दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे के लिए मोहंड व आशारोड़ी रेंज में साल और सागौन के सैकड़ों साल पुराने पेड़ों का काटे जाने का काम लगातार जारी है। दूसरी ओर, शिवालिक के इस बेशकीमती जंगल को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों व पर्यावरणप्रेमियों ने विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है। तख्ती, पोस्टर व जनगीतों के माध्यम से सरकार को जगाने का काम किया जा रहा है। रविवार को एक बार फिर विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता आशारोड़ी जंगल पहुंचे और विरोध की अलख जगाई। युवा वन गुज्जरों का संगठन, वन गुज्जर ट्रायबल युवा संगठन भी जंगल बचाने की इस मुहिम में बढ़ चढ़कर भाग ले रहा है।
पेड़ों का यह कटान दिल्ली से देहरादून के सफर का समय कम करने के नाम पर किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने के बाद दिल्ली से देहरादून ढाई घंटे में पहुंच जाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुछ दिन पहले ट्वीट कर ये दावा किया था। ये 4-लेन हाईवे 3 किमी देहरादून सीमा में व 8 किमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की सीमा में घने जंगलों से होकर गुजरेगा जो शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है। शिवालिक पहाड़ियों के जंगल अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर हैं।
यहां सबसे ज्यादा संख्या में साल और सागौन के पेड़ हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ वर्ष से ज्यादा है। सड़क चौड़ी करने के लिए करीब 14 हजार पेड़ काटे जाने की बात कही जा रही है। लेकिन, इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ ही शामिल किये गये हैं। छोटे और मझोले पेड़ कितने काटे जाएंगे, इसकी कोई गिनती रखने की जरूरत नहीं समझी गई। आशोरोड़ी और मोहंड का यह क्षेत्र राजाजी नेशनल पार्क का हिस्सा है। यह हाथियों का गलियारा है और टाइगर व चीते सहित सैकड़ों प्रजाति के वन्य जीव, पक्षी और तितली प्रजाति की हजारों स्पीशीज का भी यह इलाका पसंदीदा निवास है। प्रदर्शन में देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा भी शामिल हुए।
जंगलों काटने के खिलाफ इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रही संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं, दिल्ली से देहरादून वापस लौटते हुए घुमावदार पहाड़ियां शुरू होते ही पहाड़ों का खुशनुमा एहसास मन को तरोताजा कर देता है। गाड़ी की रफ्तार कुछ धीमी रखें तो एक तरफ चौड़ी सफेद घुमावदार नदी तो दूसरी तरफ पुराने साल के पेड़ों की छनकर आती धूप उल्लास से भरती है। चिड़ियों और झींगुरों की आवाज और ठंडी हवा के झोंके बताते हैं कि हम अब मैदानों के धूल-धूसरित वातावरण को छोड़कर प्रकृति के सानिध्य में पहुंच चुके हैं। अरोड़ा कहते हैं कि यह चौड़ी सड़क देहरादून आने वालों से यह खुशनुमा एहसास छीन लेगी। सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भागने वाली गाड़ियों में बैठे लोगों को यह सब देखने और महसूस करने का समय ही नहीं मिल पाएगा।
आशारोड़ी में पेड़ों का कटान शुरू होने के साथ ही देहरादून के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। यहां की सामाजिक संस्थाएं हर रोज यहां जंगलों पर नजर रखे हुए हैं। विरोध प्रदर्शन के बाद से आशारोड़ी में नए पेड़ काटने का सिलसिला बीच में थमा था, लेकिन फिर शुरू हो गया। भविष्य में सभी पेड़ काटे जाने की संभावना को देखते हुए लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। रविवार को किए गए प्रदर्शन में इस विरोध की अगुवाई कर रही देहरादून की संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन देहरादून के अलावा एसएफआई, उत्तराखंड महिला मोर्चा, हिंद स्वराज, द अर्थ एंड क्लाइमेट चेंज इनीशिएटिव, भारत की जनवादी नौजवान सभा, आगाज, पराशक्ति, अखिल गढ़वाल सभा, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, उत्तराखंड महिला मंच, तितली ट्रस्ट, फ्रेंड्स ऑफ दून, खुशियों की उड़ान, राज्य आंदोलनकारी मंच तथा वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन आदि लगातार हिस्सेदारी कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में जंगल काटने के विरोध वाली तख्तियां लिए हैं तो नारेबाजी के साथ जनगीत गाए जा रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी जंगल बचाने और धरती की सुरक्षा करने का संदेश दिया गया और जंगल बचाने और प्रकृति के अंधाधुंध दोहन रोकने को भी संकल्प लिया।
चारधाम परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष रहे, रवि चोपड़ा ने कहा कि ज्यादातर लोग दिल्ली का सफर करने के लिए हाल ही में निर्मित हरिद्वार एक्सप्रेसवे का निर्माण करते हैं। ऐसे में यात्रा का समय घटाने के नाम पर 11 हजार पेड़ों के कत्ल की अनुमति नहीं दी जा सकती है। खास है कि चोपड़ा ने ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के निर्माण में लगातार पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान के विरोध में इसी साल फरवरी में कमेटी से इस्तीफा दे दिया था। रवि चोपड़ा ने आरोप लगाया कि केंद्रीय सड़क परिवहन को लेकर कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी को सही जानकारी नहीं दी जा रही है। चोपड़ा ने जरूरत से ज्यादा चौड़ी सड़कों का निर्माण किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पहाड़ का कटान किया जा रहा है, उससे आने वाले समय में भीषण तबाही हो सकती है। उन्होंने पेड़ों के ट्रांसप्लांट को भी अव्यवहारिक बताया। कहा- सड़क कटान के लिए जब जंगल काटा जाता है तो वहां घास, झाड़ियां, झरने, पानी के स्रोत, जीव जंतु, पेड़ पौधे सब समाप्त हो जाते हैं और पूरा इको सिस्टम तबाह हो जाता है।
इस प्रदर्शनों की सबसे खास बात यह रही कि युवाओं और महिलाओं ने भी अच्छी संख्या में शिरकत की। इस दौर में जब युवाओं का एक बड़ा वर्ग सांप्रदायिक जहर भरे व्हाट्सअप मैसेज फॉरवर्ड करने को अपनी शान समझ बैठा है, ऐसे में जंगल बचाने के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी आश्वस्त करती है कि भविष्य निराशाजनक नहीं है। छात्राओं के संगठन पराशक्ति से जुड़ी छात्राओं ने जब ‘ये जो कुल्हाड़ी, पेड़़ पे मारी, तुमने अपने पैर पे मारी’, गाया तो जंगल काटे जाने से सामने आने वाले दुष्परिणामों की तस्वीर जेहन में उभर गई। एसएफआई के जुड़े छात्रों ने भी डफली की थाप पर जनगीत गाये।
विरोध प्रदर्शनों में शामिल भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट कहते हैं, जलवायु परिवर्तन आज के दौर की बड़ी चुनौती है। पूरी दुनिया में सतत विकास की बात कही जा रही है। हमारा देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को लागू करने के समझौते का हिस्सा है, भाषणों में सतत विकास की खूब बात होती है, लेकिन जब धरातल पर काम करने का वक्त आता है तो कभी ऑल वेदर रोड के नाम पर लाखों पेड़ काटकर कुछ हजार बताये जाते हैं तो कभी दिल्ली पहुंचने में देरी न हो, इसके लिए हजारों साल पुराने जंगल का सफाया किया जाता है। वे कहते हैं फिलहाल यह रोड़ पर्याप्त चौड़ी है। इससे ज्यादा चौड़ी सड़क जरूरत नहीं सिर्फ हवस है।
