रांची। छत्तीसगढ़ और झारखंड में बहुत सारी समानताएं हैं। जैसे कि दोनों राज्य करीब 18 साल पहले लगभग एक साथ ही बने हैं. दोनों राज्यों में ही आदिवासी वोटर्स की संख्या बहुत ज्यादा है औऱ दोनों में ही नक्सवाद की समस्या है। बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे कि झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री रघुबर दास का जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ था। कई बार उनके विरोध के दौरान नारे भी लगाए जाते हैं, ‘रघुबर दास छत्तीसगढ़ वापस जाओ’. छत्तीसगढ़ फाउंडेशन डे (15 नवंबर) पर पैरा टीचर्स ने यह नारा इस्तेमाल किया था। ऐसे में अब छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार को भी इस नारेबाजी से जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में 90 में से 68 सीटें जीती हैं।
खनिज संपदा से संपन्न इस राज्य में स्थानीय बनाम बाहरी औऱ भाजपा का मुद्दा उठता रहा है। बीजेपी ने पहली बार गैर जनजातीय मुख्यमंत्री राज्य को दिया। वे हैं रघुबर दास। टाटा स्टील के पूर्व कर्मचारी दास, जो बाद में सक्रिय राजनीति में उतरे, छत्तीसगढ़ से हैं। अपने चार साल के दौरान, विपक्ष ने सरकारी नौकरी में बाहरी लोगों को शामिल करने का आरोप लगाया है। इस मुद्दे ने स्थानीय लोगों के बीच नाराजगी पैदा की है। ऐसे में 15 साल छत्तीसगढ़ में राज करने वाली बीजेपी की हार झारखंड चुनाव में प्रभाव डाल सकती है।
81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में 2014 में बीजेपी को 36 सीटें मिली थीं। बाद में झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी के छह विधायकों की बदौलत बीजेपी सरकार बना पाई थी। ऐसे में यह स्पष्ट हो रहा है कि विपक्ष को 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन बनाना होगा, जिससे केंद्र में बीजेपी को सत्ता में आने से रोका जा सकेगा। वर्तमान में झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा के 12 सांसद हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सबसे बुरी हार का सामना करने के बाद, ऐसा लगता है कि न केवल आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान बल्कि झारखंड विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
तीन राज्यों में बीजेपी की हार के बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की त्वरित टिप्पणी यह बताती है कि विपक्ष झारखंड में भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार है। हेमंत सोरेन ने ट्वीट किया था, "आज विधानसभा चुनाव 2018 का परिणाम बताता है कि सत्तारूढ़ बीजेपी से लोगों में नाराजगी है। यह मिशन 2019 के लिए एक स्पष्ट कॉल है. यह कॉल है सद्भावना बनाम सांप्रदायिकता की लड़ाई की।
चुनावी नतीजे आने के बाद झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और जेवीएम चीफ बाबूलाल मरांडी ने ई न्यूज़रूम से बात करते हुए कहा, "नरेंद्र मोदी सांप्रदायिकता फैल रहे थे, और गाय और मंदिर-मस्जिद राजनीति कर रहे थे, जिसे जनता ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। इसका झारखंड पर भी असर पड़ेगा। वास्तव में, बीजेपी सरकार के लिए उलटी गिनती अभी शुरू हो गई है।"
(शहनवाज अख्तर का यह आर्टिकल ई न्यूरूम पर अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था जिसका सबरंग के लिए हिंदी अनुवाद किया गया है।)
खनिज संपदा से संपन्न इस राज्य में स्थानीय बनाम बाहरी औऱ भाजपा का मुद्दा उठता रहा है। बीजेपी ने पहली बार गैर जनजातीय मुख्यमंत्री राज्य को दिया। वे हैं रघुबर दास। टाटा स्टील के पूर्व कर्मचारी दास, जो बाद में सक्रिय राजनीति में उतरे, छत्तीसगढ़ से हैं। अपने चार साल के दौरान, विपक्ष ने सरकारी नौकरी में बाहरी लोगों को शामिल करने का आरोप लगाया है। इस मुद्दे ने स्थानीय लोगों के बीच नाराजगी पैदा की है। ऐसे में 15 साल छत्तीसगढ़ में राज करने वाली बीजेपी की हार झारखंड चुनाव में प्रभाव डाल सकती है।
81 विधानसभा सीटों वाले झारखंड में 2014 में बीजेपी को 36 सीटें मिली थीं। बाद में झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी के छह विधायकों की बदौलत बीजेपी सरकार बना पाई थी। ऐसे में यह स्पष्ट हो रहा है कि विपक्ष को 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन बनाना होगा, जिससे केंद्र में बीजेपी को सत्ता में आने से रोका जा सकेगा। वर्तमान में झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा के 12 सांसद हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सबसे बुरी हार का सामना करने के बाद, ऐसा लगता है कि न केवल आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान बल्कि झारखंड विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है।
तीन राज्यों में बीजेपी की हार के बाद झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की त्वरित टिप्पणी यह बताती है कि विपक्ष झारखंड में भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार है। हेमंत सोरेन ने ट्वीट किया था, "आज विधानसभा चुनाव 2018 का परिणाम बताता है कि सत्तारूढ़ बीजेपी से लोगों में नाराजगी है। यह मिशन 2019 के लिए एक स्पष्ट कॉल है. यह कॉल है सद्भावना बनाम सांप्रदायिकता की लड़ाई की।
चुनावी नतीजे आने के बाद झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और जेवीएम चीफ बाबूलाल मरांडी ने ई न्यूज़रूम से बात करते हुए कहा, "नरेंद्र मोदी सांप्रदायिकता फैल रहे थे, और गाय और मंदिर-मस्जिद राजनीति कर रहे थे, जिसे जनता ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। इसका झारखंड पर भी असर पड़ेगा। वास्तव में, बीजेपी सरकार के लिए उलटी गिनती अभी शुरू हो गई है।"
(शहनवाज अख्तर का यह आर्टिकल ई न्यूरूम पर अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था जिसका सबरंग के लिए हिंदी अनुवाद किया गया है।)