याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट को सूचित किया था कि इस साल जनवरी से आदिवासी बहुल नंदुरबार जिले में 411 मौत हुई थीं जिनमें से कुपोषण से ग्रसित 86 बच्चे शामिल हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने नंदुरबार के जिला कलेक्टर को 23 सितंबर को अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश दिया और कुपोषण और चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों की लगातार मौत पर चिंता जताते हुए, अदालत ने क्षेत्र में बड़ी संख्या में डाक्टरों के रिक्त पदों को लेकर राज्य सरकार की भी खिंचाई की। हालांकि राज्य सरकार ने कहा है कि वह अपने विभिन्न विभागों के माध्यम से इस मुद्दे से निपटने के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय कर रही है।
इंडियन एक्सप्रेस और लाइव लॉ की खबर के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को नंदुरबार जिले के कलेक्टर को कुपोषण और पर्याप्त मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण जिले में बच्चों और मातृ मृत्यु की अधिक संख्या को लेकर तलब किया। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण के कारण कई बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की मृत्यु से संबंधित 2007 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। लाइव लॉ के अनुसार अदालत ने कहा, "हम चाहते हैं कि नंदुरबार के कलेक्टर 23 सितंबर को इस अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहें।"
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और मामले में हस्तक्षेप करने वाले बंदू साने ने अदालत को व्यक्तिगत रूप से सूचित किया कि जनवरी 2022 से जिले में 411 लोगों की मौत हुई, जिनमें 86 बच्चे कुपोषण और मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण शामिल हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि क्षेत्र में उचित सड़कें नहीं हैं, जो मेडिकल देखभाल तक पहुंच की समस्या को बढ़ा देती हैं। साने ने कोर्ट के समक्ष जिले में बच्चों के स्वास्थ्य और मातृ स्वास्थ्य के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत की। जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियां बनाने में सरकार की सहायता करने के उद्देश्य से अध्ययन समूह द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई।
लाइव लॉ की रिपोर्ट में कोर्ट में कहा गया कि मौतों का कारण बनने वाली अधिकांश स्थितियों को रोका जा सकता है या आसानी से इलाज किया जा सकता है। हालांकि, क्षेत्र में स्वास्थ्य कार्यक्रमों को ठीक से लागू नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों की मृत्यु में वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में पर्याप्त मेडिकल सुविधाओं की कमी और डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों की कमी को नोट किया गया। फ्लोटिंग बोट अस्पताल और एम्बुलेंस काफी पुराने हैं और उचित रखरखाव की कमी है। यह इस मुद्दे से निपटने के लिए कुछ सिफारिशें भी प्रदान करता है।
अदालत ने निर्देश दिया कि यह रिपोर्ट नंदुरबार जिले के कलेक्टर को दी जाए, जो 21 सितंबर, 2022 से पहले इस रिपोर्ट और याचिकाओं के जवाब में एक हलफनामा दाखिल करेंगे। दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान नंदुरबार के जिलाधिकारी को वहां पर हुई बच्चों की मौत को लेकर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा था लेकिन कोर्ट के सामने इस विषय पर कोई रिपोर्ट अदालत में नहीं पेश की जा सकी। इसलिए कोर्ट ने नंदुरबार के जिलाधिकारी को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में हाजिर रहने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि मामले को लेकर हमारे सामने आधी-अधूरी जानकारी पेश की गई है जिससे हम संतुष्ट नहीं हैं। हम सरकार से बेहतर हलफनामे की अपेक्षा रखते हैं। साथ ही कोर्ट ने मेलघाट इलाके में आदिवासी इलाके में रह रहे लोगों की दिक्कतों को लेकर सरकार की ओर से उठाए गए कदमों को लेकर असंतोष व्यक्त किया।
इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता बीएस साने खंडपीठ के सामने कहा कि नंदुरबार में कुपोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में बच्चों की मौत का आकड़ा लगातार बढ रहा है। यह आंकड़ा 400 के ऊपर पहुंच गया है लेकिन अब तक वहां पर पर्याप्त डाक्टर नहीं उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि क्षेत्र में उचित सड़कें नहीं हैं, जो मेडिकल देखभाल तक पहुंच की समस्या को बढ़ा देती हैं। साने ने कोर्ट के समक्ष जिले में बच्चों के स्वास्थ्य और मातृ स्वास्थ्य के संबंध में भी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