सोशल एक्टिविस्ट इरा चौहान कहती हैं, इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने से दो-ढाई घंटे में दिल्ली पहुंचने और यह हाईवे पर्यटन उद्योग साबित होने का झांसा दिया गया है। इसके खतरों से अनजान भोली-भाली जनता इस तथाकथित विकास के प्रचार-प्रसार में शामिल हो गई है, वह नहीं समझ पा रही है कि हम देहरादून को देश के तमाम अन्य शहरों की तरह एक गर्म, दुर्गम, प्रदूषित और भीड़भाड़ वाले शहर में बदलने की राह पर चल पड़े हैं। सोशल एक्टिविस्ट प्रेम बहुखंडी कहते हैं, देहरादून के 50 प्रतिशत लोग दिल्ली जाते ही नहीं, 25 प्रतिशत लोग साल में एक-दो बार जाते हैं। 10-15 प्रतिशत महीने में एक-दो बार। सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही इस हाईवे से नियमित रूप से दिल्ली आते-जाते हैं। वे सवाल उठाते हैं कि क्या इसलिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है कि ये 5 प्रतिशत लोग 10 मिनट जल्दी पहुंच जाएं।
पेड़ों को काटने में इलेक्ट्रिक आरी का इस्तेमाल किया जा है। इससे कुछ ही मिनट में साल के सैकड़ों पुराने पेड़ों को एक के बाद एक गिराया जा रहा है। सिटीजन फॉर ग्रीन दून के आह्वान पर कुछ लोगों तथा वन गुज्जर ट्रायबल युवा संगठन द्वारा शुरू किये गये इस आंदोलन में रविवार को दर्जनों संस्थाएं और कई नामी पर्यावरणविद भी जुड़े... और देहरादून आशारोड़ी के जंगल बचाने के कार्य को आगे बढ़ाया गया...। वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन के संस्थापक अमीर हमजा व अध्यक्ष इशाक गुज्जर ने बताया कि इस मिशन में उनके साथ वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन के पूर्व अध्यक्ष अमानत अली, संगठन हरिद्वार जिला अध्यक्ष मुमताज तथा संगठन के सम्मानित साथी आफताब चौहान आदि ने भाग लिया।
द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव की डॉ आंचल शर्मा ने बेहद बेहरमी से सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा है, इस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। कहा- सरकार की ओर से बार-बार सफाई दी जा रही है कि जो पेड़ काटे जा रहे हैं, उनके बदले दूसरी जगह पेड़ लगाये जाएंगे जो झूठ है। प्रदर्शनकारियों का कहना था चारधाम रोड प्रोजेक्ट के मामले में भी यही कहा गया था, लेकिन अभी तक ये नहीं बताया गया कि इस परियोजना के तहत काटे गये हजारों पेड़ों के बदले कहां पेड़ लगाये गये। नियमानुसार जिस क्षेत्र में पेड़ काटे जाते हैं, बदले में वहीं पेड़ लगाये जाने चाहिए। एक्टिविस्ट इंद्रेश नौटियाल का कहना था कि यहां पेड़ नहीं जंगल काटा जा रहा है।
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यहां सबसे ज्यादा संख्या में साल और सागौन के पेड़ हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ वर्ष से ज्यादा है। सड़क चौड़ी करने के लिए करीब 14 हजार पेड़ काटे जाने की बात कही जा रही है। लेकिन, इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ ही शामिल किये गये हैं। छोटे और मझोले पेड़ कितने काटे जाएंगे, इसकी कोई गिनती रखने की जरूरत नहीं समझी गई। आशोरोड़ी और मोहंड का यह क्षेत्र राजाजी नेशनल पार्क का हिस्सा है। यह हाथियों का गलियारा है और टाइगर व चीते सहित सैकड़ों प्रजाति के वन्य जीव, पक्षी और तितली प्रजाति की हजारों स्पीशीज का भी यह इलाका पसंदीदा निवास है। प्रदर्शन में देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा भी शामिल हुए।
