UP चुनाव: जाट मुस्लिम व यादव-लैंड में बंपर वोटिंग के बाद अब चौथे व पांचवे चरण में 'अवध' की जंग

Written by Navnish Kumar | Published on: February 21, 2022
यूपी में चौथे चरण के लिए चुनावी शोर मंगलवार शाम थम गया। जाट, मुस्लिम और यादव लैंड में बंपर वोटिंग के बाद अब चौथे व पांचवे चरण में 'अवध' की जंग होनी है। जी हां, यूपी का चुनाव अब भारतीय राजनीति (राम मंदिर व हिंदुत्व) की उस प्रयोगशाला में पहुंच चुका है, जिसने देश की राजनीति की दिशा और दशा दोनों को ही प्रभावित किया हैं। दरअसल राम की नगरी अयोध्या, 'अवध' का ही हिस्सा है। 23 फरवरी को चौथे चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। चौथे चरण में यूपी के 9 जिलों की 59 सीटों पर मतदान होगा। इनमें पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर और बांदा शामिल है। वहीं 27 फरवरी को पांचवें चरण में 11 जिलों की 61 सीटों पर मतदान होगा।



मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चौथे और पांचवें चरण में लखनऊ के आसपास (अवध) की सीटों पर राशन, सांड, सुरक्षा, सम्मान व राम मंदिर जैसे शब्द सबसे अधिक सुनाई दे रहे हैं। यूपी में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दिया जा रहा मुफ्त राशन, बीजेपी के लिए रामबाण का काम कर सकता हैं तो समाजवादी पार्टी सांड का मुद्दा उठा रही है। कहा कि लोग सांड से परेशान है, क्योंकि सांड खेत बर्बाद कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि सांडों से खेतों की रक्षा करना सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है। बीजेपी नेता भी मानते हैं कि सांड बड़ा मुद्दा है। 10 मार्च के बाद उसका हल निकाला जाएगा। पीएम मोदी ने भी अपनी उन्नाव रैली में कहा कि छुट्टा जानवरों से जो समस्याएं हो रही हैं उसे दूर करने के लिए 10 मार्च के बाद नई व्यवस्थाएं बनाई जाएंगी। दूसरा, यूपी चुनाव में सम्मान जाति से जुड़ा शब्द है क्योंकि योगी सरकार पर ठाकुरवाद के भी आरोप लगते रहे है। साथ ही अयोध्या में राम मंदिर यानी हिंदुत्व का भी मुद्दा है। बीजेपी ने चौथे चरण की शुरुआत ही अपने लकी चार्म राम मंदिर के साथ की है। वैसे तो चुनाव कहीं भी हों राम मंदिर भारतीय राजनीति का एवरग्रीन मुद्दा है, लेकिन चुनाव 'अवध' का हो तो इसका शोर लाजिमी हो उठता है। बीजेपी की तो नींव ही राम मंदिर है। इसलिए चुनाव 'अवध' पहुंचते बीजेपी ने राम नाम का नारा तेज कर दिया है। भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक ही दिन में अयोध्या में 3 सभाएं कीं, जो बताता है कि बीजेपी चुनाव को राम मंदिर से जोड़ने को कितनी उतावली है।

यूपी की सत्ता में अवध की अहमियत राम मंदिर के अलावा सीटों के गणित से भी बढ़ जाती है। अवध में कुल 21 जिले हैं, जिसमें कुल 118 सीट आती है। हालांकि चौथे चरण में 9 जिलों में मतदान होगा, जिसमें अवध के 7 जिले आते हैं। 118 सीटों वाले इस इलाके में पिछले 2 चुनाव के नतीजे बताते हैं कि यहां चुनाव में हवा के रुख का काफी असर रहता है। 2017 के चुनावों में यहां बीजेपी को 97 सीटें मिली थीं जबकि 2012 में बीजेपी को इसी क्षेत्र में महज 10 सीटें मिली थीं। मतलब 2017 के चुनावों में बीजेपी ने 87 सीटें ज्यादा जीतीं। वहीं समाजवादी पार्टी को 2012 के तुलना में 2017 में घाटा हुआ। 2012 में समाजवादी पार्टी को 90 सीटें मिली थीं, जो 2017 में घटकर 12 रह गईं। साफ है कि जब 'अवध' में साइकिल चली तो अखिलेश की सरकार बनी और जब 'अवध' में कमल खिला तो बीजेपी की सरकार बनी। 

चौथे चरण के मतदान में उम्मीदवारों के साथ केंद्र सरकार के कई मंत्रियों का भी टेस्ट होगा, क्योंकि इस चरण में जिन जिलों में वोट डाले जा रहे हैं, वहां से मोदी सरकार के चार मंत्री आते हैं। पहला नाम रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का है, जिनका संसदीय क्षेत्र लखनऊ है। दूसरा नाम स्मृति ईरानी का है, जिन का संसदीय क्षेत्र अमेठी है। इसके अलावा मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर और लखीमपुर से सांसद और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के क्षेत्र में भी चौथे चरण में मतदान होना है।

यूपी चुनाव में बीएसपी को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि अवध क्षेत्र में वो 10 से 12 सीटों पर अपना मजबूत दखल रखती है। 2012 में बीएसपी को यहां 10 सीटें मिलीं जो 2017 में घटकर 6 रह गईं लेकिन उसका दखल बना रहा। चौथे चरण में जिन इलाकों में मतदान है, वहां आबादी के लिहाज से अनुसूचित जाति का वोट भी काफी अहम जाता है। 'अवध' क्षेत्र की ही बात करें तो सीतापुर में सबसे ज्यादा 32 फीसद एससी वोटर हैं। वहीं हरदोई, उन्नाव, रायबरेली में 30 फीसद के करीब एससी है। लखनऊ में सबसे कम 21 फीसद एससी वोटर हैं। यानी चौथे चरण में अवध के आधे से ज्यादा जिलों में एससी आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है। अब एससी वोट भले ही बीएसपी के पास हों, पर गैर जाटव वोट बंट चुका है। 2017 चुनावों को देखें तो सबसे ज्यादा 43 फीसद गैर जाटव वोट समाजवादी पार्टी को मिले लेकिन 31 फीसद वोटों के साथ बीजेपी ज्यादा पीछे नहीं है। बीएसपी को गैर जाटव वोट 10 फीसद के आस पास ही मिले हैं लेकिन जाटव वोट 86 फीसद मिले हैं। अवध में एससी में बड़ी संख्या गैर जाटव वोट की है और जिस तरह से गैर जाटव बंटा हुआ है, उसे देखते हुए 'अवध' की लड़ाई में गैर जाटव वोट पर कब्जे को भी घमासान मचना ही है।  

तीसरे चरण की बात करें तो यूपी चुनाव के तीसरे चरण में 59 सीटों पर लगभग 61% वोट पड़े। इस चरण में आंकड़ों की तुलना 2017 से करें तो इस बार मतदान प्रतिशत कम है। बता दें कि पिछले चुनाव में 62.2% वोटिंग हुई थी। इसके अलावा 2012 में इन 59 सीटों पर 59.8% वोटिंग हुई थी। साफ है कि 2017 के बाद फिर से वोटिंग पर्सेंट में गिरावट देखी गई है। लेकिन सपा के गढ़ इटावा मैनपुरी आदि में जमकर वोट बरसे। यही कारण है कि तीसरे चरण के मतदान का ट्रेंड भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। तीसरे चरण की 59 सीटों के लिए हुए मतदान में करीब 61% लोगों ने वोट डाले हैं, लेकिन सपा का गढ़ माने जाने वाले इलाकों में औसत से ज्यादा मतदान हुआ है। 

जिलावार आंकड़े देखें तो सिर्फ दो ही जिलों मैनपुरी, इटावा, फर्रुखाबाद व आसपास के क्षेत्रों में पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा वोट पड़े हैं। यादव बहुल करीब दो दर्जन सीटों पर औसत से 2% ज्यादा मतदान हुआ। इन क्षेत्रों में यादव आबादी 30 से 50% के बीच है। अखिलेश यादव की करहल सीट पर पिछली बार से 3% ज्यादा मतदान हुआ है। इसके उलट शहरी इलाकों में और बुंदेलखंड के 5 जिलों में मतदान प्रतिशत औसत से कम रहा है। अगर पिछले चुनाव से तुलना करें तो बुंदेलखंड के पांचों जिलों में 2017 के मुकाबले काफी कम वोट पड़े हैं। झांसी में 2017 के मुकाबले 8 फीसद कम वोट पड़े हैं तो हमीरपुर व ललितपुर में पिछली बार के मुकाबले 3 फीसद कम मतदान हुआ। महोबा में भी मतदान पिछली बार से कम रहा है। इसी तरह कानपुर देहात में 2% व  शहर में करीब 4% मतदान कम हुआ है। ये सब भाजपा के असर वाले इलाके हैं और इन इलाकों की वजह से माना जा रहा था कि तीसरे चरण में हवा बदलेगी और भाजपा के पक्ष में माहौल बनेगा, लेकिन कम मतदान से उलटे भाजपा की चिंता बढ़ गई है।