यही नहीं, जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियां बनाने में सरकार की सहायता करने के उद्देश्य से अध्ययन समूह द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि मौतों का कारण बनने वाली अधिकांश स्थितियों को रोका जा सकता है या आसानी से इलाज किया जा सकता है। हालांकि, क्षेत्र में स्वास्थ्य कार्यक्रमों को ठीक से लागू नहीं किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों की मृत्यु में वृद्धि हुई।
इससे पहले खंडपीठ ने आदिवासी इलाकों में डाक्टरों की नियुक्ति न किए जाने को लेकर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि जिस तरीके से न्यायिक सेवा में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर समय पर कदम उठाए जाते है वैसे ही डाक्टरों की नियुक्ति को लेकर वक्त पर पहल की जानी चाहिए।
दरअसल, कोर्ट ने 17 अगस्त, 2022 को कलेक्टर को इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया। हालांकि कोई हलफनामा दाखिल नहीं किया गया। इसलिए अदालत ने कलेक्टर को 23 सितंबर, 2022 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया। अदालत ने स्वास्थ्य सेवा निदेशक को भी 21 सितंबर, 2022 से पहले इस मुद्दे पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
उधर, मध्यप्रदेश में भी कुपोषण को लेकर तस्वीर अच्छी नहीं है। सीएम शिवराज सिंह ने भले सहरिया, बैगा और भारिया आदिवासी महिलाओं को उनके जीवन के गुजर-बसर के लिए पोषण भत्ते का वितरण किया। उन्होंने विशेष पिछड़ी जनजाति सहरिया, बैगा और भारिया के 2 लाख 33 हज़ार 570 परिवार की महिला मुखियाओं के खातों में 23 करोड़ 35 लाख 70 हजार ट्रांसफ़र किये। इन महिलाओं के व्यक्तिगत खातों में सितंबर महीने के लिए एक-एक हज़ार रुपये की राशि ट्रांसफर की गई है। लेकिन धरातल पर सच्चाई अलग है। वो यह कि 2017 में शुरू हुई इस योजना का लाभ आदिवासी महिलाओं को बहुत देर से और बहुत कम मिला है।
खास है कि मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए आदिवासियों का समर्थन बेहद ज़रूरी है। 2018 में बीजेपी को आदिवासी इलाक़ों में समर्थन नहीं मिलने से सत्ता से बाहर होना पड़ा था। पिछले दरवाज़े से एक बार फिर सत्ता में पहुँचे शिवराज चौहान एक बार फिर से आदिवासी मतदाता को रिझाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस सिलसिले में उनकी सरकार एक के बाद एक घोषणाएँ कर रही है। आदिवासियों के लिए बड़े बड़े आयोजन किये जा रहे हैं। इन कई आयोजनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए है।
मध्य प्रदेश में लंबे समय से सत्ता संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के विकास का काफ़ी ढोल पीटा है, पीट रहे हैं लेकिन आँकड़े और रिकॉर्ड कुछ और ही कहता है। मसलन राज्य में 1996 में बने पेसा क़ानून को लागू करने की घोषणा कुछ महीने पहले ही हुई है तो एक एक हजार रुपए की धनराशि भी आधी अधूरी व देर से ही महिलाओं तक पहुंच पा रही है।
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इंडियन एक्सप्रेस और लाइव लॉ की खबर के अनुसार, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को नंदुरबार जिले के कलेक्टर को कुपोषण और पर्याप्त मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण जिले में बच्चों और मातृ मृत्यु की अधिक संख्या को लेकर तलब किया। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण के कारण कई बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की मृत्यु से संबंधित 2007 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। लाइव लॉ के अनुसार अदालत ने कहा, "हम चाहते हैं कि नंदुरबार के कलेक्टर 23 सितंबर को इस अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहें।"
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और मामले में हस्तक्षेप करने वाले बंदू साने ने अदालत को व्यक्तिगत रूप से सूचित किया कि जनवरी 2022 से जिले में 411 लोगों की मौत हुई, जिनमें 86 बच्चे कुपोषण और मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण शामिल हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि क्षेत्र में उचित सड़कें नहीं हैं, जो मेडिकल देखभाल तक पहुंच की समस्या को बढ़ा देती हैं। साने ने कोर्ट के समक्ष जिले में बच्चों के स्वास्थ्य और मातृ स्वास्थ्य के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत की। जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियां बनाने में सरकार की सहायता करने के उद्देश्य से अध्ययन समूह द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई।
लाइव लॉ की रिपोर्ट में कोर्ट में कहा गया कि मौतों का कारण बनने वाली अधिकांश स्थितियों को रोका जा सकता है या आसानी से इलाज किया जा सकता है। हालांकि, क्षेत्र में स्वास्थ्य कार्यक्रमों को ठीक से लागू नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों की मृत्यु में वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में पर्याप्त मेडिकल सुविधाओं की कमी और डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों की कमी को नोट किया गया। फ्लोटिंग बोट अस्पताल और एम्बुलेंस काफी पुराने हैं और उचित रखरखाव की कमी है। यह इस मुद्दे से निपटने के लिए कुछ सिफारिशें भी प्रदान करता है।