जंगलों काटने के खिलाफ इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रही संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं, दिल्ली से देहरादून वापस लौटते हुए घुमावदार पहाड़ियां शुरू होते ही पहाड़ों का खुशनुमा एहसास मन को तरोताजा कर देता है। गाड़ी की रफ्तार कुछ धीमी रखें तो एक तरफ चौड़ी सफेद घुमावदार नदी तो दूसरी तरफ पुराने साल के पेड़ों की छनकर आती धूप उल्लास से भरती है। चिड़ियों और झींगुरों की आवाज और ठंडी हवा के झोंके बताते हैं कि हम अब मैदानों के धूल-धूसरित वातावरण को छोड़कर प्रकृति के सानिध्य में पहुंच चुके हैं। अरोड़ा कहते हैं कि यह चौड़ी सड़क देहरादून आने वालों से यह खुशनुमा एहसास छीन लेगी। सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भागने वाली गाड़ियों में बैठे लोगों को यह सब देखने और महसूस करने का समय ही नहीं मिल पाएगा।
आशारोड़ी में पेड़ों का कटान शुरू होने के साथ ही देहरादून के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। यहां की सामाजिक संस्थाएं हर रोज यहां जंगलों पर नजर रखे हुए हैं। विरोध प्रदर्शन के बाद से आशारोड़ी में नए पेड़ काटने का सिलसिला बीच में थमा था, लेकिन फिर शुरू हो गया। भविष्य में सभी पेड़ काटे जाने की संभावना को देखते हुए लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है। रविवार को किए गए प्रदर्शन में इस विरोध की अगुवाई कर रही देहरादून की संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन देहरादून के अलावा एसएफआई, उत्तराखंड महिला मोर्चा, हिंद स्वराज, द अर्थ एंड क्लाइमेट चेंज इनीशिएटिव, भारत की जनवादी नौजवान सभा, आगाज, पराशक्ति, अखिल गढ़वाल सभा, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, उत्तराखंड महिला मंच, तितली ट्रस्ट, फ्रेंड्स ऑफ दून, खुशियों की उड़ान, राज्य आंदोलनकारी मंच तथा वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन आदि लगातार हिस्सेदारी कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में जंगल काटने के विरोध वाली तख्तियां लिए हैं तो नारेबाजी के साथ जनगीत गाए जा रहे हैं। प्रदर्शन के दौरान नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी जंगल बचाने और धरती की सुरक्षा करने का संदेश दिया गया और जंगल बचाने और प्रकृति के अंधाधुंध दोहन रोकने को भी संकल्प लिया।
चारधाम परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष रहे, रवि चोपड़ा ने कहा कि ज्यादातर लोग दिल्ली का सफर करने के लिए हाल ही में निर्मित हरिद्वार एक्सप्रेसवे का निर्माण करते हैं। ऐसे में यात्रा का समय घटाने के नाम पर 11 हजार पेड़ों के कत्ल की अनुमति नहीं दी जा सकती है। खास है कि चोपड़ा ने ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के निर्माण में लगातार पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान के विरोध में इसी साल फरवरी में कमेटी से इस्तीफा दे दिया था। रवि चोपड़ा ने आरोप लगाया कि केंद्रीय सड़क परिवहन को लेकर कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी को सही जानकारी नहीं दी जा रही है। चोपड़ा ने जरूरत से ज्यादा चौड़ी सड़कों का निर्माण किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पहाड़ का कटान किया जा रहा है, उससे आने वाले समय में भीषण तबाही हो सकती है। उन्होंने पेड़ों के ट्रांसप्लांट को भी अव्यवहारिक बताया। कहा- सड़क कटान के लिए जब जंगल काटा जाता है तो वहां घास, झाड़ियां, झरने, पानी के स्रोत, जीव जंतु, पेड़ पौधे सब समाप्त हो जाते हैं और पूरा इको सिस्टम तबाह हो जाता है।
इस प्रदर्शनों की सबसे खास बात यह रही कि युवाओं और महिलाओं ने भी अच्छी संख्या में शिरकत की। इस दौर में जब युवाओं का एक बड़ा वर्ग सांप्रदायिक जहर भरे व्हाट्सअप मैसेज फॉरवर्ड करने को अपनी शान समझ बैठा है, ऐसे में जंगल बचाने के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी आश्वस्त करती है कि भविष्य निराशाजनक नहीं है। छात्राओं के संगठन पराशक्ति से जुड़ी छात्राओं ने जब ‘ये जो कुल्हाड़ी, पेड़़ पे मारी, तुमने अपने पैर पे मारी’, गाया तो जंगल काटे जाने से सामने आने वाले दुष्परिणामों की तस्वीर जेहन में उभर गई। एसएफआई के जुड़े छात्रों ने भी डफली की थाप पर जनगीत गाये।
