नई दिल्ली। गुजरात के पाटन के संतालपुर तालुका के पार गांव में कथित सवर्ण दलितों पर कहर ढा रहे हैं। जिसके चलते कई दलित परिवार गांव छोड़ने पर मजबूर हैं। दलित कार्यकर्ता के मुताबिक, ऊना कांड के बाद गांव के दलितों ने मरे जानवर उठाने से मना कर दिया था। जिसके चलते गांव में अपरकास्ट के लोग 6 महीने से दलितों का बहिष्कार कर रहे हैं।

जिला कलेक्टर ऑफिस के सामने बैठे दलित परिवार दूसरी जगह आशियाने की तलाश कर रहे हैं, दलितों परिवारों का मानना है राजपूत बाहुल्य गांव में वे अमन चैन से नहीं रह पाएंगे। गांव के पीड़ित दलित परिवार बच्चों, बूढ़ों सहित जिला कलेक्टर के सामने धरने पर बैठै हैं। दलित कार्यकर्ता कांतिलाल परमार ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया और कहा कि सरकार दलितों की दुर्दशा और वंचित तबके की अनदेखी कर रही है।
पार गांव के दलितों के पलायन की ये दूसरी घटना है। कुछ दिन पहले महसाना जिले के रानदेज गांव के दलितों ने अपरकास्ट के मरे जानवरों उठाने से मना कर दिया था। रानदेज गांव के दलितों को अपरकास्ट के लोगों ने मंदिर में सेरेमनी के दौरान अलग बैठने के लिए कहा गया था। इतना ही नहीं आयोजनकर्ताओं ने दलितों को भोजन देने से भी इंकार दिया था।
गांव के तथाकथित सवर्णों ने दलितों का बहिष्कार किया। डर के चलते दूसरे गांवों के दलितों ने गांव छोड़ दिया। सवर्णों ने कहा कि अगर अपरकास्ट का कोई भी व्यक्ति दलितों से बात करेगा तो उसके ऊपर 2,100 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। दलितों का गांव में राशन की दुकानों पर जाना बंद हो गया। दलित बस्ती में कोई खेल नहीं सकता था। दुकानदारों ने गांव के दलितों को दूध, सब्जी के अलावा रोजमर्रा की चीजें देने से मना कर दिया। दलितों को मजदूरी करने से रोक दिया गया।
सवर्णों के ढाए गए सितम से परेशान होकर दलितों के एक प्रतिनिधि मंडल ने जिला कलेक्टर से आने-जाने के लिए साधन मुहैया कराने की बात की। प्रतिनिध मंडल ने कहा कि जो लोग सवर्णों के सामाजिक बहिष्कार के चलते काम नहीं कर पा रहे हैं उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए। प्रतिनिधित्व मंडल की मांग है कि गांव में सब्जी दूध सहिए रोजमर्रा की चीजे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मुहैया कराई जाएं। प्रतिनिध मंडल ने मांग की दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

जिला कलेक्टर ऑफिस के सामने बैठे दलित परिवार दूसरी जगह आशियाने की तलाश कर रहे हैं, दलितों परिवारों का मानना है राजपूत बाहुल्य गांव में वे अमन चैन से नहीं रह पाएंगे। गांव के पीड़ित दलित परिवार बच्चों, बूढ़ों सहित जिला कलेक्टर के सामने धरने पर बैठै हैं। दलित कार्यकर्ता कांतिलाल परमार ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया और कहा कि सरकार दलितों की दुर्दशा और वंचित तबके की अनदेखी कर रही है।
पार गांव के दलितों के पलायन की ये दूसरी घटना है। कुछ दिन पहले महसाना जिले के रानदेज गांव के दलितों ने अपरकास्ट के मरे जानवरों उठाने से मना कर दिया था। रानदेज गांव के दलितों को अपरकास्ट के लोगों ने मंदिर में सेरेमनी के दौरान अलग बैठने के लिए कहा गया था। इतना ही नहीं आयोजनकर्ताओं ने दलितों को भोजन देने से भी इंकार दिया था।
गांव के तथाकथित सवर्णों ने दलितों का बहिष्कार किया। डर के चलते दूसरे गांवों के दलितों ने गांव छोड़ दिया। सवर्णों ने कहा कि अगर अपरकास्ट का कोई भी व्यक्ति दलितों से बात करेगा तो उसके ऊपर 2,100 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। दलितों का गांव में राशन की दुकानों पर जाना बंद हो गया। दलित बस्ती में कोई खेल नहीं सकता था। दुकानदारों ने गांव के दलितों को दूध, सब्जी के अलावा रोजमर्रा की चीजें देने से मना कर दिया। दलितों को मजदूरी करने से रोक दिया गया।
सवर्णों के ढाए गए सितम से परेशान होकर दलितों के एक प्रतिनिधि मंडल ने जिला कलेक्टर से आने-जाने के लिए साधन मुहैया कराने की बात की। प्रतिनिध मंडल ने कहा कि जो लोग सवर्णों के सामाजिक बहिष्कार के चलते काम नहीं कर पा रहे हैं उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए। प्रतिनिधित्व मंडल की मांग है कि गांव में सब्जी दूध सहिए रोजमर्रा की चीजे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के मुहैया कराई जाएं। प्रतिनिध मंडल ने मांग की दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।