भाजपा के शासन में वेदों-पुराणों और संस्कृत के प्रचार-प्रसार की बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन हकीकत में इनके लिए न तो शिक्षक मिलते हैं और न ही विद्यार्थी इन विषयों में अपना भविष्य बर्बाद करना चाहते हैं। इसके पीछे इन संस्थानों और विषयों पर ब्राह्मणों का वर्चस्व है। संस्थानों में शिक्षकों की नौकरियां केवल ब्राह्मणों के लिए ही अघोषत या घोषित तौर पर आरक्षित रहती हैं।
उज्जैन में दान और चंदे की रकम से महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति ने भी करोड़ों रुपए खर्च करके वैदिक प्रशिक्षण और शोध संस्थान बनाया है, जिसमें निशुल्क शिक्षा दिए जाने पर भी केवल 60 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। कमाल की बात तो ये है कि संस्थान में वेद पढ़ाने वाला कोई शिक्षक है ही नहीं। नईदुनिया की खबर के अनुसार विद्यार्थियों को गणित पढ़ाने वाली शिक्षिका महीनों पहले नौकरी छोड़ चुकी है।
जून 2018 से संस्थान में नए शिक्षण सत्र की शुरुआत हुई थी और तब ब्राह्मण जाति के शुभम शर्मा यहां वेद पढ़ा रहे थे, लेकिन जुलाई में ही शर्मा जी ने नौकरी छोड़ दी और तब से वेद का कोई शिक्षक संस्थान में नहीं है। संस्थान में गणित की भी पढ़ाई होती है, लेकिन शिक्षिका अदिति शर्मा अपने पद से त्यागपत्र दे चुकी हैं, जो ब्राह्मण जाति की ही थीं।
संस्थान के प्रभारी भी ब्राह्मण डॉ पीयूष त्रिपाठी हैं। संस्कृत और वेदों के नाम पर एक ही जाति का पोषण करने की नीति के कारण ही श्रद्धालुओं के करोड़ों रुपए फालतू में खर्च होते हैं, लेकिन ये सब आराम से बिना किसी आपत्ति के चलता रहता है क्योंकि लाभ लेने वाला वर्ग ब्राह्मण ही है, जबकि चंदा और दान देने वालों में सभी जातियों के लोग होते हैं, जिनमें एससी, एसटी और ओबीसी के साथ-साथ गैर ब्राह्मण सवर्ण लोग भी शामिल रहते हैं।
फिलहाल संस्थान में करीब 60 विद्यार्थी हैं जिन पर मंदिर समिति हर माह कई लाख रुपए खर्च करती है, लेकिन आधुनिक शिक्षा से तो ये वंचित हैं ही, साथ ही वह शिक्षा भी बच्चों को नहीं मिल पा रही है जिसके नाम पर ये संस्थान स्थापित किया गया है।
उज्जैन में दान और चंदे की रकम से महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति ने भी करोड़ों रुपए खर्च करके वैदिक प्रशिक्षण और शोध संस्थान बनाया है, जिसमें निशुल्क शिक्षा दिए जाने पर भी केवल 60 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। कमाल की बात तो ये है कि संस्थान में वेद पढ़ाने वाला कोई शिक्षक है ही नहीं। नईदुनिया की खबर के अनुसार विद्यार्थियों को गणित पढ़ाने वाली शिक्षिका महीनों पहले नौकरी छोड़ चुकी है।
जून 2018 से संस्थान में नए शिक्षण सत्र की शुरुआत हुई थी और तब ब्राह्मण जाति के शुभम शर्मा यहां वेद पढ़ा रहे थे, लेकिन जुलाई में ही शर्मा जी ने नौकरी छोड़ दी और तब से वेद का कोई शिक्षक संस्थान में नहीं है। संस्थान में गणित की भी पढ़ाई होती है, लेकिन शिक्षिका अदिति शर्मा अपने पद से त्यागपत्र दे चुकी हैं, जो ब्राह्मण जाति की ही थीं।
संस्थान के प्रभारी भी ब्राह्मण डॉ पीयूष त्रिपाठी हैं। संस्कृत और वेदों के नाम पर एक ही जाति का पोषण करने की नीति के कारण ही श्रद्धालुओं के करोड़ों रुपए फालतू में खर्च होते हैं, लेकिन ये सब आराम से बिना किसी आपत्ति के चलता रहता है क्योंकि लाभ लेने वाला वर्ग ब्राह्मण ही है, जबकि चंदा और दान देने वालों में सभी जातियों के लोग होते हैं, जिनमें एससी, एसटी और ओबीसी के साथ-साथ गैर ब्राह्मण सवर्ण लोग भी शामिल रहते हैं।
फिलहाल संस्थान में करीब 60 विद्यार्थी हैं जिन पर मंदिर समिति हर माह कई लाख रुपए खर्च करती है, लेकिन आधुनिक शिक्षा से तो ये वंचित हैं ही, साथ ही वह शिक्षा भी बच्चों को नहीं मिल पा रही है जिसके नाम पर ये संस्थान स्थापित किया गया है।