UP चुनाव: आखिरी दौर के लिए पार्टियों ने झोंकी ताकत, बनारस में 3 को ममता-अखिलेश, 4 को मोदी का रोड-शो

Written by Navnish Kumar | Published on: March 2, 2022
यूपी चुनाव अब समापन की ओर बढ़ रहा है। अब पूर्वांचल के दो चरणों यानी छठे चरण की 57 सीटों पर 3 मार्च और सातवें व अंतिम चरण की 54 विधानसभा सीटों पर 7 मार्च को मतदान होना है। इसी के चलते एक मार्च को छठे दौर का प्रचार थमते ही राजनीतिक दलों ने 7वें यानी आखिरी दौर के प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। कल 3 मार्च को बनारस में जयंत, ममता व अखिलेश की तिगड़ी रोड-शो व रैली करेगी तो 4 को मोदी का 6 किमी लंबा मेगा रोड-शो होगा। कल छठे दौर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में वोट पड़ेंगे तो सातवें दौर में पीएम के संसदीय क्षेत्र बनारस में मोदी की परीक्षा होगी। गोरखपुर की ही तरह बनारस में भी इस बार कांटे की टक्कर होने की ख़बरें हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के ये इलाका सत्ता तक पहुंचने की चाभी साबित होता आया है। यही कारण है कि दो चरणों में पूर्वांचल की 111 सीटें इस वक्त सभी राजनीतिक दलों के लिए नाक का सवाल बनी हैं। 



2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो इन 111 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 75, समाजवादी पार्टी को 13, बहुजन समाज पार्टी को 11, अपनादल एस को 5, सुभासपा को 4, कांग्रेस को 1, निषाद पार्टी को 1 व 1 सीट निर्दलीय प्रत्याशी को मिली थीं। 2012 के चुनाव तक पूर्वांचल सपा व उसके पहले बसपा का गढ़ माना जाता था। लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक समझ रखने वाले इस इलाके की जनता ने भाजपा का साथ दिया और 2017 व उसके दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी पूर्वांचल की जनता भाजपा के पाले में ही खड़ी नजर आई। लेकिन इस बार स्थिति बदली बदली दिख रही है। पूर्वांचल की इन 111 सीटों में राज परिवार की साख भी दांव पर है।

पडरौना राज परिवार कभी कांग्रेस में खासी दखल रखता था। लेकिन इस चुनाव के ऐन पहले आरपीएन सिंह भाजपाई हो गए। देखना दिलचस्प होगा कि उनका कितना लाभ भाजपा को मिलता है। उधर बांसी स्टेट के जय प्रताप सिंह, योगी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनकी साख भी इस बार दांव पर है। सिसवा स्टेट 11 बार विधायकी जीत चुकी है। इस स्टेट के शिवेंद्र सिंह 2017 का चुनाव सपा के टिकट पर हार चुके हैं। इस बार वे अपनी पार्टी को कितनी मदद पहुंचा पाएंगे? यह सवाल भी बड़ा है। वहीं मझौली राज स्टेट के पास भी चार बार विधायकी रह चुकी है। देवरिया का यह स्टेट अब सियासत से दूर है लेकिन लोगों के बीच आज भी उसकी दखल है। बस्ती स्टेट के राजा ऐश्वर्य राज सिंह इस वक्त राष्टीय लोकदल के प्रवक्ता हैं। देखना दिलचस्प होगा कि वो सपा गठबंधन को कितना लाभ पहुंचा पाने में कामयाब हो पाते हैं। जबकि अठदमा स्टेट के पुष्कारादित्य सिंह आम आदमी पार्टी के टिकट पर रुधौली से मैदान में हैं। बस्ती में बसपा व आप भी फैक्टर है। बस्ती की 5 रूधौली, सदर, हरैया, कप्तानगंज, महादेवा सीटों पर निर्णायक वोट दलित व ब्राह्मण है। इसलिए 2017 से पहले तक जिले में बसपा, सपा का दबदबा था। 2017 की मोदी लहर में सभी सीटों पर भाजपा की जीत का करिश्मा ब्राह्मणों के एकमुश्त भाजपा रूझान से था लेकिन अब वैसा रूझान नहीं दिखता है।

गोरखपुर सहित 10 जिलों की 57 सीटों पर 1 मार्च मंगलवार को प्रचार समाप्त हो गया। इस चरण का मतदान 3 मार्च को होगा। मुख्य चुनाव अधिकारी अजय कुमार शुक्ला ने बताया कि छठे चरण में 57 सीटों पर 676 प्रत्याशी मैदान में हैं। पिछले 2017 के चुनाव में इन 57 सीटों में से 46 सीटें भाजपा को मिली थीं और 2 सीट उसकी सहयोगी अपना दल व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को मिली थी। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इस बार सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है। छठे चरण में अंबेडकर नगर, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया और बलिया जिलों के 57 विधानसभा सीटों पर तीन मार्च को सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक मतदान होगा।

बात योगी के गोरखपुर की ही करें तो पिछली बार भाजपा ने गोरखपुर जिले की 9 में से 8 सीटों पर जीत हासिल की थी, लंबे समय से पार्टी के विधायक राधा मोहनदास अग्रवाल ने गोरखपुर शहर को 60 हजार वोटों के अंतर से बरकरार रखा था। साथ ही आदित्यनाथ खुद गोरखपुर लोकसभा सीट से 5 बार सांसद रह चुके हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर सदर में गुरुवार को मतदान होगा, जहां उनका मुकाबला सपा की सुभावती शुक्ला और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद के साथ है। स्थानीय लोगों का कहना है कि “महाराज” (जैसा कि आदित्यनाथ को कहा जाता है) को रिकॉर्ड बराबर रखना होगा या इससे बेहतर करना चाहिए। इससे कम कुछ भी होगा तो उसे एक झटके के रूप में ही देखा जाएगा।

इसलिए जब आदित्यनाथ पूरे राज्य में भाजपा के लिए प्रचार करने में व्यस्त हैं, तो उनके चुनाव कार्यालय में पूरी दीवार को कवर करने वाली एक एलईडी स्क्रीन ने गोरखपुर को अपने भाषणों और कार्यक्रमों की रोशनी में रखा है। “नए उत्तर प्रदेश का नया गोरखपुर” घोषित करने वाले पर्चे लेकर, स्वयंसेवकों ने यहां से जिले भर में धूम मचा दी है। समर्थकों का कहना है कि “यहां की जनता विधायक नहीं, मुख्यमंत्री चुन रही है” व्यक्तिगत या धार्मिक जुड़ाव के अलावा, 2017 से आदित्यनाथ वैकल्पिक चिकित्सा के लिए गोरखपुर में यूपी के पहले आयुष विश्वविद्यालय और महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय लाए हैं; बीआरडी मेडिकल कॉलेज, जो 2017 में कथित रूप से ऑक्सीजन की कमी के कारण रात भर में होने वाली मौतों के लिए राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था, में अब इंसेफेलाइटिस और अतिरिक्त 500 बाल चिकित्सा बिस्तरों में त्वरित परीक्षण और अनुसंधान के लिए एक आईसीएमआर प्रयोगशाला और एक उर्वरक संयंत्र व नया एम्स भी यहां लाए है।

छठे चरण में ही अंबेडकरनगर जिले की कटहरी सीट पर बसपा विधायक दल के नेता रह चुके लालजी वर्मा इस बार सपा उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। अंबेडकरनगर की ही अकबरपुर विधानसभा सीट पर बसपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राम अचल राजभर इस बार सपा उम्मीदवार हैं। सिद्धार्थनगर जिले की इटवा सीट पर पूर्व विधानसभाध्यक्ष व सपा उम्मीदवार माता प्रसाद पांडेय चुनाव लड़ रहे हैं तो कुशीनगर की पड़रौना विधानसभा सीट से पिछली बार भाजपा से चुनाव जीते और योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। प्रचार के आखिरी दिन मंगलवार को कुशीनगर में उनके रोड शो पर हमला होने की खबर है, जिस में कई लोग घायल हुए हैं।

उधर, हालिया रुझान देंखे तो मोदी के बनारस में भी कई सीटें फंसी हुई लगती हैं। सात चरणों में हो रहे यूपी विधानसभा चुनाव के छठे चरण का प्रचार खत्म हो जाने से, सातवें यानी आखिरी चरण में चुनाव पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उससे सटे 8 जिलों में ही सीमित हो गया है। वाराणसी समेत आसपास के 9 जिलों में अंतिम चरण का चुनाव 7 मार्च को होगा। यहां मतदान से ठीक पहले पीएम मोदी 4 मार्च को वाराणसी आएंगे। इस दौरान वह 6 किलोमीटर लंबा रोड शो करेंगे। पहले तीन मार्च का कार्यक्रम बन रहा था लेकिन इसे चार मार्च कर दिया गया है। इस चुनाव में पीएम मोदी का यह पहला रोड-शो होगा। पीएम मोदी एक हफ्ते में दूसरी बार वाराणसी आएंगे। इससे पहले 27 फरवरी को भी पीएम मोदी यहां आए थे और बूथ लेवल के करीब 20 हजार कार्यकर्ताओं से संवाद करने के साथ ही जनसभा को भी संबोधित किया था। उस दौरान भी पीएम मोदी के काफिले ने पुलिस लाइन से विश्वनाथ मंदिर और वहां से बाबतपुर एयरपोर्ट तक करीब 35 किलोमीटर का सफर तय किया था। उनके काफिले के आगे-आगे भाजपा कार्यकर्ताओं की बाइक रैली से माहौल को भाजपा के पक्ष में बनाने की कोशिश की गई थी। 

3 मार्च को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व रालोद के मुखिया जयंत चौधरी भी वाराणसी में कई कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। जनसभा के अलावा उनका भी रोड शो का भी कार्यक्रम है। वाराणसी जिले में 8 विधानसभा सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा गठबंधन ने सभी 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। 6 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी और 1-1 सीट पर ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा और अनुप्रिया पटेल के अपना दल को जीत मिली थी। इस बार सुभासपा ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है। अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल भी सपा के साथ आ गई हैं। ऐसे में सपा-सुभासपा और कृष्णा पटेल वाले अपना दल गठबंधन ने बनारस और उसके आसपास की सीटों पर भाजपा को कड़ी चुनौती दे दी है। 

अब वैसे तो बनारस की आठों सीटों पर सपा और भाजपा गठबंधन ने जोर लगाया हुआ है लेकिन असली लड़ाई वाराणसी की शहर दक्षिणी सीट पर देखने को मिल रही है। यहां पिछले 3 दशक से बीजेपी कभी नहीं हारी है। पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भी इसी दक्षिणी विधानसभा में है। भाजपा इस बार काशी के विकास और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को यूपी में ही नहीं पूरे देश में एक मॉडल के रूप में पेश कर रही है। इसलिए यह सीट उसके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। पिछली बार इस सीट पर बीजेपी को सबसे कम वोट मिले थे, जीत का अंतर भी सबसे कम रहा था। उसका कारण कद्दावर नेता और सात बार से लगातार विधायक रहे श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को उतारना माना गया था। इस बार फिर से नीलकंठ तिवारी ही मैदान में हैं। सपा ने यहां से महामृत्युंजय मंदिर के महंत किशन दीक्षित को उतारकर कड़ी चुनौती पेश कर दी है। पिछली बार नीलकंठ तिवारी को यहां से कांग्रेस के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा ने टक्कर दी थी। इस बार राजेश मिश्रा को कांग्रेस ने यहां दोबारा न उतारकर कैंट सीट पर भेज दिया है। इससे भाजपा के खिलाफ पड़ने वाला वोट बंटने की संभावना भी कम हो गई है। भाजपा के लिए एक अन्य चुनौती कॉरिडोर बनने के कारण विस्थापित हुए परिवार और ऐतिहासिक विश्वनाथ गली के व्यापारियों का आक्रोश भी है। कॉरिडोर बनने से विश्वनाथ गली का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। काफी इलाका तो कॉरिडोर में ही समाहित हो गया है। विश्वनाथ गली में पहले गंगा स्नान कर भक्त आते-जाते थे तो व्यापार होता था। अब गंगा से सीधे कॉरिडोर में रास्ता बन जाने से लोगों का आना जाना ही कम हो गया है।    

खास बात यह है कि एक ओर भाजपा दोबारा बनारस की सभी सीट जीतकर पूरे देश में यह संदेश देना चाहेगी कि यहां के लोग भी बेहद खुश है। दूसरी तरफ सपा यहां से जीत हासिल कर काशी को मॉडल के रूप में पेश करने की भाजपा की रणनीति पर बड़ी चोट करने की कोशिश में है। सपा नेताओं का मानना है कि अगर बनारस की शहर दक्षिणी सीट भी उनके कब्जे में आ गई तो इसका संदेश पूरे देश में जाएगा। यही कारण है कि पीएम मोदी खुद  एक हफ्ते में न सिर्फ दूसरी बार यहां प्रचार के लिए आ रहे हैं बल्कि अमित शाह, राजनाथ सिंह से लेकर अन्य नेताओं का दौरा भी लगातार जारी है। इसी सब से पूरे देश की निगाहें अब बनारस पर है। देखना होगा कि कौन बाजी मारता है।

Related:

बाकी ख़बरें