोटों से हराकर जीतते ही वे यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की नकल करते नजर आ रहे हैं।   



वीडियो में बालमुकुंद आचार्य एक अधिकारी से फोन पर बात कर रहे हैं और उन्हें सिल्वर मिंट रोड पर खुली नॉनवेज की दुकानों को तुरंत हटाने का निर्देश दे रहे हैं। बालमुकुंद आचार्य की सख्त आवाज ने उनके समर्थकों पर ऐसा प्रभाव डाला कि जब उन्होंने बातचीत पूरी की तो उन्होंने जोरदार तालियां बजाईं। अधिकारियों को सड़क किनारे लगे मीट के ठेलों को हटाने का भी निर्देश दिया गया है।


लोगों के खाने और डाइटरी प्रैक्टिसेज पर हमला गैर संविधानिक: PUCL राजस्थान

हवामहल के नव निर्वाचित विधायक बाल मकुंदाचार्य द्वारा जयपुर शहर में फुटपाथ और दुकानों में नॉनवेज बेचे जाने के ख़िलाफ़ बिना क़ानूनी प्रक्रिया अपनाये डायरेक्ट एक्शन करने की कड़ी निंदा करते हुये इसे अल्पसंख्यक व्यवसायको विरोधी व पथ विक्रेता क़ानून का खुला उल्लंघन बताया है।

मानव अधिकार संगठन पीयूसीएल ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि पथ विक्रेता क़ानून में वेज और नॉनवेज का कोई ज़िक्र नहीं है, वेंडिंग ज़ोन बनाए जाने तथा टाउन वेंडिंग कमेटी गठित करके पथ विक्रेताओं को सुरक्षा देने का नियम है, अभी तक टाउन वेंडिंग कमिटी ने वेंडर्स को लाइसेंस नहीं दिए हैं और वेंडिंग जोन्स भी चिन्हित नही किए हैं, ऐसे में एक नव निर्वाचित विधायक क़ानून हाथ में लेकर मीट की दुकानों तथा रेहड़ी पटरी पर नॉन वेज बेचने वालों को धमकाना अत्यंत चिंताजनक बात है। इसका हम पुरजोर शब्दों में निंदा करते हैं।

नव निर्वाचित विधायक जिन्होंने अभी शपथ भी नहीं ली है, वे अपने ही क्षेत्र के नागरिकों के साथ इस तरह भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हुए धमकाने में लग गये हैं, जो कि भारतीय संविधान की मूल भावना के विरुद्ध कृत्य है। विधायक को इस तरह की कार्यवाही तुरंत रोकनी चाहिये।

पीयूसीएल ने लोगों के खान पान की अभिरुचियों के सांस्कृतिक अधिकार (द राइट टू माय चॉइस ऑफ डाइटरी प्रैक्टिसेज)  पर इसे हमला करार देते हुए कहा है कि राजस्थान जैसे प्रदेश में लोगों के खाने,पहनने और जीवन जीने के तरीक़ों में विविधता है और इसे लेकर कभी भी कोई संघर्ष नहीं रहा है,ऐसे में नागरिकों के भोजन की आदतों में हस्तक्षेप ग़लत परंपरा की शुरुआत है, राजस्थान की आने वाली नई सरकार को नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की अपेक्षा की जाती है, न कि उसके विधायक से बिना कोई प्रक्रिया अपनाए सीधी कार्यवाही की अपेक्षा की जाती है।

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