विरोध प्रदर्शनों में शामिल भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट कहते हैं, जलवायु परिवर्तन आज के दौर की बड़ी चुनौती है। पूरी दुनिया में सतत विकास की बात कही जा रही है। हमारा देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को लागू करने के समझौते का हिस्सा है, भाषणों में सतत विकास की खूब बात होती है, लेकिन जब धरातल पर काम करने का वक्त आता है तो कभी ऑल वेदर रोड के नाम पर लाखों पेड़ काटकर कुछ हजार बताये जाते हैं तो कभी दिल्ली पहुंचने में देरी न हो, इसके लिए हजारों साल पुराने जंगल का सफाया किया जाता है। वे कहते हैं फिलहाल यह रोड़ पर्याप्त चौड़ी है। इससे ज्यादा चौड़ी सड़क जरूरत नहीं सिर्फ हवस है।
सोशल एक्टिविस्ट इरा चौहान कहती हैं, इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने से दो-ढाई घंटे में दिल्ली पहुंचने और यह हाईवे पर्यटन उद्योग साबित होने का झांसा दिया गया है। इसके खतरों से अनजान भोली-भाली जनता इस तथाकथित विकास के प्रचार-प्रसार में शामिल हो गई है, वह नहीं समझ पा रही है कि हम देहरादून को देश के तमाम अन्य शहरों की तरह एक गर्म, दुर्गम, प्रदूषित और भीड़भाड़ वाले शहर में बदलने की राह पर चल पड़े हैं। सोशल एक्टिविस्ट प्रेम बहुखंडी कहते हैं, देहरादून के 50 प्रतिशत लोग दिल्ली जाते ही नहीं, 25 प्रतिशत लोग साल में एक-दो बार जाते हैं। 10-15 प्रतिशत महीने में एक-दो बार। सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही इस हाईवे से नियमित रूप से दिल्ली आते-जाते हैं। वे सवाल उठाते हैं कि क्या इसलिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है कि ये 5 प्रतिशत लोग 10 मिनट जल्दी पहुंच जाएं।
पेड़ों को काटने में इलेक्ट्रिक आरी का इस्तेमाल किया जा है। इससे कुछ ही मिनट में साल के सैकड़ों पुराने पेड़ों को एक के बाद एक गिराया जा रहा है। सिटीजन फॉर ग्रीन दून के आह्वान पर कुछ लोगों तथा वन गुज्जर ट्रायबल युवा संगठन द्वारा शुरू किये गये इस आंदोलन में रविवार को दर्जनों संस्थाएं और कई नामी पर्यावरणविद भी जुड़े... और देहरादून आशारोड़ी के जंगल बचाने के कार्य को आगे बढ़ाया गया...। वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन के संस्थापक अमीर हमजा व अध्यक्ष इशाक गुज्जर ने बताया कि इस मिशन में उनके साथ वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन के पूर्व अध्यक्ष अमानत अली, संगठन हरिद्वार जिला अध्यक्ष मुमताज तथा संगठन के सम्मानित साथी आफताब चौहान आदि ने भाग लिया।
द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव की डॉ आंचल शर्मा ने बेहद बेहरमी से सैकड़ों साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा है, इस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। कहा- सरकार की ओर से बार-बार सफाई दी जा रही है कि जो पेड़ काटे जा रहे हैं, उनके बदले दूसरी जगह पेड़ लगाये जाएंगे जो झूठ है। प्रदर्शनकारियों का कहना था चारधाम रोड प्रोजेक्ट के मामले में भी यही कहा गया था, लेकिन अभी तक ये नहीं बताया गया कि इस परियोजना के तहत काटे गये हजारों पेड़ों के बदले कहां पेड़ लगाये गये। नियमानुसार जिस क्षेत्र में पेड़ काटे जाते हैं, बदले में वहीं पेड़ लगाये जाने चाहिए। एक्टिविस्ट इंद्रेश नौटियाल का कहना था कि यहां पेड़ नहीं जंगल काटा जा रहा है।
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