उत्तराखंड में जंगल की आग दिनों दिन भीषण होती जा रही है। जिससे जंगलात के साथ वन्यजीवों को खासा नुकसान पहुंच रहा है। गढ़वाल से लेकर कुमाऊं मंडल तक जगह-जगह जंगल धधक रहे हैं। हज़ारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए हैं। निरंतर भयानक हो रही आग से कार्बेट टाइगर रिजर्व (पार्क) पर खतरे की संभावना बढ़ गई है। यही नहीं, पार्क की आबादी क्षेत्रों से लगी सीमा को लेकर भी चिंता बढ़ी है जो कि काफी संवेदनशील है। दरअसल जंगल की आग रामनगर वन प्रभाग में मोहान के पास तक पहुंच गई है। जिससे तराई पश्चिम वन प्रभाग के पार्क से सटे सावल्दे, हल्दुआ और काशीपुर रेंज के जंगल जल गए हैं।
गर्मी का मौसम और तेज हवाओं से स्थिति बेकाबू होती जा रही है। हालात इस कदर गंभीर हैं कि कई जगह आग आबादी के पास तक पहुंच गई है। नैनीताल में खुर्पाताल व राजभवन रोड के निचले इलाके में आग भड़क उठी थी। खास है कि यह क्षेत्र राजभवन से करीब एक किमी दूर है। दो सौ मीटर दायरे में लगी आग पर वन विभाग की टीम ने बामुश्किल काबू पाया। इसके अलावा पिथौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर के पास जंगल की आग से कई मकान राख हो गए। जंगलों में लगी आग से कई जगह धुंध छाई है।
भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद जो आशंकाएं जता रहे थे, वो सच साबित होती दिख रही हैं। अप्रैल की शुरुआत में राज्य के जंगलों की आग नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। उत्तराखंड वानिकी और औद्यानिकी यूनिवर्सिटी के पर्यवरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसपी सती के अनुसार, अभी तो शुरुआत है। आग की इन घटनाओं को देखते हुए आशंका है कि इस बार 2016 से ज्यादा बुरी स्थिति हो सकती है। यदि पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई, तो मॉनसून आने तक 10 प्रतिशत से अधिक जंगल आग की चपेट में आ सकते हैं। 2016 के बाद पहली बार आग, कार्बेट नेशनल पार्क तक पहुंची है।
वैसे प्रदेश में जंगलों के धधकने का सिलसिला पिछले साल अक्टूबर से जारी है। यही वजह है कि सरकार ने पूरे वर्ष को ही फायर सीजन घोषित कर दिया है। आमतौर पर फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक रहता है। बीते छह माह में प्रदेश में आग की करीब 1300 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं। इनमें सर्वाधिक गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में हुईं। इसके अलावा कुछ घटनाएं संरक्षित वन क्षेत्रों में हुई हैं। करीब 1400 हेक्टेयर जंगल को क्षति पहुंची है, जबकि 6 लोग जान गंवा चुके हैं।
वन विभाग के ही अनुसार, 1 अक्टूबर 2020 से 4 अप्रैल 2021 तक उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की 989 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 1297.43 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। यह क्षेत्र करीब 2300 फुटबॉल मैदानों के बराबर होता है। 3 मार्च से चार मार्च तक 65 आग की घटनाएं हुईं, जिनमें 97 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जले हैं। आग से सबसे अधिक नुकसान पौड़ी में हुआ है। यहां 92 घटनाओं में 217.4 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में आग लगने की 94-94 घटनाएं दर्ज की गई हैं। पिथौरागढ़ में 153.5 हेक्टेयर और चंपावत में 128.9 हेक्टेयर जंगल जले हैं।
उत्तराखंड के पर्यावरणविद विशेश्वर दत्त सकलानी का सकलाना घाटी में लगाया गया, मिश्रित वन पिछले तीन दिनों के दौरान लगभग 90 प्रतिशत जल चुका है। उन्होंने यहां 5 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए थे। वन विभाग के अनुसार, इस आग की वजह से करीब 38 लाख 47 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। इन घटनाओं में अब तक चार लोगों की मौत हुई है और दो लोग घायल हुए हैं। 7 पशुओं की भी आग में मौत हुई है, जबकि 22 पशु घायल हुए हैं।
टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक की सकलाना पट्टी के जंगल में भड़की आग इस कदर बेकाबू हो गई थी कि आग गांवों तक न पहुंचे, के लिए ग्रामीणों ने खुद ही मोर्चा संभाला और रात भर आग बुझाने में जुटे रहे। इसके अलावा भिलंगना ब्लॉक के कई क्षेत्रों में भी जंगल सुलग रहे हैं। टिहरी जिले में ही करीब 100 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।