अदालत ने निर्देश दिया कि यह रिपोर्ट नंदुरबार जिले के कलेक्टर को दी जाए, जो 21 सितंबर, 2022 से पहले इस रिपोर्ट और याचिकाओं के जवाब में एक हलफनामा दाखिल करेंगे। दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान नंदुरबार के जिलाधिकारी को वहां पर हुई बच्चों की मौत को लेकर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा था लेकिन कोर्ट के सामने इस विषय पर कोई रिपोर्ट अदालत में नहीं पेश की जा सकी। इसलिए कोर्ट ने नंदुरबार के जिलाधिकारी को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में हाजिर रहने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि मामले को लेकर हमारे सामने आधी-अधूरी जानकारी पेश की गई है जिससे हम संतुष्ट नहीं हैं। हम सरकार से बेहतर हलफनामे की अपेक्षा रखते हैं। साथ ही कोर्ट ने मेलघाट इलाके में आदिवासी इलाके में रह रहे लोगों की दिक्कतों को लेकर सरकार की ओर से उठाए गए कदमों को लेकर असंतोष व्यक्त किया।
इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता बीएस साने खंडपीठ के सामने कहा कि नंदुरबार में कुपोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में बच्चों की मौत का आकड़ा लगातार बढ रहा है। यह आंकड़ा 400 के ऊपर पहुंच गया है लेकिन अब तक वहां पर पर्याप्त डाक्टर नहीं उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि क्षेत्र में उचित सड़कें नहीं हैं, जो मेडिकल देखभाल तक पहुंच की समस्या को बढ़ा देती हैं। साने ने कोर्ट के समक्ष जिले में बच्चों के स्वास्थ्य और मातृ स्वास्थ्य के संबंध में भी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
यही नहीं, जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियां बनाने में सरकार की सहायता करने के उद्देश्य से अध्ययन समूह द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि मौतों का कारण बनने वाली अधिकांश स्थितियों को रोका जा सकता है या आसानी से इलाज किया जा सकता है। हालांकि, क्षेत्र में स्वास्थ्य कार्यक्रमों को ठीक से लागू नहीं किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों की मृत्यु में वृद्धि हुई।
इससे पहले खंडपीठ ने आदिवासी इलाकों में डाक्टरों की नियुक्ति न किए जाने को लेकर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि जिस तरीके से न्यायिक सेवा में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर समय पर कदम उठाए जाते है वैसे ही डाक्टरों की नियुक्ति को लेकर वक्त पर पहल की जानी चाहिए।
दरअसल, कोर्ट ने 17 अगस्त, 2022 को कलेक्टर को इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया। हालांकि कोई हलफनामा दाखिल नहीं किया गया। इसलिए अदालत ने कलेक्टर को 23 सितंबर, 2022 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया। अदालत ने स्वास्थ्य सेवा निदेशक को भी 21 सितंबर, 2022 से पहले इस मुद्दे पर व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
उधर, मध्यप्रदेश में भी कुपोषण को लेकर तस्वीर अच्छी नहीं है। सीएम शिवराज सिंह ने भले सहरिया, बैगा और भारिया आदिवासी महिलाओं को उनके जीवन के गुजर-बसर के लिए पोषण भत्ते का वितरण किया। उन्होंने विशेष पिछड़ी जनजाति सहरिया, बैगा और भारिया के 2 लाख 33 हज़ार 570 परिवार की महिला मुखियाओं के खातों में 23 करोड़ 35 लाख 70 हजार ट्रांसफ़र किये। इन महिलाओं के व्यक्तिगत खातों में सितंबर महीने के लिए एक-एक हज़ार रुपये की राशि ट्रांसफर की गई है। लेकिन धरातल पर सच्चाई अलग है। वो यह कि 2017 में शुरू हुई इस योजना का लाभ आदिवासी महिलाओं को बहुत देर से और बहुत कम मिला है।
खास है कि मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए आदिवासियों का समर्थन बेहद ज़रूरी है। 2018 में बीजेपी को आदिवासी इलाक़ों में समर्थन नहीं मिलने से सत्ता से बाहर होना पड़ा था। पिछले दरवाज़े से एक बार फिर सत्ता में पहुँचे शिवराज चौहान एक बार फिर से आदिवासी मतदाता को रिझाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस सिलसिले में उनकी सरकार एक के बाद एक घोषणाएँ कर रही है। आदिवासियों के लिए बड़े बड़े आयोजन किये जा रहे हैं। इन कई आयोजनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल हुए है।
मध्य प्रदेश में लंबे समय से सत्ता संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के विकास का काफ़ी ढोल पीटा है, पीट रहे हैं लेकिन आँकड़े और रिकॉर्ड कुछ और ही कहता है। मसलन राज्य में 1996 में बने पेसा क़ानून को लागू करने की घोषणा कुछ महीने पहले ही हुई है तो एक एक हजार रुपए की धनराशि भी आधी अधूरी व देर से ही महिलाओं तक पहुंच पा रही है।
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