खास है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 में, उससे पहले के चुनाव के मुकाबले 2% मतदान ज्यादा हुआ था तो भाजपा को करीब 40 सीटों का फायदा हुआ था और सपा व बसपा दोनों को नुकसान हुआ था। लेकिन इस बार पिछली बार के मुकाबले मतदान में बड़ी गिरावट है और लगभग उतना ही मतदान हुआ है, जितना 2012 में हुआ था। 2012 के चुनाव में 16 जिलों की इन 59 सीटों पर 59.79 यानी करीब 60 फीसदी मतदान हुआ था और तब इनमें से 37 सीटें सपा ने जीती थी। 2017 में 62.21 फीसदी मतदान हुआ तो भाजपा 49 सीटों पर जीती। इस बार फिर मतदान घटकर 61% पर आ गया है। चुनावी आंकडे देंखे तो वोट प्रतिशत बढ़ने से विपक्षी दलों को फायदा होता आया है। 59 सीटों की समीक्षा करें तो 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 59 सीटों में से 37 सीटें जीती। वहीं 2017 में बीजेपी ने इन 59 सीटों में से 41 सीटों पर कब्जा जमाया था। लेकिन इस बार तीसरे चरण में वोटिंग प्रतिशत पिछले साल के मुकाबले कम है। ऐसे में इसका पर नतीजों पर क्या असर होगा, की असल तस्वीर 10 मार्च को साफ होगी।

अब जहां पहले व दूसरे चरण में जाट व मुस्लिम गठजोड़ के साथ बीजेपी नेताओं का खदेड़ा, छाया रहा वहीं तीसरे चरण की खास बात है कि यादव बैल्ट में वोटिंग से पहले रोजगार का मुद्दा भी गूंजा। गोंडा की चुनावी रैली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को रोजगार के मुद्दे पर युवकों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। युवकों ने रोजगार देने की मांग को लेकर रैली में जोरदार नारेबाजी की। युवाओं की मांग रक्षा मंत्रालय से ही थी। वे सेना में भर्ती शुरू करने की मांग कर रहे थे। राजनाथ सिंह ने जैसे-तैसे हालात को संभाला। युवाओं ने "सेना में भर्ती चालू करो" व "हमारी मांगें पूरी करो" के नारे लगाएं। राजनाथ सिंह ने "होगी, होगी... चिंता मत करो" कहकर विरोध कर रहे युवाओं को शांत करने की कोशिश की। राजनाथ ने युवाओं से कहा, ''आपकी चिंता हमारी भी है। कोरोना वायरस के चलते थोड़ी मुश्किलें आईं''

यूपी के तीसरे चरण के साथ पंजाब में भी वोटिंग हुई। जहां पहली बार बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला लेकिन उसके बावजूद मतदाताओं में वोटिंग को लेकर उत्साह नहीं दिखा। आमतौर पर ज्यादा पार्टियों व ज्यादा उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने से वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है लेकिन पंजाब में उलटा हुआ। पांच पार्टियों के चुनाव लड़ने के बावजूद पिछली बार के मुकाबले 5% कम वोट पड़े। पंजाब में 117 विधानसभा सीटों पर 71.95% मतदान हुआ। पिछली बार पंजाब में 77% मतदान हुआ था। उस लिहाज से इस बार मतदान में 5.25% की कमी आई है। पिछले 15 वर्षों में यह सबसे कम मतदान है। 2017 में 77.2% वोट पड़े थे। मतदान में कमी से साफ है कि कोई बड़ा फेरबदल होता नहीं दिख रहा है। पांच जिले ऐसे हैं, जहां मतदान 65% का आंकड़ा भी नहीं छू सका। हालांकि राज्य में 12 जिलों में 70% से ज्यादा मतदान हुआ। सबसे ज्यादा 84.93% मतदान मुक्तसर जिले की गिद्दड़बाहा सीट पर हुआ है। वहीं सबसे कम अमृतसर वेस्ट सीट पर 55.40% वोटरों ने मतदान किया। मानसा में भी करीब 80% वोटरों ने मतदान किया जबकि मोहाली कम मतदान वाले जिलों में शामिल रहा। 

खास है कि इस बार पंजाब में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल के अलावा भाजपा और कै. अमरिंदर सिंह की पार्टी ने गठबंधन में चुनाव लड़ा है वहीं, किसानों की पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा ने भी सौ से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इसके बावजूद पूरे राज्य में मतदाताओं में उत्साह नहीं दिखा। पिछली बार 2% से कुछ ज्यादा मतदान हुआ था और अकाली दल की सत्ता बदल गई थी। इस बार 5% कम मतदान होने से बड़े बदलाव की संभावना कम हो गई है। बहरहाल, राज्य के 2.14 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने 117 सीटों पर 1,304 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला कर दिया। मुख्यमंत्री चरण जीत सिंह चन्नी के साथ पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह व प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री के दावेदार भगवंत मान, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है और अब बस 10 मार्च का इंतजार है।

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