आलम यह है कि आग का दायरा हर सेकेंड फैलता जा रहा है। अब यह आग रिहायशी इलाके की तरफ बढ़ने लगी है। लोगों में इस आग को लेकर खौफ फैल गया है। टिहरी के घंसाली बाजार के लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगहों पर भाग रहे हैं। आग इतनी करीब तक आ पहुंची है कि घंसाली बाजार किसी भी वक्त इसकी चपेट में आ सकता है। प्रशासन की तरफ आग को बुझाने की अब तक की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। हर किसी को अब बारिश का इंतजार है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आग का दायरा इतना फैल चुका है कि दमकल की गाड़ियों से इस पर काबू पाना नामुमकिन जैसा है।
चमोली और पौड़ी जिलों में भी यही स्थिति है। चमोली जिले में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग व बदरीनाथ वन प्रभाग के जंगल भी सुलग रहे हैं। पौड़ी के पास खिर्सू के जंगल में लगी आग सड़क तक आ गई। वन विभाग की टीम और ग्रामीणों ने इस पर किसी तरह काबू पाया। इसके अलावा कुमाऊं में चंपावत और बागेश्वर में भी जंगल सुलग रहे हैं।
जंगल में सुलगती आग वन्य जीवों पर भी भारी पड़ रही है। उत्तरकाशी ज़िला प्रशासन के अनुसार, 24 मार्च को बाड़ाहाट रेंज में मनेरी के पास एक घुरल झुलसा मिला था। उसके उपचार दिया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। उत्तरकाशी वन प्रभाग, अपर यमुना वन प्रभाग और टौंस वन प्रभाग में जंगल सुलग रहे हैं।
जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं से पुलिस महकमा भी चिंतित है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने आमजन से आग की घटनाओं की सूचना तत्काल फायर सर्विस और वन विभाग को देने की अपील की है। साथ ही वनों में आग लगाने वाले शरारती तत्वों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी भी दी है। उन्होंने सभी थाना पुलिस को भी शरारती तत्वों पर निगाह रखने के निर्देश दिए।
आग की बढ़ती घटनाओं के बीच नैनीताल वन प्रभाग ने आग लगाने वाले शरारती तत्वों की सूचना देने वाले को दस हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की है। डीएफओ टीआर बीजू लाल के अनुसार, सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा। वन विभाग के ही अनुसार, आग से चार जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जिनमें नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (वनाग्नि एवं आपदा प्राबंधन) मान सिंह के अनुसार, जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित होती है। कई बार ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, जिससे उसकी जगह नई घास उग सके। लेकिन आग इस कदर फैल जाती है कि वन संपदा को खासा नुकसान होता है। वहीं, दूसरा कारण चीड़ की पत्तियों में आग का भड़कना भी है। चीड़ की पत्तियां (पिरुल) और छाल से निकलने वाला रसायन, रेजिन, बेहद ज्वलनशील होता है। जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क जाती है और विकराल रूप ले लेती है। उत्तराखंड में 16 से 17 फीसदी जंगल चीड़ के हैं। इन्हें जंगलों की आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार माना जाता है।
हालांकि अच्छी खबर बुधवार को हुई बारिश-बर्फबारी की है जिससे जंगलों में लगी आग में काफी हद तक राहत मिली है। मौसम के बदले मिजाज से उत्तरकाशी में गंगा घाटी और यमुना घाटी में कई स्थानों पर लगी आग पर काबू पा लिया गया है। वरना तो वायुसेना के चॉपर भी आग पर काबू पाने में असहाय साबित हो रहे थे। पौड़ी व टिहरी में भी बारिश से जंगलों में लगी आग कुछ शांत हुई है। लेकिन फौरी तौर से भले यह बड़ी राहत की बात हो लेकिन भविष्य के लिहाज से जंगल की आग रोकने को शासन प्रशासन को ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। बड़ा सबक लेना होगा वरना तो... पछतावा ही हाथ आता है।
पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि जंगल अकेले वन विभाग के भरोसे नहीं बचाए जा सकते। जंगल को बचाना है तो अपने फ़ॉरेस्ट ईको-सिस्टम को समझना होगा। चाहे वह चीड़ के जंगल हों या दूसरे वन, सभी जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जानी चाहिए। अगर जंगल में और आस-पास नमी होगी तो स्थानीय वनस्पतियां खुद ही फलने-फूलने लगेंगी और भूजल भी बढ़ेगा। यही नहीं, इसके लिए स्टाफ़ की ट्रेनिंग के साथ जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए। वन पंचायतों और वन समितियों को सक्रिय किया जाएं ताकि वनाग्नि रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।
गर्मी का मौसम और तेज हवाओं से स्थिति बेकाबू होती जा रही है। हालात इस कदर गंभीर हैं कि कई जगह आग आबादी के पास तक पहुंच गई है। नैनीताल में खुर्पाताल व राजभवन रोड के निचले इलाके में आग भड़क उठी थी। खास है कि यह क्षेत्र राजभवन से करीब एक किमी दूर है। दो सौ मीटर दायरे में लगी आग पर वन विभाग की टीम ने बामुश्किल काबू पाया। इसके अलावा पिथौरागढ़ में पाताल भुवनेश्वर के पास जंगल की आग से कई मकान राख हो गए। जंगलों में लगी आग से कई जगह धुंध छाई है।
भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद जो आशंकाएं जता रहे थे, वो सच साबित होती दिख रही हैं। अप्रैल की शुरुआत में राज्य के जंगलों की आग नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। उत्तराखंड वानिकी और औद्यानिकी यूनिवर्सिटी के पर्यवरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसपी सती के अनुसार, अभी तो शुरुआत है। आग की इन घटनाओं को देखते हुए आशंका है कि इस बार 2016 से ज्यादा बुरी स्थिति हो सकती है। यदि पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई, तो मॉनसून आने तक 10 प्रतिशत से अधिक जंगल आग की चपेट में आ सकते हैं। 2016 के बाद पहली बार आग, कार्बेट नेशनल पार्क तक पहुंची है।
वैसे प्रदेश में जंगलों के धधकने का सिलसिला पिछले साल अक्टूबर से जारी है। यही वजह है कि सरकार ने पूरे वर्ष को ही फायर सीजन घोषित कर दिया है। आमतौर पर फायर सीजन 15 फरवरी से 15 जून तक रहता है। बीते छह माह में प्रदेश में आग की करीब 1300 घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं। इनमें सर्वाधिक गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में हुईं। इसके अलावा कुछ घटनाएं संरक्षित वन क्षेत्रों में हुई हैं। करीब 1400 हेक्टेयर जंगल को क्षति पहुंची है, जबकि 6 लोग जान गंवा चुके हैं।
वन विभाग के ही अनुसार, 1 अक्टूबर 2020 से 4 अप्रैल 2021 तक उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की 989 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 1297.43 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। यह क्षेत्र करीब 2300 फुटबॉल मैदानों के बराबर होता है। 3 मार्च से चार मार्च तक 65 आग की घटनाएं हुईं, जिनमें 97 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जले हैं। आग से सबसे अधिक नुकसान पौड़ी में हुआ है। यहां 92 घटनाओं में 217.4 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में आग लगने की 94-94 घटनाएं दर्ज की गई हैं। पिथौरागढ़ में 153.5 हेक्टेयर और चंपावत में 128.9 हेक्टेयर जंगल जले हैं।
उत्तराखंड के पर्यावरणविद विशेश्वर दत्त सकलानी का सकलाना घाटी में लगाया गया, मिश्रित वन पिछले तीन दिनों के दौरान लगभग 90 प्रतिशत जल चुका है। उन्होंने यहां 5 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए थे। वन विभाग के अनुसार, इस आग की वजह से करीब 38 लाख 47 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। इन घटनाओं में अब तक चार लोगों की मौत हुई है और दो लोग घायल हुए हैं। 7 पशुओं की भी आग में मौत हुई है, जबकि 22 पशु घायल हुए हैं।
टिहरी जिले के जौनपुर ब्लॉक की सकलाना पट्टी के जंगल में भड़की आग इस कदर बेकाबू हो गई थी कि आग गांवों तक न पहुंचे, के लिए ग्रामीणों ने खुद ही मोर्चा संभाला और रात भर आग बुझाने में जुटे रहे। इसके अलावा भिलंगना ब्लॉक के कई क्षेत्रों में भी जंगल सुलग रहे हैं। टिहरी जिले में ही करीब 100 हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।
