वायु प्रदूषण पर नीति और शासन की विफलता, NACEJ ने की जवाबदेही और न्याय की मांग

Written by sabrang india | Published on: November 13, 2025
स्वच्छ पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के लिए समर्पित एक राष्ट्रव्यापी गठबंधन का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर प्रदूषण संकट के लिए ठोस, बेहतर तरीके से क्रियान्वित नीतिगत बदलावों और प्रदूषण के मुख्य कारणों के खिलाफ संस्थागत कार्रवाई की आवश्यकता है, न कि नागरिकों पर दमन की। "सांस लेने के मौलिक अधिकार को बहाल करें।”


Image: https://health.economictimes.indiatimes.com

12 नवम्बर 2025: एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी बेहद गंभीर प्रदूषण संकट के बीच घिरी हुई है। इस सप्ताह दिल्ली में नागरिकों, महिलाओं और युवाओं द्वारा किए गए कई विरोध प्रदर्शनों ने इस स्थिति की भयावहता को उजागर किया। लेकिन शर्मनाक रूप से, संस्थागत जवाबदेही स्वीकार करने के बजाय, दिल्ली सरकार ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस बल का इस्तेमाल किया और 9 नवम्बर की रात देर तक कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में रखा। नेशनल एलायंस फॉर क्लाइमेट एंड इकोलॉजिकल जस्टिस (NACEJ)  ने इन हिरासतों को अनावश्यक और अन्यायपूर्ण बताया है।

NACEJ ने सरकार की विफलता और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की मनमानी गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की है। संगठन ने इसे “वायु प्रदूषण संकट से निपटने में सरकार की नाकामी और इस जनस्वास्थ्य आपदा के खिलाफ साहसपूर्वक आवाज उठाने वाले नागरिकों, छात्रों, अभिभावकों, पर्यावरणविदों, श्रमिकों और कार्यकर्ताओं की मनमानी हिरासत” करार दिया है। NACEJ ने कहा कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को सरकार की विफलता, अन्यायपूर्ण हिरासतों और शांतिपूर्ण नागरिकों के खिलाफ पुलिस बल के इस्तेमाल के लिए जनता और प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए। संगठन ने यह भी मांग की है कि प्रदर्शनकारियों पर दर्ज सभी मामले (यदि कोई दर्ज किए गए हों) तत्काल वापस लिए जाएं।

प्रशासन की यह भेदभावपूर्ण कार्रवाई न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि दिल्ली-एनसीआर में लाखों लोगों को झेलनी पड़ रही गंभीर स्वास्थ्य आपातस्थिति की भी खुली अनदेखी है। सरकारी निगरानी केंद्रों के अनुसार, 21 अक्तूबर 2025 को दीपावली के बाद वायु प्रदूषण स्तर ने पिछले चार वर्षों का उच्चतम स्तर पार कर लिया है। इस समस्या की गंभीरता के मद्देनज़र, सरकार की संकीर्ण और राजनीतिक दृष्टि से प्रेरित प्रतिक्रिया न केवल अपर्याप्त है, बल्कि यह दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण संकट को और भी गहरा और भयावह बना देगी।

संगठन ने यह भी मांग की है कि दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और संबंधित सभी प्राधिकरण बिना किसी देरी या टालमटोल के इस जनस्वास्थ्य आपातस्थिति की भयावहता को स्वीकार करें तथा दिल्ली-एनसीआर के लोगों के वाजिब नाराजगी को एक “कानून-व्यवस्था की समस्या” या राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बनाने से बचें। संगठन का कहना है कि शासन-प्रशासन की लगातार उपेक्षा और विफलता ने ही इस रिकॉर्ड-तोड़ प्रदूषण स्तर को जन्म दिया है, जिससे क्षेत्र की हवा बेहद जहरीली हो गई है और जनस्वास्थ्य गहरी संकट की कगार पर पहुंच गया है।

इसके अलावा, NACEJ ने सभी से यह अपील की है कि दिल्ली-एनसीआर के प्रत्येक नागरिक के जीवन, अधिकारों और गरिमा की रक्षा के लिए अब तत्काल, पारदर्शी और वैज्ञानिक रूप से जवाबदेह कदम उठाए जाएं न कि दमन और ध्यान भटकाने वाली कार्रवाइयां की जाए। संगठन ने जोर देकर कहा है कि सरकार को अब साल भर चलने वाली वायु प्रदूषण प्रबंधन नीति शुरू करनी चाहिए जो दीर्घकालिक नीतिगत तैयारी, जनस्वास्थ्य की प्राथमिकता और न्यायपरक दृष्टिकोण पर आधारित हो। अब समय आ गया है कि राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारी अपने राजनीतिक स्वार्थों और हिसाब किताब को एक तरफ रखकर जनता के वाजिब नाराजगी को समझें और उस पर ईमानदारी से कार्रवाई करें।

सालों से चले आ रहे संकट और जनाक्रोश के बावजूद, वायु प्रदूषण आज भी एक गंभीर और लगातार बढ़ता हुआ जनस्वास्थ्य खतरा बना हुआ है। दिल्ली-एनसीआर सहित भारत के कई शहरों में विश्व की सबसे खराब वायु गुणवत्ता दर्ज की जा रही है। यह संकट हर साल लाखों रोकी जा सकने वाली मौतों और भारी आर्थिक नुकसान का कारण बन रहा है। गरीब और हाशिए पर मौजूद समुदाय, खुले में या असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिक, महिलाएं, बुज़ुर्ग, बच्चे, और घनी आबादी या औद्योगिक इलाकों में रहने वाले लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं। सरकारी कार्रवाइयां अब तक सबसे कमजोर वर्गों को नजरअंदाज़ करती रही हैं, जिससे पर्यावरणीय अन्याय और असमानता और भी गहराती जा रही है।

इस साल की सबसे चिंताजनक बात यह रही कि स्पष्ट वैज्ञानिक प्रमाणों और विशेषज्ञों की चेतावनियों के बावजूद सरकार ने वैज्ञानिक सलाह और जनस्वास्थ्य हितों की अनदेखी करते हुए अपने तुष्टिकरण-आधारित राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी, खासकर के दीपावली के लिए तथाकथित ‘ग्रीन पटाखों’ की बिक्री और इस्तेमाल को वैध कर दिया गया। इस निर्णय के बाद पटाखों के अवैध और व्यापक इस्तेमाल को बढ़ावा मिला जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सीमित समयावधि के आदेश की पूरी तरह अनदेखी की गई, जिसके परिणामस्वरूप उसका कमजोर क्रियान्वयन हुआ। नतीजतन, PM2.5 स्तर ने रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाई छू ली और वायु प्रदूषण में खतरनाक उछाल देखा गया जिससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 675 µg/m³ तक पहुंच गया (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड - CPCB - के आंकड़ों के अनुसार), जो पिछले चार वर्षों में सबसे खराब स्थिति थी। साथ ही, डेटा में गड़बड़ी और अनुपालन की कमी ने स्थिति को और बिगाड़ा - उदाहरणस्वरूप, AQI मॉनिटर्स के पास पानी के छिड़काव जैसी गतिविधियां, ताकि प्रदूषण का स्तर कृत्रिम रूप से कम दिखाया जा सके, जिससे विश्वसनीयता और जनता का भरोसा कमजोर हुआ तथा वास्तविक कार्रवाई में और देरी हुई। इसके अलावा, पराली जलाने को लेकर चल रहा लगातार दोषारोपण भी वास्तविकता से ध्यान हटाता है क्योंकि 2025 में पराली प्रदूषण का अंश पिछले साल की तुलना में कम पाया गया। असल में, वाहनों और औद्योगिक उत्सर्जन साल भर मुख्य प्रदूषण कारक बने हुए हैं। दिल्ली की यह वायु प्रदूषण आपातस्थिति, शासन-प्रशासन की उस गहरी विफलता को उजागर करती है जहां लोकलुभावन राजनीति को जनस्वास्थ्य और विज्ञान-आधारित पर्यावरण नीतियों से ऊपर रखा गया है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण संकट के मूल कारणों का समाधान करने के लिए निम्नलिखित त्वरित और दीर्घकालिक संरचनात्मक कदम आवश्यक हैं-

● जहरीली हवा को कम करने के लिए एक समयबद्ध, पारदर्शी नीति और कार्ययोजना तैयार की जाए, जिसमें सभी वैधानिक संस्थाओं की जवाबदेही और उत्तरदायित्व स्पष्ट रूप से तय किए जाएं और यह कार्य कानूनी प्रावधानों के अनुरूप हो।

● ऑड-ईवन जैसी अस्थायी योजनाओं की बजाय, दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के सक्रिय प्रोत्साहन की आवश्यकता है। ऑड-ईवन जैसी योजनाएं नई नहीं हैं और इनके परिणाम मिले-जुले रहे हैं, जबकि इसी तरह के प्रतिबंध पहले से ही GRAP (Graded Response Action Plan) के तहत मौजूद हैं। इसलिए अब जरूरत है कि सरकार राजनीतिक दिखावे से हटकर ऐसी नीतियां लागू करे जो निजी कारों और SUV के रोजमर्रा के इस्तेमाल को रोके और साथ ही सार्वजनिक परिवहन में सुधार तथा सड़कों पर भीड़ कम करने के लिए कदम उठाएं-जैसे कंजेशन प्राइसिंग (Congestion Pricing) का प्रभावी प्रयोग।

● अब यह जरूरी है कि सरकार बस, मेट्रो और सतही रेल नेटवर्क -तीनों को एकीकृत दृष्टि से देखे।
विशेषकर लंबे समय से उपेक्षित रहे सतही रेल नेटवर्क को आधुनिक और स्वच्छ जन-परिवहन प्रणाली में बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। यदि इन तीनों साधनों को एकीकृत परिवहन प्रणाली (Unified Transport System) के रूप में जोड़ा जाए तो दिल्ली को स्वच्छ, सर्वसमावेशी और कुशल जन परिवहन व्यवस्था मिल सकती है।

● मेट्रो के साथ-साथ बस रैपिड ट्रांज़िट (BRT) लेन का विस्तार किया जाए, ताकि तेज, सुलभ और हाई फ्रिक्वेंसी वाली सार्वजनिक बस सेवाएं सुनिश्चित की जा सकें। केवल अलग-थलग बस लेन बनाने के बजाय, जरूरी है कि इन सेवाओं को मेट्रो और अन्य परिवहन माध्यमों के साथ एकीकृत किया जाए।
इन परिवहन साधनों का अपग्रेडेशन, विस्तार और समन्वय यात्रियों के वेटिंग टाइम को कम करने और यात्रा की सुविधा बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है।

● अब गाड़ियों के प्रदूषण से निपटने के लिए व्यावहारिक और सख्त उपाय जरूरी हैं। BS6 ईंधन और उत्सर्जन मानकों की ओर कदम बढ़ाना और इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देना सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, पर अब आवश्यकता है कि- दिल्ली-एनसीआर में सभी गैर-BS6 डीज़ल वाहनों को जल्द चरणबद्ध तरीके से बाहर (phase-out) किया जाए। गैर-व्यावसायिक डीज़ल वाहनों के लिए ईंधन सब्सिडी समाप्त की जाए। गैर-BS6 डीज़ल वाहन अब भी PM2.5 और PM10 प्रदूषकों का असमान रूप से अधिक स्रोत बने हुए हैं। हालांकि डीज़ल ईंधन की कीमत अपेक्षाकृत कम है, लेकिन निजी परिवहन में इसका इस्तेमाल अब न केवल अप्रासंगिक बल्कि स्वच्छ हवा के लक्ष्य के लिए हानिकारक है।

● दिल्ली में पहले से मौजूद सतही रेल अवसंरचना (surface rail infrastructure) को लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है। इसे बस और मेट्रो प्रणालियों के साथ एकीकृत करने तथा इसमें निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। यह कदम सतत और जन-केन्द्रित परिवहन व्यवस्था को मजबूत करेगा तथा सड़क परिवहन पर निर्भरता और प्रदूषण दोनों को कम करेगा।

● मौजूदा वैज्ञानिक ‘स्रोत निर्धारण अध्ययन’ (Source Apportionment Studies) -जैसे कि आईआईटी कानपुर, 2023 द्वारा किए गए विश्लेषण - यह स्पष्ट रूप से बताते हैं कि दिल्ली के प्रदूषण के प्रमुख स्रोत कौन से हैं और उनका अनुपात क्या है: वाहन उत्सर्जन, धूल, निर्माण गतिविधियां, कचरा जलाना और औद्योगिक प्रदूषण। नीतिगत कदम इन्हीं ठोस वैज्ञानिक निष्कर्षों पर आधारित होने चाहिए, ताकि ध्यान भटकाने वाले या गलत दिशा में उठाए गए उपायों से बचा जा सके।

● स्पष्ट रूप से यह कहा जाना चाहिए कि पराली जलाना (stubble burning) दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या का सालभर का प्रमुख कारण नहीं है। हालिया अध्ययनों से यह पुष्टि हुई है कि इसका योगदान सीमित और मौसमी है, जबकि वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन लगातार दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता के मुख्य कारण बने हुए हैं। किसानों को दोषी ठहराना या दंडित करना, जबकि दूसरी ओर ऑटोमोबाइल उद्योग जैसे बड़े प्रदूषकों को अनदेखा या प्रोत्साहित करना, न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि पर्यावरणीय न्याय के सिद्धांतों के विपरीत भी है। इस प्रवृत्ति को तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए।

● पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर साल भर के लिए ठोस और सख्त प्रतिबंध लागू किया जाए। साथ ही, आतिशबाज़ी उद्योग में कार्यरत मज़दूरों के लिए एक विश्वसनीय पुनर्वास और संक्रमण योजना (transition plan) तैयार की जाए, ताकि उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इसी तरह, कचरे से ऊर्जा (WTE) संयंत्र, अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां और कचरा जलाने की प्रथाएं -जिनसे बेहद जहरीले उत्सर्जन होते हैं - को आवासीय और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से हटाया या बंद किया जाए। वैज्ञानिक साक्ष्य स्पष्ट रूप से बताते हैं कि इन परियोजनाओं का तथाकथित ‘ग्रीन’ ब्रांडिंग भ्रामक है, जबकि ये लगातार हवा में जहर बढ़ाने और जनस्वास्थ्य संकट गहराने का काम कर रही हैं।

● नई तकनीकी पहलों और ‘ग्रीन’ नवाचारों को मान्यता दी जानी चाहिए, लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि जब तक मुख्य प्रदूषण स्रोतों - विशेष रूप से ‘ग्रीन’ WTE संयंत्रों और वाहनों (vehicular fleets) - पर प्रभावी नियमन और जवाबदेही लागू नहीं होती, तब तक ऐसे नवाचार अर्थहीन और सीमित प्रभाव वाले ही रहेंगे।

● सरकार को पर्यावरण, नागरिक समाज संगठनों और सामूहिक समूहों से सुझाव और संवाद के लिए एक प्रभावी और स्थायी तंत्र स्थापित करना चाहिए।

● सरकार को विभिन्न प्रारूपों में वास्तविक समय, विश्वसनीय और सुलभ वायु-गुणवत्ता डेटा और स्वास्थ्य संबंधी सलाह जारी करनी चाहिए।

● सरकार को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का जवाब संवाद से देना चाहिए, न कि नागरिकों और कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने, हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने से।

● आम जनता को ऐसे किसी भी राजनीतिक या धार्मिक नैरेटिव को अस्वीकार करना चाहिए जो पर्यावरणीय आपात स्थितियों से निपटने के लिए तत्काल सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों को कमजोर करता हो या उनमें देरी करता हो।

आखिर में, NACEJ ने दिल्ली-एनसीआर और सभी भारतीय शहरों के लिए एक वैज्ञानिक रूप से विचारपूर्ण, स्वास्थ्य-केंद्रित, दीर्घकालिक वायु गुणवत्ता प्रबंधन ढांचे का भी आह्वान किया है। इसमें नए WTE संयंत्रों पर लागू प्रतिबंध और मौजूदा WTE को लाल श्रेणी में रखना शामिल होना चाहिए। पटाखों पर साल भर प्रतिबंध, निर्माण और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन पर सख्त नियंत्रण (पुराने डीजल वाहनों पर विशेष ध्यान देते हुए) और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए शहरी, परिवहन और औद्योगिक नीति का एक संरचनात्मक रूप से नई दिशा निर्धारण भी उतना ही महत्वपूर्ण है। 'नवाचार' और नागरिक समाज के प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक प्रमुख प्रदूषक अनियंत्रित और गैर-जवाबदेह बने रहें, खासकर 'हरित' समाधानों की आड़ में।

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक एकीकृत, अंतर-क्षेत्रीय, संस्थागत जवाबदेही दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो जन कल्याण पर आधारित हो और व्यापक पर्यावरणीय, आर्थिक और विकास लक्ष्यों के साथ समन्वित हो। भारत का भविष्य सभी पर्यावरणीय और शहरी नीति निर्धारण के केंद्र में जन स्वास्थ्य, सामाजिक और पारिस्थितिक न्याय तथा सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को रखने पर निर्भर करता है।

इस वक्तव्य के हस्ताक्षरकर्ता: NACEJ सदस्य

1. आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, रायपुर
2. अपूर्व ग्रोवर, पीपल फॉर अरावली, नई दिल्ली
3. डॉ. बाबू राव, साइंटिस्ट्स फॉर पीपल, तेलंगाना
4. चिथेनयेन देविका कुलसेकरन, सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी, सेलम, तमिलनाडु
5. दिशा ए रवि, फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर इंडिया
6. डॉ. गैब्रिएल डिट्रिच, पेन उरीमे इयक्कम और एनएपीएम, मदुरै, तमिलनाडु
7. जॉन माइकल, एनएसीईजे और एनएपीएम तेलंगाना
8. कृतिका दिनेश, कानूनी शोधकर्ता, NAJAR, दिल्ली
9. मेधा पाटकर, नर्मदा बचाओ आंदोलन एवं एनएपीएम, मध्य प्रदेश
10. मीरा संघमित्रा, एनएसीईजे तेलंगाना
11. नीलम अहलूवालिया, संस्थापक सदस्य, पीपल फॉर अरावली, हरियाणा
12. निर्मला गौड़ा, मैपिंग मलनाड, बेंगलुरु
13. प्रसाद चाको, सामाजिक कार्यकर्ता, अहमदाबाद, गुजरात
14. राजकुमार सिन्हा, बरगी बंद विस्थापित एवं प्रभावित संघ, मध्य प्रदेश
15. रामनारायण के, प्राकृतिक इतिहास शिक्षक और स्वतंत्र पारिस्थितिकी विज्ञानी, उत्तराखंड
16. रवि एस पी, चलाकुडीपुझा संरक्षण समिति, केरल
17. सौम्या दत्ता, मूवमेंट फॉर एडवांस्ड अंडरस्टैंडिंग ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड म्युचुअलिटी (मौसम) और एनएसीईजे, नई दिल्ली
18. सौत्रिक गोस्वामी, पर्यावरण शोधकर्ता और कार्यकर्ता, नई दिल्ली
19. स्टेला जेम्स, शोधकर्ता और स्वतंत्र सलाहकार, बेंगलुरु, कर्नाटक
20. डॉ. सुहास कोल्हेकर, एनएपीएम और एनएसीईजे (पुणे, महाराष्ट्र)
21. सुमित (हिमधारा पर्यावरण अनुसंधान और एक्शन कलेक्टिव, हिमाचल प्रदेश के लिए)
22. तारिणी, स्वतंत्र फिल्म निर्माता, दिल्ली
23. यश, पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ता, नई दिल्ली

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