दिल्ली के ओखला गांव के निवासी अपने घरों और दुकानों को बचाने के लिए कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : बीएस
गुरुवार को दिल्ली के ओखला इलाके में उत्तर प्रदेश के बॉर्डर के पास बसे एक गांव के लगभग 500 परिवारों ने सुबह उठकर दो चीजें देखीं — एक, उनके घरों की दीवारों पर लाल क्रॉस का निशान बना हुआ था; और दूसरा, नोटिस चिपका था जिसमें उनके घरों को अवैध बताया गया था और 15 दिनों के भीतर खाली करने को कहा गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नोटिस में लिखा था, “आम लोगों को सूचित किया जाता है कि ग्राम ओखला, खासरा नंबर 277 (खिजर बाबा कॉलोनी, मुरादी रोड), दिल्ली में उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग की भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर स्थायी मकान व दुकानें आदि बना ली गई हैं। इन अवैध रूप से निर्मित मकानों एवं दुकानों को 15 दिनों के भीतर स्वयं हटा लें। अन्यथा किसी भी प्रकार की क्षति/हानि के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।”
इस नोटिस पर ओखला स्थित आगरा नहर के वर्क्स सेक्शन के प्रमुख ज़िलेदार प्रथम द्वारा हस्ताक्षर किया गया था। पिछले करीब 30 वर्षों से इस इलाके में रह रहे और एक रिटेल आउटलेट में काम करने वाले 40 वर्षीय मोहम्मद दानिश बेहद नाराज़ थे। उन्होंने कहा, "15 दिनों में घर खाली करने को कहा है। हम जाएंगे कहां?"
दानिश अपनी पत्नी शाहनाज़ और दो बच्चों — तमन्ना (10 वर्ष) और सिकंदर (2 वर्ष) — के साथ तीन मंज़िला इमारत की ग्राउंड फ्लोर पर बने 10×10 के एक कमरे में रहते हैं।
दानिश ने बताया कि जब नोटिस आया तब वह काम पर थे और उन्हें उनकी पत्नी का फोन आया। शाहनाज़ ने कहा, “करीब सुबह 10 बजे के आसपास वे लोग आए और नोटिस चिपका गए।”
दानिश ने बताया कि गुरुवार को करीब दोपहर 1 बजे मोहल्ले के बुजुर्गों ने एक बैठक बुलाई। उन्होंने कहा, “उन्होंने हमसे सारे दस्तावेज — आधार कार्ड और ज़मीन से जुड़े रिकॉर्ड — इकट्ठा किए और एक वकील को नियुक्त किया ताकि इस आदेश पर स्टे मांगा जा सके। हम साकेत की सिविल कोर्ट जाएंगे।”
इस इलाके के रहने वाले दूसरे व्यक्ति, 30 वर्षीय मोहम्मद आसिफ ने साफ़ कहा कि वे फिलहाल विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते। “वक़्त ठीक नहीं है। जो कुछ भी करना है, वह सिर्फ कानूनी तरीकों से ही संभव है।”
अपने बचपन को याद करते हुए आसिफ ने कहा कि उनका जन्म यहीं हुआ था। “तब यह इलाका लगभग जंगल जैसा था। जिस घर में मैं रहता हूं, वह मेरे दादा मल्ला का है।”
अपना नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य निवासी, जो तीन मंज़िला इमारत की दूसरी मंज़िल पर बने एक छोटे और अंधेरे कमरे में रहते हैं, ने कहा, “ग्राउंड फ्लोर करीब 50 साल पहले बनाया गया था, और फिर अगले 20–25 सालों में ऊपर की मंज़िलें बनाई गईं। इससे पहले हमें कभी कोई नोटिस नहीं मिला।”
उन्होंने कहा, “हमें इसके बारे में बात न करने को कहा गया है। अब फ़ैसला अदालत ही करेगी।”
आज इनमें से ज़्यादातर मकान जर्जर हालत में हैं और गलियों में गंदगी फैली हुई है। स्थानीय लोगों ने अपने घरों का एक हिस्सा दुकानों और अन्य लोगों को किराए पर दे रखा है।
60 वर्षीय मोहम्मद ज़ुबैर को भी, उनकी एक कपड़े की दुकान सहित, तीन मंज़िला मकान पर नोटिस दिया गया है। उन्होंने दावा किया, “चार लोगों — मोहम्मद जावेद, मोहम्मद बब्बू, दादा मल्ला और काली जैतून — ने यूपी सिंचाई विभाग के ख़िलाफ़ ज़मीन के क़ब्ज़े से जुड़ा एक मामला साकेत कोर्ट में जीता था।”
ज़ुबैर ने आगे कहा, “यूपी सिंचाई विभाग का यहां कोई दावा नहीं बनता। हमारे मकान ओखला गांव की सीमाओं पर बने हैं। यह ‘लाल डोरे की ज़मीन’ थी… जहां पहले गाय-भैंसें चरती थीं। फिर… हमारे रिश्तेदारों ने यह ज़मीन खरीदी और यहां रहना शुरू किया।”
एक छोटे से किराना दुकान के मालिक, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वे अब डर के माहौल में जी रहे हैं। “हम रातों को सो नहीं पाते। हमें नहीं पता कब बुलडोज़र आकर हमारा घर गिरा देगा। हम यहां वर्षों से रह रहे हैं। मैं तो बचपन से पचपन का हो गया हूं।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर हम कुछ कहेंगे तो हमारे ख़िलाफ़ उल्टा पड़ सकता है। हमारे छोटे बच्चे हैं। हम में से ज़्यादातर लोग छोटे-मोटे काम करते हैं, हम कहां जाएं?”