आलम यह है कि आग का दायरा हर सेकेंड फैलता जा रहा है। अब यह आग रिहायशी इलाके की तरफ बढ़ने लगी है। लोगों में इस आग को लेकर खौफ फैल गया है। टिहरी के घंसाली बाजार के लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगहों पर भाग रहे हैं। आग इतनी करीब तक आ पहुंची है कि घंसाली बाजार किसी भी वक्त इसकी चपेट में आ सकता है। प्रशासन की तरफ आग को बुझाने की अब तक की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। हर किसी को अब बारिश का इंतजार है। स्थानीय लोगों का कहना है कि आग का दायरा इतना फैल चुका है कि दमकल की गाड़ियों से इस पर काबू पाना नामुमकिन जैसा है।
चमोली और पौड़ी जिलों में भी यही स्थिति है। चमोली जिले में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग व बदरीनाथ वन प्रभाग के जंगल भी सुलग रहे हैं। पौड़ी के पास खिर्सू के जंगल में लगी आग सड़क तक आ गई। वन विभाग की टीम और ग्रामीणों ने इस पर किसी तरह काबू पाया। इसके अलावा कुमाऊं में चंपावत और बागेश्वर में भी जंगल सुलग रहे हैं।
जंगल में सुलगती आग वन्य जीवों पर भी भारी पड़ रही है। उत्तरकाशी ज़िला प्रशासन के अनुसार, 24 मार्च को बाड़ाहाट रेंज में मनेरी के पास एक घुरल झुलसा मिला था। उसके उपचार दिया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। उत्तरकाशी वन प्रभाग, अपर यमुना वन प्रभाग और टौंस वन प्रभाग में जंगल सुलग रहे हैं।
जंगलों में बढ़ती आग की घटनाओं से पुलिस महकमा भी चिंतित है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने आमजन से आग की घटनाओं की सूचना तत्काल फायर सर्विस और वन विभाग को देने की अपील की है। साथ ही वनों में आग लगाने वाले शरारती तत्वों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी भी दी है। उन्होंने सभी थाना पुलिस को भी शरारती तत्वों पर निगाह रखने के निर्देश दिए।
आग की बढ़ती घटनाओं के बीच नैनीताल वन प्रभाग ने आग लगाने वाले शरारती तत्वों की सूचना देने वाले को दस हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की है। डीएफओ टीआर बीजू लाल के अनुसार, सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा। वन विभाग के ही अनुसार, आग से चार जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जिनमें नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी में आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (वनाग्नि एवं आपदा प्राबंधन) मान सिंह के अनुसार, जंगल में आग लगने की एक वजह मानव जनित होती है। कई बार ग्रामीण जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं, जिससे उसकी जगह नई घास उग सके। लेकिन आग इस कदर फैल जाती है कि वन संपदा को खासा नुकसान होता है। वहीं, दूसरा कारण चीड़ की पत्तियों में आग का भड़कना भी है। चीड़ की पत्तियां (पिरुल) और छाल से निकलने वाला रसायन, रेजिन, बेहद ज्वलनशील होता है। जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क जाती है और विकराल रूप ले लेती है। उत्तराखंड में 16 से 17 फीसदी जंगल चीड़ के हैं। इन्हें जंगलों की आग के लिए मुख्यतः जिम्मेदार माना जाता है।
हालांकि अच्छी खबर बुधवार को हुई बारिश-बर्फबारी की है जिससे जंगलों में लगी आग में काफी हद तक राहत मिली है। मौसम के बदले मिजाज से उत्तरकाशी में गंगा घाटी और यमुना घाटी में कई स्थानों पर लगी आग पर काबू पा लिया गया है। वरना तो वायुसेना के चॉपर भी आग पर काबू पाने में असहाय साबित हो रहे थे। पौड़ी व टिहरी में भी बारिश से जंगलों में लगी आग कुछ शांत हुई है। लेकिन फौरी तौर से भले यह बड़ी राहत की बात हो लेकिन भविष्य के लिहाज से जंगल की आग रोकने को शासन प्रशासन को ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। बड़ा सबक लेना होगा वरना तो... पछतावा ही हाथ आता है।
पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि जंगल अकेले वन विभाग के भरोसे नहीं बचाए जा सकते। जंगल को बचाना है तो अपने फ़ॉरेस्ट ईको-सिस्टम को समझना होगा। चाहे वह चीड़ के जंगल हों या दूसरे वन, सभी जगह रेन वाटर हार्वेस्टिंग की जानी चाहिए। अगर जंगल में और आस-पास नमी होगी तो स्थानीय वनस्पतियां खुद ही फलने-फूलने लगेंगी और भूजल भी बढ़ेगा। यही नहीं, इसके लिए स्टाफ़ की ट्रेनिंग के साथ जन-जागरूकता अभियान चलाया जाए। वन पंचायतों और वन समितियों को सक्रिय किया जाएं ताकि वनाग्नि रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके।