तीनो बड़े हिंदीभाषी राज्यों मे काँग्रेस द्वारा किये गए किसानों की कर्जमाफी के वायदे पर मोदीभक्तो को स्वयंभू इकनॉमिस्ट बनने का दौरा पड़ गया है. वो चीख चीख कर बता रहे हैं कि इससे देश की इकनॉमी पर बोझ पड़ेगा विकास की रफ्तार धीमी हो जायेगी इस से अच्छा है कि किसानों की अन्य तरीकों से सहायता की जाए?
तो महानुभावों.... मोदी जी के किसी ने हाथ पकड़े है क्या? चार साल से हर बजट भाषण में हर साल बोलते हैं किसानों की आमदनी दुगुनी हो जाएगी लेकिन करते कभी नही, इतना ही किसानों का भला चाहते हैं तो स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू क्यो नही करने देते ?
कर्जमाफी को देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बताने वालों को यह क्यों नही दिखता कि सिर्फ तीन साल में कॉरपोरेट सेक्टर के 2.4 लाख करोड़ रुपये के बैड लोन ठंडे बस्ते में डाल दिए गए जबकि बीते 10 सालों में अलग-अलग राज्यों ने किसानों के 2.21 लाख करोड़ रुपये के करीब कर्ज माफ किए हैं, यानी कॉरपोरेट सेक्टर के बैड लोन से तुलना करें तो किसानों की कर्जमाफी कुछ भी नहीं है ,
अप्रैल 2018 में केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यसभा में बताया कि आरबीआई के डाटा के मुताबिक पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने 2,41,911 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट सेक्टर वाले बैड लोन खत्म कर दिए हैं। यह प्रक्रिया 2014-15 से लेकर 2017 के बीच पूरी की गई...... यानी मोदी सरकार के कार्यकाल में.. अब ये स्वयंभू अर्थशास्त्री बताए कि उन्होंने इस बात पर उंगली उठाई थी क्या?
अभी टेलीकॉम कम्पनिया स्पेक्ट्रम फीस न चुकाने की बात करेगी तो मोदी सरकार एक टांग पर खड़े होकर उनकी स्पेक्ट्रम फीस माफ कर देगी तब उन्हें यह सब नही दिखेगा?
आज देश में करीब करीब 9.2 करोड़ किसान परिवार हैं. जिन पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज है. यह कृषि मंत्रालय का आंकड़ा है, कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा के मुताबिक 80 फीसदी किसान बैंक लोन न चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक बीते दो दशक में (1995-2015) तक देश भर में 3.22 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. यानी हर आधे घंटे में एक किसान निराश होकर मौत को गले लगा लेता है. अब ये बताइये कि कितने उद्योगपतियों ने कर्ज न चुका पाने पर आत्महत्या की है?
तो महानुभावों.... मोदी जी के किसी ने हाथ पकड़े है क्या? चार साल से हर बजट भाषण में हर साल बोलते हैं किसानों की आमदनी दुगुनी हो जाएगी लेकिन करते कभी नही, इतना ही किसानों का भला चाहते हैं तो स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू क्यो नही करने देते ?
कर्जमाफी को देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बताने वालों को यह क्यों नही दिखता कि सिर्फ तीन साल में कॉरपोरेट सेक्टर के 2.4 लाख करोड़ रुपये के बैड लोन ठंडे बस्ते में डाल दिए गए जबकि बीते 10 सालों में अलग-अलग राज्यों ने किसानों के 2.21 लाख करोड़ रुपये के करीब कर्ज माफ किए हैं, यानी कॉरपोरेट सेक्टर के बैड लोन से तुलना करें तो किसानों की कर्जमाफी कुछ भी नहीं है ,
अप्रैल 2018 में केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यसभा में बताया कि आरबीआई के डाटा के मुताबिक पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने 2,41,911 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट सेक्टर वाले बैड लोन खत्म कर दिए हैं। यह प्रक्रिया 2014-15 से लेकर 2017 के बीच पूरी की गई...... यानी मोदी सरकार के कार्यकाल में.. अब ये स्वयंभू अर्थशास्त्री बताए कि उन्होंने इस बात पर उंगली उठाई थी क्या?
अभी टेलीकॉम कम्पनिया स्पेक्ट्रम फीस न चुकाने की बात करेगी तो मोदी सरकार एक टांग पर खड़े होकर उनकी स्पेक्ट्रम फीस माफ कर देगी तब उन्हें यह सब नही दिखेगा?
आज देश में करीब करीब 9.2 करोड़ किसान परिवार हैं. जिन पर औसतन 47 हजार रुपये का कर्ज है. यह कृषि मंत्रालय का आंकड़ा है, कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा के मुताबिक 80 फीसदी किसान बैंक लोन न चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक बीते दो दशक में (1995-2015) तक देश भर में 3.22 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. यानी हर आधे घंटे में एक किसान निराश होकर मौत को गले लगा लेता है. अब ये बताइये कि कितने उद्योगपतियों ने कर्ज न चुका पाने पर आत्महत्या की है?