वेबसाइट ने लिखा, इस मामले को लेकर पूछे जाने पर यूपी सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता बी.के. सिंह ने कहा, “सिर्फ वही चीज़ें बनी रह सकती हैं जो कानूनी हैं… यह प्रक्रिया काफ़ी समय से चल रही है। हम दिल्ली सरकार और पुलिस के संपर्क में हैं; जैसे ही (हमें नोटिस जारी करने की) अनुमति मिली, हमने नोटिस जारी कर दिए।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या यह ज़मीन ‘लाल डोरे की ज़मीन’ है, तो उन्होंने कहा, “लोग कुछ भी कह सकते हैं। यूपी सिंचाई विभाग एक सरकारी संस्था है। हमने दिल्ली सरकार, पुलिस और राजस्व विभाग से पुष्टि कर ली है कि विवादित ज़मीन यूपी सिंचाई विभाग की है।”
उन्होंने आगे कहा कि कई मकानों को, जिनके अलग-अलग ख़ासरा नंबर हैं, नोटिस जारी किए गए हैं और उन्हें 15 दिनों के भीतर खाली करना होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : बीएस
गुरुवार को दिल्ली के ओखला इलाके में उत्तर प्रदेश के बॉर्डर के पास बसे एक गांव के लगभग 500 परिवारों ने सुबह उठकर दो चीजें देखीं — एक, उनके घरों की दीवारों पर लाल क्रॉस का निशान बना हुआ था; और दूसरा, नोटिस चिपका था जिसमें उनके घरों को अवैध बताया गया था और 15 दिनों के भीतर खाली करने को कहा गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नोटिस में लिखा था, “आम लोगों को सूचित किया जाता है कि ग्राम ओखला, खासरा नंबर 277 (खिजर बाबा कॉलोनी, मुरादी रोड), दिल्ली में उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग की भूमि पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर स्थायी मकान व दुकानें आदि बना ली गई हैं। इन अवैध रूप से निर्मित मकानों एवं दुकानों को 15 दिनों के भीतर स्वयं हटा लें। अन्यथा किसी भी प्रकार की क्षति/हानि के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।”
इस नोटिस पर ओखला स्थित आगरा नहर के वर्क्स सेक्शन के प्रमुख ज़िलेदार प्रथम द्वारा हस्ताक्षर किया गया था। पिछले करीब 30 वर्षों से इस इलाके में रह रहे और एक रिटेल आउटलेट में काम करने वाले 40 वर्षीय मोहम्मद दानिश बेहद नाराज़ थे। उन्होंने कहा, "15 दिनों में घर खाली करने को कहा है। हम जाएंगे कहां?"
दानिश अपनी पत्नी शाहनाज़ और दो बच्चों — तमन्ना (10 वर्ष) और सिकंदर (2 वर्ष) — के साथ तीन मंज़िला इमारत की ग्राउंड फ्लोर पर बने 10×10 के एक कमरे में रहते हैं।
दानिश ने बताया कि जब नोटिस आया तब वह काम पर थे और उन्हें उनकी पत्नी का फोन आया। शाहनाज़ ने कहा, “करीब सुबह 10 बजे के आसपास वे लोग आए और नोटिस चिपका गए।”
दानिश ने बताया कि गुरुवार को करीब दोपहर 1 बजे मोहल्ले के बुजुर्गों ने एक बैठक बुलाई। उन्होंने कहा, “उन्होंने हमसे सारे दस्तावेज — आधार कार्ड और ज़मीन से जुड़े रिकॉर्ड — इकट्ठा किए और एक वकील को नियुक्त किया ताकि इस आदेश पर स्टे मांगा जा सके। हम साकेत की सिविल कोर्ट जाएंगे।”
इस इलाके के रहने वाले दूसरे व्यक्ति, 30 वर्षीय मोहम्मद आसिफ ने साफ़ कहा कि वे फिलहाल विरोध प्रदर्शन नहीं कर सकते। “वक़्त ठीक नहीं है। जो कुछ भी करना है, वह सिर्फ कानूनी तरीकों से ही संभव है।”
अपने बचपन को याद करते हुए आसिफ ने कहा कि उनका जन्म यहीं हुआ था। “तब यह इलाका लगभग जंगल जैसा था। जिस घर में मैं रहता हूं, वह मेरे दादा मल्ला का है।”
अपना नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य निवासी, जो तीन मंज़िला इमारत की दूसरी मंज़िल पर बने एक छोटे और अंधेरे कमरे में रहते हैं, ने कहा, “ग्राउंड फ्लोर करीब 50 साल पहले बनाया गया था, और फिर अगले 20–25 सालों में ऊपर की मंज़िलें बनाई गईं। इससे पहले हमें कभी कोई नोटिस नहीं मिला।”
उन्होंने कहा, “हमें इसके बारे में बात न करने को कहा गया है। अब फ़ैसला अदालत ही करेगी।”
आज इनमें से ज़्यादातर मकान जर्जर हालत में हैं और गलियों में गंदगी फैली हुई है। स्थानीय लोगों ने अपने घरों का एक हिस्सा दुकानों और अन्य लोगों को किराए पर दे रखा है।
60 वर्षीय मोहम्मद ज़ुबैर को भी, उनकी एक कपड़े की दुकान सहित, तीन मंज़िला मकान पर नोटिस दिया गया है। उन्होंने दावा किया, “चार लोगों — मोहम्मद जावेद, मोहम्मद बब्बू, दादा मल्ला और काली जैतून — ने यूपी सिंचाई विभाग के ख़िलाफ़ ज़मीन के क़ब्ज़े से जुड़ा एक मामला साकेत कोर्ट में जीता था।”
ज़ुबैर ने आगे कहा, “यूपी सिंचाई विभाग का यहां कोई दावा नहीं बनता। हमारे मकान ओखला गांव की सीमाओं पर बने हैं। यह ‘लाल डोरे की ज़मीन’ थी… जहां पहले गाय-भैंसें चरती थीं। फिर… हमारे रिश्तेदारों ने यह ज़मीन खरीदी और यहां रहना शुरू किया।”
एक छोटे से किराना दुकान के मालिक, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वे अब डर के माहौल में जी रहे हैं। “हम रातों को सो नहीं पाते। हमें नहीं पता कब बुलडोज़र आकर हमारा घर गिरा देगा। हम यहां वर्षों से रह रहे हैं। मैं तो बचपन से पचपन का हो गया हूं।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर हम कुछ कहेंगे तो हमारे ख़िलाफ़ उल्टा पड़ सकता है। हमारे छोटे बच्चे हैं। हम में से ज़्यादातर लोग छोटे-मोटे काम करते हैं, हम कहां जाएं?”
वेबसाइट ने लिखा, इस मामले को लेकर पूछे जाने पर यूपी सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता बी.के. सिंह ने कहा, “सिर्फ वही चीज़ें बनी रह सकती हैं जो कानूनी हैं… यह प्रक्रिया काफ़ी समय से चल रही है। हम दिल्ली सरकार और पुलिस के संपर्क में हैं; जैसे ही (हमें नोटिस जारी करने की) अनुमति मिली, हमने नोटिस जारी कर दिए।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या यह ज़मीन ‘लाल डोरे की ज़मीन’ है, तो उन्होंने कहा, “लोग कुछ भी कह सकते हैं। यूपी सिंचाई विभाग एक सरकारी संस्था है। हमने दिल्ली सरकार, पुलिस और राजस्व विभाग से पुष्टि कर ली है कि विवादित ज़मीन यूपी सिंचाई विभाग की है।”
उन्होंने आगे कहा कि कई मकानों को, जिनके अलग-अलग ख़ासरा नंबर हैं, नोटिस जारी किए गए हैं और उन्हें 15 दिनों के भीतर खाली करना होगा।