उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में भी बंपर वोटिंग ने मोदी-योगी की नींद उड़ा दी है। चुनाव आयोग के मुताबिक, दूसरे दौर की 55 सीटों पर 64.42% वोटिंग हुई जो पहले चरण से करीब 2% ज्यादा है। हालांकि 2017 विधानसभा चुनाव के मुकाबले यह करीब 1% कम है। 2017 में इन 55 सीटों पर 65.53% वोट पड़े थे लेकिन दूसरे चरण में मुस्लिमों के एकजुट प्रदर्शन और हिंदुओं में सपा की बड़ी सेंध ने, मोदी-योगी को बैकफुट पर धकेल दिया है। यही कारण है कि अपने बयानों और नीतियों को लेकर दोनों नेता अब सफाई देते बैकफुट पर नजर आ रहे हैं!
जिलेवार देखें तो दूसरे चरण में सर्वाधिक 72% मतदान अमरोहा जिले में हुआ। दूसरे नंबर पर सहारनपुर जिले में 71.41% वोट पड़े हैं। जबकि सीटवार आधार पर देखें तो सबसे अधिक 75.78% मतदान सहारनपुर की बेहट सीट में हुआ। यहां नकुड़ में 75.50% मत पड़े हैं। अमरोहा की नौगावां में 74.17% व हसनपुर में 73.58% वोट पड़े हैं। 2012 में इन 55 सीटों में सपा को 40 पर जीत मिली थी जबकि 2017 में भाजपा इन 55 में से 37 पर जीती थीं। 2012 में 55 में भाजपा को मात्र 4 सीटें ही मिली थीं। बसपा 8 व सपा 40 सीट जीती थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 3 सीटें आई थीं। 2012 के मुकाबले देखें तो 2017 में इस क्षेत्र में सपा को 24 सीटों का नुकसान हुआ था। बसपा को 8 और कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हुआ था। खास है कि पहले फेज की 58 सीटों पर 61% वोटिंग हुई थी, जो 2017 से 3% कम थी। 2012 में इन 55 सीटों में से भाजपा को 10, सपा को 14 और बसपा को 20 सीटें मिली थीं। 11 सीटें निर्दलियों ने जीती थीं।
सोमवार को जिन 9 ज़िलों में वोटिंग थी, उनमें 7 ज़िले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30% से ज्यादा है जबकि मुरादाबाद व रामपुर में मुस्लिम आबादी 50% से ज्यादा है। कुल मिलाकर कहें तो इस चरण में मुस्लिम वोटर्स बहुत महत्वपूर्ण थे। इन 9 ज़िलों की 55 में से कुल 38 सीटें ऐसी हैं, जिन पर मुसलमानों के वोट बहुत अहम हैं। यही नहीं, ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले बिजनौर, मुरादाबाद और रामपुर जिले में वोटिंग में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं, हिंदू क्षेत्रों के मुकाबले मुस्लिम क्षेत्रों में ज़्यादा पोलिंग हुआ है। 2017 में बीएसपी को इस क्षेत्र में कोई सीट तो नहीं मिली थी। लेकिन तब 12 ऐसी सीटें ऐसी थीं, जिन पर बीएसपी दूसरे नम्बर पर रही थी। इन 12 सीटों में से उस समय बीजेपी ने 8 सीटें जीती थीं।
एक अनुमान के मुताबिक, मुस्लिम क्षेत्रों में ज्यादा 65 से 70% तक मतदान दर्ज किया गया है जबकि 2017 में ये आंकड़ा 50-55% था। यानी इस बार जहां मुस्लिम वोट ज्यादा पोल हुआ है वहीं, इसके उलट हिंदू वोटरों में मतदान को लेकर रुझान कम दिखा है। सीधा मतलब है कि सपा-रालोद गठबंधन को बड़ा फायदा होता दिख रहा है जो बीजेपी के लिए कतई अच्छी ख़बर नहीं है।
हालांकि इन सीटों पर अधिक मुस्लिम मतदाता होते हुए भी पिछली बार बीजेपी को यहां शानदार जीत मिली थी। 2017 में बीजेपी ने यहां की 55 में से 38 सीटें, समाजवादी पार्टी ने 15 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं। जबकि बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि अखिलेश यादव तब केवल मुस्लिम प्लस यादव वोटों की सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर थे। लेकिन इस बार उन्होंने अपना फॉर्मुला बदल दिया है। उन्होंने नया फॉर्मुला बनाया है और वो है, M प्लस Y प्लस J + S/M + K + G.. यानी मुस्लिम.. प्लस.. यादव.. प्लस.. जाट.. प्लस.. सैनी/मौर्य.. प्लस.. कुर्मी.. प्लस.. गुर्जर..
दरअसल, योगी आदित्यनाथ 80-20 के फॉर्मुले पर चुनाव लड़ रहे हैं जिसमें वो 20% मुस्लिम वोटर्स को छोड़कर, 80% हिंदू वोटर्स को एकजुट रखने पर ज़ोर दे रहे हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि बीजेपी केवल 80 नंबर का पेपर कर रही है और 20 नंबर के सवाल को उसने खाली छोड़ दिया है। जबकि अखिलेश यादव जानते हैं कि 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट तो उनकी पार्टी को मिलेंगे ही इसलिए उन्होंने हिन्दू वोटों को अलग अलग भागों में बांट, नई सोशल इंजीनियरिंग की है। हालांकि पासे उल्टे पड़ते देख सीएम योगी आदित्यनाथ अब अपने 80:20 के फार्मूले पर सफाई दे रहे हैं कि उनका मतलब धर्म से नहीं था बल्कि 80% प्रगतिशील लोगों से था।
सोमवार को जिन 55 सीटों पर वोटिंग हुई है, उनमें 52 सीटों पर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के और तीन सीटों पर जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार थे। अखिलेश यादव ने ये जानते हुए 52 में से केवल 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए कि यहां 38 सीटों पर मुस्लिम फैक्टर काम करता है। उदाहरण के लिए सहारनपुर की देवबंद सीट पर समाजवादी पार्टी ने इस बार मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। इस सीट से अखिलेश यादव ने कार्तिकेय राणा को टिकट दिया है, जो ठाकुर समाज से आते हैं। इस सीट पर करीब 42% मुस्लिम वोटर्स हैं और ठाकुर समाज की भी यहां अच्छी तादाद है।
सहारनपुर की बात करें तो यहां 7 विधानसभा सीटें हैं जिनमे 40% से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। सपा 6 सीट व एक सीट पर रालोद लड़ रही है। अखिलेश यादव ने 6 में से 2 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दी। बाकी सीटों पर अलग-अलग जातियों के नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। जैसे कि सहारनपुर की नकुड़ सीट पर कुल साढ़े तीन लाख वोटर्स हैं इनमें सबसे ज्यादा एक लाख 30 हज़ार मुस्लिम मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर 70 हज़ार जाटव समुदाय के वोटर्स हैं। अब अखिलेश यादव ने इस सीट से ना तो मुस्लिम नेता को अपना प्रत्याशी बनाया और ना ही जाटव समुदाय से किसी को टिकट दिया। उन्होंने धर्म सिंह सैनी को टिकट दिया क्योंकि सैनी जाति के यहां 35 हज़ार वोटर हैं। सहारनपुर नगर से मौजूदा विधायक संजय गर्ग को ही टिकट दिया है जबकि गंगोह से चौ इंद्रसेन, रामपुर से विवेककांत को टिकट दिया है। कई अन्य फैक्टर भी है कि यादव प्लस मुस्लिम वोटों के साथ पिछड़े समुदाय में जाट, सिख आदि का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी को गया है। सपा को शाक्य, सैन, गुर्जर व कुर्मी वोट मिले हैं तो ठाकुर, ब्राह्मण, निषाद, कश्यप आदि सभी समाज में भी हिस्सेदारी मिली है। कुल मिलाकर देखें तो सपा और बीजेपी में पिछड़ी जातियों के वोट बंटे हैं। ये बीजेपी के लिए अच्छी ख़बर नहीं है क्योंकि पिछली बार इस वोट का बड़ा हिस्सा बीजेपी को गया था।
इस बदलाव के पीछे किसान आंदोलन भी बड़ा कारण माना जा रहा है। किसान नेता, आंदोलन खत्म होते समय किए गए वादों के पूरा न होने से नाराज हैं। किसान नेता राकेश टिकैत आदि ने लखनऊ पहुंचकर, लोगों से अपील की है कि किसान विरोधी बीजेपी को जनता सजा दे। उन्होंने कहा, हम किसी को वोट देने की अपील नहीं कर रहे। बस इतना बता रहे कि बीजेपी किसान विरोधी है। पिछले चुनाव में जो वादे उन्होंने किसानों के लिए किए थे, पूरे नहीं किए। आंदोलन खत्म होते समय जो वादे थे, वे भी पूरे नहीं किए। इसलिए इनकी दवाई तो होनी ही चाहिए। हम बंगाल गए थे, वहां से इन्हें दवाई मिली। अब यूपी को भी इन्हें दवाई देनी चाहिए।
राकेश टिकैत ने संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से तैयार अपील के पोस्टर को भी साझा किया। कहा ये पोस्टर गांव-गांव, घर-घर पहुंचेंगे। हमारी सबसे बड़ी मांग 'एमएसपी' की है। किसान आंदोलन का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब जब भी बीजेपी का कोई नेता गांवों में वोट मांगने जाता है तो जनता उनसे हिसाब मांगने लगती है। ये फूट डालने वाले लोग हैं। हिजाब की बात करते हैं तो जनता हिसाब मांगेगी ही। पूछो किसानों के लिए क्या किया तो कहते हैं कि मुफ्त राशन दे रहे हैं। अरे हमें दाम दे दो अनाज हम खरीद लेंगे। यह सरकार तो लोकतंत्र के मंदिर में भी झूठ बोलती है। कहती है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। नहीं हुई क्या?
किसान आंदोलन का ही प्रभाव है कि सोमवार को कानपुर देहात की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आवारा पशुओं की समस्या का न सिर्फ ज़िक्र किया बल्कि उसे दूर करने का भी भरोसा किसानों को दिलाने की कोशिश भी की। यहां उन्होंने बेहतर कानून-व्यवस्था और राशन जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन आवारा मवेशियों का भी जिक्र कर दिया। सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड के 14-15 ज़िलों में आवारा मवेशी बड़ी समस्या बन गए हैं। किसान पूरी रात जागकर फसलों की रखवाली करते हैं। सैकड़ों किसानों की फसलें मवेशी चर गए। मोदी ने कहा, गोबर किसानों के लिए आय का विकल्प बनेगा। दूध न देने वाले पशुओं से भी किसानों को इनकम होगी। बूढ़े पशु भी काम के होंगे। योगी जी की सरकार में बेसहारा पशुओं के लिए गोशालाएं बनाई हैं। 10 मार्च के बाद इस अभियान को और तेज किया जाएगा, ताकि किसानों को दिक्कत न हो। इसे किसानों के लिए प्रधानमंत्री का सीधा आश्वासन माना जा सकता है।
कुल मिलाकर बीजेपी के लिए पहला चरण बहुत मुश्किल था तो दूसरा चरण उससे भी ज्यादा मुश्किल कहा जा सकता है। अब बाकी के चरणों में ये मुश्किल कम होंगी या यही ट्रेंड आगे बढ़ेगा, देखना होगा। तीसरे चरण में यादव बैल्ट व बुंदेलखंड में 20 को वोट डाले जाएंगे। तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 सीटों पर वोटिंग होगी।
अब तीसरे चरण के लिए 20 फरवरी को यूपी के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। यानि तीसरे चरण की चुनौती बड़ी है क्योंकि पहले दोनों चरण के मुकाबले तीसरे चरण में चुनाव ज्यादा जिलों में है। तीसरे चरण में जिन इलाकों में मतदान होना है, वहां के मुद्दे और समीकरण पहले के दोनों चरणों से बिल्कुल अलग हैं। कुल मिलाकर कहें तो यूपी का रण अब जाटलैंड से शिफ्ट होकर यादवलैंड और बुंदेलखंड में पहुंच गया है। तीसरे चरण में जिन इलाकों में मतदान होने जा रहा है, उसमें पश्चिमी यूपी का भी कुछ इलाका है। इसके साथ ही कुछ अवध का और कुछ बुंदेलखंड का है।
यूपी के तीसरे चरण में बुंदेलखंड के झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 13 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसी चरण में यूपी के अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रूखाबाद, कन्नौज और इटावा की कुल 27 सीटों के लिए मतदान होगा। साथ ही पश्चिमी यूपी का फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस के मतदाता भी 19 सीट के लिए वोट डालेंगे। वहीं तीसरे फेज की लड़ाई अखिलेश के लिए इसलिए अहम है, क्योंकि ये समाजवादी पार्टी का गढ़ है, लेकिन पिछले चुनाव में यहां साइकिल की रफ्तार कमजोर पड़ गई थी, जबकि बीजेपी के लिए यहां अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है।
उधर, सोमवार को उत्तराखंड की 70 सीटों पर भी चुनाव हुए। शाम 6 बजे तक उत्तराखंड में 59.51 प्रतिशत वोटिंग हुई। 2017 में ये आंकड़ा लगभग 65 था। यानी इस बार करीब 5% कम वोट डाले गए हैं। उत्तराखंड में मैदानी इलाक़ों में बीजेपी के पक्ष में जरूर कुछ अच्छी वोटिंग हुई है। जैसे हरिद्वार और देहरादून जैसी जगहों पर कुछ प्रभाव दिखा है। हालांकि यहां कांग्रेस, बीजेपी को कड़ी टक्कर देती दिख रही है। पहाड़ी इलाक़ों में और खास तौर पर गढ़वाल क्षेत्र में कांटे की टक्कर दिख सकती है क्योंकि यहां बीजेपी विधायकों के ख़िलाफ़ लहर है। वैसे भी उत्तराखंड राज्य के गठन से ही वहां एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार आती है।
यही नहीं, सोमवार को गोवा की भी 40 विधानसभा सीटों पर शाम 6 बजे तक लगभग 78.94% वोटिंग हुई है। ये 2017 की तुलना में 2% कम है। पिछली बार गोवा में 81.04 प्रतिशत वोट डाले गए थे। गोवा में लगभग दो दशकों के बाद बीजेपी बिना मनोहर पर्रिकर के चुनाव लड़ रही है तो मनोहर पर्रिकर के पुत्र उत्पल पर्रिकर पणजी से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया है। गोवा में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी रेस में है। 2017 में गोवा में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था लेकिन इस बार देखना होगा। बहरहाल 10 मार्च को ही स्थिति साफ हो सकेगी कि किसका पलड़ा भारी रहता है।
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जिलेवार देखें तो दूसरे चरण में सर्वाधिक 72% मतदान अमरोहा जिले में हुआ। दूसरे नंबर पर सहारनपुर जिले में 71.41% वोट पड़े हैं। जबकि सीटवार आधार पर देखें तो सबसे अधिक 75.78% मतदान सहारनपुर की बेहट सीट में हुआ। यहां नकुड़ में 75.50% मत पड़े हैं। अमरोहा की नौगावां में 74.17% व हसनपुर में 73.58% वोट पड़े हैं। 2012 में इन 55 सीटों में सपा को 40 पर जीत मिली थी जबकि 2017 में भाजपा इन 55 में से 37 पर जीती थीं। 2012 में 55 में भाजपा को मात्र 4 सीटें ही मिली थीं। बसपा 8 व सपा 40 सीट जीती थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 3 सीटें आई थीं। 2012 के मुकाबले देखें तो 2017 में इस क्षेत्र में सपा को 24 सीटों का नुकसान हुआ था। बसपा को 8 और कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हुआ था। खास है कि पहले फेज की 58 सीटों पर 61% वोटिंग हुई थी, जो 2017 से 3% कम थी। 2012 में इन 55 सीटों में से भाजपा को 10, सपा को 14 और बसपा को 20 सीटें मिली थीं। 11 सीटें निर्दलियों ने जीती थीं।
सोमवार को जिन 9 ज़िलों में वोटिंग थी, उनमें 7 ज़िले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30% से ज्यादा है जबकि मुरादाबाद व रामपुर में मुस्लिम आबादी 50% से ज्यादा है। कुल मिलाकर कहें तो इस चरण में मुस्लिम वोटर्स बहुत महत्वपूर्ण थे। इन 9 ज़िलों की 55 में से कुल 38 सीटें ऐसी हैं, जिन पर मुसलमानों के वोट बहुत अहम हैं। यही नहीं, ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले बिजनौर, मुरादाबाद और रामपुर जिले में वोटिंग में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं, हिंदू क्षेत्रों के मुकाबले मुस्लिम क्षेत्रों में ज़्यादा पोलिंग हुआ है। 2017 में बीएसपी को इस क्षेत्र में कोई सीट तो नहीं मिली थी। लेकिन तब 12 ऐसी सीटें ऐसी थीं, जिन पर बीएसपी दूसरे नम्बर पर रही थी। इन 12 सीटों में से उस समय बीजेपी ने 8 सीटें जीती थीं।
एक अनुमान के मुताबिक, मुस्लिम क्षेत्रों में ज्यादा 65 से 70% तक मतदान दर्ज किया गया है जबकि 2017 में ये आंकड़ा 50-55% था। यानी इस बार जहां मुस्लिम वोट ज्यादा पोल हुआ है वहीं, इसके उलट हिंदू वोटरों में मतदान को लेकर रुझान कम दिखा है। सीधा मतलब है कि सपा-रालोद गठबंधन को बड़ा फायदा होता दिख रहा है जो बीजेपी के लिए कतई अच्छी ख़बर नहीं है।
हालांकि इन सीटों पर अधिक मुस्लिम मतदाता होते हुए भी पिछली बार बीजेपी को यहां शानदार जीत मिली थी। 2017 में बीजेपी ने यहां की 55 में से 38 सीटें, समाजवादी पार्टी ने 15 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं। जबकि बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि अखिलेश यादव तब केवल मुस्लिम प्लस यादव वोटों की सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर थे। लेकिन इस बार उन्होंने अपना फॉर्मुला बदल दिया है। उन्होंने नया फॉर्मुला बनाया है और वो है, M प्लस Y प्लस J + S/M + K + G.. यानी मुस्लिम.. प्लस.. यादव.. प्लस.. जाट.. प्लस.. सैनी/मौर्य.. प्लस.. कुर्मी.. प्लस.. गुर्जर..
दरअसल, योगी आदित्यनाथ 80-20 के फॉर्मुले पर चुनाव लड़ रहे हैं जिसमें वो 20% मुस्लिम वोटर्स को छोड़कर, 80% हिंदू वोटर्स को एकजुट रखने पर ज़ोर दे रहे हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि बीजेपी केवल 80 नंबर का पेपर कर रही है और 20 नंबर के सवाल को उसने खाली छोड़ दिया है। जबकि अखिलेश यादव जानते हैं कि 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट तो उनकी पार्टी को मिलेंगे ही इसलिए उन्होंने हिन्दू वोटों को अलग अलग भागों में बांट, नई सोशल इंजीनियरिंग की है। हालांकि पासे उल्टे पड़ते देख सीएम योगी आदित्यनाथ अब अपने 80:20 के फार्मूले पर सफाई दे रहे हैं कि उनका मतलब धर्म से नहीं था बल्कि 80% प्रगतिशील लोगों से था।
सोमवार को जिन 55 सीटों पर वोटिंग हुई है, उनमें 52 सीटों पर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के और तीन सीटों पर जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार थे। अखिलेश यादव ने ये जानते हुए 52 में से केवल 20 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए कि यहां 38 सीटों पर मुस्लिम फैक्टर काम करता है। उदाहरण के लिए सहारनपुर की देवबंद सीट पर समाजवादी पार्टी ने इस बार मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया। इस सीट से अखिलेश यादव ने कार्तिकेय राणा को टिकट दिया है, जो ठाकुर समाज से आते हैं। इस सीट पर करीब 42% मुस्लिम वोटर्स हैं और ठाकुर समाज की भी यहां अच्छी तादाद है।
सहारनपुर की बात करें तो यहां 7 विधानसभा सीटें हैं जिनमे 40% से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। सपा 6 सीट व एक सीट पर रालोद लड़ रही है। अखिलेश यादव ने 6 में से 2 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दी। बाकी सीटों पर अलग-अलग जातियों के नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। जैसे कि सहारनपुर की नकुड़ सीट पर कुल साढ़े तीन लाख वोटर्स हैं इनमें सबसे ज्यादा एक लाख 30 हज़ार मुस्लिम मतदाता हैं। दूसरे नंबर पर 70 हज़ार जाटव समुदाय के वोटर्स हैं। अब अखिलेश यादव ने इस सीट से ना तो मुस्लिम नेता को अपना प्रत्याशी बनाया और ना ही जाटव समुदाय से किसी को टिकट दिया। उन्होंने धर्म सिंह सैनी को टिकट दिया क्योंकि सैनी जाति के यहां 35 हज़ार वोटर हैं। सहारनपुर नगर से मौजूदा विधायक संजय गर्ग को ही टिकट दिया है जबकि गंगोह से चौ इंद्रसेन, रामपुर से विवेककांत को टिकट दिया है। कई अन्य फैक्टर भी है कि यादव प्लस मुस्लिम वोटों के साथ पिछड़े समुदाय में जाट, सिख आदि का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी को गया है। सपा को शाक्य, सैन, गुर्जर व कुर्मी वोट मिले हैं तो ठाकुर, ब्राह्मण, निषाद, कश्यप आदि सभी समाज में भी हिस्सेदारी मिली है। कुल मिलाकर देखें तो सपा और बीजेपी में पिछड़ी जातियों के वोट बंटे हैं। ये बीजेपी के लिए अच्छी ख़बर नहीं है क्योंकि पिछली बार इस वोट का बड़ा हिस्सा बीजेपी को गया था।
इस बदलाव के पीछे किसान आंदोलन भी बड़ा कारण माना जा रहा है। किसान नेता, आंदोलन खत्म होते समय किए गए वादों के पूरा न होने से नाराज हैं। किसान नेता राकेश टिकैत आदि ने लखनऊ पहुंचकर, लोगों से अपील की है कि किसान विरोधी बीजेपी को जनता सजा दे। उन्होंने कहा, हम किसी को वोट देने की अपील नहीं कर रहे। बस इतना बता रहे कि बीजेपी किसान विरोधी है। पिछले चुनाव में जो वादे उन्होंने किसानों के लिए किए थे, पूरे नहीं किए। आंदोलन खत्म होते समय जो वादे थे, वे भी पूरे नहीं किए। इसलिए इनकी दवाई तो होनी ही चाहिए। हम बंगाल गए थे, वहां से इन्हें दवाई मिली। अब यूपी को भी इन्हें दवाई देनी चाहिए।
राकेश टिकैत ने संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से तैयार अपील के पोस्टर को भी साझा किया। कहा ये पोस्टर गांव-गांव, घर-घर पहुंचेंगे। हमारी सबसे बड़ी मांग 'एमएसपी' की है। किसान आंदोलन का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि अब जब भी बीजेपी का कोई नेता गांवों में वोट मांगने जाता है तो जनता उनसे हिसाब मांगने लगती है। ये फूट डालने वाले लोग हैं। हिजाब की बात करते हैं तो जनता हिसाब मांगेगी ही। पूछो किसानों के लिए क्या किया तो कहते हैं कि मुफ्त राशन दे रहे हैं। अरे हमें दाम दे दो अनाज हम खरीद लेंगे। यह सरकार तो लोकतंत्र के मंदिर में भी झूठ बोलती है। कहती है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। नहीं हुई क्या?
किसान आंदोलन का ही प्रभाव है कि सोमवार को कानपुर देहात की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आवारा पशुओं की समस्या का न सिर्फ ज़िक्र किया बल्कि उसे दूर करने का भी भरोसा किसानों को दिलाने की कोशिश भी की। यहां उन्होंने बेहतर कानून-व्यवस्था और राशन जैसे मुद्दे उठाए, लेकिन आवारा मवेशियों का भी जिक्र कर दिया। सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड के 14-15 ज़िलों में आवारा मवेशी बड़ी समस्या बन गए हैं। किसान पूरी रात जागकर फसलों की रखवाली करते हैं। सैकड़ों किसानों की फसलें मवेशी चर गए। मोदी ने कहा, गोबर किसानों के लिए आय का विकल्प बनेगा। दूध न देने वाले पशुओं से भी किसानों को इनकम होगी। बूढ़े पशु भी काम के होंगे। योगी जी की सरकार में बेसहारा पशुओं के लिए गोशालाएं बनाई हैं। 10 मार्च के बाद इस अभियान को और तेज किया जाएगा, ताकि किसानों को दिक्कत न हो। इसे किसानों के लिए प्रधानमंत्री का सीधा आश्वासन माना जा सकता है।
कुल मिलाकर बीजेपी के लिए पहला चरण बहुत मुश्किल था तो दूसरा चरण उससे भी ज्यादा मुश्किल कहा जा सकता है। अब बाकी के चरणों में ये मुश्किल कम होंगी या यही ट्रेंड आगे बढ़ेगा, देखना होगा। तीसरे चरण में यादव बैल्ट व बुंदेलखंड में 20 को वोट डाले जाएंगे। तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 सीटों पर वोटिंग होगी।
अब तीसरे चरण के लिए 20 फरवरी को यूपी के 16 जिलों की 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। यानि तीसरे चरण की चुनौती बड़ी है क्योंकि पहले दोनों चरण के मुकाबले तीसरे चरण में चुनाव ज्यादा जिलों में है। तीसरे चरण में जिन इलाकों में मतदान होना है, वहां के मुद्दे और समीकरण पहले के दोनों चरणों से बिल्कुल अलग हैं। कुल मिलाकर कहें तो यूपी का रण अब जाटलैंड से शिफ्ट होकर यादवलैंड और बुंदेलखंड में पहुंच गया है। तीसरे चरण में जिन इलाकों में मतदान होने जा रहा है, उसमें पश्चिमी यूपी का भी कुछ इलाका है। इसके साथ ही कुछ अवध का और कुछ बुंदेलखंड का है।
यूपी के तीसरे चरण में बुंदेलखंड के झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा की 13 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसी चरण में यूपी के अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रूखाबाद, कन्नौज और इटावा की कुल 27 सीटों के लिए मतदान होगा। साथ ही पश्चिमी यूपी का फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस के मतदाता भी 19 सीट के लिए वोट डालेंगे। वहीं तीसरे फेज की लड़ाई अखिलेश के लिए इसलिए अहम है, क्योंकि ये समाजवादी पार्टी का गढ़ है, लेकिन पिछले चुनाव में यहां साइकिल की रफ्तार कमजोर पड़ गई थी, जबकि बीजेपी के लिए यहां अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है।
उधर, सोमवार को उत्तराखंड की 70 सीटों पर भी चुनाव हुए। शाम 6 बजे तक उत्तराखंड में 59.51 प्रतिशत वोटिंग हुई। 2017 में ये आंकड़ा लगभग 65 था। यानी इस बार करीब 5% कम वोट डाले गए हैं। उत्तराखंड में मैदानी इलाक़ों में बीजेपी के पक्ष में जरूर कुछ अच्छी वोटिंग हुई है। जैसे हरिद्वार और देहरादून जैसी जगहों पर कुछ प्रभाव दिखा है। हालांकि यहां कांग्रेस, बीजेपी को कड़ी टक्कर देती दिख रही है। पहाड़ी इलाक़ों में और खास तौर पर गढ़वाल क्षेत्र में कांटे की टक्कर दिख सकती है क्योंकि यहां बीजेपी विधायकों के ख़िलाफ़ लहर है। वैसे भी उत्तराखंड राज्य के गठन से ही वहां एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार आती है।
यही नहीं, सोमवार को गोवा की भी 40 विधानसभा सीटों पर शाम 6 बजे तक लगभग 78.94% वोटिंग हुई है। ये 2017 की तुलना में 2% कम है। पिछली बार गोवा में 81.04 प्रतिशत वोट डाले गए थे। गोवा में लगभग दो दशकों के बाद बीजेपी बिना मनोहर पर्रिकर के चुनाव लड़ रही है तो मनोहर पर्रिकर के पुत्र उत्पल पर्रिकर पणजी से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया है। गोवा में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी रेस में है। 2017 में गोवा में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था लेकिन इस बार देखना होगा। बहरहाल 10 मार्च को ही स्थिति साफ हो सकेगी कि किसका पलड़ा भारी रहता है।
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